बैरी पिया.... - 58 Wishing द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बैरी पिया.... - 58


अब तक :


शिविका बोली " क्या आप खिला सकती हैं दादी... ?? " ।


शिविका ने कहा तो वाणी जी रुक गई । फिर पलटकर शिविका की ओर देखने लगी ।


शिविका की आंखों में देखकर उन्होंने गहरी सांस ली और उसके हाथ से प्लेट ले ली । फिर उसे लेकर bed पर जाकर बैठ गई ।


वाणी जी शिविका को प्यार से खाना खिलाने लगी । शिविका आंखों में नमी लिए बोहोत चाव से खाने लगी । ।


अब आगे :
शाम का वक्त :


संयम वापिस बंगला आया तो सब सो चुके थे । शिविका कमरे में इधर उधर टहल रही थी ।
संयम कमरे में आया तो शिविका की नजरों से उसकी नजरें मिली ।


संयम ने अपना कोट उतारा और सोफे पर रख दिया । फिर अपना हाथ आगे किया तो शिविका ने उसके हाथ में अपना हाथ रख दिया । संयम ने उसे अपने करीब खींच लिया ।


शिविका " आपने खाना खाया.... " ।


" Hmm.. मैं खाकर आया हूं... " बोलकर संयम ने शिविका के बाल कान के पीछे कर दिए ।
शिविका " एक बात पूछूं... !! " ।


संयम शिविका के चेहरे पर उंगली फेरते हुए " hmm.. " ।


शिविका " आप उस लड़के को यहां क्यों लाए हैं... ?? " ।


संयम " किस लड़के को.... ?? " ।।


शिविका " वही जिनकी दिमागी हालत ठीक नहीं है... । और जिनके साथ इतना बुरा बिहेव किया जाता है । और आपने भी उन पर कितने जोर से हाथ उठाया.... " ।


संयम ने आई रोल की ओर बोला " अच्छा वो.... " ।


शिविका " hmm.... । इसे कर्मों का फल कहते हैं बटरफ्लाई... । जिसे इसी जन्म में भुकतना होता है । कई बार किसी और के कर्मों की सजा किसी और को भी मिल जाती है... । Don't pay attention.. its nothing much.... " बोलकर संयम ने शिविका के होठों को अपनी गिरफ्त में ले लिया और उसे अपलिफ्ट करके बेड की ओर चल दिया ।


शिविका " उनकी मेंटल कंडीशन सही नही है संयम... आपको उनके साथ ऐसा बिहेव नही करना चाहिए.. " ।


संयम ने शिविका के हाथों को अपने हाथों में जकड़ा और बेड से लगाते हुए बोला " तो कैसा करना चाहिए.... " ।।


शिविका " ऐसे मारा मत कीजिए... और बाकियों को भी मत मारने दिया कीजिए.... " । ।


शिविका ने कहा तो संयम ने उसकी गर्दन पर किस किया और फिर उसके बगल में लेटते हुए बोला " ठीक है... । नही करूंगा... " ।


शिविका मुस्कुरा दी । संयम ने उसे अपनी ओर खींचा तो शिविका ने उसके सीने पर सिर रख दिया ।


कुछ देर बाद शिविका को नींद आ गई । संयम ने उसे देखा और फिर बेड पर लेटाकर उसे देखते हुए तिरछा मुस्कुरा दिया । फिर कमरे से बाहर निकल गया ।


अगली सुबह :


अंडरग्राउंड बने उस कमरे में संयम दक्ष और वो आदमी मौजूद थे । आदमी ने एक कागज़ संयम की ओर बढ़ाया... । संयम ने कागज पकड़ा और ध्यान से उसे देखने लगा ।


संयम " are you sure.. ये सही है... " ।


आदमी " जी सर.. मैने अपनी पूरी जान लगाकर इस नंबर कोड को कई बार डिकोड करके निकाला है । " ।


दक्ष ने उसका कॉलर पकड़ते हुए पूछा " सही है या नहीं. " ।


आदमी घबराते हुए " जी जी सही है... " ।।


संयम उठा और वहां से बाहर निकल गया ।
शिविका सो कर उठी तो संयम वहां नही था ।

शिविका नहा धोकर नीचे हॉल में आ गई । उसने पिंक कलर का jump suit पहना हुआ था ।


शिविका ने देखा कि मोनिका फिर से वहां आई हुई थी ।


" इनको यहां कोई पसंद नहीं करता लेकिन फिर भी यहां आ जाती है... । इतना बदतमीज कोई कैसे हो सकता है..." सोचते हुए शिविका उनकी ओर आ ही रही थी कि इतने में संयम वहां पर आया । मोनिका ने उसे देखा तो उसकी ओर बढ़ी । पर संयम ने उसपर ध्यान नही दिया और शिविका का हाथ पकड़े उपर कमरे की ओर चल दिया ।


शिविका भी बिना कुछ कहे उसके पीछे चल दी ।
कमरे में आकर संयम ने वो किताब शिविका से मांगी तो शिविका ने उसे वो किताब दे दी ।


संयम ने पकड़कर शिविका को अपने आगे खड़ा किया और किताब का पहला पन्ना खोला । फिर वो नंबर कोड अपने एक हाथ में पकड़ा और शिविका का हाथ पकड़कर वो उस नंबर लॉक में नंबर डालने लगा ।


नंबर लिखने के बाद संयम ने एंटर किया तो किताब अनलॉक हो गई । संयम के चेहरे पर मुस्कान आ गई । शिविका उस किताब को देखने लगी ।


वो किताब कोई किताब नही थी बल्कि एक किताब की तरह दिखने वाला बक्सा था जिसमे पत्थर पर कुरेद कर एक चेहरा बनाया हुआ था ।


संयम ने किताब को उठाया और उसे लेकर बाहर निकल गया । शिविका को समझ में नहीं आया कि आखिर ये था क्या ।


वहीं नीचे मोनिका का गुस्सा अब सातवें आसमान पर था । संयम वापिस नीचे उतरा और बाहर निकल गया ।


बाहर दक्ष गाड़ी में बैठा संयम का इंतजार कर रहा था । दोनो गाड़ी में बैठकर वहां से निकल गए ।


अगली सुबह :
राजस्थान :


एक गुफा के अंदर बने बड़े से लोहे की दीवार के आगे संयम और दक्ष खड़े थे ।


संयम ने किताब के अंदर रखे पत्थर को बाहर निकाला और दीवार में बने सांचे में उसे फिट कर दिया। जैसे ही संयम ने उसे फिर किया तो दीवार में बना एक सांचा खुल गया ।


संयम मुस्कुराया और संयम और दक्ष दोनो अंदर चले गए ।


अंदर बोहोत अंधेरा था । दक्ष ने टॉर्च ऑन की ओर दीवार में लगे एक लिवर को खींचा । चारों तरफ रोशनी फैल गई । गुफा में बोहोत सी रिफ्लेक्शन पड़ने लगी । एक सेकंड को दक्ष ने आंखें बंद कर दी क्योंकि वो रिफ्लेक्शन उसकी आंखों में चुभ रही थी ।


" हीरे.... " दक्ष के मुंह से सहसा ही निकल गया ।।


" हम्मम " संयम ने आवाज में एक अलग सा रुतबा लाकर कहा और जेब में हाथ डाले आगे बढ़ गया । दक्ष भी उसके पीछे चलने लगा ।


जगह जगह पर खुदाई के निशान थे ।


दक्ष " तो जो हीरे हमने स्मगल किए थे वो यहां के थे... " ।


संयम " नही दक्ष... । वो हीरे यहां के नही थे । इस गुफा में गड़े हीरे सबसे कीमती किस्म के हीरे हैं । इंटरनेशनली इन हीरों की कीमत सभी हीरों में सबसे ज्यादा है । ये गुफा जमीन के अंदर 40 फीट की गहराई में है ।


इस गुफा की खुदाई 17 साल पहले बंद हो चुकी थी । इन हीरों तक पहुंचने का बोहोत इंतजार किया है मैने... " ।


दक्ष " लेकिन SK हम खुदाई करा के इस गुफा के बीचों बीच भी उतर सकते थे " ।


संयम " ये जगह मिलों तक लोहे से शिल्डेड है दक्ष... । और इस पर चोट करना मतलब अपनी मौत बुलाना.. । उसके सिस्टम में सेंसर लगाया हुआ है । कहीं और से यहां आने की कोशिश की तो इसमें धमाका हो जायेगा... । यूं तो इसके दरवाजे को भी तोड़ा जा सकता था पर फिर ये जगह तबाह हो जाती तो क्या फायदा..... ।


लेबर तो मारी ही जायेगी और साथ ही साथ ये जगह भी सबकी नजर में आ जाएगी । फिर ये हीरे हमारा स्मगल करना मुश्किल हो जायेगा क्योंकि सरकार की नजर इस पर होगी... " ।।


दक्ष " पर इस जगह को इतना प्रोटेक्ट किया किसने... ?? " ।


संयम " लंबी कहानी है दक्ष... । गहरे राज़ है " ।


दक्ष ने सिर हिला दिया और फिर पूछा " लेकिन SK.. शिविका और उस लड़के का इस गुफा के कोड से क्या लेना देना... " ।


संयम " बोहोत गहरा लेना देना है.... । फिलहाल मजदूर लगाओ दक्ष.. खुदाई शुरू करो.. । 5 दिन बाद पहली डील होगी... " बोलकर संयम तेज कदमों से बाहर निकल गया । दक्ष भी उसके पीछे बाहर चला आया ।


दक्ष ने पत्थर ले चेहरे को सांचे से बाहर निकाला और गुफा फिर से लोहे के दरवाजे से बंद हो गई ।


मुंबई :
संयम का बंगला :


रात हो चुकी थी और सब लोगों ने खाना खा लिया था । शिविका बाहर गार्डन में लगाई कुर्सी पर बैठी संयम के आने का इंतजार कर रही थी ।


विक्रम की गाड़ी बंगले के अंदर आकर रूकी तो उसने शिविका को देखा । वो आज लेट आया था । शिविका को गुमसुम सा बैठे देखा तो वो उसके पास चला आया ।


" May i sit here... ?? " विक्रम ने पूछा तो शिविका ने उसका और देखा ।


" जी.. बैठिए... " शिविका ने सहजता के साथ कहा ।
विक्रम उसके बगल में बैठ गया ।


विक्रम " संयम का इंतजार कर रही हो... ?? " ।
शिविका ने सिर हिला दिया ।


विक्रम " काफी रात हो गई है अंदर चलो... " ।।


शिविका " आप जाइए... संयम आ जायेंगे.. तो मैं भी आ जाऊंगी... " ।


विक्रम " तो जब तक संयम नही आता तब तक मैं भी रुक ही जाता हूं... " ।


शिविका " जैसा आ ठीक समझे... " ।


विक्रम " वैसे... तुम्हारी और संयम की शादी हुई है इसके सिवाय तुम्हारे बारे में कुछ नही पता... । अपने बारे में कुछ तो बताओ.... " ।


शिविका ने एक नजर उसे देखा और बोली " फिलहाल एक अनाथ हूं... जिसका इस बड़ी सी दुनिया में कोई नही है... " ।


विक्रम " और अनाथ क्यों हो.... ?? " ।


शिविका ने घुटनों को समेटा और सीने से लगाए बैठ गई । विक्रम को वो एक छोटी सी प्यारी बच्ची की तरह लग रही थी ।


शिविका उसे अपने पास्ट के बारे में बताने लगी । सुनते हुए विक्रम के चेहरे के भाव बदलते रहे ।

आखिर में उदासी और निराशा उसके चेहरे पर टिक गई । शिविका की आंखें आंसू बहाने लगी । लेकिन उसके रोने की आवाज नहीं थी... । बस उसकी आंखें रो रही थी ।


विक्रम ने उसके सिर पर हाथ रखा और बोला " तुम्हे इंसाफ मिलेगा शिविका... " ।


शिविका ने उसके चेहरे को देखे बिना कहा " इंसाफ तो संयम ने कर दिया है... । अब तक तो लाशें उनकी कलेक्शन में होगी.... " ।


विक्रम ने सुना तो असमंजस में बोला " मतलब... ?? " ।


शिविका को एहसास हुआ कि वो क्या बोल गई तो बात को संभालते हुए उसने कहा " मतलब... संयम... " ।


शिविका बोल ही रही थी कि इतने में विक्रम ने उसे रोकते हुए कहा " समझ गया... । सरेआम कातिल बना घूम रहा है... । पता नही कब अपने हाथ खून से रंगना बंद करेगा.... " ।


शिविका हैरानी से " आपको उनके बारे में पता है ?? " ।


विक्रम " काश ना पता होता तो आज उसके साथ अच्छा ताल मेल होता । पर एक राक्षस मेरा भाई है ये बात मानना मेरे लिए मुश्किल है.... । उसनेे तुम्हारी मदद कि ये अच्छी बात है लेकिन उसकेेेेेे तरीके हमेशा से गलत रहे हैं...... " । बोलकर विक्रम अंदर चला गया ।


शिविका उसे जाते हुए देखती रही । फिर कुछ देर बाद और इंतजार करने के बाद जब संयम नहीं आया तो वो भी अंदर आ गई ।


एक महीने बाद :


करीब एक महीना बीत गया पर संगम घर नही आया । शिविका का इंतजार रोज दादी से बात करते हुए शुरू होता ओर रोज विक्रम के साथ बैठकर बात करके खतम होता ।


शिविका घर के हर सदस्य को जानने और समझने लगी थी । मनीषा और प्रशांत अपने आप में ही गुटर गूं करते रहते थे । शिविका को लगने लगा था जैसे मनीषा आग में घी डालने के काम में बोहोत माहिर थी । और प्रशांत आंखें मूंदे उसका साथ देने में ।


वहीं राज , मीरा और प्रियल तीनों जायदा बात नही करते थे लेकिन शिविका को आभास होता था कि तीनों के दिमाग में कुछ न कुछ चलता रहता था ।


आदित्य के साथ भी शिविका की बॉन्डिंग बोहोत अच्छी हो गई थी । वहीं दादी और विक्रम दो लोग थे जो शिविका को घर में सबसे सही और जेनुइन लगते थे ।


एक महीने में मोनिका भी कई बार बंगले में आती थी और फिर शिविका के साथ तू तू मैं मैं करके वापिस चली जाती थी ।


सिटी हॉस्पिटल इन मुंबई :


शिविका एक वार्ड के बाहर खड़ी अंदर झांक रही थी । अंदर का नजारा देखकर मानो उसका कलेजा हाथ में आ रहा था । उसकी आंखों में आसूं भरे थे ।


डॉक्टर अंदर से बाहर आए तो शिविका ने पूछा " अब ये कैसे हैं डॉक्टर.... " ।


डॉक्टर " देखिए... हालात बोहोत गंभीर है... । हम लोग कोशिश कर रहे हैं और विदेश से बेहतर से बेहतर डॉक्टर को भी हमने दिखाया है लेकिन... अभी तक कुछ खास सुधार नही आया है... ।


हम कोशिश कर रहे हैं... । बस आप फीस जमा करवाते रहिए.... ताकि ट्रीटमेंट जारी रहे । " बोलकर डॉक्टर चले गए ।


शिविका की आंखों से आंसू बहते रहे । उसने ग्लास विंडो से अंदर देखा और फिर ग्लास विंडो पर हाथ रख दिया ।


इतने में किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा । शिविका ने पलटकर देखा तो सामने आयुष खड़ा था ।


आयुष " hey beautiful... । क्या बात है... अब तो हमे भी मुंबई में ही बुला लिया । कौनसी लॉटरी लगी है तुम्हारी... ?? " ।


शिविका " तुमसे मतलब नही है.. समझे.... " ।


आयुष " अरे गुस्सा क्यों हो रही हो.... । मैं तो यूं ही पूछ रहा था.. । मेरे लिए तो अच्छा ही है ना... । सारा खर्चा निकल जाता है... " ।


शिविका ने उसे घूरा और बोली " huh.... मतलबी इंसानों की दुनिया में कोई कमी नहीं है.. । No wonder... कि तुमने बोहोत फायदा उठाया है... पर अब और नही.... । अब से तुम्हे कुछ नही मिलेगा... ।

जितना तुमने किया उससे कहीं ज्यादा तुम्हे दे दिया है... । अब अपनी मेहनत से नशा करो.. । अपनी मेहनत से ऐश करो... " । बोलकर शिविका वहां से निकल गई । ।


आयुष ने सुना तो उसका दिमाग घूम गया । उसने अपनी जेब से सिरिंज निकाली और शिविका के पीछे चल दिया ।


शिविका हॉस्पिटल से बाहर निकली तो आयुष भी उसके पीछे ही बाहर आ गया । शिविका सड़क क्रॉस करने लगी तो आयुष ने सीरिंज को कसकर हाथ में पकड़ा और उसके पेट में घोंपने के लिए पीछे की ओर ले गया । ।