*♨️**"सुख और दुःख मन की देनहै -
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एक गुरु के दो शिष्य थे। दोनों किसान थे। भगवान का भजन पूजन भी दोनों करते थे। स्वच्छता और सफाई पर भी दोनों की आस्था थी, किन्तु एक बड़ा सुखी था, दूसरा बड़ा दुखी।**गुरु की मृत्यु पहले हुई पीछे दोनों शिष्यों की भी। दैवयोग से स्वर्गलोक में भी तीनों एक ही स्थान पर जा मिले, पर स्थिति यहां भी पहले जैसी ही थी।**जो पृथ्वी में सुखी था, यहाँ भी प्रसन्नता अनुभव कर रहा था और जो आए दिन क्लेश-कलह आदि के कारण पृथ्वी में अशांत रहता था, यहाँ भी अशांत दिखाई दिया।**दुखी शिष्य ने गुरुदेव के समीप जाकर कहा-'भगवन्! लोग कहते हैं, ईश्वर भक्ति से स्वर्ग में सुख मिलता है पर हम तो यहाँ भी दुखी के दुखी रहे।'**गुरु ने गंभीर होकर उत्तर दिया 'वत्स ईश्वर भक्ति से स्वर्ग तो मिल सकता है पर सुख और दुःख मन की देन हैं। मन शुद्ध हो तो नरक में भी सुख ही है और मन शुद्ध नहीं तो स्वर्ग में भी कोई सुख नहीं है।'**इस कहानी से मिलने वाली प्रमुख शिक्षाएं निम्नलिखित हैं:
**1. सुख-दुख का स्रोत मन है: हमारे सुख-दुख का असली कारण बाहरी परिस्थितियाँ नहीं, बल्कि हमारा मन है। यदि मन शांत और संतुष्ट है, तो कठिन परिस्थितियों में भी हम सुख का अनुभव कर सकते हैं।**2. ईश्वर भक्ति का असली अर्थ: केवल पूजा-पाठ करने से या स्वर्ग की प्राप्ति से सच्चा सुख नहीं मिलता। ईश्वर भक्ति का अर्थ मन की शुद्धि और आंतरिक शांति प्राप्त करना है।*
*3. मन की शुद्धि आवश्यक है: बाहरी साधन और स्थिति सुख की गारंटी नहीं देते। यदि मन में नकारात्मकता, अशांति या असंतोष है, तो अच्छे से अच्छे स्थान पर भी व्यक्ति दुखी रह सकता है।**
4. अंतरात्मा की संतुष्टि से सच्चा सुख मिलता है: सच्चा सुख तब मिलता है जब व्यक्ति का मन और आत्मा शांत, शुद्ध और संतुष्ट हो।**
5. आत्म-निरीक्षण का महत्व: व्यक्ति को स्वयं के भीतर झांकना चाहिए और यह समझना चाहिए कि सच्चा सुख मन की स्थिति पर निर्भर करता है, न कि बाहरी साधनों पर।**कहानी सिखाती है कि हमें बाहरी दुनिया पर नियंत्रण करने के बजाय अपने मन को संतुलित और शांत रखने का प्रयास करना चाहिए, जिससे हम हर परिस्थिति में सुखी रह सकें।*
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*♨️"शिक्षा का निचोड़"*-
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*काशी में गंगा के तट पर एक सन्त का आश्रम था।*
*एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा- 'गुरुवर ! शिक्षा का निचोड़ क्या है ?'*
*सन्त ने मुस्करा कर कहा-'एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।'*
*कुछ समय बाद एक रात सन्त ने उस शिष्य से कहा- 'वत्स ! इस पुस्तक को मेरे कमरे में तख्त पर रख दो।' शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट आया।*
*वह डर से कांप रहा था। सन्त ने पूछा- 'क्या हुआ, इतना डरे हुए क्यों हो?' शिष्य ने कहा- 'गुरुवर! कमरे में सांप है।'*
*सन्त ने कहा-'यह तुम्हारा भ्रम होगा। कमरे में सांप कहाँ से आएगा।*
*तुम फिर जाओ किसी मंत्र का जाप करना। सांप होगा तो भाग जाएगा।' शिष्य दोबारा कमरे में गया।*
*उसने मंत्र का जाप भी किया लेकिन सांप उसी स्थान पर था। वह डर कर फिर बाहर आ गया और*
*सन्त से बोला 'सांप वहाँ से जा नहीं रहा है।'*
*सन्त ने कहा- 'इस बार दीपक लेकर जाओ। सांप होगा तो दीपक के प्रकाश से भाग जाएगा।'*
*शिष्य इस बार दीपक लेकर गया तो देखा कि वहाँ सांप नहीं है। सांप की जगह एक रस्सी लटकी हुई थी। अंधकार के कारण उसे रस्सी का वह टुकड़ा सांप नजर आ रहा था।*
*बाहर आकर शिष्य ने कहा-'गुरुवर! वहाँ सांप नहीं रस्सी का टुकड़ा है। अंधेरे में मैंने उसे सांप समझ लिया था।'*
*सन्त ने कहा-'वत्स, इसी को भ्रम कहते हैं।*
*संसार गहन भ्रम जाल में जकड़ा हुआ है। ज्ञान के प्रकाश से ही इस भ्रम जाल को मिटाया जा सकता है। यही शिक्षा का निचोड़ है।*
*वास्तव में अज्ञानता के कारण हम बहुत सारे भ्रमजाल पाल लेते हैं और आंतरिक दीपक के अभाव में उसे दूर नहीं कर पाते।*
*यह आंतरिक दीपक का प्रकाश निरंतर स्वाध्याय और ज्ञानार्जन से मिलता है।*
*जब तक आंतरिक दीपक का प्रकाश प्रज्वलित नहीं होगा, लोग भ्रमजाल से मुक्ति नहीं पा सकते।*
*इस कहानी से हमें निम्नलिखित शिक्षाएँ मिलती हैं:*
*1. अज्ञानता भ्रम का कारण है: हम अक्सर अनजाने में किसी चीज को गलत रूप में देख लेते हैं, जिससे भय, संदेह, और गलतफहमी पैदा होती है। ज्ञान के अभाव में हम भ्रम का शिकार हो जाते हैं।*
*2. ज्ञान ही सत्य का मार्ग है: जिस तरह दीपक के प्रकाश में रस्सी और सांप का भेद स्पष्ट हो गया, उसी तरह जीवन में ज्ञान का प्रकाश ही वास्तविकता को देखने में सहायता करता है और भ्रम को दूर करता है।*
*3. आत्म-ज्ञान का महत्व: जीवन के भ्रमजाल से निकलने के लिए आत्म-ज्ञान या स्वाध्याय आवश्यक है। ज्ञान का यह दीपक हमारे भीतर है, पर उसे जागृत करना जरूरी है।*
*4. डर से मुक्ति: अज्ञानता के कारण हमें अक्सर डर का अनुभव होता है। ज्ञान प्राप्ति के साथ ही हम अपने डर को समझने और उनसे उबरने में सक्षम हो जाते हैं।*
*5. निरंतर स्वाध्याय: सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए लगातार अध्ययन और आत्म-चिंतन करना आवश्यक है। यह आंतरिक ज्ञान का दीपक प्रज्वलित करने का साधन है।*
*6. बाहरी और भीतरी प्रकाश का महत्व: जैसे कमरे में दीपक जलाने से सांप का भ्रम दूर हुआ, वैसे ही अपने अंदर के अज्ञान को मिटाने के लिए भी आत्मज्ञान रूपी दीपक प्रज्वलित करना आवश्यक है।*
*कहानी का सार यही है कि शिक्षा का असली निचोड़ आत्म-ज्ञान और भ्रम से मुक्ति में है, जो हमें सही दिशा और सच्चा सुख प्रदान करता है।*
*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️ आशिष के आशिष
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