बर्थडे नाइट (सपने 3) Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बर्थडे नाइट (सपने 3)

मैं घर के अंदर गया, वहां एक 76 साल की बुढ़ी औरत थी, उन्होंने नाइटी गाउन पहना था, वो एक छोटा सा घर था जिसमें दो कमरे, हॉल और रसोईघर था | उन्होंने मेरा स्वागत किया, वो 9.30 बजे का वक़्त था, उन्हों खाना खा लिया था मगर थोड़ा खाना बचा था इसलिए मैं उधर खाना खाने बैठ गया, वहां डाइनिंग टेबल पर मैं बैठा वो अंकल मेरे पीछे खड़े रहे और मुजे देखने लगे, वो आंटी आए और उन्होंने हाथ मे ट्रे पकडी थी जिसपर एक थाली ढंकी हुई थी, उन्होंने वो थाली उपर से हटा दि और...

मैं शालीन , मेरा जन्मदिन हर साल 6th अगस्त को आता है, पिछले साल मेरे साथ वो हुआ जिसका खौफ मुजे अभी तक है | मैं अहमदाबाद शहर मे मेरे माता पिता के साथ रहता हूं, जबकी मेरा बाकी का परिवार अहमदाबाद से नजदीकी गांव अनंतगढ़ मे रहता है जिसमें मेरे दादा - दादी, चाचा - चाची और उनका बेटा और मेरा छोटा भाई वीर है | पिछले साल 6th अगस्त को मैं मेरी साईकिल पर गाँव जाने का सोचा था क्युकी अनंतगढ़ बहुत ही पास था, इसलिए शाम को कॉलेज से वापस आ कर 4.00 बजे ही मैं साईकिल लेकर निकल गया, मैं उधर करीब 4.50 को पहुचा | सभी बहुत खुश हुए, मैंने दादा दादी और सभी बुजुर्गो के पैर छूए, मेरी बुआ का घर भी बगल में ही था इसलिए मेरे दूसरे भाई बहन भी मुझसे मिलने आए, जन्मदिन के अवसर पर उन्होंने व्यंजन बनाए थे, सबने चाव से रात का खाना खाया, गाँव मे सब जल्दी खाना खा लेते हैं इसलिए रात को 7.45 को ही हम सब खा पीकर निवृत हो गए थे, मैंने घर जाने की आज्ञा मांगी तब मेरे दादाजी ने कहा :

दादाजी : शालीन,अभी मत जाओ,कल सुबह चले जाना |

मैं : दादा, कल कॉलेज मे वर्कशॉप है, मुजे वहाँ काम मे रखा गया है इसलिए 2 घंटे जल्दी जाना हैं, सुबह 9.00 बजे जाना है इसलिए अभी निकलना पड़ेगा |

दादी : रुक जा शालीन, तेरे दादा सही कह रहे हैं |

उनके साथ साथ मेरे चाचा - चाची भी रुकने के लिए जोर देने लगे |

मैं : अरे आप लोग समझने की कोशिश कीजिए, मेरे प्रोफेसर ने मुजे जिम्मेदारी दी है, मैं कल नहीं गया तो उन्हें बुरा लगेगा |
फिर दादाजी ने बे मन से मुजे हाँ कहीं, और मै निकलने वाला था कि चाचा ने कहाः

चाचा : शालीन सुन, रास्ते मे गड्ढे होंगे, साईकिल है जरा सम्भाल कर चलना और अगर कोई रास्ते मे मिले तो साईकिल रोकना मत, वहां से जल्दी ही निकल जाना |

मैंने ठीक है कहा और वहां से निकला, अब गाँव पूरा हो गया था और एक अंधेरा इलाक़ा आ गया था, जहां लाइट का खंभा भी नहीं था ये तो शुक्र है कि मेरी साईकिल मे सोलर लाइट लगी थी जिसमें सूरज की रोशनी से विद्युत बनता है जिससे लाइट जलती है | मैं वहाँ से जा रहा था, एक से एक गड्ढे आने लगे जिसमें मेरी साइकल ठीक से नहीं चल पा रही थी, अचानक एक बड़ा सा पत्थर आया जिससे अगला टायर टकराया और मैं साईकिल से गिर गया, आगे ही एक पेड़ था वहाँ जाकर मैं लुडकता हुआ चला गया, सिर पर थोड़ी चोट लगी थी, पूरे शरीर पर मिट्टी लगी हुई क्युकी हाल ही में यहा थोड़ी बारिश हुई थी जिससे यहां की जमीन गिली हो चुकी थी | मैंने खड़ा होकर देखा तो ये बड़ा ही अजीब पेड़ था, दिखने मे वो पीपल का पेड़ था लेकिन बरगद के पेड़ की तरह लंबी लंबी जड़े निकली हुई थी | मैंने ध्यान से देखा तो वो जड़े हिल रही थी और मेरी और आ रही थी, वो सभी जड़ों ने मुजे पूरी तरह से जकड़ लिया था अब मैं छूटने के लिए हिल रहा था लेकिन जड़े मजबूत थी मैं छूट नहीं रहा था, लेकिन अचानक वहां कहीं से एक आदमी आया और उसने पेड़ के उपर चढ़कर वो सारी जड़े काट दी,और मैं नीचे गिर गया वहां से खड़ा होकर साईकिल उठाई, वो आदमी को मैंने देखा तो वो 75-80 साल का बुढ़ा आदमी था |

मैं : अंकल आपका बहुत बहुत धन्यावाद, आपने मेरी जान बचाई, यहां शहर जाने का रास्ता कहा से है? मैं भटक गया हू और मुज पर हमला भी हुआ है |

बुढ़ा आदमी : ये पेड़ भूतीया है यहा ज्यादा देर मत रुको आगे चलो, और देखो शहर का रास्ता यहीं आगे से ही है, लेकिन तुम्हें चोट लगी है, मेरा घर यहां आगे ही है अंदर आओ तुम्हें मलम लगा देता हू, दवा देता हूं |

मैंने मना नहीं कियाआगे एक रोशनी दिखाई दी,आगे गया तो वो एक छोटा सा घर था और घर के अंदर.....

अब मेरे सामने वो महिला है जो ट्रे लेकर खड़ी है, उन्होंने जैसे ही वो प्लेट हटी की मैं हक्का बक्का रह गया, उस प्लेट मे एक कटा हुआ हाथ था,जिसे देख मेरी आंखे बाहर आ गई, और वो हाथ खून से सना हुआ था और हिलने लगा, एक मिनिट के लिए मैं सन्न हो गया मुजे समज नहीं आ रहा था कि क्या करू? फिर मैं जल्दी से खड़ा हुआ और पीछे खड़े उस बूढे को जोर से धक्का दे कर वहां से बाहर की और भाग गया, साईकिल पर जैसे तैसे बैठा और आगे की ओर निकल पड़ा अब मुजे मैप का ख्याल आया और गूगल मैप के सहारे मैं आगे बढ़ने लगा | रात के 11.00 बजे घर पहुँचा, लेट होने पर पापा चिंता के मारे थोड़ा गुस्सा भी थे, मम्मी ने भी डाँटा फिर मैंने उनको सच्चाई बताई उसे सुनकर पापा तो मान ही नहीं रहे थे, फिर हम सब दूसरे दिन शाम को हम सब फिर से गाँव गए, वहां भी सबको पता चला तब हर कोई घबरा गया, तब मेरे दादा ने बताया कि वहाँ एक बंध पड़ा श्मशान है, और वहाँ भूतो के साये भटकते रहते हैं इसलिए वो बँध हो गया क्युकी वहाँ रात अगल बगल जो भी गुज़रता था उस पर वो प्रेत हमला कर देते थे, उन लोगों ने वहाँ के पेड़ों पर भी अपना साया हावी कर दिया था इसलिए वहाँ के पेड़ भी बड़े अजीब हो गए थे, मैं खुशनसीब था कि मैं बच गया, मुजे समज नहीं आ रहा था कि ये मेरी बर्थडे नाइट का अनुभव था या फिर तोहफा?