साइकिल और हुनरमन्द DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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साइकिल और हुनरमन्द

1. बाल कहानी - साइकिल

तीन मित्र थे, राजू, सोनू और पप्पू। तीनों में बड़ी गहरी मित्रता थी। छुट्टी का दिन था। तीनों ने एक योजना बनायी कि, "चलो, क्यों न हम लोग आज साइकिल की दौड़ करते हैं। जो सबसे आगे होगा, उसको इनाम मिलेगा।" सोनू की बात सुनकर राजू बोल उठा, "पर ईनाम देगा कौन?"पप्पू और सोनू भी सोच में पड़ गये। बोले, "राजू! तुम सही कह रहे हो। जीतने वाले को ईनाम देगा कौन?" तभी सोनू के मन में एक विचार आया। वह झट से बोल उठा, "मेरे पास पाँच रुपए हैं। तुम दोनों के पास कितने रुपए है?"इत्तेफाक से राजू और पप्पू के पास भी पाँच रुपए थे। तीनों ने पैसा इकठ्ठा किया और शर्त लगायी कि, "जो जीता, उसके ये सारे पैसे अभी।" साइकिल का खेल शुरू ही हुआ था कि पास खड़ा मिंटू सब सुन रहा था। वह दौड़कर तीनों के घर गया और शिकायत की कि, "तीनों जुआ खेल रहे है पैसा लगाकर, वो भी साइकिल रेस में। फिर क्या था? तीनों के अभिभावकों ने आकर सच्चाई देखी और तीनों को समझाते हुए बोले, "बेटा! ये गलत है। जीत की खुशी में इन्हीं पैसे से कुछ खा लेते, पर शर्त लगाना, पैसा लगाना सही नहीं है।" पास खड़ा मिंटू बहुत उदास था। वह बोला, "आप सबको मैंने इतना बढ़ा-चढ़ाकर इन तीनों की शिकायत की। आप मारने, डाँटने, व सजा देने की बजाय समझा रहे हैं! ऐसा क्यो?"

तभी उनमें से एक अभिभावक बोला, "प्यारे बच्चे प्यार से समझ जाते हैं। उन्हें सजा देने की जरूरत नहीं पड़ती। तुम भी मेरे पुत्र समान हो। चुगली करने के बजाय गलत काम करने से रोकने का प्रयास किया करो। "मिंटू ने माफी माँगी और बोला, "ठीक है। आज से मैं भी अच्छा बच्चा बनूँगा।" सोनू, राजू और पप्पू को भी अपनी गलती का एहसास हुआ। सबने बारी-बारी माफ़ी माँगी और सब लोग अपने-अपने घर की ओर चल दिए।

संस्कार सन्देश - प्यारे बच्चे सदैव अपने अभिभावक का कहना मानते हैं। अगर भूल से कोई गलती हो जाए तो माफी माँग लेते हैं।

2. बाल कहानी - हुनरमन्द

जूलिया कक्षा आठ की छात्रा थी। वह पढ़ने में बेहद कमजोर थी। गणित विषय तो जूलिया को समझ ही नहीं आता था। पढ़ाई-लिखाई में कमजोर होने के कारण जूलिया के माता-पिता उसके भविष्य के बारे में सोचकर सदैव चिन्तित रहते, परन्तु जूलिया को ड्राइंग का बेहद शौक था। वह कक्षा में पढ़ाई के समय भी चित्र बनाती। जब शिक्षक जूलिया को पढ़ाई के समय चित्रकला में मगन देखते तो उसे बहुत डाँटते, परन्तु जूलिया अपने काम में ही मस्त रहती। उसका यह व्यवहार देखकर विद्यालय के प्रधानाचार्य जी ने एक दिन जूलिया के माता-पिता को विद्यालय में बुलाया और जूलिया को कक्षा आठ से कक्षा पाँच में कर दिया‌। यह सुनकर जूलिया के माता-पिता बहुत दु:खी हुए, लेकिन जूलिया को इस बात की खुशी हुई कि अब उसे कठिन विषय नहीं पढ़ने पढ़ेंगे और चित्र बनाने का ज्यादा समय मिलेगा‌। जूलिया अपनी कक्षा में बैठे-बैठे शिक्षकों के चित्र बना देती। आसपास के प्राकृतिक वातावरण को देखकर वह अपने चित्रकारी के माध्यम से कागजों पर उतार देती। उसकी चित्रकला की लोग खूब सराहना करते। जूलिया के रिश्तेदार जब उसके घर आते तो जूलिया की चित्रकला देखकर प्रसन्न होते। वे अपने लिए भी जूलिया से चित्र बनाने को कहते। यह देखकर जूलिया की माँ कभी-कभी बहुत गुस्सा करती, पर जूलिया अपने चित्रकला में सदैव प्रसन्न रहती है। समय बीतता गया। जूलिया अपने चित्रकला के माध्यम से सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ती हुई आगे बढ़ने लगी। जूलिया की कला-प्रदर्शनी कई देशों में प्रदर्शित हुई। एक दिन वह सफल चित्रकार बनी। जूलिया की सफलता से उसके माता-पिता गौरवान्वित हो गये।

संस्कार सन्देश - माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों की रुचि को ध्यान में रखते हुए शिक्षा देनी चाहिए।