हीर... - 28 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर... - 28

जब किसी का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से किया जाता है ना तब.. अचानक से उसके सामने आ जाने पर कुछ पल के लिये तो सच में ये समझ ही नहीं आता कि क्या रियेक्ट करें या क्या कहें.. कुछ ऐसा ही हाल इस समय मधु का हो गया था, पूरी रात के लंबे इंतजार के बाद राजीव को अपनी आंखों से अपने सामने बैठा देख मधु  थोड़ी देर तक तो उसे ऐसे देखती रह गयीं जैसे उन्हें यकीन ही ना हो रहा हो कि उनका राजीव उनके सामने आ चुका है, अचानक से खुली नींद की गफलत में उन्हें कुछ देर तो खुद को यही समझाने में लग गयी कि ये कोई सपना नहीं है.. बल्कि राजीव सच में उनके सामने बैठा हुआ है!! 

राजीव को अपने सामने देखकर मधु का मन अंदर ही अंदर बहुत जादा भावुक हो रहा था लेकिन रात से राजीव की चिंता में रो रहीं मधु ने रोने की बजाय भावुक सी मुस्कान अपने चेहरे पर लिये हुये राजीव को अपने सीने से लगा लिया शायद इसलिये कि पहले से ही दुखी और परेशान उनका बेटा उन्हें रोता देख और जादा ना टूट जाये.. लेकिन मधु जैसा चाहती थीं वैसा हो नहीं पाया क्योंकि भावुक होते हुये मुस्कुरा कर राजीव को गले से लगाने के बाद एक मां का मधु का दिल इस कदर दुखने लगा कि वो ना चाहते हुये भी उसे अपने सीने से लगाते ही सुबकने लगीं...!! 

मधु के सुबकने की आवाज़ सुनकर राजीव.. जो पहले से ही बहुत दुखी था वो भी बहुत दुख करके सुबकने लगा और उन दोनों को इस तरीके से एक दूसरे से लिपटा हुआ देखकर अवध की आंखों में भी आंसू आ गये थे... वो बस रो नहीं रहे थे!! 

मधु के सीने से लिपटकर सुबक रहे राजीव ने बिल्कुल एक छोटे से बच्चे की तरह अपनी ख्वाहिश मधु से बताते हुये कहा- मम्मा.. मुझे दिल्ली बहुत अच्छा लगता था लेकिन अब मैं उस मनहूस शहर में नहीं रहूंगा, उस शहर ने मुझसे मेरी हिम्मत छीन ली.. अब मैं उस शहर में नहीं रहूंगा!! 

मधु ने भी लगभग रोते हुये ही राजीव से कहा- बिल्कुल नहीं बेटा.. बिल्कुल नहीं, तू यहीं कानपुर में रहकर बिजनेस, जॉब जो तुझे अच्छा लगे तू वो कर लेकिन ऐसे दुखी मत हो मेरे बच्चे!! 

अपनी बात कहते कहते मधु ने राजीव का चेहरा खुद के सीने से अलग किया और अपने दोनों हाथों से उसके आंसू पोंछते हुये उन्होंने कहा- ऐसे नहीं रोते ना मेरा बच्चा... ऐसे नहीं रोते, एक जॉब ही तो गयी है ना.. फिर मिल जायेगी लेकिन तू रो मत, तुझे दुखी होते देख मेरा कलेजा फटने लगता है, तू दुखी मत हो.. अब मैं तुझे हमेशा अपने पास रखुंगी, कभी तुझे अपने से दूर नहीं जाने दूंगी!! 

अपनी बात राजीव से कहने के बाद मधु उसके सिर पर, माथे पर, हाथों पर... हर जगह अपने प्यार की बरसात करने लगीं थीं, इस भावुक मानसिक स्थिति में राजीव भी खुद को नहीं रोक पाया और उसने मधु को जोर से हग कर लिया.... 

आंखों में आंसू लेकर अवध ये पूरा दृश्य देखते जा रहे थे लेकिन कुछ बोल नहीं रहे थे या  उनका गला इतना जादा भर गया था कि वो शायद.. कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे!! 

अवध बाप थे ना... बाप कहां अपने बेटे को इतनी आसानी से अपने गले लगा पाते हैं और एक बेटा भी कहां अपने बाप को ये जाहिर कर पाता है कि वो उनसे कितना प्यार करता है इसीलिये शायद राजीव.. अवध के सामने उतना नहीं टूट पाया था जितना मधु की बांहों में आने के बाद टूट गया था!!

अपना घर बनवाते समय अवध ने शायद ये कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उनके बड़े से घर का ड्राइंगरूम.. घर के दो मुख्य सदस्यों की सिर्फ और सिर्फ सिसकियों से गूंज जायेगा... लेकिन गूंज रहा था!! 

जिसकी वजह से एक मां और एक पिता आज अपने बेटे को रोता हुआ देखकर बस रोये जा रहे थे वो... यानि अंकिता..!! वो अंकिता.. अजीत के साथ शुरू होने वाले एक नये रिश्ते की खुशबू को महसूस करते हुये.. खुश होकर भुवनेश्वर के अपने घर में ऑफिस जाने की तैयारी कर रही थी!!

आज सुबह से ही भुवनेश्वर में काले घने बादल छाये हुये थे और हर तरफ़ चल रही ठंडी ठंडी हवायें ऐसी लग रही थीं कि कभी भी तेज़ बारिश हो सकती है!!

नहाने के बाद अपने कमरे में ड्रेसिंग टेबल में लगे आईने के सामने खड़ी अंकिता ने बाहर के मौसम के एसेंस को फ़ील करते हुये सोचा कि "यार मौसम कितना रोमांटिक हो रहा है, चलो अजीत को कॉल करते हैं!!"

ये बात सोचकर अंकिता ने अजीत के प्यार को अपने दिल पर महसूस करते हुये उसे कॉल तो कर दी लेकिन उसने अंकिता का फोन रिसीव नहीं किया...

पहली बार जब अजीत ने फोन रिसीव नहीं किया तो अंकिता ने उसे दुबारा से कॉल लगा दिया लेकिन... इस बार भी जब उसने कॉल रिसीव नहीं किया तब अंकिता थोड़ी इरिटेट हो गयी और अपनी भौंहे सिकोड़कर "अजीत.. हमारी कॉल रिसीव नहीं कर रहा!!" सोचते हुये अपना मेकअप करने में लग गयी!!

"आज उसका पहला दिन है नई जॉब में इसलिये शायद वो ऑफिस जाने की तैयारी में बिज़ी होगा, चलो कोई नहीं हमारी मिसकॉल्स देखेगा तो खुद कॉल कर लेगा!!" ये सोचते हुये अंकिता तैयार हुयी और निर्मला से मिलकर ऑफिस के लिये निकल गयी...

सुबह के करीब सवा आठ बजे थे और अंकिता जिस बैंक में थी.. वो उसके घर से काफ़ी दूर था इसलिये उसे घर से जल्दी निकलना पड़ता था, अंकिता के घर से उसके ऑफिस के बीच के रास्ते में एक रोड ऐसी भी आती थी जो कि थी तो फोर लेन लेकिन करीब दो किलोमीटर तक वहां बहुत हल्का ट्रैफिक रहता था इसलिये वो लगभग सूनसान सी रहती थी और वो मेनरोड से कनेक्टेड रोड थी!! 

अंकिता अपनी कार ड्राइव करते हुये अब उसी सूनसान से रास्ते पर आने के बाद ऑफिस जा ही रही थी कि तभी.. जो हवायें अभी तक थोड़ा नॉर्मल स्पीड में चल रही थीं.. वो हवायें एकदम से बहुत तेज़ हो गयीं.. इतनी तेज़ कि हर तरफ़ धूल के गुबार उड़ने लगे... धूल के गुबारों को उड़ते देख अंकिता ने ये सोचकर कि "बारिश आने वाली है!!" अपनी कार की स्पीड थोड़ी धीमी कर ली थी...

अंकिता धीमी धीमी स्पीड में उस सूनसान सड़क पर आगे बढ़ ही रही थी कि तभी... एक व्हाइट कलर की महिंद्रा स्कॉर्पियो बहुत तेज़ स्पीड में उसकी कार के सामने आकर खड़ी हो गयी, अंकिता को कुछ समझ नहीं आया कि ये अचानक से क्या हुआ... अपनी कार के सामने स्कॉर्पियो के खड़ा होते ही उसने झटके से अपनी कार के ब्रेक लगा दिये और ये सोचते हुये घबराने लगी कि "यार.. ये कौन है जिसने इस तरीके से हमारा रास्ता रोक लिया है, ऐसा तो कुछ कुछ.........!!" 

अंकिता ये बात सोच ही रही थी कि तभी उस स्कॉर्पियो के अंदर जो भी बैठा था उसने बहुत लाउडली एक गाना प्ले कर दिया.... "ज़रा सी दिल में दे जगह तू, ज़रा सा अपना ले बना... मैं चाहूं तुझको मेरी जां बेपनाह!!"

उस स्कॉर्पियो में चले इस गाने को सुनकर अंकिता के होश उड़ गये और वो ये सोचते हुये कांपने लगी कि "र.. राजीव, र.. राजीव य.. यहां आ गया!! अ.. अब क्या होगा, हे भगवान.. ह.. हे भगवान हमें बचा लो!!"

इंसान जब गलत होता है ना तो वो बिना सच जाने... बिना वजह ऐसे ही डरता है जैसे अंकिता डर गयी थी!! हैना? 

क्रमश: