जैसे-जैसे प्रेगनेंसी का समय बढ़ रहा था साँझ की तकलीफें भी बढ़ती जा रही थी। पर अब वह अंदर से स्ट्रांग थी और डॉक्टर ने क्लियर कर दिया था कि अब ऐसा कोई भी रिस्क नहीं है। इसलिए वह घर में थोड़ा बहुत चलती फिरती भी थी और कभी कभी अक्षत के साथ बाहर भी चली जाती थी, जब भी उसका मन कुछ अपनी पसंद का तिखा या चटपटा खाने का होता।
देखते ही देखते प्रेगनेंसी का पूरा समय निकल गया और आज सांझ हॉस्पिटल में थी।
उसकी कंडीशन को देखते हुए डॉक्टर ने सिजेरियन ही सजेस्ट किया था और सिजेरियन उसका चल रहा था।
अक्षत बाहर बेचैनी से अपनी हथेलियां को एक दूसरे से रगड़ते हुए घूम रहा था तो वहीं अरविंद साधना ईशान शालू मालिनी और अबीर भी वहीं बैठे हुए थे।
थोड़ी देर में मनु भी नीलाक्षी को लेकर वहां पहुंची और सब लोग बस खुशखबरी का इंतजार कर रहे थे।
थोड़ी देर में डॉक्टर बाहर आई और उसके हाथ में एक छोटा सा बेबी था।
उसने बच्चे को अक्षत की तरह बढ़ाया तो अक्षत ने अपने हाथ फैला दिए।
"बधाई हो चतुर्वेदी जी..!! आप पिता बन गए हैं आपके घर बेटा आया है।" डॉक्टर ने कहा।
"और सांझ वह कैसी है? " अक्षत ने कहा।
"बिल्कुल ठीक है थोड़ी देर में वार्ड में शिफ्ट कर देंगे तो आप मिल लीजिएगा।" डॉक्टर बोली और वापस चली गई।
सबने एक-एक करके उस बच्चे को अपनी गोद में लिया और उसे ढेरों आशीर्वाद दिए।
थोड़ी देर में डॉक्टर ने सांझ को स्पेशल वार्ड में शिफ्ट कर दिया तो अक्षत और बाकी परिवार बच्चे के साथ सांझ के पास आ गए।
साँझ बेहोश थी तो बाकी लोग वहीं उसके आसपास बैठकर उसके होश में आने का इंतजार करने लगे।
अक्षत ने उसका हाथ थाम लिया और वही उसके पास बैठ गया
लगभग एक डेढ़ घंटे बाद साँझ को हल्का होश आया और नजर सीधे पास रखे पालने पर गई जो कि खाली था।
सांझ को एकदम से टेंशन हुई और उसने घबराकर चारों तरफ देखा कि तभी अक्षत ने उसके माथे पर हाथ रखा।
" जज साहब हमारा बेबी..??" सांझ बोली तो अक्षत ने साधना को इशारा किया।
साधना ने लाकर वह बच्चा सांझ के बाजू में लेटा दिया।
सांस के चेहरे पर सुकून आ गया और उसने धीरे से उसके ऊपर हाथ रखा और उसकी आंखें भर आई।
" हमारा बच्चा।" सांझ धीमे से बोली।
" हां मिसेज चतुर्वेदी हमारा बेटा।"
" थैंक्स सांझ ..!!" अक्षत ने बेबी के माथे को चूमते हुए कहा तो सांझ ने मुस्कुरा कर आंखें बंद कर ली।
एक हफ्ते बाद सांझ और उसके बच्चे को लेकर सब लोग घर आ गए। और फिर घर पर ही उन लोगों का ध्यान रखने लगे।
लगभग दस दिन का समय बीत गया था और फिर साधना ने घर में पंडित जी को बुलाकर पूजन रखवाया और साथ ही साथ बच्चे का नामकरण संस्कार भी।
पंडित जी ने पूजन किया और उसके बाद बच्चे और अक्षत और सांझ की तरफ देखा।।
" राषि के हिसाब से इसका नाम ए अक्षर से आता है तो आप लोग ही अपने हिसाब से कोई नाम रख लीजिए। " पंडित जी ने कहा तो अक्षत और सांझ ने एक दूसरे को देखा और फिर धीमे से बोले" अक्षांश"
" अक्षांश ..!! बहुत ही प्यारा नाम है।" साधना और अरविंद बोले।
"हां बहुत ही खूबसूरत नाम है बहुत प्यारा नाम है..!!" मालिनी और आमिर ने भी बच्चे को आशीर्वाद देते हुए कहा।
अब घर में अच्छी खासी चहल पहल होने लगी थी।
शालु के दोनों बच्चे घुटनों चलने लगे थे और पूरा दिन घर में इधर से उधर दौड़ते थे और शालू उनके पीछे दौड़ते दौड़ते और उन्हें संभालते संभालते पागल हो जाती थी।
जैसे तैसे वह दोनों को सुलाती तो अक्षांश की नींद खुल जाती और उसका रोना शुरू हो जाता था। तो शालू फिर सांझ की मदद करने आ जाती थी। पर दोनों बहने खुशी-खुशी और प्यार से तीनों बच्चों को संभाल कर रही थी।
धीमे-धीमे करके समय आगे बढ़ने लगा और तीनों बच्चे बड़े होने लगे।
अक्षांश पांच साल का हो गया था और समन्यु और इशानी छः साल के।
तीनों बच्चे स्कूल जाना शुरू हो गए थे और अरविंद और साधना का सारा समय उन लोगों के साथ ही निकलता। कभी उन्हें स्कूल छोड़ने जाना कभी उन्हें स्कूल से लेने जाना और बाकी समय उनके साथ खेलना।
अरविंद ने अब ऑफिस जाना पूरी तरीके से बंद कर दिया था और ऑफिस पूरी तरीके से ईशान और शालू ने संभाल लिया था।
सांझ ने अक्षत के कहने पर कुछ देर के लिए अस्पताल में जाना शुरू कर दिया था ताकि उसका अपने कैरियर पर भी फोकस बना रहे।
अक्षांश छः साल का हुआ कि तभी सांझ ने एक बेटी को जन्म दिया। जिसका नाम सबने प्यार से शांभवी रखा।
अब अक्षत और साँझ का परिवार पूरा हो चुका था और और साथ ही साथ ईशान और शालू का भी।
नील और मनु ने नीलाक्षी के बाद दूसरे बच्चे के बारे में प्लानिंग नहीं की क्योंकि मनु को भी बिजनेस संभालना था और नील भी पूरी तरीके से काम में डूबा हुआ था। उनकी पूरी दुनिया नीलाक्षी तक सीमित थी और इसके अलावा उन्हें और किसी चीज की न हीं जरूरत थी और ना ही उन्होंने उसके बारे में सोचा।
इस दौरान आव्या की शादी अरुण के साथ हो गई थी और दोनों अपने परिवार में खुश थे।
सौरभ का अब खुद का प्रिंटिंग प्रेस था तो वही निशि दिल्ली कि जानी मानी होम्योपैथिक फ़िजीशियन थी।
नेहा पहले ही दिल्ली छोड़ छोड़ चुकी थी और वह वापस से आनंद के साथ विदेश चली गई थी। वैसे भी यहां पर उसका कोई नहीं था और जो थे वह उससे कोई संबंध नहीं रखना चाहते थे जैसे कि अक्षत और सांझ। सांझ चाहती भी थी पर अक्षत बिल्कुल क्लियर था कि उसे पुराने किसी भी व्यक्ति से सांझ का कोई संबंध नहीं रखता है जिससे की सांझ को पुरानी बातें याद आये और जो किसी कारण सांझ को हर्ट करे।
****
रात का समय
सांझ फ्री होकर आई तो देखा कि अक्षत की बाजू पर अक्षांश सिर रखे लेटा है और पेट पर संभावी लेटी है और अक्षत उन्हे कहानी सुना रहा है।
" अरे तुम तो समन्यु के साथ अपने कमरे में सोते हो न..?? तो आज इतनी रात तक यहाँ क्या कर रहे हो.??" सांझ ने अक्षांश को देखते हुए कहा
" आज पापा पास सोऊंगा..!" अक्षांश बोला।
" जज साहब .!" साँझ बोली तो अक्षत ने दूसरी बांह फैला दी पर इससे पहले कि सांझ लेटती समन्यु आकर उस बांह पर लेट गया।
" आज मैं भी बड़े पापा के पास सोऊंगा मौसी..!" समन्यु अक्षत से लिपट के बोला तो सांझ मुस्करा उठी और एक साइड लेटी तभी ईशानी आकर उसकी बांह पर लेट गई और फिर अक्षत सांझ चारों बच्चो को सुलाते सुलाते खुद नींद में चले गए।
कुछ देर बाद शालू और साधना देखने आई तो देखा चारो बच्चे अक्षत और साँझ से लिपटे सो रहे है।
" बहुत बिगाड़ रहे है ये दोनों बच्चो को।" शालू ने मुस्करा के कहा।
" इसे बिगाड़ना नही लाड करना कहते है। नजर न लगे मेरे परिवार और बच्चो को..!" साधना ने उनकी बलाये लेते हुए कहा और लाइट ऑफ कर दोनों निकल गई।
To be continue..
End of season 1
तो दोस्तों आज इस कहानी को इसके आखरी अंजाम तक पहुंचा दिया है मैंने। कहानी जो लेकर चली अपने साथ कई उतार-चढ़ाव और कुछ बहुत ही अहम मुद्दे भी। उम्मीद करती हूं कि मैंने उन सभी मुद्दों और पहलुओं के साथ न्याय किया होगा जो मैं इस रचना में दिखाना चाहती थी। इस रचना की शुरुआत में अच्छी खासी ट्रोलिंग हुई और मुझे भी बहुत परेशान किया गया। खैर वह सब पुरानी बातें हो गई है। सारी चीज धीरे-धीरे करके शार्ट आउट होती गई और फाइनली कहानी पूरी हुई और आप सबके सामने है। इस कहानी को इतना प्यार देने के लिए दिल से धन्यवाद।
वैसे यह कहानी अपने आप में पूरी हो चुकी है पर to be continued ....सिर्फ इसलिए लिखा है कि कभी आगे जाकर मर्जी हुई मेरी तो इसका सेकंड सीजन लेकर आऊंगी, वरना यह तो अपने आप में पूरी है ही।
उम्मीद करती हूं इस रचना ने आपका मनोरंजन करने के साथ-साथ ही आपको कई और जरूरी बातों से अवगत कराया होगा।।
मैं यह नहीं कहती कि यह रचना किसी सत्य घटना पर आधारित है पर रचना सत्य घटनाओं से प्रेरित है।
इस तरह की घटनाएं हमने अपने आसपास होते देखी हैं। महिलाओं पर अत्याचार कोई नई बात नहीं है और ना ही कोई आज की बात है।
हर तरीके के अपराध और अत्याचार महिलाओं के साथ जुड़े हुए हैं। बस उन्हीं में से कुछ बातों को लिखने की और दिखाने की यहां पर कोशिश की है।
उम्मीद करती हूं आप लोगों की उम्मीदो पर खरी उतरी होगी।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
समाप्त
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