यादों की अशर्फियाँ - 23 - आखिरी दिन Urvi Vaghela द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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यादों की अशर्फियाँ - 23 - आखिरी दिन

आखिरी दिन

    अब हम साल के अंत की और पहुंच गए थे। कुछ ही दिनों में हमारी परीक्षाएं शुरू होने वाली थी। बोर्ड की एक्जाम तो खत्म हो चुकी थी। इसलिए 10th के ट्यूशन को बंद हो चुके थे। थोड़े ही दिनों में हमारा ट्यूशन भी बंद हो जायेगा क्योंकि सिलेबस भी खत्म हो गया था, वैसे भी मणिक सर तो नहीं आते थे। मेहुल सर ने अपना सिलेबस भी खत्म कर दिया था अब सिर्फ एक्जाम की तैयारी ही करवा रहे थे। 

    मेहुल सर अपने स्कूल की कोई बड़ी सी फाइल लेकर आए थे अपना काम करने के लिए। वैसे भी हम फ्री ही थे क्योंकि सिलेबस तो खत्म हो गया था। सर ने अपना काम शुरू किया और हमने अपना। हम पहले तो बातें करना, गेम खेलना और थोड़ी रीडिंग की। पर जब सर का काम खत्म हो गया तो मैंने सर से पूछा की एक पजल पूछूं। सर ने हमेशा की तरह हा कहा। मैंने किसी व्हाट्सएप ग्रुप में भेजी गई पजल को ड्रॉ किया जिसमे कई अंक इस तरह अरेंज करके लिखा गया था की सिर्फ दो या तीन अंक ही दिखे। पहले तो सब ने वही जवाब दिया फिर उत्कर्ष ने सही जवाब को ढूंढ लिया और वह बोला। मैंने बोर्ड मे से पजल मिटा दी और वहा थैंक यू लिख दिया और साथ में यह भी की आपका जवाब सही है। पर मेरे थैंक यू का मजाक बना दिया निखिल और उसके दोस्तो ने। फिर मैंने लिख दिया की यह थैंक यू मेरे पजल का जिसने जवाब दिया उसके लिए था। यह पढ़कर सर भी हस पड़े। अब मैंने तो पजल दे दी थी तो बॉयज कैसे पीछे रह सकते थे? सर से परमिशन मांग कर निखिल भी उतरा मैदान में। उसने बोर्ड के बीचों बीच चोक से लकीर खींच दी और बॉयज और गर्ल्स का पार्ट बना दिया फिर अपनी और कुछ बनाने लगा पर कुछ सूझा ही नहीं। फिर उसके जिगरी दोस्त जैमिन को बुलाया उसने कुछ ड्रॉ किया जिसमे दो इमोजी को मिलाकर एक मूवी का नाम बनता था पर हमने इसका जवाब तुरंत दे दिया। फिर इसने कुछ पूछा पर इसका जवाब हम दे उसके पहले सर ने दिया और निखिल बोला, “ क्या सर, आप क्यों बोले? यह सवाल थोड़ा हार्ड था।” इसके कहने का मतलब था की हमे जवाब न आए और वह हमारा मज़ाक बना सके पर सर ने हमे अनजाने में ही सही पर बचा लिया। 

श्रेयांश भी खड़ा हुआ कुछ ड्रॉ करने लगा उसने हंस वाली एक ड्राइंग बनाई जो पहले हार्ट शेप बनने के कारण हसी का पात्र बनी फिर तारीफ का।

 फिर जब सर का बड़ी फाइल वाला काम खत्म हो गया तो वह फाइल हर्षित ने उठा ली जैसे कोई बच्चा उठाता है। उसने ऐलान किया
“देखो सब, मैने पूरी पृथ्वी जीत ली है। सब इस फाइल पर अपनी साइन कर दो इस लिए यह पृथ्वी मेरी हो जाए।”
“पाकिस्तान भी तुमने जीत लिया क्या?” श्रेयांश ने पूछा।
“ हा, हा सब थोड़ा हार्ड था पर मैंने उसे जीत ही लिया।”
“चीन भी?” अब तो गर्ल्स भी पूछने में बाकी न रही। “ हा सब कुछ चाहे तो देख लो” फाइल के पेज दिखाने लगा। 
फिर सबके पास जाकर साइन करवाने लगा। जब सब बॉयज ने कर दी तो निखिल ने चिढ़ाया की देखना हा, कई गर्ल्स आक्रमण कर के तुमसे छीन ना ले। जाओ उनकी भी साइन ले l” निखिल को लगा की हर्षित नहीं जायेगा पर वह तो सच में आया। वह सबसे पहले मेरे पास ही आया उस वक्त में बोर्ड वर्क कर रही थी तो मुझसे कहने लगा, “आपका काम महत्वपूर्ण नहीं है मेरा जितना महत्वपूर्ण है आप जल्दी से साइन कर दो।”
मैंने भी कह दिया, “छोटे से साइन के लिए अपने काम को डिस्टर्ब नहीं कर सकती। आप मेरे असिस्टेंट से करवा लो।” 

  सब हंस पड़े क्योंकि मेरे इस छोटे से वाक्य से हर्षित का पूरा एलान पे पानी फिर गया था। फिर भी वह पूछे न हटा वही बात मुझसे सख्ती से कही और मेने भी वही बात दोहराई फिर क्या उसे मेरी बात माननी ही पड़ी।

हम सब ने न सिर्फ सर के फाइल के साथ खेला पर सर को मदद भी की सच में आखरी दिन यादगार रहा।

***