बैरी पिया.... - 68 Wishing द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बैरी पिया.... - 68


अब तक :

दक्ष " वो नही पता चला SK.. । कोई clue नहीं छोड़ा है कि कहां गए... " ।


संयम ने मुट्ठी कस ली और बोला " ढूंढो उसे.... । वो ऐसे नही जा सकती दक्ष..... । ढूंढो उसे... " बोलते हुए संयम चिल्ला दिया ।


दक्ष " हान... मैं कोशिश कर रहा हूं.... " ।


संयम " मुझे कोशिश नही result चाहिए.... । जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी ढूंढो उसे..... " । बोलकर संयम ने फोन रख दिया ।


अब आगे :


तभी डॉक्टर ने आकर संयम से कहा " mr संयम... mrs वाणी आपको बुला रही है।। " ।


संयम जल्दी से उनके वार्ड के अंदर चला गया ।
वाणी जी ने उसे देखा और अपने मुंह से ऑक्सीजन मास्क साइड निकाल दिया ।


संयम उनके पास आकर बैठा और उनका हाथ पकड़ लिया फिर बोला " आप ठीक हैं ना दादी.. ?? " । ।


वाणी जी ने गहरी सांस ली और लड़खड़ाती आवाज में बोली " तुमने तुमने सब कुछ खो दिया संयम.. । प्यार बोहोत मुश्किल से मिलता है । जब वो आई थी तो मुझे लगा था कि तुम्हारी जिंदगी संवर जाएगी.. लेकिन तुमने उसे खो दिया ।


उसका इंतजार , उसका प्यार सब देखा है मैने.. । और आज उसकी आंखों में टूटी हुई उम्मीद और हार चुकी हिम्मत भी देख ली.... ।। अकेला रहने के बाद संभालना खुद को... । मैं अब और नही जीने वाली.... ।

शायद अब तुम्हारी अकेली जिंदगी बोहोत दर्द भरी होगी.. । ऐसा कोई नही होगा जो सच में तुमसे प्यार करता होगा.. । "।


संयम " मैं शिविका को ढूंढ लूंगा दादी... । वो होगी यहां मेरे साथ.. । " ।


वाणी जी " वो नही आयेगी संयम... । तुमने उसे पूरी तरह से तोड़ दिया । अब जोड़ना बोहोत मुश्किल है.... । तुमने मरने से पहले मुझे बोहोत बड़ा दुख दिया सानू ... पर चाहे तुम जैसे भी हो.. दादी बोहोत प्यार करती है तुमसे... । मेरे जाने के बाद.. अपना खयाल रखना संयम.. और हो सके तो शिविका को और दर्द मत देना.... " बोलकर वाणी जी की सांसें और गहरी हो गई । वो मुशकिल से सांस ले पा रहीं थीं ।


संयम ने उनका हाथ कसकर पकड़ा और बोला " नही दादी.. । ऐसा मत कहिए.. । आपको कुछ नही होगा... । मैं कुछ होने ही नहीं दूंगा... । आप बिल्कुल ठीक है.... । अभी आप ठीक होकर घर चलेंगी... "। ।


वाणी जी ने कसकर संयम का हाथ पकड़ा हुआ था । एक आखिरी आह की आवाज के साथ वो पकड़ अब पूरी तरह से छूट गई ।


" आपको सब ठीक देखना है । मैं शिविका को वापिस ले आऊंगा.... । आप आप... साथ रहेंगी मेरे... " बोलते हुए संयम ने उनका गाल थपथपाया । लेकिन कोई रिस्पॉन्स नही आया ।


" डॉक्टर... डॉक्टर... " संयम चिल्लाया तो जल्दी से डॉक्टर अंदर आ गए ।


" देखो ये कुछ बोल क्यों नही रही हैं... इंजेक्शन लगाओ उठाओ इनको... । मुझे बात करनी है.. " बोलते हुए संयम ने वाणी जी की आंखों से निकलते आंसुओं को साफ किया ।


Doctor ने वाणी जी को देखा और फिर कंप्यूटर स्क्रीन को.. । वाणी जी की सांसें थम चुकी थी । ।
डॉक्टर में वाणी जी की आंखें बंद की और बोले " she is dead now.... " ।


संयम ने सुना तो उठकर डॉक्टर को धक्का देते हुए बोला " क्या बकवास कर रहे हो... । मैं बता रहा हूं... ये बकवास मुझे नही सुननी.. । ये ठीक होनी चाहिए... समझे तुम... " । बोलकर संयम चिल्ला दिया ।


डॉक्टर ने समझाते हुए कहा " देखिए... हमने कोशिश की लेकिन अब इनको बचा पाना मुमकिन नही था... । अपने आखिरी वक्त में ये आपसे बात करना चाहती थी तो मैने आपको इनके पास भेजा... । अगर इस वक्त में भी हम इनका इलाज करते तो भी इनको नही बचा पाते... । आप बात को समझिए.... " ।


संयम ने उसका कॉलर पकड़ा और बोला " अगर इनको कुछ हुआ.. तो पूरा हॉस्पिटल तबाह कर दूंगा.. । मुझे रोकने वाला कोई नहीं है.. । I want her Alive... " बोलकर संयम ने डॉक्टर को धक्का दे दिया ।


डॉक्टर दीवार से जाकर टकराया और फिर कमरे में लगी इमरजेंसी bell को दबा दिया । जल्दी ही सिक्योरिटी गार्ड्स अंदर आ गए । और संयम को घेर लिया ।


उसी वक्त दक्ष और कुछ गार्ड्स अंदर आए ।
दक्ष ने वाणी जी की ओर देखा और फिर संयम को देखा ।


दक्ष संयम के पास आया तो संयम उसके गले से लग गया । दक्ष ने उसकी पीठ पर हाथ रखा और बोला " SK संभालिए खुद को... " ।


संयम उससे अलग हुआ और बोला " इस डॉक्टर से बोलो... इनको ठीक करे... । " ।


दक्ष को महसूस हुआ कि संयम का मानसिक संतुलन थोड़ा बिगड़ सा रहा था । दक्ष को समझ नही आया कि अभी वो सब कुछ कैसे संभाले ।


उसने संयम को पास के सोफे पर बैठाया और बोला " मैं बात करता हूं SK... " बोलकर दक्ष ने डॉक्टर की ओर देखा तो डॉक्टर बोला " ये पल बोहोत दुख वाला है हम समझ सकते हैं.. लेकिन इस तरह से यहां पर हमारे साथ मारपीट पर उतर आना सही नही है.. । हमने कोशिश की लेकिन इनका बच पाना मुमकिन नही था... ।

जिसे जाना होता है वो चला ही जाता है और अब ये जा चुकी हैं.. । बेहतर होगा आप इस बात को समझ जाएं... " ।


संयम ने सुना तो पास में रखा फूलदान डॉक्टर की ओर फेंककर मारा... । डॉक्टर से देखा तो वो जल्दी से नीचे झुक गया और फूलदान दीवार से जाकर लगा । डॉक्टर घबराई नजरो से संयम को देखने लगा ।


दक्ष ने डॉक्टर और बाकी सब को कमरे से बाहर निकाल दिया । अब कमरे में सिर्फ दक्ष और संयम ही बचे थे ।


दक्ष ने संयम को कुछ देर कंसोल किया । और संयम आंखें बंद किए उसकी बातों को सुनता रहा । आंखे खोलकर उसने सामने की ओर देखा और फिर वाणी जी के बेड के पास चला गया ।


वाणी जी को देखकर संयम जोर से चीख दिया " नहीं..... दादी... । आप नही जा सकती.. । आप कैसे जा सकती हैं । आप ही तो थीं जो सच में मुझसे प्यार करती थी... आप नही जा सकती दादी.... " । बोलकर संयम उनसेे लिपट गया ।


दक्ष में उसे देखा तो उसकी आंखे नम हो आई । संयम को इस तरह से उसने पहले कभी नहीं देखा था ।


संयम उनके पास बैठ चीखते हुए रोता रहा । फिर एक सफेद कफन से उन्हें ढक दिया ।


वही सुबह के वक्त प्रशांत और मनीषा ने जब वाणी जी के मरने की बात सुनी तो वो लोग भी हॉस्पिटल में आ गए ।


संयम वाणी जी की डेड बॉडी को घूरता हुआ बैठा रहा । ।


मनीषा और प्रशांत वाणी जी की डेड बॉडी के पास आकार आंसू बहाने लगे । संयम उठा और सबको वहां से हटाकर वाणी जी की बॉडी को लिए वहां से बाहर निकल गया ।


मनीषा " अब तो इसका कंट्रोल भी चला गया । बुढ़िया के जाने का गम भले ही इसको हो लेकिन घाटा सबसे ज्यादा हमारा ही है । " ।


प्रशांत " ऐसा नही होगा मनीषा... " ।


मनीषा " पर क्यों... ?? ऐसा ही तो होगा.. । इनके रहने पर संयम थोड़ा अच्छे से रहता था और हमे घर से भी नही निकाला था... लेकिन अब इसे बिलकुल वक्त नहीं लगेगा हमे घर से बेदखल करने में "।


प्रशांत " अम्मा इसकी ताकत थी मनीषा... । जो आज छीन गई और अब संयम बिल्कुल अकेला पड़ चुका था । आने वाला कुछ वक्त उसके लिए बुरा है बोहोत बुरा । उसके बाद हो सकता है ये संभल जाए लेकिन उस टाइम तक हमे इसे जिंदा नही छोड़ना है.. । उससे पहले ही SK के आदमियों से कहकर इसका काम तमाम करवा देंगे... । न रहेगा बाज और न बजेगी बांसुरी... " ।


मनीषा ने प्रशांत को देखा तो तिरछा मुस्कुरा दी ।


दूसरी ओर :


संयम वाणी जी को लेकर शमशान घाट पहुंचा और उनका अंतिम संस्कार करने लगा ।


प्रशांत ने आगे आकर संस्कार करना चाहा तो संयम ने उसे हाथ दिखाकर रोक दिया ।


प्रशांत अपना सा मुंह लिए खड़ा रहा । राज मनीषा मीरा और प्रियल भी वहीं पर थे ।


प्रशांत ने गुस्से से मुट्ठी बना ली और मनीषा से बोला " वो मेरी मां थी.. और उनका अंतिम संस्कार करने का हक मेरा है... " ।


मनीषा " वो आपकी जो मर्जी थी लेकिन उन्होंने हमेशा संयम को ही सबसे ज्यादा अपना माना है और उसको ही सबसे ज्यादा प्यार किया है । तो ये संयम भी उनको ही अपना मानता है.. । जितना इसको समझती हूं तो अपनी चीजों और अपने से जुड़े लोगों पर ये पूरा अधिकार रखता है । आपको इनके साथ का कुछ भी करने का कोई मौका नहीं मिलेगा... । इसलिए कोशिश भी मत कीजिए.... " ।


प्रशांत ने मनीषा को घूरा और फिर संयम को देखने लगा ।


पंडित जी ने चिता को आगे देने के लिए कहा तो संयम आग से अपना हाथ जलाने लगा । वो अपने होश लगभग खो ही चुका था । दक्ष ने उसे संभाला और होश में लाया ।


संयम थोड़ा होश में आया तो उसने चिता को आग दी । जलती हुई चिता में उसे वाणी जी का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाई दिया जो संयम के लिए दुआएं दे रहा था । ।


शाम तक चिता जलकर ठंडी हो चुकी थी । जब तक चिता पूरी तरह से जल नही गई तब तक संयम वहीं खडा रहा और उसके बाकी आदमी भी वहीं खड़े रहे ।


आखिर में दक्ष ने अस्थियां समेत कर संयम को दे दी । सब वहां से चले आए ।


संयम जन घर पहुंचा तो घर में बिल्कुल सन्नाटा था। ना आदित्य का चिल्लाना था , ना दादी का बोलना.. , ना विक्रम का संयम को घूरना और ना ही शिविका का उसकी राह देखना... ।


संयम अस्थियां लिए अपने कमरे की ओर चल दिया ।


बंगले के अंदर दम घुटने लगा तो संयम नीचे गार्डन में आकर बैठ गया । ठंडी हवाएं उसे आकर छू रही थी लेकिन उसके अंदर जल रही पछतावे की आग पर कुछ असर नहीं था । वो आग और भी ज्यादा भड़कती जा रही थी ।


संयम अपने कमरे की ओर चला गया । आज पता नही क्यों उसे हारा हुआ महसूस हो रहा था ।


संयम कमरे में जाकर बाथरूम में चला गया और शावर ऑन करके खड़ा हो गया ।


उसकी आंखों से आंसू बह निकले ।


" ये किसके लिए निकले हैं.. मुझे नही पता... । दादी के जाने का गम नही झेल पा रहा या तुम्हारे जाने का... । जीत कर भी हारा हुआ क्यों महसूस कर रहाा हूं.... ?? " बोलकर संयम ने चेहरा ऊपर की ओर कर दिया ।


पानी की बूंदें उसके चेहरे को भीगो रही थी ।


पूरी तरह से भीग जाने के बाद संयम ने शावर बंद किया और बाथरूम से बाहर निकल गया।


फिर बंगले से बाहर आया और गाड़ी में बैठ कर मुंबई की सड़कों पर उसने गाड़ी दौड़ा दी ।


वहीं विक्रम शिविका और आदित्य को लेकर हरिद्वार पहुंच चुका था । रात का वक्त था तो चारों तरफ लाइट्स जली हुई थी जिससे पूरा एरिया जगमगा रहा था । रात का वक्त था तो भीड़ भी थोड़ी कम ही थी ।

शिविका ने नरेन की अस्थियां पानी में बहा दी । और उस राख को पानी में बहते हुए देखती रही ।


आदित्य मुंह खोले आस पास देखे जा रहा था । संयम की कैद से बाहर की दुनिया उसने न जाने कितने अरसे बाद देखी होगी । एक हाथ हवा में हिलाते हुए वो सबको देखे जा रहा था ।


शिविका ने उसे देखा तो दिल में एक अजीब सा दर्द उठा । वो पास आई और उसका हाथ पकड़ते हुए बोली " चलिए भाई.. अब से हम दोनो की ही एक नई जिंदगी की शुरुवात है... । अब से आपको कोई नही मारेगा... । " ।


आदित्य ने विक्रम की ओर देखा और बोला " क्या ये भी हमारे साथ रहेगा... ?? " । ।


शिविका ने विक्रम की ओर देखा और बोली " नही भाई.. । इनकी अपनी दुनिया है.... । ये वहां जायेंगे... । और हम अपनी दुनिया में रहेंगे... । " ।


बोलकर शिविका ने आदित्य का हाथ पकड़ा और सीढियां से उपर की ओर चढ़ने लग गई । ।


आदित्य उसका हाथ पकड़े उसके पीछे चल दिया । उसने एक झलक पलटकर विक्रम को देखा तो विक्रम ने हाथ हिला कर उसे bye कर दिया।
आदित्य ने भी उसे bye कर दिया ।


भले ही दिमागी हालत ठीक न हो लेकिन इतना उसे समझ में आता था कि कौन अच्छा है और कौन बुरा । अपने साथ अच्छे से रहने वाले लोगों को वो भली भांति पहचान लेता था ।


विक्रम को कुछ याद आया तो बोला " शिविका.... " ।


शिविका ने पलटकर देखा तो विक्रम सीढियां चढ़कर उनकी ओर आ गया और बोला " कभी कोई जरूरत पड़े तो याद करना.. " कहकर विक्रम ने एक कार्ड उसकी ओर बढ़ा दिया ।


शिविका ने कार्ड की ओर देखा और बोली " आपने मेरे लिए बोहोत कुछ कर दिया विक्रम जी.. । अब और एहसान तले मत दबाइए.... । ये एहसान भी चुकाा दूं उतना भी काफीी होगा.... । चाहूंगी कि दुबारा कभी मुलाकात हो आपसे... । चलती हूं.... " बोलकर शिविका आदित्य का हाथ पकड़े चल दी ।

विक्रम उसे जाते हुए देखता रहा ।


" बोहोत हिम्मत है तुममें शिविका.. । अकेले एक अंजान शहर में अपने भाई का हाथ थामे बिना किसी पहचान के नई जिंदगी शुरू करने निकली हो... । ना कोई साथ है और न ही किसी का सहारा.. ऐसा फैसला लेने का हौंसला सब में नही होता... । तुम सबसे खास हो...... । भगवान करे अब तुम्हारी जिंदगी में संयम जैसा कोई ना आए " ।


देखते ही देखते दोनो विक्रम की आंखों से ओझल हो गए ।


विक्रम की आंखें ना जाने क्यों भर आई । उसने आंखें पोंछी और फिर वो भी वापिस से मुंबई अपने बंगले की ओर निकल गया ।