पटारा मैं अभी तो पूरी एक नोट बुक निकली जिसमे क्रमांनुसार कहानियाँ लिखो हुई थी...
*♨️ *!! तांबे का सिक्का !!*
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*एक राजा का जन्मदिन था। सुबह जब वह घूमने निकला, तो उसने तय किया कि वह रास्ते में मिलने वाले पहले व्यक्ति को पूरी तरह खुश व संतुष्ट करेगा।*
*उसे एक भिखारी मिला। भिखारी ने राजा से भीख मांगी, तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया।*
*सिक्का भिखारी के हाथ से छूट कर नाली में जा गिरा। भिखारी नाली में हाथ डाल तांबे का सिक्का ढूंढ़ने लगा। राजा ने उसे बुला कर दूसरा तांबे का सिक्का दिया।*
*भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापस जाकर नाली में गिरा सिक्का ढूंढ़ने लगा।*
*राजा को लगा की भिखारी बहुत गरीब है, उसने भिखारी को चांदी का एक सिक्का दिया।*
*भिखारी राजा की जय जयकार करता फिर नाली में सिक्का ढूंढ़ने लगा। राजा ने अब भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया।*
*भिखारी खुशी से झूम उठा और वापिस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा। राजा को बहुत खराब लगा। उसे खुद से तय की गयी बात याद आ गयी कि पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश एवं संतुष्ट करना है।*
*उसने भिखारी को बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हूं, अब तो खुश व संतुष्ट हो? भिखारी बोला- मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूंगा जब नाली में गिरा तांबे का सिक्का मुझे मिल जायेगा।*
*शिक्षा:-*
*हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है। हमें भगवान ने आध्यात्मिकता रूपी अनमोल खजाना दिया है और हम उसे भूलकर संसार रूपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे हैं।*
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♨️ *जीवन का गणित*
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*एक राजा सुबह सैर करने के लिए महल से अकेला ही निकला।*
*रास्ते में उसने*
*एक किसान को पसीने में तर-ब-तर अपने खेत में काम करते हुए देखा।*
*राजा ने पूछा, 'भाई आप इतनी मेहनत करते हो, दिन में कितना कमा लेते हो?'*
*किसान ने उत्तर दिया, 'एक सोने का सिक्का।'*
*राजा ने पूछा 'उस सोने के सिक्के का क्या करते हो?'*
*किसान ने कहा, 'राजन! एक-चौथाई भाग मैं खुद खाता हूं।*
*दूसरा - चौथाई भाग उधार देता हूं।*
*तीसरे-चौथाई भाग से ब्याज चुकाता हूं और बाकी*
*चौथाई हिस्सा कुएं में डाल देता हूं।'*
*किसान की बात राजा की समझ में न आई।*
*वह बोले, 'भाई, पहेली मत बुझाओ। साफ़-साफ़ बताओ।"*
*किसान ने मंद-मंद मुस्कुराकर कहा, 'महाराज, पहले चौथाई भाग में से मैं अपना और अपनी पत्नी का पेट पालता हूं।*
*दूसरे-चौथाई हिस्से में अपने बाल-बच्चों को खिलाता हूं, क्योंकि बुढ़ापे में वे ही हमें पालने वाले हैं।*
*तीसरे-चौथाई भाग से मैं अपने बूढ़े मां-बाप को खिलाता हूं, क्योंकि उन्होंने मुझे पाल-पोसकर बड़ा किया है।*
*इसलिए मैं उनका ऋणी हूं। इस प्रकार उनका ब्याज चुकाता हूं।*
*बाकी चौथाई हिस्से को मैं दान-पुण्य में लगा देता हूं,जिससे मृत्यु के बाद परलोक सुधर जाए।"*
*राजा किसान की ईमानदारी पर बहत खुश हआ।*
*इस कहानी से हमें निम्नलिखित शिक्षाएँ मिलती हैं:*
*1. जिम्मेदारियों का संतुलन: किसान अपनी कमाई को चार हिस्सों में बांटकर अपने वर्तमान, भविष्य, अतीत और समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाता है। यह सिखाता है कि जीवन में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।*
*2. परिवार का महत्व: अपने परिवार के प्रति दायित्व निभाना, जैसे बच्चों की परवरिश और बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल, एक महत्वपूर्ण सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी है।*
*3. दानी स्वभाव: अपनी कमाई का एक हिस्सा दान करना सिखाता है कि हमें समाज और दूसरों के प्रति भी संवेदनशील और उदार होना चाहिए।*
*4. संतोष और कृतज्ञता: जो प्राप्त है, उसी में संतुष्ट रहना और कृतज्ञता से जीवन जीना ही सच्चे सुख का आधार है। यदि मन में शांति है, तो बाहरी साधनों की कमी भी हमें दुखी नहीं कर सकती।*
*कहानी हमें यह सिखाती है कि ईमानदारी, संतुलन, त्याग, और कृतज्ञता से भरा जीवन ही सार्थक और सुखमय होता है।*
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आशिष के आशिष
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