स्वयंवधू - 10 Sayant द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्वयंवधू - 10

दूसरे दिन सुबह-
(पता नहीं मैं ऐसे कैसे सो गया? मुझे वृषा को वृषाली के पहले जगाना होगा। पता नहीं रात भर में क्या नये कांड हुए होंगे?)
मैं उनके कमरे में ध्यान से घुसा। वे दोंनो अब भी सोए हुए थे। मैं वृषा के पास ध्यान से गया और उसे बड़े शांति और ध्यान से उठाकर, "श्श्श! शांत रहो। अपने बगल देखो और मेरे साथ चलो।", उसे अपने साथ वृषाली के कमरे में ले गया।
"हाह! क्या हुआ कल?", वृषा ने फिर पकड़कर पूछा,
"पहले तुम बताओ कि कल क्या हुआ था?", सबसे पहले मुझे अपने दिमाग को सुलझाना होगा ताकि मैं अच्छे से समझा सकूँ।

"तो कल...", मैंने अपनी तरफ की कहानी बताना शुरू किया,
कल मेरे साथ वो हुआ जिसे मैं कल तक अतिश्योक्ति मानता आ रहा था। मैं अपना काम कर रहा था तभी मेरे दिल में वृषाली का नाम गूँजा, मेरे लाॅकेट में हलचल हुई और वो चमकने लगा। मैंने बस किस्से कहानियों में सुना था कि, 'जब तुम्हारी नियती किसी भी तरीके के खतरे में होगी तब तुम्हें ही सबसे पहले पता चलेगा। तो मेरे बच्चे वृषा, तुम हमेशा अपनी नियती की रक्षा करना और हर परिस्थिती में उसका ख्याल रखना।', मेरी दादी ने कहा था,
'जी अमम्मा!', मैं भी बच्चपने में बिना सोचे समझे मान गया था, पर ये कितना डरावना हो सकता है मुझे कल पता चला। जब मैंने अपनी नियती को ऐसे खून में सन तड़पते देखा। मैं इतना विचलित तब भी नहीं हुआ था जब इन सबसे अनजान, मुझेसे बेदर्दी से पहली बार मेरी ऊर्जा चूसी गयी थी।
"मैं जब कमरे में गया तो देखा कि महाशक्ति ऊर्जा, वृषाली पर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाह रही थी। मैंने उसकी शक्ति सोखकर वृषाली को छुड़ा ही रहा था कि वह मुझसे मेरी ऊर्जा भी छीनने लगी और हममे मिलाने लगी। मैं वृषाली को छुड़ाने में कामयाब रहा पर अपनी ऊर्जा के साथ अपनी आधी जीवशक्ति भी उसे दे बैठा। लेकिन फिर भी मैं तरोताज़ा महसूस कर रहा हूँ।",
इस पर सरयू ने मुझ कसकर एक घूंसा मारकर और पूछा, "तुम कबसे ऐसी लापरवाही करने लगे? अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं आमलिका दादी को क्या मुँह दिखाता? अगर तुम भूल गए हो तो याद दिला दूँ तुम्हारे साये में कितने लोंगो का अस्तित्व निर्भर करता है? तुमने मेरी जान निकाल दी थी।",
वृषा ने अपने मुँह से खून साफकर कहा, "तुम कुछ ज़्यादा ही डरते हो।",
मैंने खुद को दूसरा मुक्का मारने से रोककर कहा, "आर्य खुराना आया था। उसने तुम दोंनो का रक्षा, अपनी शक्ति से की। उसका कहना था कि तुम दोंनो सुई की नोंक से बच गए। तुम दोंनो की ऊर्जा आपस में मिल गई है, जो किसी भी शक्ति रिश्ते में भी होना असंभव जैसा है। तुम दोंनो को समीर बिजलानी से दूर रहना होगा किसी भी हालात में! उसने यह भी कहा था कि वृषाली ज़रूर पाँचवे परिवार से होगी। उसे अपने परिवार पर आए सभी बुरे दुर्भाग्य को इकट्ठा करने के लिए एक पात्र के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। उसकी मानसिक और शारीरिक रूप से उसे जो स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैय, वे इस कृत्य का परिणाम था। वह जन्म से पहले ही एक पात्र थी। इन सब घटनाक्रम का अर्थ यही निकलता है।",
"...", वृषा कुछ नहीं कह रहा था,
"वृषा, वृषाली महाशक्ति है और वो इसके लिए कमज़ोर है जिसका मतलब है- आसान शिकार!", यह सच था, "जिसे तुमने खुद सबको परोसा है। क्या तुम उसके सुरक्षा कवच बन सकते हो?",
"मुझे आर्य से बात करनी है!", वृषा ने अकेले में मिस्टर खुराना से लंबी बाते की।
निष्कर्ष एक ही निकला। वृषा को वृषाली की और वृषाली को वृषा की सख्त ज़रूरत थी।
मैं वृषाली को देखने गया, तब तक वो नीचे जा चुकी थी। मैंने उसे नीचे साक्षी और दिव्या के साथ मिल पहेली के साथ खेलते देखा।
(इसे देखकर बिल्कुल अंदाज़ा नहीं हो रहा है कि कल लगभग मारी जा चुकी थी।)
"क्या हो रहा है?", मैं देखने गया ये तीन क्या कर रहे थी।
"आ! सरयू सही वक्त पर आए हो। देखो हमने कैसा बनाया है?", दिव्या पहले कि तरह थी,
(शायद उसे कुछ याद नहीं है।) "और ये विषय मूर्ति यहाँ क्या कर रहा है?", मुझे भी यही करना चाहिए, "जी सिर, मुझे वृषा सर को कुछ दस्तावेज़ देने के लिए कहा गया था और मुझे...", वो घबराकर दिव्या की ओर देखने लगा,
मैं समझ गया हुआ क्या होगा, "इसने तुम्हें रोक लिया और मदद माँगी होगी? तुमने इंसानियत में मदद किया होगा? और अब तुम अपनी इंसानियत में फँस गए हो? क्यों यही बात है ना?",
वो मेरी हर बात पर ज़ोर-ज़ोर से सिर हिला रहा था।
(बेचारा! अब ये पूरे दिन रोएगा।)
"वृषाली, साक्षी तुमने इस बेलगाम घोड़े को रोका क्यों नहीं?",
उसने जवाब दिया, "इसका उत्तर आपने ही दे दिया।",
"ओए! तुम दोंनो भाई-बहन मेरी टांग पकड़ने मत आना।", दिव्या अपनी दबंगई में थी,
उसी दौरान वृषा भी नीचे आ गया।
"सर ये दस्तावेज़ आशा मैम ने भिजावाया है।", उसने दस्तावेज वृषा को दे दिया,
वृषा ने उस दस्तावेज़ो को देखा, "तुम जा सकते हो।"
"जी सर।", वो वहाँ से जा रहा था कि उस बेचारे को दिव्या ने रोक लिया,
"अरे भाई रुको! अभी कही नहीं जाना है।",
वृषा बिना कुछ कहे अपने काम पर लग गया। वो तिरछी नज़र से नज़र रख रहा था। (हाहा! वृषा इन सब पर अपने तरीके से नज़र रख रहा है।)
"तो आप क्या चाहती हैं मैम?", उसने एक छोटे से डरे हुए बिल्ली के बच्चे जैसी आवाज़ में कहा,
"बहुत ज़्यादा नहीं, लेकिन मैं इस ऐप्स का दोबारा उपयोग कैसे करूँ?", उसने अपने फोन उसके चेहरे से एकदम चिपका दिया,
(बेचारा।)
वह अशिष्टतापूर्वक मित्रतापूर्ण व्यवहार कर रही थी जबकि साक्षी और वृषाली उसे शांति से रोक रही थीं।
"सर कृपया मुझे बचा लीजिए!", वह रोते हुए वृषा के पास गया,
"दिव्या बस भी करो।", साक्षी ने कहा,
"मैंने क्या किया? मैं बस अपनी छोटी दोस्त की मदद कर रही थी। देखो! मैं बस मदद करना चाह रही थी।",
"विषय!", वृषा ने उसे बुलाया,
"इस भाग पर किसने काम किया?",
"म-मैंने सर...मुझसे कुछ गलती हुई है?", वह घबरा गया,
उसने उस फाइल को ऊपर से नीचे तक पूरी तरह देखा।
"म-मुझे माफ कीजिए, सर...मैं इसे श-शाम तक ठीक कर दूँगा-", उसे बिजलानी फूड्स में काम करते ज़्यादा समय नहीं हुआ, और ये उसकी पहली गलती नहीं थी, पर वह मेहनती था।
"शाम तक। कैसे? तुम कैसे करोगे ज़रा विस्तार से बताना?",
(ओह हो! वृषा कल की वजह से चिढ़ा हुआ है।)
"जी, सर...वो...मैं...", विषय हकलाने लगा, सबकी नज़रे वृषा पर थी कि वह अब क्या करेगा? आम तौर पर वो दिखावे के लिए उनपर चिल्ला देता था पर अब क्या?
"क्या तुम अपना पक्ष भी दृढ़ता से नहीं रख सकते? क्या निराशा है!",
(वृषा तुम्हे नहीं लगता तुम इसके साथ ज़्यादा सख्त हो रहे हो?)
"जी, सर...", उसकी आँखे अब भर आई,
"जो आदमी अपना काम ठीक से नहीं कर सकता और बात-बात पर रोना शुरू कर दे...वो मर्द कहलाने लायक नहीं!", कायल अचानक से आई और विषय पर अपना भड़ास निकालने लगी,
"जो अपना काम ठीक से नहीं कर पाए उसे तुरंत निकाल देनी ही ठीक रहता है, मिस्टर बिजलानी!",
"न-नहीं सर मैं-", उसने जल्दी से अपने आँसू पोंछे,
"जो आदमी ज़रा सी बात पर लड़कियों जैसे रो दे वो किस काम का!?", कायल के शब्द हमेशा कि तरह ज़हरीले थे,
"एक आदमी को अहंकारी, साहसी और दमदार होना चाहिए, ना कि तुम्हारे जैसे फूलकुमारी!",
उसने उसका बहुत अपमान किया तभी वृषाली जो सब देख रही थी, वो बोली, "तो इस लिहाज़ से कायल आपको भी पराये आदमी के सामने इन छोटे कपड़ो में नहीं आना चाहिए।",
कायल उसकी बात से चिढ़ गई, "क्या कहा तुमने?!",
वो गधे की तरह दोहरा रही थी, "मैं कह रही थी, इस लिहाज़ से छ-",
"क्या दकियानूसी सोच है तुम्हारी!", कायल वृषाली पर चिल्ला उठी,
"अगर मेरी सोच दकियानूसी है तो आपकी कौन सी प्रगतिशील है?",
वह फिर ज़ोर से वृषाली पर चिल्लाई, "वो लड़की कहती है जो ठीक से बात नहीं कर सकती! डोन्ट मेक मी लाफ!"
उसके हाथ कांप रहे थे लेकिन इस बार उसके शब्द नहीं, "अगर कोई अपनी भावनाएँ दिखाए तो उसमे गलत क्या है? रोने का काम लड़कियों का, अहम करना आदमियों का काम है। किसने कहा और क्यों कहा? क्या इनमे भावनाएँ नहीं है जो आहत हो सकती है?
शर्म-लिहाज़ के नाम पर स्त्रियों को दबाने वाली दकियानूसी सोच को हमने बदलकर आगे बढ़ रहे है तो यही बदलाव दूसरी तरफ क्यों नहीं? पीड़ित कोई भी हो सकता है चाहे उसका लिंग कुछ भी हो।", इसकी बात में दम तो था।
"वाह!", दिव्या ने कहा,
"इसने सही कहा। मुझे एक किस्सा पता है जिसमे एक नौजवान लड़के को पुलिस ले गई क्योंकि उसने एक डूबती हुई महिला को बिना उसकी रज़ामंदी के बचाया और उसे बचाने के लिए सीपीआर दिया।", साक्षी ने भी वृषाली का साथ दिया,
"मैं भी इस बात से सहमत हूँ। जैसे कई पीड़ित महिलाओं के केस दर्ज नहीं होते, उसी तरह पुरूषों के मामले भी होते है। कमाल की बात यह है कि हमारा समाज यह मानने से इनकार कर देता है कि कभी कोई पुरूष पर अत्याचार हो सकता है। अत्याचार, अत्याचार होता है भले ही वो कोई भी क्यों ना हो!", यह प्रांजली थी जो हमेशा तथ्यों पर बात करती थी,
वह उनके मजबूत पक्षों से मुकाबला नहीं सकी।
(वे कुछ हद तक सही है, मैं भी अजनबी महिलाओं से उनकी तरह आँख मे आँखें डालकर बात नहीं कर सकता। हम लिंग वगैरह के आधार पर यह निर्धारित नहीं कर सकते कि कौन पीड़ित है और कौन दोषी है। इसीलिए मुझे लगता है कि न्याय में अधिक समय लगता है।)
आखिरकार कायल को इनके तर्क का आगे पीछे हटना पड़ा और विषय थोड़ा संभला।
कमरे में सन्नाटा छा गया। कोई कुछ नहीं बोल रहा था। फिर मैंने देखा कि विषय अपनी हिम्मत जुटा रहा था,
"स- आप सबका धन्यवाद। सर मैं सच में शाम तक अपनी गलती ठीक कर लूँगा!", उसकी आवाज़ अब भी रोतुली थी,
दूसरी ओर मैंने देखा, वृषाली उस फाइल को देख रही थी,
"मिस्टर बिजलानी, मुझे लगता है आपको विषय को एक और मौका देना चाहिए।", साक्षी ने वृषा से कहा,
"मुझे भी ऐसा लगता है। वृषाली तुम्हारा क्या कहना है?", दिव्या ने साक्षी का साथ दिया और वृषाली को भी इस वोटिंग में शामिल कर दिया,
वृषाली फाइल बंदकर कहा, "अगर इन्होंने विषय को इस बात के लिए निकाला तो- भगवान ही आपका मालिक है।",
"स्पष्टता से कहो।", वृषा ने कहा,
"विषय ने कोई भारी गलती नहीं की जिसे ठीक ना किया जा सके। ये केवल लिपिकीय त्रुटियाँ हैं, केवल चेतावनी और अधिक प्रशिक्षण ही पर्याप्त है।", वृषाली ने कहा,
वृषा मंद-मंद मुस्कुराया, "विषय, यह सबसे सामान्य परिदृश्य था जिसे तुम यहाँ काम करते हुए पाओगे। अपनी गलती मानना ठीक है पर डरकर, चुप रह कर, रोकर तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा। अपनी गलती उसी वक्त मानने से पहले पूरी चीज़ अगर संभव हो तो जाँच लेना और पक्का होने के बाद ही सुझाव देते हुए गलती मानना। लोग तुम्हारी गलतियों को इंगित करना चाहेंगे इसलिए तुम्हें समाधान के साथ तैयार रहना चाहिए। यह एक दिन में नहीं होगा, लेकिन एक दिन ज़रूर होगा। मुझे यह फाइल शाम तक चाहिए, इसलिए तीन बजे तक सब तैयार रहना चाहिए।",
(मुझे आशा है कि तुम भी ऐसा कर पाओगे।) मैंने दिल में वृषा के लिए कहा।
"जी सर!", विषय फिर वापस सामान्य हो गया,
"आपको यह बस शाम तक का चाहिए?", वृषाली ने पूछा,
वृषाली की तरफ देख, "हाँ।", फिर वृषाली से फाइल लेकर विषय को देकर, "और मेरे वापस आने के पहले मुझे मेरे टेबल पर चाहिए।",
वृषा वहाँ से निकल गया। वृषाली उसके पीछे गयी। वृषा थोड़ी देर में निकल गया। उस दौरान सब विषय को सांत्वना दे रहे थे। वृषाली नीचे आई और विषय के पास गई और कहा,
"मैं सीधा मुद्दे पर आती हूँ, विषय क्या आपके पास मदद है?",
इसके जवाब में उसने कहा, "न-नहीं, नहीं।",
"लगा ही रहा था। इस वक्त व्यस्त नहीं रहना नामुमकिन है। मैं आपकी मदद कर सकती हूँ, अगर आप चाहे?",
(यह करना क्या चाहती है?)
पर वृषाली कि प्रस्ताव से उसका चेहरा चमक गया, "सच?",
"भैय्या मैं मीटिंग रूम में जा रही हूँ विषय के साथ।", वह उसे लेकर ऊपर जाने लगी,
"ठीक ह- क्या!? तुमने वृषा से पूछा?", मेरे दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि मेरा छोटी बहन एक अजनबी के साथ अकेले कमरे में? वो भी कल जो हुआ उसके बाद-
"वाह!- भैय्या आप अचानक से चीखे क्यों?",
मुझे ऐसा लगा मेरी धड़कन छूट गई,
"न-नहीं...तुम्हें नाश्ता नहीं करना?", अपने ऊपर काबू रखो सरयू!
"नहीं।",
"पर क्यों?",
"पता नहीं पर आज सुबह से मुझे काफी ताज़गी महसूस हो रही है। शायद मैं अब इस माहौल में ढलने लगी हूँ।", वृषाली खुश लग रही थी,
"ठीक है! जो करना है करो बस कमरा बंद मत करना।",
(क्या मैं अभी एक नासमझ बड़े भाई की तरह हरकत कर रहा था?)
"अच्छा! लेकिन मुझे नहीं लगता कि किसी को मुझमें दिलचस्पी होगी।", वाह! उसका आत्मविश्वास तो देखो।
वह ऊपर चली गई, (ख़ैर, मैं हमेशा की तरह अपने सुरक्षा कैमरे से उस पर और सभी पर नज़र रखूँगा जो कभी भी उनकी गोपनीयता पर हमला नहीं होगा!) इससे पहले मुझे वृषा को उसके असामान्य बदलाव के बारे में बताना होगा।

"हैलो, वृषा?...",
"ठीक है बस उसपर नज़र रखना।", बीप! कॉल समाप्त।
"सरयू ने तुम्हें गजब पीटा।", उसने हँसकर कहा,
"...", मैं उसे बस देखता रहा,
"अहम! इस बार कयाल ने वास्तव में सारी सीमा पार कर दी। पहले उसने खुद की नुमाइश की और फिर ये सब।", आर्य ने कहा,
मैं कॉफी को मिलाते हुए, "हाँ। वह उस दिन से ही उस पर जासूसी कर रही थी जब वह आई थी। जाहिर था, मुझे उस बच्चे के कमरे को छोड़कर पूरे घर में कोई माइक्रोफोन या कैमरा नहीं मिला।",
"हा हा, तुम उसे बच्चा कह रहे हो जैसे कि तुम उसके चाचा हो, नियति नहीं?",
"मैं ऐसी बातों पर विश्वास नहीं करता।",
"अच्छा तो अभी पता चल जाऐगा।",
"देखते है।", यह मेरे लिए एक खुली चुनौती की तरह थी।
"तो, वह आज ऊर्जावान है?", आर्य ने पूछा,
"हम्म। क्या यह कोई समस्या है?",
"अभी उसके लिए नहीं, लेकिन तुम्हारे बारे में क्या, वृषा?",
मैं इस महाशक्ति के बारे में और अधिक जानने के लिए व्यक्तिगत रूप से आर्य से मिलने आया,
"मैं अंदर-बाहर दोंनो तरफ से आरामदायक और सहजता कि बात कर रहा हूँ। मैं आज अधिक संतुलित महसूस कर रहा हूँ।",
"इसका मतलब है कि तुम दोनों ने एक-दूसरे को बहुत अच्छे से स्वीकार किया है, क्यों सही कहा ना भाई?", आर्य कभी नहीं सुधर सकता,
"लेकिन यहाँ तक कि विवाहित जोड़े को भी यह चरण प्राप्त करने में बहुत समय लगता है। है कि नहीं?", मैंने पूछा,
उसने जवाब दिया, "हाँ।",
"तुमने और दिव्या ने भी समय लिया था ना?",
"हाँ, दो साल! पर हम, तुमलोगो कि शक्ति की बराबरी नहीं कर सकते।",
(क्या?) "फिर कैसे? उसने मुझे कभी इसके आसपास वाली नज़रो से भी नहीं देखा। और मैं इस शक्ति वाली चीज़ के बारे में निश्चित नहीं हूँ।",
"वृषा तुम जानते हो कि तुम कवच हो और वृषाली महाशक्ति?", आर्य ने पूछा,
"हम चारों को ही पता है पर, तुम्हें पता है?", यह जितना हो सकता था, उससे बुरा हुआ था।
"मेरा मकसद बस इतना ही था कि उसे अपने पास रख उसे शक्ति दुर्भाग्य को मिटा सकूँ। पर मेरा दुर्भाग्य ज़्यादा ताकतवर निकली। उसे ही महाशक्ति बनना था?!",
"पर जितना मैंने जाना, घर के बड़े ही अक्सर सारी पदवी लेते है?",
"वृषाली कि बड़ी बहन है...शिवम की मंगेतर।",
"वाह! कहानी में ट्विस्ट? वो तो बहुत खतरनाक है।",
"और उसे इस बारे में कोई अंदाज़ा नहीं होगा।", ( मैंने कोई गलती तो नहीं की?)
"वृषा, भाई देखो उसे यहाँ लाना तुम्हारा फैसला था और मैंने आज तक नहीं देखा कि वृषा बिजलानी का लिया हुआ फैसला कभी गलत हुआ। और शायद वृषाली के भाग्य से तुम भी इस दासता वाली जिंदगी से निकल पाओ?", आर्य ने तो कहा पर...
(अभी मेरा एक भी कदम शिवम की जान के लिए खतरनाक होगा।...मेरा सिर!)
"-षा...वृषा!", आर्य ने मुझे हिलाकर बुलाया,
"समीर से मिले थे?",
"आर्य तुम्हें कैसे पता चला हम मुसीबत में थे?", यह सवाल मुझे खाए जा रहा थी,
"केवल मुझे ही नहीं बल्कि सारी शक्ति जानती है कि अब हमारे पास अपना नया मुखिय है।",
"तुम्हारा मतलब है-... वृषाली सच में महाशक्ति बन गई है?", मेरे मन में कई सवाल और थे जो मेरे चिंता में घुल गए,
"हाँ भी और ना भी। जितना वो उस लाॅकेट के पास जाएगी वो उतना खतरे से घिरेगी। और एक बात भाई, तुम उसके कवच और नियती हो और वो तुम्हारी! तो तीसरे की चिंता मत करो अपने आप से पूछो, वृषाली को लेकर तुम्हारी यह चिंता कितनी सामान्य है?",
(वृषाली मेरे लिए बस एक ज़िम्मेदारी है जिसे मैंने खुद चुना। जिसकी सुरक्षा मैंने अपने कंधो पर ली।)
"और एक बात समीर को अपनी शक्ति मत देना।", यह एक चेतावनी थी!

फिर मुझे वृषाली से एक संदेश मिला जिसमें कहा गया था, "हमने कर लिया! उसमें भी मेरी तरह आत्मविश्वास की समस्या है इसलिए आप मुझे कैसे प्रोत्साहित करते हैं कृपया उसे भी प्रोत्साहित करें। नहीं तो कम-से-कम वृषा बस एक बार व्यंग्यात्मक होने की कोशिश मत करिए। अच्छा, एक और बात आपने सुबह नाश्ता नहीं किया था ना तो आज मैं एक अच्छा डिनर और एक मीठा सरप्राइज बनाऊँगी।",
एक और संदेश आया, " और पहेली के लिए कुछ नए खिलौने चाहिए, क्या आप ला सकते है?",
(वाह! अब मुझे बिल्ली के खिलौने खरीदने होंगे?)
"वृषा तुम्हें समझदारी से सोचना होगा-",
"ये बिल्ली के खिलौने कहाँ मिलते है?", मैंने उसे बीच में टोककर पूछा,
"क्या?", उसने मुझे हैरानी से देखा जैसे मेरा दिमाग खराब हो गया हो।
"मैं यहाँ से जा रहा हूँ।", मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई,
उसने मुझे पकड़कर रोकते हुए कहा, "इसमे शर्मिंदगी होने वाली कोई बात नहीं, वृषा!",
"क्या तुम चुप रहोगे! यह एक सार्वजनिक स्थान है।", मैं उसका मुँह बंदकर बात खत्म करना चाहता था,
"आ! वो वही बिल्ली के लिए ना, जिसका मालिक एक नंबर का अय्याश है?", उसने अब भी मेरा हाथ पकड़ रखा था,
"हाँ, अब मेरा हाथ छोड़ो!", उसकी पकड़ और मज़बूत हो गई, "मैं चाँहू तो उसका अस्तित्व मिटा सकता हूँ पर उसके परिवार का अहसान मैं नज़रअंदाज नहीं कर सकता। मुझे उस दुकान का पता दे दो।",
"मैं तुम्हें ले चलूँगा।",
हम एक साथ दुकान पर गए, "तुम्हें इतना कुछ करने की ज़रूरत नहीं है जब उस आदमी ने उनके बेटे होने का फर्ज ही नहीं निभाया तो तुम्हें ऐसे आदमी के अहसान तले दबने कि ज़रूरत नहीं। तुम हर बार अपने लिए खड़े होने से कतराते हो।",
"मेरी जिंदगी में है क्या जो मैं इसे बचाऊँ?", खिलौने देखकर, "क्या बकवास है! यह सब क्या है?", वहाँ चूहे, कीड़े, मछली के आकार के खिलौने थे। कुछ के साथ तार जुड़े हुए हैं और कुछ गेंद या छत्ते के आकार का था? एक छेद के साथ? एक बिल्ली इन चीजों का उपयोग कैसे करेगी?
"यह लाल चमकदार मछली एक बिल्ली के लिए बिल्कुल उपयुक्त होगी।", उसने कहा,
"माफ़ करें सर, क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ?", एक कर्मचारी हमारे पास आया,
"एक बिल्ली के लिए एक खिलौना?", मैंने कहा,
स्टाफ असमंजस में था, और मैं भी।
तभी आर्य ने कहा, "एक साल की एक छोटी सी बिल्ली, जिसे चीज़ें चबाना पसंद है।",
वह जीवन रक्षक था।
"हाँ सर, और कुछ?", कर्मचारी ने पूछा,
"हाँ! मेरी मंगेतर को उस बिल्ली के लिए कुछ कपड़े चाहिए... फिर क्या नाम था? नाम?",
"पहेली।", मैंने कहा,
"हाँ वही।",आर्य ने कहा, "वृषा तुम... अब व्यवसायिक मुस्कान नहीं रखते? बस इसके बारे में सोचो।",
"मेरी उसके साथ लंबे समय तक रहने की योजना नहीं है। मैं कोई रास्ता खोज लूँगा।",
हमने सामान खरीदा और पार्किंग स्थल की ओर चलना शुरू किया। रास्ते में आर्य,
"तुम उसके साथ बस खेल रहे हो?", आर्य ने मेरी तरफ उलझन से देखा,
"हमने यही तय किया था।", मैं इस पल और कुछ नहीं कह सकता,
"हमने ये नहीं तय किया था। वह एक जीवित प्राणी है, तुम उसके साथ वस्तुओं जैसा व्यवहार नहीं कर सकते। अब उसे सिर्फ तुम्हारी ज़रूरत है!",
"उसे मेरी जरूरत नहीं है! मैं उसे वित्तीय रूप से स्वतंत्र बनाऊँगा और उसे हमेशा के लिए छोड़ दूँगा। बिजलानी से कोसो दूर।",
"समीर बिजलानी के बारे में भूल गए? उन्हें शायद अब तक पता चल गया होगा कि हमें अपनी महाशक्ति और कवच मिल गए है। और उसने तो तुम्हारे साथ वृषाली को कैद करनी की कोशिश भी की थी।", वह मेरे सीने की तरफ इशारा कर कहा, "तुम चाहो ना चाहो वृषाली, इस वृषा से जुड़ चुकी है तभी तुम दोंनो एक दूसरे की ऊर्जा के बलबूते खड़े हुए हो।",
मैं उसकी बात को हवा में उड़ाकर, "फालतू बात मत करो। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम-'एक दूसरे कि नियति है।' बकवास है!",
उसने कार में सामान डालते हुए कहा, "तुम एक बात समझ लो वृषा, तुम्हें फैसले दूसरो को सोचकर नहीं बल्कि अपने बारे में सोचकर लेना।",
(हा हा! मेरी जिंदगी मेरी कब रही? मेरी अपनी जिंदगी मेरे पैदा होने के पहले तय कर गयी।)
"इसलिए वृषाली को मुझसे दूर रहना होगा।", मैं आर्य से ही इतने खुलेपन से बात कर सकता था। तभी समीर का संदेश आया जिसमे लिखा था,
"खेल परसो से शुरू होगा।",
(इस आदमी का बस चले तो वो हर किसी की ऊर्जा सोखता चला जाए।)
"समीर बिजलानी का संदेश आया, खेल शुरू होने वाले है। मतलब उसके प्यादे फैल गए है। मुझे अब जाना होगा।", मैंने उसे कहा,
"ठीक है। पर याद रखो कि अगर तुम चाहो? तुम निकल सकते हो।", उसने कहा और मैं वहाँ से निकल गया।

पूरे दिन मैंने आर्य द्वारा कही गई बातों के विचारों के साथ काम किया। मैं इस नरक से बाहर नहीं निकल सकता, मैं खुद एक शैतान था जिसने अपनी माँ और दादी को मार डाला। मैं इस अपमान का पात्र था!आज मैं सामान्य से अधिक थका हुआ था।
"सर, मैं अबसे और चौकन्ना रहूँगा। इस आखिरी मौके के लिए आपका धन्यवाद। मैं अब किसीको अपने ऊपर हावी होने नहीं दूँगा।", विषय मेरे पास आया और कहा,
(मैंने कब ऐसा कहा था?)
लेकिन जैसे ही मैंने उसे मुस्कुराते हुए मेरा स्वागत करते हुए देखा तो दिल में ना जाने अलग से गर्माहट का अहसास हुआ। (आर्य की बेकार बातो का असर है।) मेरे जीवन में भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं।
"ये लो पहेली के लिए तुम्हें जो चीजें चाहिए थी और कुछ कपड़े जो दिव्या ने आर्य से माँगे थे।", मैंने उसे सामान पकड़ाया और अपने कमरे में चला गया। वो दिव्या और साक्षी को ले पहेली के साथ खेल रही थी।
(क्या वह यहाँ घुल-मिल गयी या वो अब भी दिखावा कर रही है?)
मैं अपने बिस्तर लेट गया। मेरा सामान पहले जैसा ही था पर ज़्यादा व्यवस्थित जो वृषाली अपने कमरे में नहीं कर सकती। हा हा! (ये क्या?) मैंने देखा कि अमम्मा और मेरी एकलौती तस्वीर मेरे बिस्तर के पास साफ कर रखी गई थी। (कितने साल हो गए।) मैं उसे अपने सीने से लगाकर मैं कमरे से बाहर नहीं गया।
सरयू आया और कहा, "सांतवे सहायक का पता लग चुका है।",
"हम्म।",
"राजीव, वो समीर से ज़्यादा धीरज का पालतू है। वो तुम्हें निशाना बनाना चाहता है। इतना पता चला है कि वो कायल की सहायक रहेगा।", सरयू ने कहा,
"हम्म! वृषाली और कायल के सहायक को बदल दिया जाए।",
"वृषाली का? तुम्हें पता है ना वो कैसा आदमी है? उससे अच्छा मेरी बहन कि सहायक मैं ही बन जाऊँ।", वह नाराज़ था,
(वे एक दूसरे को कब से जानते हैं?)
"उस नशीली दवाओं के सौदे का क्या हुआ?",
"आह, वह! यह उनके एक बड़ी आपदा थी और पुलिस ने उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया।",
"क्या हमारे प्रतियोगी को इसके बारे में पता था?", मैंने उससे पूछा,
"हाँ! वे भ्रम में हैं।", उसने कहा,
"ठीक है। बस जाओ और अपनी बहन का ख्याल रखो।", मैंने उसे कहा,
मैंने बाकि बचा हुआ रात वृषाली से जितना हो सके उतना दूर रहा। आर्य कि बाते मुझे तंग किए जा रही थी।
"सब उसकी गलती है!"