हीर... - 27 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर... - 27

अवध ने जब राजीव से कहा कि "मधु ने रात से खाना.. खाना तो दूर पानी भी नहीं पिया है!!" तब उनकी ये बात सुनकर राजीव एकदम स्तब्ध होकर अपनी फटी हुयी आंखों से उनकी तरफ़ देखता रह गया...

"मम्मा रात से भूखी हैं और वो भी मेरी हरकत की वजह से... ऐसा तो मैं नहीं था फिर मैं ऐसा कैसे बन गया, मैं तो मम्मी पापा को खुशियां देना चाहता था फिर... ये सब, ये सब कैसे हो गया मुझसे!!" भारी मन से ये बात सोचते हुये राजीव जब ठिठके हुये कदमों से घर के अंदर गया तब उसने जो देखा उसे देखकर उसकी आंखों के आंसू ना चाहते हुये भी बाहर आ ही गये...

राजीव ने देखा कि मधु शायद उसका इंतजार करते करते निढाल सी होकर सोफे पर बैठे बैठे ही सो रही हैं, उनको ऐसे सोते देख राजीव ने भावुक होते हुये.. अपने साथ अंदर आये अवध के हाथ से दूध का भगोना लिया और उनसे बहुत धीरे से ये कहकर कि "पापा आप बैठिये... मैं चाय बनाकर लाता हूं तभी मम्मी को जगाउंगा!!"... रसोई में चला गया...

राजीव चाय बनाने के लिये किचेन में चला तो गया था लेकिन वहां जाने के बाद अकेले में वो ये सोच सोचकर लगातार रोये जा रहा था कि "अगर उस दिन मुझे कुछ हो जाता जब मैं नशे की हालत में पूरी दिल्ली में पागलों की तरह तेज़ बाइक चलाते हुये घूम रहा था तो मेरी वो मां जो सिर्फ मुझे रोते हुये सुनकर इतना टूट गयी.. उसका क्या होता!!"

राजीव को कभी कोई तो कभी कोई बात याद आती जा रही थी और वो किचेन में अकेले खड़ा बस रोये जा रहा था...

इंसान जब अंदर से बहुत टूट चुका होता है ना तो वो कितना भी चाहे... खुद को रोने से रोक ही नहीं पाता है और वो इंसान अगर कोई लड़का हो जिसकी आदत हमेशा अपने आंसुओं को छुपाने की होती है.. तब तो उसकी टूटन उसके आंसुओं को किसी भी कीमत पर उसकी आंखों से बाहर आने से रुकने ही नहीं देती है लेकिन वो लड़का होता है... बचपन से उसे सब यही तो सिखाते हैं कि "लड़के रोया नहीं करते!!", उसकी आंखों में आंसू देखकर सब यही तो ताना मारते हैं ना कि "मर्द होकर रोता है!!" इसलिये उसे एक ऐसा कोना ढूंढना पड़ता है जहां वो सुकून से दो मिनट खुलकर रो सके जैसे आज राजीव को अपने किचेन के रूप में वो कोना मिल गया था लेकिन आखिर में वो था तो एक लड़का ही ना... उसने भी अपने आंसू पोंछे, दो तीन बार अपना गला खखारकर अपने आंसुओं को अपने गले से नीचे उतारा और भारी मन से चाय की ट्रे और बिस्किट का बाउल लेकर ड्राइंगरूम में चला गया जहां मधु अभी भी निढाल सी होकर सोफे पर बैठे बैठे सो रही थीं और अवध बड़ी गंभीर मुद्रा में उनके बगल में सिर झुकाये बैठे थे... 

ड्राइंगरूम में चाय की ट्रे लेकर जाने के बाद राजीव ने उस ट्रे को टेबल पर रखा और सोफे पर सो रहीं मधु के ठीक पास जाकर जमीन पर अपने पैर मोड़कर बैठ गया... 

एक मां जो फोन पर अपने बेटे के रोने की आवाज़ सुनकर कल रात से ही इतनी दुखी और उसे गले से लगाने के लिये इतनी परेशान थी कि उसने खाना तो दूर पानी का एक घूंट तक नहीं पिया था और खाली पेट अपने बेटे का इंतजार करते करते ना चाहते हुये भी शायद थक कर सो गयी थी... उस मां के पास जैसे ही उसका बेटा आकर बैठा... सोते सोते उसने अपनी बंद पलकें झपक कर अपनी भौंहे ऐसे सिकोड़ीं जैसे उसे अपने बेटे के अपने पास आने का एहसास अपने सपने में ही हो गया हो!! 

मधु को ऐसे पलकें झपककर अपनी भौंहे सिकोड़ते देख राजीव ने फिर से ठसका लेते हुये अपने आंसुओं को अपने गले से नीचे धकेला और इसके बाद उसने जैसे ही मधु के फैले हुये हाथ की हथेली पर अपनी हथेली रखकर उनकी हथेली को पकड़ा... वैसे ही वो चौंककर एकदम से जाग गयीं और जागने के बाद अपने ठीक बगल में सोफे पर बैठे अवध को देखकर वो बौखलाते हुये बोलीं- र.. राजीव आ गया, हैना जी... मुझे उसकी खुश्बू आ रही है वो आ गया ना जी? नहाने गया है क्या.. आपने मुझे जगाया भी नहीं!! 

मधु नींद की गफ़लत में अभी तक ये ही नहीं समझ पायी थीं कि राजीव आ चुका है और वो कहीं नहीं गया... उनके बगल में उनकी हथेली थामे बैठा है...!! 

मधु को इस तरह से बौखलाते देख पहले से भावुक राजीव ने अपने भरे हुये गले से जैसे ही कहा "मम्मा....!!" वैसे ही मधु ने अवध की तरफ़ देखते देखते झटके से अपने पास बैठे राजीव की तरफ़ देखा और कुछ पलों के लिये वो जैसे राजीव में खो गयी हों.. वैसे उसे देखती ही रह गयीं!! 

कहने को तो रात बस कुछ घंटों की ही होती है लेकिन कभी कभी किसी का बेसब्री से इंतजार करते हुये कटने वाली रात सच में एक युग के बराबर लंबी हो जाती है और फिर एक एक सेकंड काटना नामुमकिन सा लगने लगता है... मधु की रात भी शायद ऐसे ही राजीव का इंतजार करते करते कटी थी इसीलिये राजीव को अपनी आंखों से अपने सामने बैठा देखने के बाद जब उनका इतना लंबा इंतजार खत्म हुआ तब उन्हें समझ में ही नहीं आया कि वो किस तरह से रियेक्ट करें... 

क्रमशः