*♨ *!! नया नज़रिया !!*
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*झारखंड के एक छोटे से कस्बे में एक बालक के मन में नई-नई बातों को जानने की जिज्ञासा थी। उस बालक के मोहल्ले में एक गुरुजी रहते थे। एक दिन बालक उनके पास गया और बोला, 'मैं कामयाब बनना चाहता हूं, कृपया बताएं कि कामयाबी का रास्ता क्या है?'*
*हंसते हुए गुरुजी बोले, 'बेटा, मैं तुम्हें कामयाबी का रास्ता बताऊंगा, पहले तुम मेरी गाय को सामने वाले खूंटे से बांध दो, कह कर उन्होंने गाय की रस्सी बालक को दे दी। वह गाय किसी के काबू में नहीं आती थी।*
*अतः जैसे ही बालक ने रस्सी थामी कि वह छलांग लगा, हाथ से छूट गई। फिर काफी मशक्कत के बाद बालक ने चतुराई से काम लेते हुए तेजी से भाग कर गाय को पैरों से पकड़ लिया। पैर पकड़े जाने पर गाय एक कदम भी नहीं भाग पाई और बालक उसे खूंटे से बांधने में कामयाब हुआ।*
*यह देख गुरुजी बोले, 'शाबाश, बेटे यही है कामयाबी का रास्ता। जड़ पकड़ने से पूरा पेड़ काबू में आ जाता है। अगर हम किसी समस्या की जड़ पकड़ लें, तो उसका हल आसानी से निकाल सकते हैं।*
*बालक ने इसी सूत्र को आत्मसात कर लिया और जीवन में आगे बढ़ता गया।*
*शिक्षा:-*
*हमें किसी भी समस्या का हल तब तक नहीं मिलता जब तक हम उसकी जड़ को नहीं पकड़ लेते। अत: हर समस्या का समाधान उसकी जड़ काबू में आने पर ही होता है।*
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*♨️ *"छोटी शुरुआत, बड़ी सीख"*
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*एक संत ने एक द्वार पर दस्तक दी और आवाज़ लगाई - भिक्षां देहि।*
*एक छोटी-सी बच्ची बाहर आई, बोली, "बाबा, हम गरीब हैं, हमारे पास देने को कुछ नहीं है संत बोले, “बेटी, मना मत कर, अपने आँगन की धूल ही दे दे।"*
*लड़की ने एक मुट्ठी धूल उठाई और भिक्षा- पात्र में डाल दी।*
*शिष्य ने पूछा, "गुरु जी, धूल भी कोई भिक्षा है! आपने धूल देने को क्यों कहा?'*
*संत बोले, “बेटा, अगर वह आज 'न' कह देती तो फिर कभी दान नहीं दे पाती। धूल दी तो क्या हुआ, दान देने का संस्कार तो पड़ गया।*
*आज धूल दी है तो उसमें दान देने की भावना तो जागी।*
*इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान का महत्व मात्र वस्त्र या धन में ही नहीं, बल्कि दान देने की भावना में होता है।*
*1. संस्कार और आदत: किसी भी कार्य को करने की आदत तब ही विकसित होती है जब हम उसे छोटे रूप में ही सही, शुरू करते हैं। संत ने लड़की को धूल दान करवाकर उसमें देने की आदत और संस्कार विकसित किए। यही आदत भविष्य में उसे बड़े और सार्थक दान देने के लिए प्रेरित करेगी।*
*2. छोटा दान भी मूल्यवान है: दान का आकार महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि उसे देने की नीयत और भावना अधिक मायने रखती है। भले ही लड़की ने धूल दी, लेकिन उसकी भावना और सोच मूल्यवान है।*
*3. नेगेटिव न कहने का महत्व: यदि लड़की ने "न" कह दिया होता, तो वह दान देने से पीछे हटने की मानसिकता विकसित कर सकती थी। इसके विपरीत, कुछ छोटा देकर उसने अपने मन में उदारता की भावना को जीवित रखा।*
आशिष के आशिष
concept.shah@gmail.com
*यह कहानी हमें यह सिखाती है कि छोटी शुरुआत से भी बड़े बदलाव की नींव रखी जा सकती है।*
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