नियति - National story competition-jun2018 Amrita shukla द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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नियति - National story competition-jun2018

नियति

डॉ अमृता शुक्ला

आज हरीश जी के घर में बड़ी धूमधाम का माहौल था । यहाँ बड़े उत्सव की तैयारियां चल रही थी । इस उत्सव के पीछे एक नहीं दो कारण थे । पहली बेटी प्रेमा के होने के बाद चार साल के बाद बेटे का जन्म ,और बेटे के जन्म के बाद डॉक्टर हरीश जी को पदोन्नति मिलन । शहर के सभी आमंत्रित लोग हरीश जी को शुभकामनाएं दे रहे थे और बेटे को आशीष देने के साथ उसे हरीश जी के लिए भाग्यशाली माना जा रहा था । कुछ लोगों में ऐसी मानसिकता से ग्रस्त थे कि बेटा आने से हरीश जी का उतराधिकारी आ गया है । हालांकि हरीश जी इस तरह की बातों पर ध्यान देने वालोँ में से नहीं थे । वे बहुत खुले विचारों के थे । हरीश जी ने बहुत अच्छी तरह से इंतजाम करवाया था । खातिर दारी में कोई कमी नहीं थी । आखिर देर रात चला यह समारोह संपन्न हुआ । सभी उनकी दरियादिली से संतुष्ट और खुशी से भरकर विदा हुए ।

वे बड़े मिलनसार व्यक्ति थे । सबके सुख-दुख में हमेशा अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे । समय मिलने पर सामाजिक कार्यो में भी भाग लेते थे । उनकी बात सुनकर बहुत से माता पिता ने अपनी बेटियों को स्कूल भेजना प्रारंभ किया था ।

बेटे का नाम प्रदीप रखा गया क्योंकि उसके आने से घर में उजाला हो गया था सभी को और आनंद की प्राप्ति हुई थी । प्रदीप छोटा और घर का लाडला अपने बाल-सुलभ चेष्टाओं से मन मोहता रहा । अपनी प्रेमा दीदी से कभी तो ठीक से खेलता ,पर कभी उसकी जिद के कारण दीदी को डांट भी खानी पड़ती थी ।

प्रेमा ने स्कूल जाना शुरू कर दिया था । तब प्रदीप अकेले खेलता रहता.और ज्यादा जिद करता ,जो समय के बढती जा रही थी । प्रदीप चार साल का हो गया तो उसका भी दाखिला प्रेमा के स्कूल में करवा दिया । दोनों बच्चों को बड़े लाड प्यार से पाला जाता था । बड़े से घर में सब सुख-सुविधाएं मौजूद थीं,किसी बात का न तो अभाव था । घर के लोगों ,पहचान वालों, ,रिश्तदारों से प्यार भरपूर मिल रहा था,जिससे प्रदीप खुद को विशेष समझने लगा था । हरीश जी पत्नी मीना भी डॉक्टर थीं । पहले तो प्रदीप मन लगाकर पढ़ता था । पर धीरे धीरे उसका ध्यान भटकने लगा । तब उन दोनों के अस्पताल जाने के बाद प्रदीप बहाने बनाकर स्कूल बहुत बार स्कूल से छुट्टी करने लगा । मीना को नौकरानी से प्रदीप के बारे में जब पूछती तो वो कहती-'-भैया तो स्कूल से आने के बस टीवी देखते रहते हैं । खाना भी ठीक से नहीं खाते । ' इस पर मीना चिंतित हो जाती और प्रदीप को पास बैठ कर समझातीं कि--पढऩा बहुत जरूरी होता है । पढऩे से होशियार बनते हैं । नाम, पैसा, इज़्जत सब कुछ मिलता है । तुमको स्कूल में क्या तकलीफ है?बताओ तो उसे दूर करें । तुम्हें ऑफिसर ,डॉक्टर, इंजीनियर जैसा बनना है या मजदूरी करना है?'इस तरह कहने से कुछ दिन तो ठीक -ठाक रहता, पर फिर प्रदीप स्कूल जाने के नाम से बहाने बनाने लगता । । एक दिन टीचर का फोन आया तो हरीश और बीना स्कूल गए ,वहां पर भी टीचर ने क्लास में ध्यान न देने की बात कही । हरीश वैसे तो शांत स्वभाव के व्यक्ति थे पर अब प्रदीप की शिकायत ने उनको गुस्सा दिला दिया और उन्होंने प्रदीप को डांटा और टीवी कनेक्शन बंद करने की धमकी दी । इससे प्रदीप और चिढ़ गया । मीना और हरीश प्रदीप के ऐसे व्यवहार से दुखी और परेशान रहने लगे थे । वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें । प्रेमा अच्छे से पढाई कर रही थी । वो भी अपनी तरह से भाई को सिखाती । फिर भी परिणाम संतोषजनक न होता देखकर प्रदीप की भलाई के लिये आखिरकार मीना ने नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया ,और घर पर ही थोड़े समय पेशेंट देखने का तय कर लिया । अब मीना के कारण प्रदीप को ज्यादा टीवी देखने नहीं मिल पाता था । नहीं तो पहले स्कूल से आकर वो अपने दोस्त जय की तरह अपराध वाले सीरियल देखने लगता था । प्रेमा भी उससे कार्टून या अच्छे सीरियल देखने कहती क्योंकि उसे भी देखना होता था । इस बात पर दोनों झगड पड़ते तब प्रेमा मम्मी पापा से शिकायत करने की जब बात करती तो प्रदीप कॉपी किताब उठा कर जय के घर चला जाता और उसके साथ कमरे में टीवी देखता । किसी तरह प्रदीप दसवीं तक पहुंच गया । वैसे तो अब तो उसे कॉलेज में आ जाना चाहिए था । प्रेमा ने पढ़ाई पूरी कर जॉब करने लगी थीं । कुछ समय बाद उसकी शादी हो गई,पर उसे निरंतर मम्मी -पापा की चिंता लगी रहती थी । प्रदीप ने कॉलेज करने के बाद उसने बिजनेस के लिए पापा से पैसे मांगे । हरीश जी ने अपनी जमा -पूंजी निकाल कर उसे इस हिदायत के साथ दे दी कि इतनी सारी रकम है ठीक ढंग से इस्तेमाल करना । किंतु कुछ समय में वो पैसा ढूब गया । इस बीच प्रदीप को अचानक कविता लिखने का शौक हो गया । इस कारण वो कहीं से पैसा उधार लेकर कवि सम्मेलन का आयोजन करवाता, कविता सुनाने के लिए लड़कियों को घर भी बुलाता । प्रदीप लगातार परेशानियों बढ़ा रहा था । इसके बाद प्रदीप ने फिर से उधार ले शेयर बाजार में पैसा लगाया । लेकिन शेयर भाव गिर गए और प्रदीप पर कर्ज हो गया तो उसे लौटाने फिर उसने पापा से पैसा मांगा । लेकिन हरीश जी ने मना कर दिया और उसे समझाते हुए कहा कि –“ये सब बेकार चीजों में पैसा मत बर्बाद करो । कोई ढंग का काम सोचो । हम कब तक तुम्हारी मदद करेंगे । अच्छे से सैटिल हो जाओ । शादी करके खुश रहो और हमें भी खुश रहने दो । " साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि ठीक से ढंग का काम नहीं करोगे तो तुम्हें पैतृक संपत्ति से बेदखल कर देंगे । प्रदीप को तो पैसा लौटाने की चिंता सता ही रही थी । साथ ही साथ पैतृक संपत्ति न मिल पाने की चिंता शामिल हो गई । अब प्रदीप का अपराधी दिमाग हावी होने लगा । उसने कहीं से पिस्टल खरीदी और घटना को अंजाम देने का अवसर देखने लगा । उस दिन हरीश जी सुबह पूजा करने बैठे तब प्रदीप ने फिर पैसे मांगने की बात की । इसी बात पर बहस होने लगी और प्रदीप ने उनपर गोली चला दी । प्रदीप जी गिर पड़े । यह देख मीना तुरंत प्रेमा के बेटे को फोन करके बताने लगी कि-'तुम्हारे नाना जी गिर गए ,जल्दी आओ' । मीना ने जब प्रदीप को रोकना चाहा तो उसने उन्हें भी गोली मार दी और भाग गया । जब प्रेमा का बेटा आया तो दोनों को मृत पाया तो पुलिस को खबर की । पुलिसआयी, प्रदीप से पूछताछ शुरू हुई । काफी आनाकानी के उसने जुर्म मान लिया । प्रदीप को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया । आज भी हरीश जी के घर में लोगों की भीड़ थी ,हलचल थी जैसे हरीश जी के प्रमोशन और बेटे के जन्म के समारोह के समय थी । लेकिन आज हरीश और मीना इस दुनिया से जा चुके थे और भाग्यशाली बेटा अपने मां बाप मारने के कारण जेल चला गया ।

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