चिंकी मेरी पपी Amrita shukla द्वारा जानवरों में हिंदी पीडीएफ

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चिंकी मेरी पपी

दोपहर दो बजे अम्बिका का फोन आया "आंटी चिक्की नहीं रही"
"क्या कैसे हुआ" लगभग चिल्लाते हुए मैने पूछा
"आंटी,किसी कार वाले ने मार दिया"
"हाय राम "कहकर मैने फोन रखा और रोने लगी कि मैं इसलिए उसे छोड़कर आना नहीं चाहती थी ,पर इमर्जेसी
 में जाना पड़ा।इसके पहले बेटा भी साथ चलने को कह रहा था ,पर मैने बाद के लिए टाल दिया था।मैं काफी समय से अम्बिका से कह रही थी कि उसे कोई एडाप्ट करने वाला हो तो बताओ।उसने कहा आप फोटो भेज दीजिए मैं ग्रुप में ड़ाल देती हूँ।पर कोई इंडियन ब्रीड नहीं लेता।"इसके बाद मैने कई एनिमल शेल्टर में उसे रखने के लिए फोन किया पर कोई बात नहीं बनी।तीन महीने पहले सोसाइटी के डाॅग्स से बचाकर घर ले आयी थी।यही खाती -पीती थी,रात मे ,दोपहर में बाहर की गर्मी से बचाने उसे कूलर में सुलाती थी ।पर वो बहुत चंचल थी,मेन गेट की सलाखों से निकल जाती।सामने वाले रोज घर का बचा खाना बाहर ड़ाल देते ,तो उसे खाने पहुँच जाती ।उसे पकड़कर लाती , पर वो कहाँ ठहरती थी,फिर पकड़ती,यही चलता रहता।सोसाइटी में कुछ लोग उसे मोटी ,बासी मोटी रोटी दे देते ,वो घर ले आकर खाती।मुझे बहुत गुस्सा आता कि एक नन्ही से बच्ची को ये लोग ऐसा खाना देते हैं ये पचा नहीं पाती और गंदा करने लगती।तब मैने गेट के नीचे हिस्से में रस्सी बंधवा दी ,पर देखती हूँ कि थोड़ी देर में ही उसने एक रस्सी का कोना काटकर बाहर जाने का रास्ता निकाल लिया।तब मैने हार्डवेयर वाले को बुलाकर गेट को शीट से कवर लगवाने के लिए बात की।पर घर में ,दरवाजे में पेंट होना था इसलिए ये नहीं हो पाया।मैं शहर में कहीं जाती तो उसकी रक्षा के लिए प्रार्थना करती।मैं सुबह घूमने या मंदिर जाने के लिए निकलती,पीछे दौड़कर चलने लगती,बहुत दूर तक चली जाती।मुझे दूसरे कुत्तों के उसे पकड़ने का ड़र लगता तो मैं वापस उसे घर छोड़ने आती और एक रस्सी से बांध देती।तभी मैने एमेजाॅन से उसके लिए काॅलर और बैल्ट मंगवाया कि मैं आसपास जाऊँगी तो उसे बाँध दूँगी।मैने बाँधना शुरु किया, पूरे समय नहीं ,क्योकि वह छोटी थी और उसकी आदत नही थी।एक दिन बाँधा तो उसका बैल्ट डीला बंधा था ,जब वापस आए तो वो बैल्ट सहित गायब थी।उसे ढूंढा,तो वो अभी नये बने दोस्तों के साथ खेल रही थी।मैने उसे पकड़ना चाहा ,पर वो फुदक कर भागती रही,रेत के ढेर के पीछे छुप गयी।मेरी सांस फूलने लगी और उसपर गुस्सा भी आ रहा था।आखिर किसी तरह गले से बैल्ट से खोलकर छोड़ दिया।चिंकी के आने से पहले एक बिल्ली का बच्चे आने लगा था।पहले उसका एकछत्र राज था ,पर चिंकी के आने के बाद वह देखकर आती।कभी-कभी तो चिंकी के सामने रहने पर आ जाती ,फिर चिंक्की उसे भौंकती ,दौड़ती।सामने वाले हिस्से में चिंक्की के खाने का कटोरा रखा ,जो पहले बिल्ली का था,और पीछे बिल्ली को दूध देने के लिए रख दिया।दोनों के पकड़ने का खेल अक्सर चलता।जब भी बगीचे में पानी ड़ालती तो दौड़कर पानी की धार पकड़ लेती या पाइप खींच लेती।गेट के बाहर हेज में भी पानी नहीं ड़ालने देती,और जानवरों के रखे सीमेंट की टंकी में पानी भरो तो उसमें मुँह ड़ालकर गिरी पत्तियों को निकाल कर बाहर फेंकती। एक बाहर जब पाइप खींच कर पानी फैला रही थी तो एक लड़की वहाँ से निकली और मुझसे कहने लगी कि आंटी इसी को दे दो ये ही पानी ड़ाल देगी।एक दिन पैर में चोट लग गयी तो लंगड़ाने लगी तो मैने इसे डाक्टर के यहाँ ले जाने के लिए आटो मंगवाया।चिंतित थी कि ये कहीं रास्ते में कूद न जाए इसलिए एतिहात के तौर पर गले में रस्सी बाँधे,एक कपड़े के बैग में संभाल कर बैठाया।लेकिन वो तो मेरी गोदी में सर रखकर चुपचाप बैठी रही।यहाँ तक कि डाक्टर के इंजेक्शन लगाने पर भी नहीं ड़री।मैने उसके लिए टानिक भी ले ली ,वो थोड़ी कमजोर जो थी।वापिसी में भी बड़ी शांति के साथ आयी।
 बेटा मुंबई से कुछ काम के सिलसिले में आया।मुझसे साथ चलने कहने लगा।पर मैं चिंक्की को छोड़कर नहीं जाना चाहती थी।बाद के लिए टाल दिया।लेकिन तभी बेटी का फोन आया कि तबियत खराब हो गयी है ,अस्पताल में एडमिट होना पड़ा है।यह सुनते ही जल्दी सारा काम समेटा और सात बजे की फ्लाइट लेकर पहुँचे।उसके बीमारी में भी चिंक्की का ख्याल आ जाता।
वहाँ पहुँचे तो निशा जी का फोन आया कि  तुम्हारे घर गए थे ,ताला लगा था पर तुम्हारी चिंकी वहीं बैठी थी।मुझे उसी का ख्याल आता रहता था।बहुत सुंदर थी।बड़ी-बड़ी आँखें,ऊपर की तरफ खड़े लंबे कान ,पतली पूँछ जो कुछ  समय बाद मोटी झबरी हो गयी थी।बहुत चंचल थी।
अम्बिका से उसके बारे में पूछती रहती।असल में वो स्ट्रीट डाॅग्स की देखरेख करती है ,इसको भी देखने का आग्रह किया था।वो देखती थी।उसका वीडियो भी बनाकर भेजा था।मैनें सोचा था कि वापस जाकर उसे खूब प्यार करूँगी।लौटने में लेट हो रहा था,और उसकी खबर मिली।23 जुलाई जिस दिन पिताजी का जन्मदिन होता है ,उसी दिन वो नहीं रहीं।मैं बहुत रोयी।बार-बार उसका ख्याल परेशान करता रहा।मैं वापस जाने से घबरा रही थी,बैचैनी थी।आखिर कल निकल रही हूँ।उसका बैल्ट, कटोरा सब घर में पड़ा होगा।पता नहीं मैं कितना संयत हो पाऊँगी।अभी भी लिखते समय आँख में आँसू हैं। घर आके देखा कि कोई भी उसके बारे में चर्चा नहीं कर रहा था,वैसे ठीक ही था ,मैं बेचैन महसूस करती।उस दिन सब्जी वाले से पूछा कि-वो हमारे यहाँ छोटी सी पपी थी देखा क्या?हैँ माताजी पीछे कहीं दिखी थी।मेरी आशा जगी मैने कहाँ उसकी फोटो खींच कर लाना।फिर वो दूसरे दिन आके कहने लगा नहीं वो दूसरी थी। आज छोटू डाॅगी को बिस्किट दे रही थी तो एक बाई निकली वो कहने लगी आप बाहर चले गए थे तो यही गेट के अंदर बैठी रहती थी।गार्ड के पास भी चली जाती थी,उसे गेट के अंदर कर देते थे।मेरे पीछे घूमती थी।पर वो गाडी वाला मार दिया,अब सुनसान लगता है।आखिर मैने मान लिया कि वो अब नहीं है।उस दिन अम्बिका से भी पूछा था कि चि॔की सच में चली गई है,हाँ आंटी वो सरदार के लड़के ने गाडी चढ़ा दी थी।अब वो बिल्ली बेखौफ आती रहती है,पैर में लिपट जाती है,चलने नहीं देती।लेकिन चिंकी अभी भी याद आती है।
डॉअमृता शुक्ला