स्वयंवधू - 18 Sayant द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्वयंवधू - 18

"कोई पागल ही मुझे जानना चाहेगा।", वृषाली ने कहा,
(तो अब मैं पागल हूँ।)
"अहम! यह उनका असफल प्रयास था इसलिए उन्होंने तुम्हें पकड़ने के लिए नई घटनाएँ रचीं और कायल के स्टॉकर का इस्तेमाल किया। जब मैं कायल के स्टॉकर मामले में व्यस्त था, तब उन्होंने इस मौके का इस्तेमाल कर तुम्हारा अपहरण करने के लिए किया। उन्होंने अपनी आत्म-संतुष्टि के लिए तुम्हें नष्ट करने और एक भयानक मौत देते हुए वीडियो बनाने कि कोशिश की। ताकि मुझे मेरा औकात याद दिला सके।",
"सिर्फ उनके आत्मसंतुष्टि के लिए मेरे टुकड़े करना चाहते थे?", मैंने जो सुना उस पर मुझे विश्वास नहीं हुआ, "क्या इसका आप पर कोई प्रभाव पड़ा होता?",
"-न-...! (बेकार शक्ति!) इसका कारण साधारण है, तुम पहली व्यक्ति हो जिसे मैंने अपना मित्र बनाया है जिसका मतलब है कि तुम मुझसे बदला लेने के लिए सबसे आसान रास्ता हो। इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम तेज़ी से मज़बूत बनो।",
"क्या इसका ज़रा भी असर आप पर होता?",
"मैं नहीं जानता...शायद हाँ। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें वैसा कष्ट सहना पड़े जैसा तुमने सहा।",
"...तो मुझे काटा गया था?",
उसके बाद एक लंबी खामोशी छा गई। तब वृषा ने कहा, "वह अंगूठी... वह अंगूठी हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है, मैं अभी केवल इतना ही कह सकता हूँ। यह लॉकेट और वह अंगूठी जुड़े हुए है और पहनने वाले को अपनी ऊर्जा को एक दूसरे में स्थानांतरित करने में मदद करते है। यह मेरी पारिवारिक धरोहर है। इस तरह के हम पाँच परिवार है। हर शक्ति कि अपनी एक खूबी और रंग होती है।",
मैं अपनी और वृषा कि अंगूठी को देखा,
"हम दोंनो के रत्नों के रंग अलग-अलग है। ऐसा क्यों?",
"मैंने तुम्हें पहले ही ज़रूरत से ज़्यादा बता दिया है-आ-!",
वो अपनी भीगी मासूम आँखों से मुझे देख रही थी (यह उसका दृष्टिकोण है, अन्यथा वह सिर्फ जवाब चाहती है।), "लगता है मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। मैंने पहले ही पर्याप्त से अधिक कहा है, अत: थोड़ा अधिक से क्या उखड़ जाएगा?", उसकी आँखें चमक उठीं (यह भी।), "यह साझेदारों के बीच विश्वास दर्शाता है।",
"मतलब वे जिन्होंने इसे पहना उनका क्या?", उसने पूछा,
"हाँ?",
"तो आपने सभी स्वयंवधू प्रतियोगियों के साथ ऐसा किया?",
"क्या?...बिल्कुल नहीं!", मैं अकारण उत्तेजित होकर चिल्लाया,
"एक बार पहनने के बाद उसे उतारने के लिए हमें एक विशेष मंत्र की आवश्यकता होती है। (और इसे ऐसे ही कोई भी नहीं फहन सकता।)",
"तो इसीलिए ये अटका हुआ है...और किसीने इसे नहीं पहना?", उसने उस अंगूठी को रगड़ते हुए कहा,
"हाँ। दाईमाँ चाहती थी कि तुम इसे एक बार पहनकर देखो। अब अपनी बात पर-",
"जी। हाँ!",
"उन्होंने तुम्हें टुकड़ों में काटने की कोशिश की और हर जगह काटने का प्रयास किया। सिर, गर्दन, हाथ-पैर, गला, पेट, कलेजा, छाती।",
"अच्छा टुकड़े में काटने की कोशिश कि- क्या?!", वह एकदम से चीखी और जम गयी,
"तुम्हें अधिक चोट नहीं लगी क्योंकि मैंने तुम्हें इस तरह कि स्थिति में सुरक्षित रखने के लिए एक अदृश्य कवच से ढक दिया था। जब तक मैं तुम तक नहीं पहुँच जाता तब तक तुम सुरक्षित रहो।",
"तो इसका मतलब मेरे कटने के पहले आप पहुँच गए?", वह पूरी तरह असमंजस की स्थिति में थी,
"-'कटने'?... पर मैं इतना ताकतवर नहीं कि तुम्हें पूरी तरह सुरक्षित रख सकूँ।",
अब वे मुरझाए हुए लग रहे थे, "पर क्या यह आपकी वजह से नहीं था कि मैं फोरेंसिक लैब में टुकड़ों में नहीं पड़ी हूँ?",
उन्होंने मुझे हैरान होकर देखा,
"मैंने मज़ाक किया जैसा आपने किया अभी-अभी।",
"मैंने कौन सा-! अगर तुम्हें लगता है कि मैंने तुमसे झूठ कहा है तो तुम इसे मुझपर आज़माकर देख सकती हो।",
उनकी बात सुनकर मैं डर गई और उन्हें साफ-साफ मना कर दिया। तो उसपर उन्हें मेरा हाथ पकड़कर मुझे सीधा शीशे के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया। मैंने उसमें अपनी प्रतिबिंब देखी, मेरे चेहरे पर निशान थे, गर्दन पर निशान थे, हाथ-बहो पर निशान थे, पैरो कि तरफ देखने पर भी गहरे कटे होने के निशान थे। खुद को देख मेरे पैर तले ज़मीन खिसक गई। खुद को देख मेरे शरीर ने खुद को छोड़ दिया। वृषा ने मुझे संभाला।
"ध्यान से देखना।", उन्होंने कहा और-
मेरे और वृषा के बीच नीली रोशनी नज़र आने लगी। उनका प्रकाश गर्म था, मेरे पीठ को ग्रम कर रहा था। वृषा के लाॅकेट से निकलते हुए वो रोशनी मेरे हाथ से होते हुए मेरे पूरे शरीर फैल गई और मुझे पूरी तरह से घेर लिया। थोड़ी देर तक मेरे चमड़े को भुनने के बाद वो ऊर्जा अंगुठी में समा गई। मैं वहाँ वृषा का सहारा लेकर, बस सब देख रही थी। दर्पण पर प्रतिबिम्ब नीले से सामान्य हो गयी। वहाँ मैंने देखा कि वृषा मुझे पकड़े मुस्कुराते हुए मेरी ओर देख रहे थे। मैंने खुद को देखा, मेरा कटा-फटा सा भयानक शक्ल सामान्य हो गया। यहाँ तक कि उस दिन लगे निशान भी।
"वृ-...वृ-वृषा...", मेरी आवाज़ काँप रही थी...
"देखा! बताया था ना? तुम ठीक हो जाओगी लेकिन-",
"अई! अम्मा!", मैंने काटे वाली जगह छूने कि कोशिश की, वो अब भी दर्द कर रहा था।
(मैं इससे और क्या उम्मीद कर सकता हूँ?) आह भरकर वृषा, "हाह! तुम पहले मेरी पूरी बात सुनोगी? बस सुनो वृषाली, मैं कोई उपचारक नहीं हूँ, मैं केवल अन्य शक्तियों की शक्ति को सोख सकता हूँ। तो मेरे पास दो विकल्प थे, पहला कि मैं तुम्हारा दर्द सोख उन दागों के साथ जीने दूँ जो स्थायी हो सकते थे या दूसरा, तुम्हारा सारे घाव ठीक तो हो जाऐंगे लेकिन दर्द कुछ दिनों तक असहनीय रहेगा-",
"ओह! तो दूसरा ही सही था दर्द तो कुछ दिन में चला जाएगा। है ना?", मैं उन्हें समझने लगी थी,
"और आप हर दिन अपनी शक्ति से मेरे साथ रहेंगे जब तक मैं ठीक ना हो जाऊँ?",
उन्होंने जवाब नहीं दिया पर मैं समझ गई वो क्या कहना चाह रहे थे। 'गुरर्रर' पेट की गरज!
"मेरा पेट भी समझ गया। वृषा, भूखे पेट दर्द भी नहीं लगती।",
"तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता।", धीरे से मुस्कुराए, "क्या खाना चाहती हो?"
"पेट भरने लायक।", मुँह फुलाकर कहा,
"चलो।", वृषा ने कहा,
"पहले दांत घस ले?",
"क्या?", मुझे उठाते हुए रुक गए,
"मुझसे बासी मुँह खाया नहीं जाएगा। मेरी पुरानी आदत है।",
"तुम एक दिन के लिए-",
उन्होंने लंबी साँस ली और मेरे बात मान ली,
"उससे पहले वृषा एक और सवाल। मेरे पूरे चेहरे को काट दिया गया पर मेरे शरीर के एक ही हिस्से पर चोट कैसे?", मेरा बांए हिस्से के हर एक जोड़ में असहनीय दर्द था,
"वो बात तो अधूरी रह गई। उन्होंने तुम्हें लटका रखा था।",
"लटका रखा था? मतलब रस्सी वो मोटी रस्सी जो उस टेबल पर थी?",
"हो सकता है। मेरे आदमी जब तुम्हें ढूँढते हुए उस कमरे के घुसे। तुम्हें उस ज़ख्मी अवस्था देख वे भी सहम गए थे। हवा में टेढ़ा लटका हुआ तुम्हारा शरीर, जिससे खून कि धारा जलधारा जैसी बहकर पूरे कमरे में बह रहा था। तुम लगभग मर चुकी थी। तुम्हारा बायें हिस्से के चिथड़े उड़ गए थे। तुम्हारा हाथ-पैर और गला रस्सियों से कसा हुआ था। उन्होनें तुम्हें तुम्हारे होश में रहते हुए हो काटना चाहते थे पर वो तुम्हारे सोने की समक्षता से हार गए और तुम्हें जगह-जगह से काटने लगे- कलाई, गर्दन, स्तन, घुटने और बहुत सी जगहाएं जहाँ तुम्हें दर्द हो रहा होगा। वे तुम्हारे दर्द पर पागलों की तरह हँस रहे थे, यह डरावनी फिल्म के सेट जैसा था। तुम खून से लथपथ होकर मर रही थी, फर्श पर खून बिखरा हुआ था, उसके हाथों में चाकू और इलेक्ट्रिक कटर से खून टपक रहा था और वह तुम पर इसका प्रयोग करने ही वाला था कि मैं वहाँ आ धमका।", वे रुक गये,
"?...बस और इतनी गहराई से मत बताइए। मेरे लिए इतना बस है।", सब सुन मैं अपना डर और छिपा नहीं पा सकती थी।
वे घूरकर मेरी ओर देखकर मुस्कुराए, "उसके बाद मैं वहाँ तुम्हारे पास दौड़ा। मैं तुम्हें तुरंत नहीं खोल सकता था। तुम्हारे शरीर में रस्सी धसी हुई थी। तुम्हें बचाने के लिए पहले मैंने तुम्हारे कटे गहरे टपकते हुए घांवो को भरा जिससे तुम्हारी मृत्यु उस वक्त के लिए टल गई। फिर रस्सी को धीरे-धीरे कर तुम्हारे हाथ से बाकि बची रस्सियों को निकाला।",
"उसी वक्त? आपको नहीं लगता पहले आपको मुझे कही और ले जाना चाहिए था?",
"फिर तुम्हारे हाथ को ठीक कर...", वे मुझे अनदेखा कर रहे थे।
वे बिना किसी रुकावट के जारी रहे, “मैं तुम्हें सीधे घर ले गया जहाँ राधिका पहले से ही तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी। मैंने तुम्हें तुरंत ठीक होने के लिए पहले ही पर्याप्त ऊर्जा दे दी थी लेकिन तुम बहुत कमज़ोर थी और तुम्हें जागने में बहुत समय लगा। खुद पर थोड़ा ध्यान दो!
(यह सरासर झूठ है! वह मुझे पूरी तरह से आत्मसात करने जितनी मज़बूत थी।)
यदि तुम सुबह तक नहीं उठती तो मैं तुम्हें उसी क्षण दफ़नाने वाला था लेकिन अब इसकी ज़रूरत नहीं है...क्या?",
मैंने उसकी अभिव्यक्ति देखने के लिए उसकी ओर देखा, उसकी आँखों से मोटे-मोटे आँसू बह रहे थे, "क्या?...क्यों?!", अब जब वह सुरक्षित है तो क्यों रो रही थी? क्या वह डरी हुई है कि उसे लगभग भयानक तरीके से मार दिया गया था? क्या अब प्रतिक्रिया देने में थोड़ी देर नहीं हो गई थी?
"(अब) क्यों रो रही हो?",
उसने सिसकते हुए कहा, "आप मुझे दफ़नाने जा रहे थे? हिक...हिक...क्या मैं आप पर इतनी बड़ी बोझ हूँ जो आप मुझे जिंदा गाढ़ने वाले थे?...",
"आह...मैं गलत था! मेरी गलती है! मैं तो बस मज़ाक कर रहा था, मेरा ये मतलब नहीं था! तुम सच में मेरे लिए खास हो।...!", मैं क्या बकवास कर रहा था? विषय बदल देना ही अच्छा रहेगा,
"मैंने पहले ही सरयू को हमारे लिए कुछ बनाने के लिए संदेश भेज दिया था...तो मुझे लगता है कि अब तक हमारा नाश्ता तैयार हो गया होगा। चलो चलते हैं? और एक अच्छी खबर है। तुम नाश्ते के बाद कुछ मीठा खा सकती हो- लॉलीपॉप!",
उसने चालाकी से मुझसे रिश्वत देने का कारण पूछा, "मुझे दोषी महसूस हो रहा है...क्षमा।",
"क्षमा?", वह मोल-भाव करना जानती थी, "एक शर्त पर।",
"कौन सी?", (अब क्या पूछने वाली है?)
"मैं कमरे में बंद नहीं रहना चाहती...", अब वह एक मासूम शर्मीले बच्चे की शक्ल बना रही थी,
"ठीक है तुम जो चाहे वो कर सकती हो, पर सिर्फ मेरे साथ या सरयू, दिव्या या साक्षी के साथ। किसी और के साथ नहीं। बिल्कुल नहीं! समझी?",
"हम्मम!", वह सहमत हो गई।
मैंने उसे उठने और ब्रश करने में मदद की। वह एक बूढ़ी नानी की तरह ब्रश कर रही थी । चूँकि वह कमरे में बँद नहीं होना चाहती थी इसलिए मैं उसे स्टडी रूम में ले गया जहाँ वह आराम से अपना नाश्ता कर सकती थी।

अगले तीन दिन उसके लिए इतने कष्टदायक थे कि वह अपने शरीर के किसी भी अंग का उपयोग साधारण काम करने के लिए भी इस्तेमाल नहीं कर पा रही थी, खाने के लिए बिस्तर पर बैठ उसके लिए असंभव था। दिव्या और साक्षी उसके साथ थीं लेकिन वे कुछ नहीं कर सकीं, हालाँकि दिव्या, समूह के उपचारक आर्य कि नियति थी लेकिन उसने अभी तक उसके साथ सगाई नहीं की इसलिए वह उसे ठीक नहीं कर सकती जैसा वह चाहती थी और चिढ़े जा रही थी।
मैं उसे ऊर्जा दे उसे जीवित रख रहा था। मैं उसकी देखभाल कर रहा था क्योंकि वह मेरी सिर्फ ज़िम्मेदारी थी और कुछ नहीं!
चौथे दिन वह मेरे सहारे खड़ी हो सकी और छठे दिन वह मेरे सहारे के बिना चलने में सक्षम हुई। वह पहले की तरह चलने, बात करने, हँसने और शिकायत करने में सक्षम हो गई, दुर्घटना से पहले जैसी। (मुझे सुनिश्चित करना होगा कि उसे बाहर भेजने से पहले कोई और हादसा नहीं हो।)

"अम...मुझे अपने बचपन के दोस्त से संदेश मिला कि वह शादी करने जा रहा है...अब मुझे क्या करना चाहिए?",
"ओह! आप हमसे मदद माँगी जा रही हैं?", दिव्या, अपकी और साक्षी की ओर इशारा कर रही थी,
"हाँ! मुझे तुम्हारी मदद चाहिए!", मेरे पास चारा नहीं था।
"मैं दूसरों के लिए उपहार नहीं चुनना चाहती, जबकि मैं यहाँ सगाई करने के लिए अनंत काल से इंतजार कर रही हूँ!", दिव्या यहाँ अपने वैवाहिक जीवन के बारे में रो रही थी जो अभी शुरू नहीं हुआ, "मुझे आर्य की याद आ रही है! मैं उससे मिलना चाहती हूँ और-...",
साक्षी ने दिव्या को रोका और कहा, "चुप रहो दिव्या! हम यहाँ तुम्हारे अशुद्ध विचार नहीं सुनना चाहते! हमें उनके दोस्त शिवम रेड्डी के लिए एक उचित उपहार चुनने के लिए भेजा गया था। बस इस पर ध्यान केंद्रित करों शायद तुम्हें ऐसा कुछ मिल जाए जिसे तुम अपनी खुद कि शादी में पाना चाहती हो?",
दिव्या की शरारतों पर काबू पाने के लिए साक्षी ही सबसे बेहतर उपाय थी। हालाँकि मैंने उनसे सख्ती से कहा था कि उन्हें वृषाली को इसमें शामिल नहीं करना होगा।
उन्होंने 'उपहार महलों' को कॉल किया और उन्हें अपनी सबसे दुर्लभ वस्तु दिखाने के लिए कहा, जिसे वे केवल कैटलॉग में व्यक्तिगत रूप से ग्राहक को भी नहीं दिखा सकते थे।
तो मैंने उन्हें घर बुला लिया। मालिकों ने मुझे रोते हुए कहा कि वे ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि इससे उनकी सबसे दुर्लभ और महँगी वस्तुओं की जानकारी लीक हो सकती थी।
किसी तरह मामला सुलझ गया पर महँगा पड़ा। मुझे उनके 5 कैटलॉग के लिए 10 करोड़ देने पड़े और उनका बजट सात करोड़ था। दूल्हे को बधाई उपहार के रूप में और दुल्हन के लिए सात करोड़ और जोड़े के रूप में सात करोड़ और पानी के अंदर एक भव्य कैंडल लाइट डिनर। यह काफी मानक उपहार था। 
सभी अपनी राय दे रहे थे, उनमें से दोंनो के लिए एक मैचिंग डायमंड ब्रेसलेट सेट और हँसो का जोड़ा तय किया गया जो आज शाम तक पहुँच जाएगा उनके पहले।