स्वयंवधू - 8 Sayant द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्वयंवधू - 8

उसने मुझे पूल के अंत तक धकेल दिया।
"बस वही कह जो मैं पूछा जाएँ!", वह अभद्र थी। उसका रवैया बहुत ही घटिया था। मैंने बात करने और पूल से दूर जाने की कोशिश की लेकिन उसने मुझे वहीं खड़े रहने पर मजबूर किया।
उसने पूछना शुरू किया। मुझे बस 'हाँ' या 'ना' कहना था। वह काफी अड़ियल थी।
"पहला सवाल! तुम्हारी हाथ में ये अंगुठी कैसी?",
मैंने अपने बाएँ हाथ की ओर देखा, "ओह ये! यह स्वयंवधू के लिए आवश्यक है ना? जब मैंने इसे पहना था तो यह अटक गयी थी।",
"फिर भी तुमने इसे पहना?",
"दाईमाँ ने कहा था कि ये-", उसने मुझे बीच में ही टोक दिया,
"क्या तुम मुझे नहीं जानती?", उसने मुझे घूरकर देखा,
मैं हिली लेकिन, "नहीं।"
उसने मुझे गुस्से से देखा, "तुम उसे कब से जानती हो?!",
"हम बस ऐसे ही...",
"तुम उसे कितना, किस हद तक, कितने अंदर तक जानती हो!", वह इस वक्त तक मुझपर चीखने-चिल्लाने लगी,
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं पतली बर्फ पर खड़ी थी, "म-मुझे नहीं पता...मैं-मैं उन्हें व-वैसा नहीं जान-",
"ज़्यादा भोली बनने कि कोशिश मत करो! बहुत देखे है तुम्हारे जैसे। वह आदमी और उसके नाम पर मेरा नाम लिखा है। कायल अपनी चीज़ नहीं बाँटती! आज तक जिसने भी कायल की चीज़ पर नज़र डालने की भी कोशिश की, वह बचा नहीं है! अगर अपनी सलामती चाहती हो तो चली जाओ। जब तक मैं अच्छी हूँ, चली जाओ।", वह मुझे धमकाते हुए मेरे पास आ रहा थी और मैं पहले से पूल के करीब छोटे-छोटे कदम ले पीछे जाते-जाते इल्म किनारे पहुँच गई। एक कदम और मैं डूबी। मैं डर से वही जम गई। कायल मेरी तरफ हाथ उठाते आयी तभी अचानक वहाँ भैय्या आ गये।
"तुम यहाँ हो? मैं तुम्हें कब से ढूँढ़ रहा हूँ।", वह ज़ोर-ज़ोर से हाँफ रहे थे,
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और उसे पीछे छोड़कर चले गये। वह हमें अपनी लगभग मरी हुई आँखों से जाते हुए घूरे जा रही थी।
हम घर के अंदर गए।
जो कुछ अभी-अभी हुआ था उससे मैं अंदर से काँप रही थी।
भैय्या तनाव में लग रहे थे। उन्होंने अपने सिर पर हाथ रखकर लंबी साँस ली, "क्या तुम ठीक हो? कायल के साथ तुम क्या कर रही थी? वृषा ने तुम्हें यह नहीं बताया गया कि कायल से दूर रहना?",
मैंने हाँ में सिर हिलाया।
भैय्या गुस्से में, "तो फिर तुम उसके पीछे क्यों गई थी?!",
मैं सहम गयी। मैं उलझन में थी। मुझे कुछ नहीं पता लेकिन एक बात पता थी कि शायद वृषा सही थे। मैंने अपना पूरा दिन पहेली, दिव्या और साक्षी से घिरे बिताया। मैंने दिन भर कायल को नहीं देखा।
शाम को वृषा घर आए। उनके लिए रात के खाने के लिए आना बहुत जल्दी था। जैसे ही वे पहुँचे उन्होंने मुझे डाँटा और पूछा कि क्या हुआ। मैंने इनकार करते हुए कहा कि कुछ खास नहीं हुआ।
हमारी बातचीत के बाद मुझे पता चला कि वह फिल्म इंडस्ट्री की टॉप एक्ट्रेस हैं और अनजाने में मैंने यह कहकर उसका अपमान किया कि 'मैं तुम्हें नहीं जानती'। मैंने गलती की लेकिन हमारी बातचीत के बाद मैं उससे डरने लगी थी लेकिन मैं इसे लेकर तिल का ताड़ नहीं बना सकती , "वृषा, वहाँ नहीं। आपकी दाहिनी तरफ...फाइले को मैंने आपके दाहिने ओर रखा है।", मैं हमेशा की तरह अपने जीवन में व्यस्त हो गयी। हमने कल रात के बारे में बात की, बात करना बेकार लगा इसलिए हमने इसे छोड़ दिया। मुझे बस सावधान रहने के लिए कहा गया था क्योंकि मैं वृषा के करीब थी और उनकी दिनचर्या और खाने का ध्यान मैं ही रख रही थी, यह स्वयंवधू का पहला चरण था जिसका मुझे अंदाज़ा...बिल्कुल नहीं था।

रात को खाने की मेज़ पर वे चरण-2, 'रचनात्मकता' के बारे में बात कर रहे थे।
भैय्या सब समझा रहे थे तभी कायल बीच में बोली, "तुम सभी को बेडरूम के लिए डिज़ाइन जमा करना होगा। वो भी परसो तक। जो नहीं कर पाया उसे स्वयंवधू को छोड़कर जाना होगा!", वह बहुत बेरहमी से मुस्कुराई और उसने हमारी तरफ घूरकर देखा, खासकर मेरी तरफ।
(क्या उसने मुझे घूर कर देखा?), मुझे लगा,
(उसने निश्चित रूप से उसे घातक नज़रो से घूरा।), दिव्या और सरयू ने समझा,
उसके बाद रात का खाना अजीब सी खामोशी के साथ खत्म हुआ और फिर सब अपने-अपने कमरे में चले गए। सभी उस मंजिल के दूसरी ओर चले गए अपने कमरे में और इस तरफ मैं और वृषा अपने काम के साथ रह गए। आज मुझे अपने कमरे में काम करने के लिए कहा गया, जबकि वे और भैय्या बगल में बाते कर रहे थे। मैं ख़ुशी से अपना काम कर रही थी। फिर एक जगह आया जहाँ मुझे वृषा के मार्गदर्शन की आवश्यकता थी। उन्होंने मुझसे कहा कि ज़रूरत पड़ने पर मैं उन्हें ढूँढ सकती थी, इसका मतलब था कि मैं उन्हें परेशान करने जा सकती थी। मैं बगल कमरे में जाने के लिए उठी। बगल से अस्पष्ट आवाज़े आ रही थी।

उसी वक्त उस बगल वाले कमरे में अलग ही माहौल था-
"आखिर सब शुरू हो गया। उम्मीद से ज़्यादा वक्त लगा। पर अब उसे देखकर लग रहा है कि वह अब पीछे नहीं हटेगी।",
"हाँ और उसकी नज़रे पूरे वक्त उस अंगूठी पर ही थी। वह कुछ योजना बना रही है, मैं यह निश्चित रूप से कह सकता हूँ।",
"मम्म...और इस अचानक परिवर्तन के बारे में क्या?", वृषा ने पूछा तभी,
"बुरा ना माने तो मैं समझा दूँ?...वृषा बिज-ला-नी-सर!", वहाँ कयाल ने बुरी खबर की तरह प्रवेश किया।
"तुम्हें करना भी चाहिए!", वृषा ने उससे इस प्रतियोगिता में अचानक नए राउंड को शामिल करने के बारे में उसका पक्ष पूछा। वह इतना शांत कैसे हो सकता था जबकी उसने वृषा को पाने के लिए हर हद पार कर दी।
"अकेले में!", कायल ने माँग की,
इतने सब के बाद भी उसके पास माँग करने के लिए बहुत बेशर्मी चाहिए।
"वृषा मैं बाहर जा रहा हूँ- ",
वृषा ने तंसवाली हँसी के साथ, "रूको सरयू! हमारी स्टार को अब शर्म आ रही है? उसमें शर्म कबसे जाग गई? कल वो शर्म कहाँ गयी थी? जो कहना है कहो या अपना रास्ता नापो।",
"तो आपकी ज़बान भी उस देहातन जैसी हो गई है?", उसने उसकी बात चुभी,
"तुम्हारा मतलब क्या है?", बात धीरे-धीरे भड़क रही थी,
"मतलब? अपनी भाषा देखिए 'रास्ता नापो'! आप बिजलानी फ़ूडस के उत्तराधिकारी, देश में नंबर वन और दुनिया में अग्रणी ब्रांडो में से एक हो। क्या आपको लगता है कि इस तरह कि मध्यम वर्ग स्तरीय भाषा, शब्दों का उपयोग करना उचित है? वह आप पर बुरा प्रभाव डाल रही है! और मैं, मेरी चीज़ दूषित होने नहीं देती!", कायल कि आवाज़ और ज़ोर हो गई,
"कायल अपनी आवाज़ धीमी करो।", वृषा ने शांति से कहा,
"कैसे कर लूँ? कैसे कर लूँ, हाँ?! जब सब योजनानुसार चल रहा था, तब...तब तुम गायब हो गए! आए, आए तो आए साथ उसे ले आए जो एक शब्द बिना अटके नहीं बोल सकती।", अब वह ताना मारने लगी, " हा हा हा! अगर मुझे छुटकारा पाना चाहते तो किसी ढ़ंग कि लड़की को तो ले आते। क्या तुम्हारा मानक इतना गिर गया है मिस्टर बिजलानी? तुम्हें क्या लगता है, वो मेरा मुकाबला कर पाऐगी? हा हा हा, वो मेरा क्या उस वायुमुख दिव्या का भी मुकाबला नहीं कर सकती। जो बस कुत्ते की तरह चिप्स और लॉलीपॉप चाट सकती है, वो कुछ नहीं कर सकती।",
वृषा ने उसे बीच में रोक दिया, "बस! कौन बोल रहा है देखो? कायल राज अब तुम अपनी सीमा पार कर रही हो! मुझे तुम्हें यह याद दिलाने कि ज़रूरत नहीं कि तुम यहाँ तक कैसे पहुँची?",
माहौल रहते-रहते और खराब होता जा रहा था,
"त-तुम!...अपने आप को समझते क्या हो?!", गुस्से के मारे वो ठीक से कुछ बोल ही नहीं पा रही थी,
"देख लो अपनी औकात। कैसे तुम गुस्से के मारे अपना आपा खो रही हो। तुम अपने गिरेबान में झाँककर देखो तुम्हारे स्वार्थ के कारण इतना बड़ा तमाशा-स्वयंवधू हो रहा है!",
"और इसी कारण तुमने मेरी अंगूठी उस लड़की को पहना दी!? क्या अब वो है स्वयंवधू? जिसे मिस्टर बिजलानी-सर, पैर चाटकर देखते है? कही आपने अपने 'सिक्के' तो उसपर नहीं चला दिए? या उसकी परफार्मेस बिस्तर पर ज़्यादा अच्छी है?", कायल अपने हद बहुत ज्य़ादा आगे बढ़ चुकी थी,
"चले जाओ यहाँ से इससे पहले मैं यह भूल जाँऊ कि तुम एक लड़की हो। वो तुमसे उलट है, एकदम पवित्र! सरयू इसे बाहर का रास्ता दिखाओ। अगर तुम यहाँ से नहीं गई तो भूल जाओ अपने 'स्वयंवधू' को! और अपनी स्थिरता को भी!!", वृषा के कहने पर मैंने उसे बाहर का रास्ता दिखाया।
वह गुस्से में बाहर चली गई। लेकिन जाते-जाते धमकी देकर गई, "जब तक हो सके, उसके पैर चाट लेना।",

बगल वाले कमरे में, मैं कमरे के अंदर दरवाज़े पर टेकी लेकर बाहर जाने पर तर्क-वितर्क कर रही थी।
लंबा झगड़ा कायल के जानजासे सब शांत हो गया।
(काफी बड़ा झगड़ा था! लगता है आज मैं अपने कमरे में ही रहूँगी।)
मैं बिस्तर पर लेटकर सोशल मीडिया चाट रही थी तभी वृषा का मैसेज आया,
"फाइल लेकर आओ।", इससे मेरा मूड खराब हो गया, मैं किसी भी समृद्ध नाटक का हिस्सा नहीं बनना चाहती।
"हाह, मुझे घबराहट हो रही है।", मैंने ध्यान से कमरे का दरवाज़ा खोला और अंदर चले गई। वहाँ भैय्या और वृषा दोंनो थे। मैं अंदर गई और कहा,
"वृषा आपने बुलाया?",
उन्होंने मुझे घूरकर देखा। (वो डरावना है।)
"क्या तुम्हारा काम पूरा हो गया?", उन्होंने आवाज़ धीमी कर पूछा,
"नहीं-नहीं!...मुझे आंकड़ों को लेकर कुछ संदेह था।", मेरी घबराहट छिप नहीं पा रही थी,
"तो आई क्यों नहीं?", वृषा ने गुस्से से नहीं पूछा पर मैं आक्रोश महसूस कर रही थी,
भैय्या बगल से वृषा को उनके व्यवहार के लिए टोका, "वृषा अपना स्वर देखो।",
"तुम जाओ।", वह अपना सिर बार-बार पकड़ रहे थे, मैं कुछ कहना चाह रही थी पर मेरी हिम्मत नहीं बनी और वहाँ से आ गयी। बिस्तर में खुद को ढाक कर मैं अपने घर के बारे में सोच रही थी। जैसे आज मेरा मुंँह नहीं खुला, वैसा वहाँ भी थी। डरपोक!

सुबह उठकर मैं ताज़ी हवा खाने के लिए बाल्कनी में गयी। आज का दिन बहुत भारी लग रहा था। नाश्ते का समय हो गया था लेकिन मुझे वृषा कहीं नहीं दिखे। बिना बोले बाहर जाना यह उनके लिए बहुत असामान्य था। उनके बारे में सरयू भैय्या को भी नहीं पता। मुझे वृषा को उनके कमरे में ढूँढने को कहा गया।
"वृषाली मैं व्यस्त हूँ। क्या तुम मेरी जगह चली जाओगी?", भैय्या ने पूछा,
"...ठीक है।", भैय्या को मैं मना नहीं कर पाई।
मैंने दस्तक देने से पहले लगभग एक मिनट तक सोचा, मैंने दस्तक दी। कोई जवाब नहीं।
"अगर वो जवाब ना दे तो अंदर जाकर देखना, कही वो मर ना गया हो।", भैय्या ने अंदर देखने को कहा,
भैय्या के कहे अनुसार मैं अंदर गई। वहाँ वृषा सो रहे थे। "फू! वो मरे नहीं।", मैं उन्हें उठाने उनके पास गई,
"कौन कह सकता है इतना मासूम दिखने वाला आदमी अपराधी होगा।", जो भी हो मुझे उन्हें उठाना होगा।
मैंने उन्हें आवाज़ लगाई पर वे उठे नहीं तो मैंने उनका हाथ हिलाकर उन्हें उठाया , थोड़ा उठाने पर वो झटके से उठे। वह अब भी नींद में थे। उन्होंने चौंककर मुझे देखा फिर खुद को फिर मुझे और फिर पूछा,
"वक्त क्या हुआ है?",
"दस बज रहे है।",
वे हड़बड़ाकर उठे, मैं भी हड़बड़ा गई! "क्या हो गया वृषा?!",
उन्होंने बाथरूम जाते हुए कहा, "मेरे कपड़े निकाल दो और कुछ फाईले दराज़ के नीचे वाले खाने में है, उन्हें भी निकाल दो।", इतना कह वो फ्रेश होने चले गए। मैं बिना अपना दिमाग लगाए पहले उनके कपड़े निकाले फिर उनकी फाइले निकालने लगी। दराज में देखने से मुझे फाइलो के साथ एक बक्सा और एक तस्वीर मिली। उनमे धूल लगी हुई थी। उसे साफ करने के बाद उस तस्वीर में तीन-चार साल का लड़का अपनी दादी के साथ दिल खोलकर हँस रहा था। मैंने बाकि सामान को बगल रखा और ज़रूरत का सामान सब तैयार कर दिया।
मैं बाहर जा रही थी, तभी भैय्या अंदर आए।
"वृषा फ्रेश होने गए है।", वृषा बाहर आए।
वो बार-बार अपना सिर पकड़ रहे थे। दो लोग बाहर खड़े थे। (शायद काम से संबंधित हो?) मैं बाहर जा रहा थी उसी वक्त भैय्या और वृषा कि बातचीत में अचानक बदल गई, 'तुम क्या कर रहे थे!' से 'तुम्हारी तबियत ठीक नहीं लग रही?'
मैं दरवाज़े से चार कदम दूर थी। मुझे नहीं पता कि यह मेरी पिछली अपराध बोध की भावना थी या कुछ और, लेकिन अब मैं इसे नजरअंदाज नहीं पाई। हाह!
"क्या हुआ भैय्या?", मैंने पूछा और बाहर खड़े दो आदमी अंदर आ गये।
"सर, थोड़ी देर में आपकी रूटीन मीटिंग है।", पहले आदमी ने कहा,
"लेकिन सर, मीटिंग शुरू होने में सिर्फ 10 मिनट हैं।”, दूसरे व्यक्ति ने कहा,
(और अब वो भी अस्वस्थ हैं।)
"आपकी उपस्थिती आवश्यक है।", पहले आदमी ने कहा,
"पर हम वक्त पर नहीं पहुँच सकते।", दूसरे व्यक्ति ने कहा,
"लेकिन हमें करनी होगी।", पहला आदमी दृढ़ था,
वे स्पष्ट रूप से दर्द में थे।
पर, "अब मुझे आपके स्वास्थ्य की सबसे अधिक चिंता है सर।",
"मैं ठीक हूँ। मीटिंग आज मैं ऑनलाइन अटेंड करूँगा। सरयू सब तैयार करो।", उन्होंने कहा लेकिन,
वे बहुत कमज़ोर लग रहे थे। उस समय भैय्या ने कहा, "क्या तुम्हारी जगह कोई और नहीं जा सकता?",
"तुम्हारा मतलब प्रतिनिधि? किसी को भी नहीं।", वृषा ने कहा लेकिन भैय्या की तो कुछ और ही योजना थी।
परिणामस्वरूप मुझे वृषा कि जगह मीटिंग में भाग लेने के लिए कहा गया। बेशक, मैंने पहले तो इससे इनकार कर दिया था लेकिन इस बेचारी लड़की कि सुनता कौन! मैं बैठक में भाग लेने के लिए बाध्य थी। आज मैंने एक बात सीखी कि पैसा वास्तव में कुछ भी कर सकता था। मेरे लिए एक सूट पहले से ही तैयार था, दिव्या ने मेरे बाल ठीक किये, और मुझे मास्क पहनने के लिए कहा गया। मैं बैठक कक्ष की ओर जाते हुए बहुत घबरा रही थी, नहीं जानती असली मीटिंग कैसी होती थी। मेरे पास नज़रे उठाने कि भी हिम्मत नहीं थी, सोने पे सुहागे वाली बात मैं एकदम अकेली इन पढ़े-लिखो कि भीड़ में थी।
(मुझे डर लग रहा है! मम्मा...),
तभी मुझे वृषा कि बात याद आई, "याद रखना वृषाली वहाँ अनुभवी लोग होंगे, पर तुम खुद को छोटा मत समझना। तुम भी सी.एस.ए हो, दूसरो को खुद पर हावी होने मत देना।",
(नहीं होने दूँगी!) मैं कमरे के अंदर गई। अचानक मेरी अंगूठी वाली में हल्की खुजली जैसा महसूस हुआ, तभी मुझे पता नहीं क्यों पर ऐसा लगा कि वृषा को मेरी ज़रूरत होगी।

मीटिंग शुरू हुई...
मैं पहले तो घबरा रही थी लेकिन उन्हें मेरे अस्तित्व से कोई फ़र्क नहीं पड़ा। उन्हें बैठक में भाग लेने के लिए केवल मेरी योग्यता की आवश्यकता थी। बैठक सुचारू रूप से चलीं और बिना किसी मुद्दे के बैठक समाप्त हो गई। अब बस हमें इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट बनानी थी। इसे ख़त्म करने में हमें दो घंटे लग गए। जब हम ख़त्म हुए तब तक शाम हो चुकी थी।
हम कमरे से बाहर निकले, वे नीचे चले गए जबकि मैं वृषा को देखने के लिए उनके कमरे में गयी पर वो वहाँ नहीं थे, ना स्टडी रूम में तो मैं नीचे गई। भूख से मेरी जान निकली जा रही थी। वहाँ वृषा नीचे थे, मैं उनके पास गई। उनके सामने कॉफी का बड़ा मग रखा हुआ था। मैंने उन्हें रिपोर्ट पकड़ाई और मग ले लिया।
"आपने कुछ खाया? आपकी तबियत अब कैसी है?", मैंने पूछा,
"अब ठीक है। मीटिंग?", उन्होंने पूछा,
"आपके हाथ में है और अंकुश सर के पास आपके सवालो का जवाब है।",
"और आपका?", मैंने उनका माथा देखा, बुखार नहीं था,
"मुझे गजब कि भूख लगी है और मैं अकेले नहीं खाने वाली इसलिए आपके लिए दलिया बनाकर ला रही हूँ।",
दिव्या भी वहाँ पहेली के साथ आई।
"आज के लिए तुम्हारा धन्यवाद।", मैंने दिव्या से कहा,
उसने मुस्कुराते हुए कहा, "ज़रूर!", इसका कुछ नहीं हो सकता, "मैं दलिया पुलाव बनाने जा रही हूँ तुम खाना पसंद करोगी?",
"नेकी और पूछ-पूछ? तुम्हारे हाथ का खाना मैं कैसे छोड़ दूँ?", मैंने फिर उन दोंनो कर्माचारियों से पूछा, "आप क्या खाना पसंद करेंगे?", उन्होंने इज़्ज़त से मना कर दिया,
वृषा ने कहा, "इनके लिए भी वही, मसालेदार चाय के साथ।",
"चीनी?", मैंने आदत में पूछा, वे हैरान होकर 'सामान्य-सामान्य' कहा।
मैं अपने पोनी टेल को खोल जूड़ा कर अपना एप्रन पहन रसोई मे गई।
"ममह! मिस्टर बिजलानी आपको नहीं लगता ये आपके लिए कुछ ज़्यादा ही अति-उत्तम है?", दिव्या वृषाली के जाते हुए ही शुरू हो गई। मैंने अपना ध्यान काम पर केंद्रित किया।
"भाग्यशाली आदमी! एक अपहृत बच्चे द्वारा बनाया गया स्वादिष्ट भोजन खाने को मिल रहा है। मुझे भी मेरी वृषाली चाहिए।", ईर्ष्या दिखाने का यह कितना अच्छा तरीका था।
"क्या तुम्हारे पास आर्य नहीं है?",
"लेकिन वह इस तरह का खाना नहीं बना सकते।",
"अगर उसने यह सुना होता तो वह बेचारा रो पड़ता।",
मैं उनसे बैठक की रिपोर्ट ले रहा था।
"वृषा ये रहा आपका खाना। धीरे-धीरे खाइए।", उसने मुझे परोसा,
"वाह! वृषाली यह बहुत स्वादिष्ट लग रहा है! और व्यक्ति भी...मम्म?", दिव्या फिर शुरू हो गई,
"-'व्यक्ति भी'?", वृषाली ने पूछा,
वृषाली खाते हुए रुक गई और बाकि भी,
"मेरा मतलब है कि कौन जानता था कि सूट के साथ एप्रन इतना में खतरनाक लगता है।", देखकर मज़ा आ रहा था, वृषाली दिव्या कि बात को समझ नहीं पा रही थी।
मीटिंग की रिपोर्ट देखने के बाद,
"अंकुश जी, टैक्स फाइलिंग के ऊपर मुझे अपडेट चाहिए।",
"यह कल तक पूरा हो जाएगा और आपके समक्ष प्रस्तुत कर दिया जाएगा।", अंकुश जी ने कहा,
"यदि और कुछ नहीं तो आप जा सकते हैं।", मैंने कहा,
"सर कुछ और तो नहीं पर आज के मीटिंग पर आपकी अनुपस्थिति कही नए मुद्दे को जन्म ना दे दें।",
"यह मेरे द्वारा आयोजित एक बैठक है। तो मेरी बैठक, मेरे नियम।", (यह उसके लिए सुरक्षित है तभी तो मैंने उसे अनुभव लेने की अवसर दिया। यह सिरदर्द मेरे लिए आम है इससे मेरा क्या होगा।)

मुझे बस अपने काम वापस जाना चाहिए, मैं स्टडी रूम में वापस गया। मैं काम शुरू करने कि सोच ही रहा था कि वृषाली वहाँ कटोरे में कुछ लेकर आई। देखने में तो वो कुछ गर्म लग रहा था।
"वृषा यहाँ सोफे पर बैठ जाइए मैं आपके लिए तेल गर्म कर लाई हूँ।", मेज़ पर कटोरी रखकर उसने कहा,
"कैसा तेल?", मैंने ऐसे ही पूछा,
"खाना बनाने वाला। आपको तेल में अच्छे से लपेटकर तलूँगी। कैसा प्रश्न है? आपका सिर मालिश करने के लिए है।", उसका जवाब सुन मैं,
"क्षमा...", मैं हार गया।- हँसी दबाकर,
उसने मेरे सिर में मालिश करना शुरू कर दिया। मालिश करते-करते,
"वृषा आज के लिए धन्यवाद। आज के दिन मैंने बहुत कुछ सीखा।", उसने मीटिंग की सारी बाते बताई, कैसे उसने पहली बार अपनी जिदंगी में ऑफिस कि आंतरिक बैठक में भाग लिया।
"बहुत नया और डरावना था पर मैंने बहुत कुछ सीखने को मिला।",
"मैं बहुत दिन बाद मालिश कर रही हूँ। दर्द लगे तो बताना...", उसने कहा,
"छोटे है...", मैं बड़बड़ाया,
"हम्म?", वृषाली रूक गई,
"तुम्हारे हाथ--छोटे लग रहे है...बस थोड़ा और ज़ोर से।", मैं कुछ नहीं कर सकता। मालिश मेरा सिर
पिघला रही थी। कभी भी मुझे सिरदर्द हे छुटकारा नहीं मिला, पर आज...मुझे उसकी आवाज़े धीमी होती सुनाई दे रही थी...
"मैंने सुना लाॅकडाउन के समय आप, उसे कमरे का इस्तेमाल करते थे-हा?", मुझे उनकी आवाज़ सुनाई नहीं दी। देखने पर वो सो गए थे। मैंने उन्हें लिटा दिया और चादर उड़ाकर मैं बाकि बचा काम निपटाने लगी। मैंने वृषा का बचा काम पूरा किया, उनका देशी-विदेशी काम निपटाते-निपटाते मेरे पास साँस लेने की भी हिम्मत नहीं बची थी। मैं बिस्तर पर जैसे गिरी वैसे ही मेरा जानी दुश्मन...मेरा अलार्म बजने लगी! रात के चार बजे मुझे खुद को बिस्तर से बाहर खींचना पड़ा, मैंने केवल अपने दाँत ब्रश किए, मैं उन्हें देखकर और खाने के बाद वापस सो जाऊँगी। आज का दिन मैं ऐसे ही बिताने वाली थी। वृषा दूसरे बड़ी मीटिंग के लिए तैयार हो रहे थे, तब तक मैंने उनके लिए छट-पट नाश्ता बनाया और उन्हें भेजकर पहेली के साथ सो गई। मैं जब उठी पहेली जा चुकी थी। मैंने वक्त देखा तो शाम के चार बज रहे थे। मुझे अब भी नींद आ रही थी पर भूख हावी थी। मैंने चिप्स के दो पैकेट लिए और बिस्तर में फोन में कार्टून देखते हुए एक खाया, दूसरे को बाद के लिए बचा दिया।
"खाने के बाद भूख और बढ़ गई ।", भूख से मेरा दिमाग खराब हो रहा था। (मेरको हिलना नहीं है!),
मेरा पेट भूख से गरज रहा था तभी दिव्या आई और मुझे नीचे खींचकर ले गई। मुझमे जान नहीं बची...आर्ह! लेकिन अचानक मुझे नया ऊर्जा का संचार हो गया जब मैंने सुना वृषा ने हमारे लिए नाश्ता लेकर आए थे, वो भी जो मुझे खाने का दिल था।
(हे भगवान! इस प्रसाद के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद! और वृषा आपका भीम)
मैंने पेट भर खाया।
"क्या? फिर से कहना?", मैं रसोई में भैय्या के साथ थी,
"जो तुमने सुना।", भैय्या ने कहा,
"क्या- जैसे वृषा कभी जल्दी नहीं आते और ना कभी ऐसे नाश्ता लाते? या घर रोज़ नहीं आते और ना आराम करते?...वो जिंदा कैसे है?", उनकी दिनचर्या सुनकर मुझे थकावट हो गई,
"हाहाहा! वृषा ऐसा ही है...", भैय्या ने हँसकर कहा,
"भैय्या, आप भी तो नहीं थकते। जब भी मैं बिस्तर पर लेटती हूँ, सुबह हो जाती है। अब मुझे सुबह से और नफ़रत होने लगी है!", मैंने हताशा में पनीर तोड़ दिया, "ओह!",
दिव्या ने कहा, "आज हम पनीर भुर्जी खाएंगे।",
"आर्य हमेशा कहते थे मिस्टर बिजलानी को अपने काम से अलग ही लगाव है। वो अपनी कंपनी बढ़ाने के साथ-साथ नए कंपनियों की भी सहायता करते है।",
मुझे इस बारे में नहीं पता था, "वाह...मुझे नहीं पता था बिजलानी फूड्स ये भी करता है?",
"हम्म!", दिव्या ने ना में सिर हिलाकर कहा, "नहीं, यह मिस्टर बिजलानी की पहल है ताकि दूसरे भी अपना कमाल दिखाए।",
(वाह! वृषा का यह चेहरा मैंने कभी नहीं देखा।)

रात को मैं अपने में गई, मैं अपने बिस्तर पर लेटी। कुछ वक्त निकल गया पर मैं सो नहीं पा रही थी। दिन को सोने कि वजह से- नहीं...कुछ तो है पर पता नहीं क्या! मुझे बेचैनी महसूस हो रही थी।
मैंने कमरे को ध्यान से देखा तो पाया कि खुली खिड़की आधी बंद थी, गमले खिसके हुए थे, और तो और मेरी अलमारी व्यवस्थित थी जबकि शाम तक उससे कपड़े ऊपर गिर रहे थे पर अब सब अपनी जगह थे। मेरे कमरे में कोई आया भी नहीं था फिर...मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा। मुझे क्या करना चाहिए? मेरी गैरहाज़िरी में ज़रूर यहाँ कोई ना कोई तो आया था! मेरे दिमाग में मदद के लिए अब एक ही आदमी आ रहा था।
मैंने वृषा के कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी। 'खट' दरवाज़ा जल्द खुला।
"क्या हुआ इतना रात गए...ऐसे?", वृषा ने पूछा,
मेरी आवाज़ नहीं निकल रही थी। मैं घबराते हुए कहा, "...म-मेरे कमरे में कु-छ गड़-बड़ है।",
"क्या? विस्तार से बताओ? तुम ठीक हो ना?", वृषा मुझे शांत कर मेरे साथ मेरे कमरे में गए उन्होंने मुझे कमरे कि लाइटे सब बंद करने को कहा। मैंने की। फिर वो अपने फोन के कैमरे को खोल पूरे कमरे को स्कैन किया। थोड़ी देर बाद वो गमले के पास गए और वहा से हिडन कैमरा निकला। उसे देख मेरी साँसे रुक गई, गमले से मेरा पूरा कमरा दिखता था, खासकर मेरा बिस्तर।
फिर वृषा ने अचानक मुझसे पूछा, "कबसे?",
"अभी रात को मेरा सामान कुछ ज़्यादा ही व्यवस्थित था।", मैंने गहरी साँस लेकर कहा,
"वृषाली आज के लिए तुम्हें यह कमरा छोड़ना होगा!", वे गंभीर थे,
उन्होंने एक अतिरिक्त कमरा साफ़ करवाया और मुझे दे दिया, लेकिन किसी तरह दिव्या के साथ उसके कमरे में थी।
"पर क्यों?", मैंने दिव्या से पूछा तभी दिव्या के कमरे में एक और लड़की अंदर आई। दिव्या ने मेरा परिचय उससे करवाया,
"साक्षी, ये वृषाली है और वृषाली, ये साक्षी है। टॉप मॉडल्स में से एक।",
मैंने उससे हाथ मिलाया और अभिवादन व्यक्त किया, "आपके मिलकर मुझे भी खुशी हुई।", (मुझे चार्ज होना होगा।)
उसने हिचकिचाते हुए पूछा, "क्या तुम कभी कायल से मिली हो?",
"परसो ही हमारी थोड़ी बातचीत हुई थी..बस।", (वह थोड़ी नहीं थी पर इन्हें कैसे पता?)
"हम्म, इसमें कोई शक नहीं वो कांटा यही है।", उसने दिव्या से कहा,
"तुमने तो उसके साथ काम किया है, तुम्हें कुछ अंदाज़ा होगा?", दिव्या ने उससे पूछा,
उसने जवाब में कहा, "हाँ, पर हम कभी-कभार ही मिले।",
उन दोंनो की अपनी बातचीत शुरू हो गयी।
"मैं बस अपना मुँह धोकर सोने जा रही हूँ।", कह मैं सोचने अंदर गई। मैं थोड़ी देर रूक सुन रही थी कि वो अब भी बातें कर रहे थे या नहीं। वे अब भी इधर-उधर कि बाते कर रहे थे। मैं मुँह धोकर बाहर गई, वो वहाँ पर मेरा इंतज़ार कर रहे थे।
"वृषाली? तुम्हारी मुलाकात कैसे हुई?", दिव्या ने पूछा
(लेकिन मैं कैसे बता दूँ कि मेरा अपहरण किया गया है। कोई मुझपर भरोसा नहीं करेगा। सोने पे सुहागा, सब मुझपर हँसेंगे कहकर की मेरा दिमाग खराब हो गया है।)
"मेरी मुलाक़ात उनसे अचानक अस्पताल में मिली जहाँ थोड़े दिन के जान पहचान के बाद उन्हें... अपने निजी सहायक जैसे...मुझे रख लिया..?", मुझे आशा है ये इसे सच मान ले,
"वैसे वृषाली, तुम इतनी देर रात गए यहाँ क्यों आई हो?", साक्षी ने मुझसे पूछा,
"...", मुझे नहीं पता क्या बोलूँ?
तब दिव्या ने जवाब दिया, "किसी ने उसके कमरे में एक कैमरा सेटअप कर दिया है।", उसने सारी बातें उगल दीं, "और अब मिस्टर बिजलानी उसकी जाँच करवा रहे हैं।",
साक्षी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ, "मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। वह उद्योग में शीर्ष अभिनेत्रियों के रूप में अपनी जगह बचाने के लिए कुछ भी कर सकती हैं।",
(पर वो इतनी बेसब्र क्यों है?) मेरी खुले में पूछने कि हिम्मत नहीं थी। शायद दिव्या पूछ ले और उसने पूछा, "क्या वही ड्रग्स और बॉयफ्रेंड स्कैंडल?",
"हाँ, कुछ नए अभिनेताओं ने इस प्रकार की चीज़ों में संलग्न होने का एक गुप्त वीडियो बनाया गया था। पिछले कुछ महीनों से यह पत्रकारों के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। कई सरकारी एजेंसियों के लिए भी।",
"वाह! इस बार वह बड़ी मुश्किल में फंस गई।", (कैसे कह सकते हो वो वही है?)
"और अब वह अपने करियर पर लगे दागों को मिटाने के लिए बिजलानीयों का इस्तेमाल कर रही हैं।",
(अब ये क्या नया तड़का है?)
इसके बाद हमने अपने बारे में बाते की।
साक्षी संपन्न परिवार से थी जो अपने बचपन का माॅडल बनने का सपना पूरा कर रही थी और ये
'स्वयंवधू' आर्कषन खीचने के लिए सुरक्षित योजना थी। दिव्या यहाँ अपने परिवार के दबाव के कारण थी। जो भी हुआ वृषा और मिस्टर खुराना की दोस्ती की वजह से उनकी गृहस्थी बच गई। उनके हवाले से सब अपना मतलब साधने आए थे। कितना खराब है इतने स्वार्थियों से घिरे रहना, जो आपको पति तो क्या एक जीवित व्यक्ति के तौर पर भी नहीं देखते। और मुझे लगा वो मज़ा ले रहे थे।
मैंने कायल राज के ऊपर थोड़ी जानकारी इकट्ठा की, नेट छांटने के बाद इतना साफ हो गया कि इससे बड़ा मौका परस्त कोई नहीं हो सकता जो आगे बढ़ने के लिए दूसरो को कुचलने से पीछे नहीं हटती। और अब खुद को ड्रग्स स्कैंडल से बचाने के लिए उसके पास यह एक अच्छा आसान रास्ता था। (अब मुझे उनके लिए बुरा लग रहा है। वे इस लिए चाहते हैं कि मैं जीतूँ ...पर उन्होंने गलत व्यक्ति का चुनाव किया है।)

अगली सुबह, मैं दिव्या को उसके कमरे में सोता हुआ छोड़कर स्टडी रूम में सोने चले गयी। मैं वहाँ सोफे पर चैन से सो गई। मुझे इतनी नींद आ रही थी कि मैं लेटते ही सो गई। मेरी नींद वृषा के मुझे उठने से टूटी, "तुम यहाँ क्या कर रही हो?",
मैं अब भी काफी नींद में थी, "सोने दो ना!", कह फिर से सो गई। जब मैं उठी मैं वृषा के कमरे में सो रही थी। मैं झटके में उठी, "क्या वृषा मुझे यहाँ लाए? वो कहाँ है?", मैं कमरे में बिल्कुल अकेली थी।
मैंने अपने बगल देखा तो एक नोट था, "वृषाली, तुम सोफे से गिरने के बाद भी उठने का नाम नहीं ले रही थी तो मैं तुम्हें यहाँ ले आया। मेरे कमरे में ही तुम सुरक्षित सो सकती थी इसलिए मैं तुम्हें यहाँ छोड़कर जा रहा हूँ। उठने के बाद तुम सीधा जाकर सरयू से मिलना...और दूसरों से अकेले में बात मत करना!",
उसे पढ़कर पहली बार मुझे वृषा की हरकते प्यारी लगी, "ही ही! कौन कह सकता है यह वही बर्फ के पहाड़ है?", सच कहूँ तो उनका व्यवहार मुझे कभी भी रूखा नहीं लगा, "उनकी पिछली व्यवहार याद करूँ तो...वो...हमेशा मेरी टांग खींचने में ही भरोसा रखते है।",
जैसा वृषा ने कहा, मैं उठ कर उनके बाथरूम में फ्रेश हुई। यह, मेरे अभी के बाथरूम की तुलना में पाँच गुना बड़ा था, इसमें बड़ा बाथटब था। मैंने कभी बाथटब का इस्तेमाल नहीं किया। एक हिस्से ने सोचा- क्या इसका उपयोग करने की इच्छा होनी चाहिए?... दूसरे ने सोचा कि यह पानी की बर्बादी है!
"जल ही जीवन है। जल बचाओ जिंदगी बचाओ! ह्म्म्म!!", खुद को हँसाने की कोशिश कर रही थी।
जैसे वृषा ने कहा में सीधा भैय्या के पास गई, वो नीचे बागीचे में थे। मैं उनसे मिलने वहाँ गई।
"वृषा ने बताया आपसे मिलने के लिए।", मैंने उनसे पूछा,
सामने से उनका जवाब आया, "तुम्हारे कमरे में कुल पाँच कैमरे और दो माइक्रोफोन थे।",
उनके जवाब से मुझे ज़ोर का झटका लगा! मेरी बोलती बंद हो गई। मैंने दूसरी बार ऐसा कुछ अनुभव किया था! बिना किसी कारण के अपहरण होने के बाद यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा सदमा था। मैं डर गयी थी...नहीं! मैं सहम गयी थी!!