दिए की रात Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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दिए की रात

भगवान राम जब अयोध्या लौटे थे तब से उनके आने की खुशी मे लोगों ने दिवाली का त्योहार मनाना शुरू किया, कई युग बीत गए, सालों से लोग दिवाली पर पटाखे फोड़ते आए हैं, लेकिन आज अर्वाचीन युग मे दिवाली की व्याख्या ही बदल दी गई है | सबसे पहली बात तो ये कि भगवान श्री राम के समय मे सभी प्रकार के, सभी सम्प्रदाय और सभी जातियों के लोगों का सन्मान होता था, एक दूसरे को धक्का मारकर गिराने की साजिश लोग नहीं करते थे और तो और दूसरे संप्रदाय के लोगों को अपनी ताकत दिखाने का ढोंग भी नहीं होता था | 

   मेरा ये आर्टिकल समाज की उस विचारधारा के खिलाफ है जिसमें दिवाली आते ही कुछ लोग उछल उछल कर *हिंदू धर्म - हिंदू धर्म* के नाम पर कट्टरवाद फैलाने लगते हैं | ये वो लोग है जो कुछ कर नहीं सकते इसी लिए Social media को माध्यम बनाते हैं अपना कट्टरवादी विचारधारा को फैलाने का | आज कल एक ट्रेंड चल रहा है जो कुछ इस तरह है - 

1. दिवाली पर जी चाहे उतने पटाखे फोड़ते रहो, प्रदूषण की चिंता हम दूसरे धर्मों के त्योहारों पर करेंगे |

2. सुप्रिम कोर्ट ने कहा है कि constitution में भगवान राम के समय का उल्लेख नहीं है, तो सीधी बात है, भगवान राम के समय मे सुप्रिम कोर्ट नहीं थी | 

एसी पोस्ट जिसे पढ़कर लोगों का खून खोल उठे और पटाखे ना जलाने वाला भी मानो तीसरे विश्वयुद्ध मे ज़ंग लड़ने जा रहा हो उस पटाखे फोड़ने लगता है, मैं भी एक हिन्दू हू, मुजे भी मेरे धर्म से प्यार है इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि धर्म के नाम पर इतना कट्टरवाद फ़ैला दो की दूसरे धर्म के लोग आके तुम्हारे पैर पकड़ ले!! 

     हम सालों से दिवाली मानते आए हैं, लेकिन भागवत पुराण मे लिखा है कि धर्म की परिभाषा हर युग में बदलती है वैसे ही हर पचास साल मे Environmental condition भी बदलती है, अगर हम हर बार धर्म को लेकर इसी तरह वायु गुणवत्ता को ठेस पहुंचाते रहे तो बहुत बड़ा प्रलय आने की संभावना है | इस आर्टिकल को पढ़कर अब कुछ लोग बोलेंगे की तुम सिर्फ दिवाली को ही क्यु टार्गेट कर रहे हों, मैं उन्हें कहना चाहूँगा कि मैं दिवाली को ही नहीं ब्लकि सभी उन त्योहार जिसमें इतने धुआ फैलाने वाले पटाखों को न जलाने की सलाह दे रहा हूं | 

   मुजे ये भी पता है कि कुछ लोग मेरी ये बात से बुरा मान जाएंगे और कुछ लोग unfollow भी कर देंगे मुजे, अरे कईयों के लिए मैं Anti - Hindu और Anti - National हो जाऊँगा, खेर एसी बातों से मैं मेरा विरोध या बोलना बंध नहीं करूंगा, सच बोलना मैं बंध नहीं करूंगा | सच ये है कि ज्यादा आवाज करने वाले और ज्यादा धुआ फैलाने वाले पटाखों से पर्यावरण को नुकसान होता है, और फिर हम ही कहेंगे कि हर साल गर्मी बढ़ रही है, अरे बढ़ेगी ही ना, एक तरफ हम लोग sustainable development की बात करते हैं और दूसरी और ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों को जलाकर और ज्यादा गर्मी बढ़ाते हैं !! 

      आइए चलिए दूसरे धर्मों के त्योहारों की बात करते हैं, दिवाली के सिवा और कोई एसा त्योहार नहीं है जिसमें पांच दिनों तक लगातार रात को पटाखों को फोड़ा जाता हो, पटाखे मुझे भी पसंद है लेकिन एसे भी नहीं जो सबसे ज्यादा आवाज करे और सबसे ज्यादा धुआ फैला दे, वो जिनसे पूरे पर्यावरण को नुकसान पहुंचे ये मुजे पसंद नहीं | और अगर अच्छे हिन्दू बनना चाहते हो तो दिवाली के दिन हवा मे ज्यादा प्रदूषण बढ़ाने वाले पटाखों को छोड़कर, कोई अच्छा काम कर सकते हैं , समाजसेवा कर सकते है , जानवर सबसे ज्यादा परेशान होते हैं इस दिन क्युकी पटाखों की आवाज से इन्हें तकलीफ होती है, इसलिए उनके लिए कुछ अच्छी व्यवस्था कर सकते हैं हम, अपने आसपास रहते बीमार लोगों को ध्यान में रखते हुए ज्यादा अवाज करने वाले पटाखों को ना फोड़े, सिर्फ 
पटाखें फोड़कर, नई महंगी चीजे खरीदकर दिखावा करके ही दिवाली मनाना जरूरी नहीं है |

    हम स्वामी विवेकानन्द जी की तरह भारतीय संस्कृति को पूरे विश्व में उजागर करने का प्रण भी ले सकते हैं, सबको दिवाली की ढेरों शुभकामनाएं |