एक लड़की अनजानी सी DINESH KUMAR KEER द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक लड़की अनजानी सी

एक लड़की अनजानी सी

परसो रात्रि करीबन साढ़े ग्यारह बजे मे आॅफिस से घर को बाइक से निकला ही था की कुछ ही दूरी पर एक लडकी नजर आई सलवार सूट पहने मदद का हाथ लिए इशारे से...
मैने बाइक रोकी तो पास से टैक्सी निकल गयी...
मैने कहा-जी कहिए...
वो गुस्से से बोली मैने टैक्सी को हाथ दिया था, इतनी देर मे बडी मुश्किल से आया था ओर आपकी वजह से वो भी निकल गया...
मुझे भी बुरा लगा, सोचा - इतनी रात को अकेली लडकी मेरी गलतफहमी की वजह से परेशान हो गई...
मैने तुरंत माफी मांगी ओर लिफ्ट के लिए पूछा उसने साफ मना कर दिया मैने फिर कहा रात बहुत हो चुकी है, ओर आप अकेली हो...
मगर वो तो गुस्साए मूड मे थी...
मैने मन मे सोचा चलता हूं यार...
फिर सोचा इस वक्त सुनसान सडक अकेली लडकी भगवान ना करें कही कुछ गलत हो गया तो...
नही...
मुझे इसकी मदद करनी चाहिए, वरना उस अपराध का दोषी मे भी होउंगा, जोकि मुझसे अंजाने मे हो गया, पता नही अब कब टैक्सी मिलेगी इसे...
मैने कहा ठीक है जबतक आपको टैक्सी नही मिलती मै यही कुछ दूर खडा रहता हूं चूंकि गलती मेरी है मेरी जिम्मेदारी बनती है इसकी...
वो कुछ नही बोली ऐसे ही करीबन आधा घंटा ओर बीत गया समय बारह के पार हो गया मैने फिर से उससे लिफ्ट के लिए पूछा और कहा अबतक आधा सफर तय कर दिया होता यहां खडे होने से कोई फायदा नही मगर उसने सुनकर अनसुना कर दिया, अजीब उलझन मे था उसे अकेले छोड़ने पर मन नही था, मन मै बेचेनी थी मेरे कही कुछ अनहोनी ना हो जाए फिर सोचा जब मेरे मन मै इतनी घबराहट है तो, वो तो एक लडकी है, ओर मे तो उसके लिए अनजान कैसे विश्वास होगा, आखिर मे भी एक लडका हूं ओर वो एक लडकी मुझसे ज्यादा तो वो मन मे डर रही होगी, अचानक मुझे एक उपाय सूझा मैने कहा - देखो मेरे घर मे भी तुम्हारे जैसी एक छोटी बहन है, ओर तुम भी बिल्कुल वैसी हो मेरी मानो यहां इतनी रात को अकेले रूकना ठीक नही है, प्लीज ! मेरे साथ बाइक पर चलो जहां तक तुम्हें अच्छा लगे, मेरे इन शब्दों से वो कुछ राहत के मूड मे आई ओर बोली आप जाइए मै...
मै कोई ना कोई उपाय कर लूंगी मैने कहा मुझे ही यहां रूके एक घंटा होने जा रहा है, टैक्सी तो दूर आदमी भी नजर नही आ रहा प्लीज चलो मैने आपको अपनी बहन बोला फिर भी आप मुझपर शक कर रही हो मगर उसने फिर से मना कर दिया तभी मैने अपना पर्स खोला ओर उससे बोला - देखो...
इसमें मेरी फोटो है, पहचान पत्र है, ड्राइविंग लांइसेंस, आधार कार्ड है...
इसे अपने पास रख लो, जब अपने घर या किसी सुरक्षित जगह पहुंच जाओ तो लौटा देना...
उसे पर्स में से आधार कार्ड निकाला और पढा...
दिनेश...
हां मेरा नाम है...
देखो अब प्लीज मना मत करना... तुम्हारे घर मे तुम्हारे मम्मी-पापा, भाई-बहन इंतजार करते होगे...
वैसे कर तो मेरे मम्मी-पापा और बहन भी...
परेशान भी हो रहे होगें...
अब चलो...
वह थोड़ा सा मुस्कुराई और बाइक पर बैठ गई मैंने पूछा कहा है तुम्हारा घर...
वो बोली...
आप चलते रहो जहां लगेगा बता दूंगी...
करीबन एक घंटा लगातार बाइक चलती रही वो कुछ नही बोली लगभग चालीस किलोमीटर...
अचानक बोली...
बस-बस यहीं रोक दो...
और तुरंत एक सडक से मौहल्ला की ओर जाने वाले रास्ते पर दौड पडी... चंद मिनटों में वो मेरी आँखों से ओझल हो गई .....
खैर मन मे सुकून था चलो वह घर के पास तो पहुंच गई....
जैसे-तैसे घर पहुंचा, तो तीन बज चुके थे, पापा बहुत गुस्सा हो रहे थे मम्मी और बहन भी जाग रहे थे...
यकीनन वो सभी चिंतित थे और गुस्सा भी...
सो बिना कुछ बताए मै चुपचाप अपने कमरे में चला गया...
अगले दिन रविवार था, सो आराम से सो रहा था अचानक ग्यारह बजे छोटी बहन ने आकर, झकझोरा...
भैया...
उठो कोई लडकी आई है, उसके, मम्मी-पापा भी है, क्या, कोई लड़ाई कर दिया कया...
और हंसने लगी...
पापा बुला रहे है नीचे...
जल्दी चलो...
पागल है...
मैं और लड़ाई...
शैतान कही की...
अचकच्ची नींद में तुरंत बनियान पहने नीचे आया...
देखा तो वहीं रात वाली लडकी...
और एक अंकल-आंटी साथ में थे...
ये...
ये यहां कैसे, इसे तो मे काफी दूर छोडकर आया था, इसके घर...
और मेरा घर तो बहुत दूर...
इससे पहले मे कुछ पूछूँ, वो उठकर आई और बोली...
भैया...
हैरान हो गए ना...
मैं यहां कैसे...
आपका पर्स...
जिसमें आपका पैन कार्ड, आधार कार्ड है, उसी से पता लेकर मम्मी-पापा के साथ आई हूं...
आपने बीती रात मेरी इतनी मदद की और मैंने आपको शुक्रिया तक नहीं बोला उल्टा आपके जरूरी दस्तावेज भी ले गई...
पहले शुक्रिया...
फिर क्षमा...
जैसे आपने कहा था मैं भी आपकी छोटी बहन जैसी हूं...
इसके बाद उसके मम्मी पापा ने मुझे ढेरों आशीर्वाद दिए, और काफी देर तक, वो मेरी तारीफें करते रहे फिर अपने यहां सहपरिवार आने का निमंत्रण देकर वह लोग चले गए...
उनके जाते ही पापा ने मुझे सीने से लगा लिया, और कहा मुझे गर्व है, तुझपे दिनेश...
ये की तुमने एक अच्छे बेटे वाली बात...
मगर...
रात को ही बता देता, तो अच्छा होता ना बेकार मे तुझे डांटा मैंने...
मैंने कहा - पापा...
आप भी तो मेरी भलाई के लिए ही चिंतित थे...
तभी पापा ने एक बार फिर से मुझे सीने से लगा लिया, मगर...
इस बार मम्मी और छोटी बहन भी आकर मुझसे लिपट गये थे...
दोस्तों मुझे मेरे पापा ने एक बात समझाई है, अकेली लडकी मौका नहीं जिम्मेदारी होती है...