स्वयंवधू - 24 Sayant द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्वयंवधू - 24

जैसा कि हमने सुना है, अतीत में उनका अपहरण किया गया था और उन्हें प्रताड़ित किया गया था। तो, हो सकता है कि उनके खराब स्वास्थ्य का कारण यही हो, लेकिन किसी तरह वे इतने बड़े और मजबूत बनने में कामयाब रहे, उनकी इच्छाशक्ति अगले स्तर की होगी।
मुझे अपने पैरों में सुन्नता महसूस हुई, मैं कल्पना नहीं कर सकती कि एक कमज़ोर बच्चा, एक महीने से अधिक समय तक इस तरह से प्रताड़ित होना कैसा होता होगा, मैं इसकी कल्पना नहीं कर सकती।
जब हम हतप्रभ थे, हमने कदमों की आवाज़ सुनी। मैं थोड़ा चौंक गयी। यह वृषा थे जो विषय के साथ अन्दर आ रहे थे। हर कोई चुप था, हमें जीवन जी के चारों ओर इकट्ठा देखकर उन्हें अंदाज़ा लग गया होगा कि उनका काला अतीत अब हमारे सामने आ गया था। उन्होंने बस एक आह भरी, अपनी टाई उतारी और मुख्य सोफे पर बैठ गए।
उन्होंने बस पूछा, "तो तुम्हें सब पता चल चुका हैं?",
"हाँ, अब अपने हिस्से की कहानी बताओ?", शिवम ने कड़े शब्दों में कहा,
गंभीर चेहरे के साथ उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है कि कोई और रास्ता नहीं है।",
"यस मिस्टर वृषा! अभी बिना एक झूठ के और सच छिपाए सब कुछ सीधे-सीधे बको।", मैं उस समय उनके प्रति उनके गुस्से को महसूस कर सकती थी।
मुझे खुशी था कि मैंने समय रहते वह फोन हटा लिया।
उन्होंने बस आह भरी, "तुम क्या जानना चाहते हो? यदि तुम जीवन के हिस्से की कहानी जानते हो, तो तुम और तुम्हारा नया परिवार और मैं फिर कभी एक-दूसरे के रास्ते में नहीं आऐंगे। मैं मूर्ख था जो तुम्हें यहाँ आने दिया। बस तुरंत चले जाओ। एक खुशहाल शादीशुदा जीवन के लिए शुभकामनाएँ।",
दी से, "उसका अच्छे से ख्याल रखना सुहासिनी, वह आसानी से किसी पर भी भरोसा कर देता है और कभी किसी से सवाल नहीं करता। तुम्हारे जैसी बुद्धिमान स्त्री उसके लिए सही है। मैंने तुम्हारे परिवार और तुम्हारे पति के परिवार के साथ जो किया उसके लिए मुझे पछतावा है। मुझे खेद है और मैं जानता हूँ कि जो कुछ इनके साथ हुआ, उसके लिए यह पर्याप्त नहीं है। लेकिन... उसे यहाँ से ले जाओ।",
उन्होंने भारी आवाज़ के साथ कहा, "आजतक मुझपर भरोसा बनाए रखने के लिए तुम्हारा धन्यवाद। पर आज के बाद कभी मत बनाना।",
वे उठ खड़े हुए, दीदी के सामने आदर से हल्के से सिर झुकाकर ऊपर की ओर चलने लगे। ठीक उसी सीढ़ियों पर जहाँ उन पर हमला हुआ था और वे लगभग मारे गए थे, वहाँ, शिवम जी ने वृषा को कॉलर से पकड़कर उनके चेहरे पर एक ज़ोरदार मुक्का मारा और गुस्से में उन्हें नीचे गिरा दिया। शिवम जी आँखों में आँसू थे।
हर कोई दंग रह गया।
"तुम अपने आप को क्या समझते हो! हाँ?", वे क्रोध में चिल्लाये,
वृषा के मुँह से खून बह रहा था। वे उनके कॉलर को ज़ोर से पटकते हुए पूछते रहे, "आखिर उस रात हुआ क्या था? और तुम हमसे दूरी क्यों बनाने लगे? आखिर हुआ क्या था? कारण क्या था?", अश्रु उनके आँखो से बहा जा रहा था फिर भी उनका हमला शांत नहीं हुआ। उन्हें अलग करने के लिए भैय्या को बीच-बचाव के लिए दौड़ना पड़ा। मिस्टर खुराना ने वृषा के ज़ख्मों को देखा। वृषा अब भी इकदम शांत थे, या मानो वे किसी अपराधबोध से जूझ रहे हो। उनकी आँखे भी सूजी हुई थी।
"क्यों तुम हमे नहीं बताते? कम-से-कम बड़े होने के नाते, मुझे बता सकते हो?", वे उन्हें धोने के लिए संघर्ष कर रहे थे। दी जाकर उन्हें शांत कर रही थी।
मुझे ऐसा महसूस नहीं करना चाहिए था... लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं सिर्फ एक दर्शक की तरह थी जो सिर्फ शो देखने के लिए वहाँ थी, ना कि उनकी मदद करने योग्य। मैं अकेली वहाँ बेजान सी खड़ी रही, कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं थी। वैसे जैसे कि जब मैं मम्मा-डैडा के साथ थी, इकदम नालायक। खुद के लिए खड़ा होने में असक्षम, खाने के लिए एक और अतिरिक्त मुँह और कपड़े के लिए एक और अतिरिक्त तन। मैं खुद से नफरत करती हूँ! मैं उस व्यक्ति का समर्थन या सुरक्षा नहीं कर सकती जिसकी मैं परवाह करती हूँ। काश मैं कभी पैदा ही ना होती। वृषा ने मुझे उस अपराध बोध से बाहर निकलने में मदद की, फिर भी मैं कुछ नहीं कर सकती। 
"वृषाली, जल्दी से आइस पैक ले आओ!", भैया चिल्लाये,
झट से असलियत में आ मैं जल्दी से आइस पैक लेने के लिए भागी। मैंने इसे मिस्टर खुराना को देने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मुझे ऐसा करने दिया। मैंने धीरे से उस घाव को दबाया। यह इतना बड़ा नहीं है, लेकिन दर्द रहेगा।
(छुओ इसे!) वही आवाज़ गूँजी,
मैंने इसे टालने की कोशिश की लेकिन अंततः मेरा पसीने वाला हाथ वृषा के घाव पर पड़ गया, और सोचिए क्या हुआ, ज़ख्म तुरंत ठीक हो गया। मैं आश्चर्यचकित और हतप्रभ रह गयी पर, मुझसे अधिक हर कोई हतप्रभ या कहो हैरान परेशान था।
अचानक मिस्टर आर्य ने पूछा, "क्या तुम दोनों बात करने के लिए तैयार हो? वृषा बोलो।",
वृषा ने क्रोध में आकर कुछ भी बोलना नहीं चाहा, लेकिन अंततः उन्होंने हार मान ली। शिवम उनके लिए एक महत्वपूर्ण मित्र है और वे कभी भी वादा नहीं तोड़ते, जैसा कि उनके नाम का अर्थ है, 'वह जो कभी अपने वादे नहीं तोड़ता'।
हम सब सीढ़ियों के पास बैठे थे जहाँ वे लड़ रहे थे, यह सत्संग जैसा था।
"शुरू से अंत तक सब कुछ, सिर्फ तुम्हारा अपहरण नहीं। तुम समझ जाओ मैं क्या पूछ रहा हूँ?", शिवम जी ने कहा,
उन्होंने कहा, "जन्म से ही माँ-मान्या और समीर ने ने मेरी उपेक्षा की है। मेरा पालन-पोषण पूरी तरह से अमम्मा ने किया। वह नहीं चाहती कि मैं उन्हें दादी कहूँ, बल्कि नानी कहूँ। उन्होंने मुझे उसे अमम्मा कहने के लिए कहा, जिसका तेलुगु में अर्थ नानी होता है, क्योंकि उनकी बेटी को जीने की अनुमति नहीं दी गयी थी।
उन्हें पिछली पीढ़ी की महाशक्ति द्वारा बलिदान कर दिया गया था जो मानते थे मज़बूत बालिका शक्ति कमज़ोर पुरुष शक्तियों को मज़बूत करने का एक स्रोत है।
उस समय मेरे दादाजी प्रभावशाली नहीं थे, वह पंद्रह वर्ष के थे और अमम्मा चौदह वर्ष की थीं जब उन्हें विवाह करने और एक वर्ष के भीतर बच्चा पैदा करने के लिए मज़बूर किया गया। उस अवधि तक यह सामान्य बात थी। उनकी पहली संतानें जुड़वाँ थीं, जिनमें लड़की, लड़के से बड़ी और स्वस्थ थी। उस समय महाशक्ति, रेड्डी परिवार की मुखिया थी जो एक कठोर व्यक्ति थी, जो मानती थी कि पुरुष श्रेष्ठ हैं और महिलाऐं उनकी इच्छापूर्ति करने की साधन है।
उसने दादा जी को धमकी दी कि वे उनकी बिटिया की शक्ति को सोखकर लड़के में स्थानांतरित कर दें। उन्होंने इनकार कर दिया क्योंकि अमम्मा अनुपस्थित थी और उनके दोनों बच्चे स्वस्थ थे और सामान्य जीवन जी सकते थे लेकिन... महाशक्ति की अलग ही योजना थी। अमम्मा में जन्म देने के बाद ऊर्जा की कमी हो गई थी और उन्होंने अपनी शक्ति से दादा जी को जकड़ लिया था।
उनकी पत्नी या बच्ची?
अगर माँ को चुनते तो बच्ची मारी जाती।
अगर वो बच्ची को चुनते तो, अमम्मा तो मारी जाती साथ ही बच्ची भी उनके पहले हफ्ते में मारी जाती। दोंनो तरफ बच्ची का बचना असंभव था!
और वो सामान्य शक्ति थे जो उनके सामने चींटी के भाँति थे।
अगर उन्होंने बिना कोई निर्णय लिए एक भी कदम उठाता तो वह वही करती जो उन्हें सही लगता।
अब यह उनकी पसंद थी, अपनी बेटी या अपनी पत्नी? शक्ति के बिना कोई भी शक्ति लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकती। अपने माता-पिता और अन्य शक्तियों तथा अपनी पत्नी को तड़पता देख, दबाव में उन्होंने अंततः अपनी मिनटो के कलेजे के टुकड़े को अपने ही हाथ से उसकी जीवन ऊर्जा अपने बेटे में डाल, अपने अस्त-व्यस्त मानसिक स्थिती के साथ अमम्मा के पास बेटे और शव को ले गये।
जैसे ही वह उनके पास पहुँचे, उनके दुःख के कारण उनकी ऊर्जा हवा में फैल गई, जिससे वे जल्द ही संभल गयी।
उन्हें इस तरह से टूटा हुआ देखकर वह समझ गई और उन्होंने अपनी बेटी को आखिरी बार अलविदा कहा और प्यार से गले लगाया। महाशक्ति ने तब छोटे से शरीर को उस कमरे में फेंक दिया, यह जाँचने के लिए कि क्या उनमें अभी भी कुछ शक्ति है या नहीं?
सब कुछ होने के बाद दादा जी ने खुद को सभी से अलग कर लिया। उन्होंने हर शक्ति परिवार से संबंध तोड़ लिए और सबकुछ त्याग कर बिजलानी फूडज़ की शुरुआत की।
अमम्मा सहायक थीं और दूसरी बार कोशिश करना चाहती थीं, लेकिन वे हादसे से ट्रॉमटाइसड थे। जिसकी वजह से उन्होंने खुद को काम में डुबो रखा था, वे इतने शक्तिशाली बनना चाहते थे कि कोई भी उन पर उंगली तक उठा सके।
उन्होंने अंततः इसे हासिल कर लिया लेकिन अपने परिवार की उपेक्षा की। उनकी लापरवाही के कारण समीर उनसे दूर हो गए। होश में आने पर उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने क्या खो दिया था। बहुत देर हो चुकी थी, महाशक्ति ने उनसे संपर्क किया और उन्हें वह सब कुछ बता दिया जो गुप्त रखा गया था। किसी छोटी सी बात पर उनके बीच हुई बहुत बड़ी झड़प के बाद, उसने उस विषय को उठाया और उन्हें सबक सिखाने के लिए उसने उनकी जीवशक्ति को सोख लिया और फिर महाशक्ति को सबक सिखाने के लिए उसे ट्रेस कर उसकी जीवशक्ति को सोखना चाहा, उसका नतीजा मिला जिसने उसे शक्ति के लिए लालची व्यक्ति होने का श्राप दिया।
मुझे बहुत खेद है लेकिन यह मेरे पिता थे जिन्होंने अपनी बहन की मौत का बदला लेने के लिए तुम्हारे दादा जी और दादी जी (महाशक्ति) दोनों को मार डाला और उन्होंने आपके परिवार को दिवालिया बनाने की कोशिश की।
मान्या ने हमारे परिवार के आपसी रंजिश का फायदा उठाना चाहा और समीर ने उसका फायदा उठा तुम दोंनो के लिए चुनौतियाँ खड़ी कर दी, जिसका एक ही उपाय था, हमारी दोस्ती! जिसने दो परिवारों को जोड़ रखा था। माफ करना मैंने सब अचानक और अपरिपक्व रूप से संभाला। लेकिन जब मैं उनके द्वारा घर में नजरबंद था, तो यही सबसे सुरक्षित उपाय था जिसके बारे में मैं सोच सकता था। यह दर्दनाक था लेकिन काम कर गया।",

"हम ही पहले दोषी थे। उस दिन क्या हुआ था? तुम उस विषय से क्यों बच रहे हो?", शिवम जी ने माँग की,
"ऐसा नहीं है कि मैं इससे बच रहा हूँ, यह सिर्फ मुझे शर्मिंदा करता है। मेरी अपनी माँ ने तुम्हें मारने कि कोशिश की और मेरे पिता ने हमारी दोस्ती का उपयोग करके तुम्हारे परिवार को और अधिक बर्बाद करने की कोशिश की।
हाह!...6 और 7 सितम्बर की रात को, मैंने उस दरवाज़े के ठीक बाहर जोरदार हंगामा सुना, जहाँ मुझे बँद करके रखा गया था। तभी मैंने ज़ोरदार धमाके के साथ एक दर्दनाक चीख सुनी, जैसे घूंसे या लातें मारी गई हों, फिर दरवाज़ा धीरे से आवाज़ के साथ खुला। मैं कई सप्ताह तक भूखा रहा, यही मैंने अपनी रिपोर्ट में देखा। उस भूख-प्यास, बुखार और असमंजस की स्थिति में मैंने देखा कि जीवन जी खून से लथपथ मेरी ओर बढ़ रहे थे, मैंने सोचा कि अब समय आ गया, लेकिन उसने मेरे पैरों से लोहे की जंजीरें हटा दीं।
(उसकी अप्रिय ध्वनि आज भी मुझे भयभीत कर देती है।)
मुझे आज़ाद कर दिया गया।",
सभी ने राहत की सांस ली।
"फिर उसने बंदूक निकाली और मेरी तरफ गोली चला दी।", उन्होंने कहा शांत रहो और हम सबने सांस रोक ली,
"मैं डर से जम गया था, तभी वह मुझपर धमकाते हुए चिल्लाने लगा, 'अगर ज़िदा रहना चाहते हो तो भागो!', 'चले जाओ इससे पहले मैं पूरे बिजलानी परिवार को खत्म कर दूँ!'
उसने कहा पर, मेरे पास साँस लेने तक की ताकत नहीं तो मैचों मरने के लिए तैयार था तो उन्होंने मुझे गर्दन से उठा सड़क पर फेक दिया था।",
ये सुन मेरी हँसी लगभग निकल गयी थी।
उन्होंने जारी रखा, "फिर फटी हुई हाफ पैंट और फटी हुई शर्ट पहने हुए सड़कों पर ठंडी हवाओं से पिटने के बाद मैं लक्ष्यहीन चलने के लिए मज़बूर हो गया, जहाँ एक कार ने मुझे टक्कर मार दी।",
हम फिर से डर के मारे हांफने लगे।
                                -जारी है।