स्वयंवधू - 17 Sayant द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्वयंवधू - 17

डांसिंग स्टूडियो के पार्किंग स्थल पर-
अब मैं अरबपति, वृषा बिजलानी के ठीक बगल में चल रही थी तब मुझे हमारे बीच कि वास्तविकता का अहसास फिर से हुआ। मैं कितना भी कमाने की कोशिश कर लूँ, मैं उस स्थान तक कभी नहीं पहुँच सकती जहाँ, वे थे।
तभी कोई आदमी काले सूट में वृषा के पास आया और खुसफुसाया। मैं बस 'कायल' और 'ज़रूरत' ही समझ पाई। वृषा हड़बड़ी में गए और एक आदमी को मुझे सबके पास ले जाने को कहा और जल्दी-जल्दी में निकल गए।
उसने मुझसे अपने पीछे आने को कहा। मैं उसके पीछे-पीछे चल रही थी। वह मुझे वह रास्ता दिखा रहा था जहाँ सभी लोग थे। बायीं ओर मैंने लोगों का शोर सुना। मुझे लगा कि हम वहाँ जा रहे थे, लेकिन वह दायीं ओर मुड़ा और बोला, "हमारे सर जैसे विशेष सदस्यों के लिए एक विशेष कमरा है।", यह समझ में आता था इसलिए मैंने बिना कोई सवाल किए उसके पीछे चलती रही।
चलते हुए मुझे अपने आसपास देखकर लग रहा था कि कुछ ना कुछ तो गड़बड़ी थी। (मुझे यह से निकलना होगा।)
हम जहाँ जा रहे थे वो इकदम सुनसान था सामने वाले भाग से बिल्कुल अलग। ऐसा लग रहा था जैसे, वो आदमी पर विश्वास कर ख़तरे तक चली जा रही थी। मैं उसके देखे बिना पीछे हटने लगी, तभी अचानक उसने एक दरवाज़ा खोला, मुझे उस दरवाज़े के अंदर फेक, बंद कर दिया, "आह!-",

वहाँ मैंने देखा कि एक मेज़ और एक कुर्सी थी, दोनों लकड़ी की और सख्त थीं। कमरे में रोशनी मधम थी। जहाँ प्रकाश का एकमात्र स्रोत उत्तर दिशा कि दीवार के छेद से था। मैंने देखा कि दरवाज़ा बंद था और उसमें कोई कुंडी नहीं थी।
(फंस गई!) घबरा रही थी लेकिन साथ ही शांत भी थी। मैंने देखा कि मेज़ पर एक रस्सी, एक डक टेप, एक चाकू और एक सफेद पाउडर जैसा कुछ और एक इस्तेमाल किया हुआ इंजेक्शन था।
(क्या यह मर्डर स्पॉट है? अम... ये पहले से और भी गलत दिशा में जा रहा है!)
मुझे यथाशीघ्र इस स्थान से निकल जाना चाहिए। मैंने खटखटाने की कोशिश की कि पर... कोई मेरी बात सुनेगा? ज़ाहिर था कौन मेरी आवाज़ सुनेगा? मैं इस तरह अपनी आवाज़ से चिल्ला भी नहीं सकती। मेरे पास सेलफोन नहीं। (अब करूँ तो करूँ क्या?)
मैंने चाकू से दरवाज़े पर छेद करने कि कोशिश की पर कोई फ़ायदा नहीं। चाकू मेरे हाथ से गिर गया। मैंने गुस्से में उसे लात मार दूर अंधेरे में फेक दिया। गले ने इनकार कर दिया। मैं गला पकड़, दरवाज़े के ओर मुखकर सोच रही थी कि क्या करूँ... मुझे ऐसा महसूस हुआ कि अंधेरे कमरे में कोई तो था। मैंने अँधेरे से उजाले की ओर आते हुए भारी कदमों को सुना। यह एक लंबा आदमी था लेकिन वृषा जितने नहीं। मैं उसे अपनी आँखों के कोने से देख सकती थी। यह एक छोटा सा कमरा था जिसका मतलब था मैं ना ही कहीं भाग सकती या छिप सकती थी, भले ही वो मेरे साथ कुछ भी करे। मेरे पास कोई चारा नहीं! वह मेरी ओर आ रहा था और सबसे बुरी बात यह थी कि मैं टेबल से बहुत दूर थी जिसका मतलब था कि मैं इस कमरे में मौजूद किसी भी हथियार का उपयोग नहीं कर सकती। वह एक कदम आगे ले रहा था मैं दो कदम पीछे खिसकती। जैसे-जैसे हम चलते गए, मैं अंधेरे में कुछ लकड़ी जैसे से जा चिपकी। मैंने खड़े होने कि कोशिश की पर उसने मेरे पैंरो के बीच चाकू फेक रोक दिया।
मेरी जान निकल गयी थी। अचानक वह अपनी जेब में कुछ रखते हुए मेरी ओर दौड़ा। मैं डर के मारे वहीं जम गयी। उसने अपनी जेब से रूमाल उठाया और मेरे मुँह से चिपका दिया, मैंने अपनी साँस रोक ली और संघर्ष किया लेकिन दर्द और डर ने मुझ पर जीत हासिल कर ली और रोकी हुई साँस ढीला पड़ गयी और मैंने उस रूमाल में दवा सूँघ ली। बिजली कि तेज़ी से दौड़ने वाला मेरे गले का दर्द अचानक कम होने लगा और कमरे की मधम रोशनी अंधेरे में बदल गयी...(वृषा...क्या यह पिछली बार जैसा ही होने वाला है? इस बार तो मैं निश्चित रूप से खा...)

मैं सपने में भाग रही थी।
मेरी आँखे थोड़ी खुली। मेरे शरीर में हर जगह दर्द, बिजली की तेज़ी से दौड़ी। मैं जाग गयी, पूरी तरह जाग गयी! मुझे लगा कि कोई मुझे उठाकर तेज़ी से भाग रहा था। यह सुरक्षा की प्रबल भावना थी, यह वृषा थे। स्थिति के बारे में सोचे-समझे बिना मैंने उनका नाम पुकारा, "वृ-वृषा...?", आवाज़ बहुत धीमी थी, मुझे नहीं पता कि वह सुन सकते थे या नहीं पर मैं किसी बेवकूफ जैसे बस उनका नाम और 'धन्यवाद' ही कह रही थी। 
"खेलना चाहोगी?",
"नहीं...",
"मैं तुम्हें अलग दुनिया दिखाऊँगा...",
"नहीं...",
"तुम्हें क्या लगता है तुम कहाँ भाग सकती हो?",
"छोड़ो मुझे...",
डर से पीछे हटने की कोशिश।
"नहीं!!"
मैं झटके के साथ उठी, मेरे शरीर से पसीना बह रहा था फिर मैंने वृषा मेरे बगल कुर्सी में सपाट सोए हुए थे। (इधर? -कैसे?!...क्या वह सपना था?)
स्मृतियों की पहेलियाँ अपनी जगह स्थापित हो रही थीं, अब कुछ-कुछ समझ आ रहा था। मैंने आज फिर हंगामा खड़ा करवा दिया था, खासकर वृषा के लिए। इस बार मैंने उनके सिर को हल्के से थपथपाया। इससे वे जाग गए, "माफ करना, क्या मैंने आपको जगा दिया?"
मैं भावनात्मक रूप से अस्थिर महसूस कर रही थी।
वे सीधे बैठ गए और मुझसे सवाल करने लगे,
"तुम कब जागी?",
"अभी-अभी-",
"कहीं असहजता?",
"नहीं?",
"तो दर्द?",
"नहीं!- रुकिए मेरी बात-"
"दर्द नहीं तो, असहजता?",
"फिर से?",
"तो कुछ और-",
"अब बस भी करो भाई!", तंग आकर मैंने उनका मुँह अपने हाथ से बंद कर दिया।
"चुप! एकदम चुप एक शब्द भी नहीं!",
"म्मम?", अब भी बोलने कि कोशिश कर रहे थे,
"बेशर्म, अब भी बोलना है! अरे, आपको कितना बोलना है? मैंने कहा ना मेरा गला, कान, नाक, जबान सब ठीक है तो काहे को इतनी पंचायत है? ज़बान बंद नहीं रहता! कैंची कै तरह बस कट-कट-कट बस मेरी बेज्जती करते रहते हो!
आपने पहले मेरा अपहरण किया पर मुझे सम्मान से रखा, मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया, मुझे नई-नई चीज़े सिखाई, अपने लिए खड़े होना सिखाया और मेरे फालतू चोट पर भी आपने, मुझसे ज़्यादा ध्यान दिया, फिर आप मुझे उस वक्त इतनी गहरी चोट कैसे दे दी जब मैं सबसे ज़्यादा चोटिल थी? नहीं पता क्यों! मुझे आपके साथ सुरक्षित महसूस होता है जबकि होना इसके उलट चाहिए था।", ये मुझे क्या हो रहा था मेरा मुँह बेलगाम घोड़े की तरह चले जा रही थी।
मैंने अपना मुँह बँद करने के लिए दबाया पर उनके मुँह पर भार डाल दिया जिससे कुर्सी मुझे और वृषा को ले पीछे कि तरफ गिरी। हम दोंनो एक दूसरे के सिर को बचाते हुए गिरे।

मैं अभी भी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं पा रही। एक दूसर के आँखो में देखकर, "...आपको पता है वृषा उस वक्त मैं इतनी बौखलाई हुई क्यों थी? ...क्योंकि मैं ये बात हज़म नहीं कर पा रही थी कि मेरे साथी ने मुझे कैसे बेच दिया? जो मुझे सिर उठाना सिखा रहा था उसने ही मेरा सिर काट दिया? मेरे पैर के नीचे से ज़मीन खिसक गई थी। मेरा भरोसा एक बार में ही चूर-चूर हो गया था। इस धोखेबाज़ी से मुझे आप पर गुस्सा आ रहा था, मुझपर, आप पर, मुझपर, या स्थिति पर पता नहीं किसपर! आपने भी मुझे धमकाकर, बाँधकर बिना मेरे स्थिति देखे ऐसे ही फेंक दिया और मुझ पर ताला लगा दिया। अगर मुझे बाथरूम जाना होता तो क्या?
(?)- अब भी दोंनो गिरे हुए थे।
आपने मुझे कभी नजरअंदाज नहीं किया, मेरे चाहने पर भी कभी अकेला नहीं छोड़ा, लेकिन उस दिन आपने मुझे बाँधकर अकेले, असहाय छोड़ दिया। मैं उस हादसे से हैरान थी, डरी हुई थी और क्रोधित थी कि आपने मुझे एक सामान की तरह ऐसे कैसे बेच दिया? मुझे पता है कि मैं अपने हद से आगे बढ़ रही थी पर जब मैं ठंडे फर्श पर असहाय होकर किसी के मदद का इंतजार कर रही थी तो आपका ही ख्याल आ रहा था। आपको पता है ये कितना अजीब और ई-अ (मेरे पास शब्द नहीं है!) था! जिसने मुझे बेचा उसी का ख्याल मुझे आए जा रहा था! मुझे खुद से नफरत होने लगी, उससे ज़्यादा आपसे। (जब मैं उठी तो मैं लोगों से घिरा हुई थी लेकिन मेरा ध्यान सबसे पहले आप पर गया, इससे मुझे आपसे और भी अधिक नफरत होने लगी।)
और मैंने आपको नजरअंदाज करना शुरू कर दिया, सच कहूँ तो मैं आपसे नफरत करने लगी थी। भैय्या, साक्षी और दिव्या ने मुझे समझाने की कोशिश की कि आप ऐसा कुछ नहीं कर सकते। दिव्या आपसे नाराज़ थी लेकिन उसे यकीन था कि आप ऐसा कुछ नहीं कर सकते लेकिन मैं आपसे नफरत करने से खुद को रोक नहीं सकी। फिर... अस्पताल में, हर रात मेरे सोने के बाद आप मुझसे माफ़ी माँगते रहे। मैं पहले समझ नहीं सकी लेकिन आपने कहा था कि आप मुझे चोट नहीं पहुँचा सकते या मुझे ऐसे ही बेच सकते, लेकिन आप हमारी गलतफहमी दूर नहीं कर सके। इसका कारण थी मैं, मैं आपकी उपस्थिति से व्याकुल हो जाती थी? हम्म्म?",
मैं कुछ उत्तर पाने के लिए उन्हें देख रही थी।
(मुझे क्या उत्तर देना चाहिए?)
"उत्तर देने से पहले क्या हम पहले आराम से बैठ सकते थे? मेरे पैर सुन्न होने लगे हैं।", मैं कुर्सी पर लेटा हुआ था।
"नहीं।", यह पहली बार था जब मुझे अस्वीकार किया गया। किसी भी महिला ने आजतक मुझे कभी अस्वीकार नहीं किया था।
*- भले ही वह एक माफिया है, लेकिन उसके देखभाल करने वाले स्वभाव के कारण जब वह किशोरावस्था के अंतिम दौर में था महिलाओं ने उसका फायदा उठाने की भरपूर कोशिश की। विशेष रूप से नशीली दवाओं के बल पर।
"जब तक आप सच नहीं कहते और मुझसे माफ़ी नहीं माँगते। यही आपकी सज़ा है।",
"नहीं!... अम... मुझे पता था कि वह उस प्रकार का आदमी है लेकिन उसने कभी भी मेरे सामने ऐसा नहीं किया था... यह मेरी गलती थी कि मैं सरयू को उसके बारे में सूचित करना भूल गया और तुम्हें प्रताड़ित होना पड़ा। 'माफ़ करना' कहना पर्याप्त नहीं होगा, इसलिए मैंने सोचा कि मैं तुम्हें और अधिक प्रशिक्षित करूँगा ताकि तुम ना केवल स्थिति से बच पाओगी, बल्कि लड़ भी पाओगी।",
मैं इस रिपोर्ट प्रस्तुति से अवाक रह गयी, "क्या?!",
"तुम चाहती हो कि तुम पर दोबारा हमला हो?", वृषा बैठे-बैठे मेरा मज़ाक उड़ा रहे थे,
"आ-, फिर वो चमक कैसी थी?", विषय बदल,
"कैसी चमक?", उन्होंने पूछा,
मैंने उनसे पूछा, "वो नीली वाली। जो आपके शरीर से निकलकर आपके नीले लाॅकेट से होकर इस गिरगिट वाले अंगूठी ने सोखी थी फिर पता नहीं क्या पर इतना पता है उसी के कारण मैं इतनी जल्दी इस चोट से उभर पाई वर्ना मैं अभी भी बेहोश रहती। इस लिए बता दीजिए वो चीज़ क्या थी?",
"तुमने क्या (और कितना) देखा?", वृषा ने पूछा,
"आपका मतलब चमक जैसी चीज़ कि? मुझे नहीं पता वो क्या था पर जो भी था मुझे मेरे दिमाग पर भरोसा करने लायक नहीं छोड़ा था। मैं अपने उस साथी से सच्चाई जानना चाहती हूँ जिस पर मैंने अपनी परिस्थितियों के विपरीत भरोसा किया था। मैं आप पर फिर से भरोसा करना चाहती हूँ इसलिए कृपया मेरे प्रश्नों का ईमानदारी से जवाब दे।", मैं उम्मीद कर रही थी कि वह मुझे जवाब देंगे लेकिन उस समय मेरे पेट ने ही मुझे धोखा दे दिया। वह खाने के लिए ज़ोर-ज़ोर से गुर्राने लगा। मैं शर्मिंदगी में डूब गयी।

"पहले हमें खाना चाहिए।", वे बस इसे मिटा देना चाहते थे, हाह?
"हाँ! मैं भूखी हूँ लेकिन खाने के लिए नहीं बल्कि उत्तरों के लिए। क्या मुझे यह जानने का कोई अधिकार नहीं है कि मेरे साथ क्या हुआ? मेरी पवित्रता लगभग मुझसे छीन ली गई थी, फिर मेरी आवाज़ और अब मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेरे शरीर के हर इंच को काट दिया गया हो। क्या अब मुझ पर मेरा कोई अधिकार नहीं है?", मैं वृषा को डराने कि कोशिश कर रही थी ताकि वो मुझे सारी बाते आईने कि तरह साफ रखे पर वो...
मुझ पर इतनी ज़ोर से हँसने लगे कि मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। फिर उन्होंने अचानक मेरे हाथों को पकड़कर तुलना की और कहा, "हा हा हा... क्या तुम्हें लगता है कि इतनी छोटी व्यक्ति किसी को भी डरा सकती है?",
मैं इस हद तक शर्मिंदा हो गयी कि अब मैं उन्हें मार भी सकती थी और उन्हें भूत बना सकती थी।
"...", मैंने उन्हें उत्तर नहीं दिया।
फिर अचानक उन्होंने मुझे पकड़ा और मेरी गर्दन, सिर और पीठ को सुरक्षित कर एक ही प्रयास में उठ गए... कैसे? आखिर उनमें मुझे बैठने की स्थिति में उस कुर्सी से उठने की इतनी शक्ति कैसे आ गई? मुझे भयंकर आश्चर्य हुआ! मैं उन्होंने अब भी घूर-घूरकर उन्हें देख रही थी। मुझे बिस्तर पर बिठाया और कहा,
"अच्छा तुम जीती और मैं हारा। अब तो मुझे ऐसे घूरना बँद करो। मैं सब सच बताऊँगा जो तुम जानना चाहती हो पर पहले कुछ खा लो?", वे मेरा ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे थे।
"वृषा बिजलानी... क्या आपको लगता है कि मैं दो साल की बच्ची हूँ जिसे आप चॉकलेट और खिलौने देंगे तो वह सब कुछ भूल जाएगी और खेलना शुरू कर देगी? मेरे चेहरे पर आपको कही गधा लिखा दिखाई दे रहा है क्या? अभी सुबह के दो बजे है भूत के अलावा हमारा स्वागत कोई नहीं करेगा और इस वक्त मैं सहायको को तकलीफ नहीं देना चाहती-", उन्होंने मुझे बीच में काटना चाहा,
"-पर-", उन्हें भी बीच में काटकर,
"-पर वर कुछ नहीं। मुझे सच जानना है! वो नीली रोशनी कैसी थी और आज...आज नहीं कल! कल मेरे साथ क्या हुआ था और मैं यहाँ कैसै आई? जितना मुझे याद है वो आदमी मुझे चीरने पर आमादा था। क्या मुझे भूलने की बीमारी हो गयी है? लगता तो नहीं ऐसा कुछ हुआ है। आपके कपड़े वही है मेरा गला अब भी वैसा ही और टैब में भी दिन बुध है तो कृपया कर इसमे थोड़ी दृष्टि ढाले बिजलानी जी।",
"ठीक है! बस आराम से बैठो और सुनो। कल...", कुर्सी ठीक कर मेरे सामने बैठ गए।

उन्होनें बताना शुरू किया। जब वृषा को मुझे छोड़कर जाना पड़ा... तो उस समय उन्हें टिप मिली थी कि कोई उनका इस्तेमाल कर कायल को बदनाम करने की कोशिश कर रहा था। वो पीछा करते हुए पाया गया। उनके आदमी ने उस आदमी को रंगे हाथों पकड़ लिया लेकिन वृषा ने कभी इसके पीछे का कारण नहीं बताया। और वैसे अंत में मैं उस दिन अपहरणकर्ता के पास रह गयी और उनके जाल में फँस गयी। उन्होंने क्लोरोफॉर्म के नए तात्कालिक संस्करण का उपयोग किया जो वास्तविक के विपरीत सेकंडों में आदमी को बेहोश कर देता था।
"दो अलग-अलग लोगों पर दो हमले हुए।", 
"लेकिन क्यों?", मैंने सवाल किया,
"सटीकता से कहूँ, वो लोग सौदेबाजी करना चाहते थे।",
"मतलब?",
"जिस आदमी ने तुम्हें पकड़ा, वह बिजलानी फ़ूडज़ का वरिष्ठ खाद्य निरीक्षक था। वह उन लोगों में से एक थे जो मुझपर नज़र रखते थे।",
"ऐं! 'नज़र रखते थे'?",
उन्होंने जारी रखा, "हाँ। मैंने कहा था ना कि मैं अपने पिता का प्यादा हूँ। वो मज़ाक नहीं था मैं सच में उसका प्यादा हूँ जो उसके इशारों पर ही चल सकता हूँ। मेरे जीवन के हर एक पग मुझे उनके अनुसार ही रखना होगा।-",
"पर ऐसा क्यों?",
"मेरे पास और कोई चारा नहीं। मैं जितना इस दल-दल से निकलना चाहता था उतना ही फँसता जाता।इसका खास कारण अमम्मा है, इसे ज़्यादा नहीं कह सकता।",
"पर-",
"इतना जान लो मैंने मेरे आँखों के सामने लोगों को तड़पते हुए मरते देखा है...मु- द ...है।", उन्होंने धीमी आवाज़ में धुंधले शब्दों में कहा पर मैंने उसे पकड़ लिया। उनका कहना था, 'मुझे भी ये दर्द और तड़प का अनुभव है।',
(मैं सही थी। वे नहीं जानते कि भावनाओं को कैसे साझा किया जाए।) वे थोड़ा उदास लग रहे थे। तब भी उन्होंने मेरे सवालों का जवाब देना जारी रखना। ऐसा था जैसे उन्हें इसकी आदत पड़ गई हो।
"तो- उनका नाम है रघुनाथ राव। उन्होंने मुझे ज़मीनी स्तर पर घोटाले कैसे और कितने तरह के हो सकते है मुझे सिखाया था। मुझे ग्राहकों को लुभाने के कई घृणित तरीकों से परिचित कराया।
वे लोगों के गंदे दिमाग, वासना, क्रोध और सभी नकारात्मक भावनाओं का उपयोग अपने फायदे के लिए करते हैं। यह वह समाज है जहाँ हम रहते हैं, चाहे आपकी स्थिति कुछ भी हो। गरीब स्थिति वाले अपराध निम्न प्रकार के होते हैं, उच्च स्थिति वाले अपराध उच्च प्रकार के होते हैं। हम सब एक जैसे ही हैं।",
वे अपने विचारों में बहुत सीमित लग रहे थे। उन्होंने जारी रखा, " उनसे सीखी गई तरकीबों के माध्यम से मैं 2018 में बिजलानी फूडज़ में कभी ना खत्म होने वाले भ्रष्टाचार को उजागर करने में सक्षम हुआ और सब कुछ अदालत में ले गया और जीत हासिल की।",
"मुझे याद आया, मेरे कॉलेज के दूसरे वर्ष की परीक्षा में यह एक बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ थी जिसने इतनी अधिक सुर्खियाँ बटोरीं थी कि ऐसा लग रहा था जैसे यह पूरी तरह से नकली था।",
"अपने तजुर्बे से तो वो बच तो गए पर अपनी नाक पर लगे घाव को कभी भुला नहीं पाए, तब से वो मेरे पीछे पड़े हुए है। उन्होंने मेरे खिलाफ हर पैंतरा आज़मा लिया। सुपारी देना, हत्या, कार दुर्घटना, धीमा ज़हर, गुप्त रूप से नशा देने की कोशिश, हनी ट्रेप, डेट ड्रग, ड्रग्स केस में फँसाना, अपने करीबियों को नुकसान पहुँचाना इत्यादि। मैंने अपने ज़िंदगी में कई तरह के नीच जाल देखे जिसमे परिवार को नुकसान पहुँचाना सबसे आसान विकल्प है। यहाँ तक कि मैंने इसे तुम पर भी इस्तेमाल किया और इसने पूरी तरह से काम किया।
हाल ही में वे सरयू और आर्य जैसे मेरे निकट के लोगों को निशाना बना रहे थे। दाईमाँ उनके निशाने पर थी और कई चीजें थीं इसलिए उनका, मुझसे दूर रहना ही बेहतर था।",
"पर वो आपकी चिंता ही तो करती थी।",
"इसलिए मुझे उनकी चिंता करनी थी। मैंने आर्य से भी जितना कम हो उतना कम मिलना चाहता था पर सरयू को मैंने इस सब में घसीट दिया गया और उसे इतना कुछ सहना पड़ा। उससे ज़्यादा तुम्हें!",
"ओह?",
" 'ओह?' से तुम्हारा मतलब क्या था? तुम्हें अंदाजा भी है कि तुम्हारा इस्तेमाल कर वो क्या करना चाहते थे?",
"अरे नहीं, नहीं, नहीं। मैं बस यह कहने की कोशिश कर रही थी कि इसका मतलब है कि वे हर समय आपका पीछा कर रहे थे?", मुझे नहीं पता कि मैं उस वक्त क्या महसूस कर रही थी और क्या करना चाहिए।
"एह? निःसंदेह वे द्वीप से पूरे रास्ते हमारा पीछा कर रहे थे। अब वे दूसरों के लिए इतने हानिकारक हो गए कि मुझे उन्हें तुरंत बँद करना पड़ा।", (मैंने उसे लगभग मार ही डाला था।)
"द्वीप से? जब आपने मुझे उस कमरे में बँद रखा था?",
"और नहीं तो कहाँ से? इस घर में मेरे करीब सरयू और तुम हो इसलिए उसने तुम्हें और सरयू को निशाना बनाया। उस रात उसने (और समीर के आदमियों ने) सरयू पर और तुम पर एक रात में ही हमला किया था। याद है?",
"वो जो कुछ नष्ट करने आए थे?",
"हाँ! (तुम्हें और सबूत को) वही।",
"मुझे नहीं पता था कोई मेरे पीछे आएगा जब तक उसका दिमाग खराब ना हो।", मैं अजीब तरह से मुस्कुराई, 
(तो मैं अब पागल हूँ?)