ये दो कहानियां तकरीबन एक ही समय में दुनिया के दो अलग-अलग हिस्सों में घट रही थीं। दोनों कहानियों के पात्र भी एक जैसे थे- एक लड़का और एक लड़की। कहानी का घटनाक्रम भी बहुत अलग नहीं था। बस अलग था तो कहानी का अंत।
सात दिन पहले देश भर के मीडिया में एक खबर छपी। यूपी के आगरा में रहने वाली एक 19 साल की लड़की ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसके चचेरे भाई ने घर में ही बाथरूम में नहाते हुए उसका न्यूड वीडियो बना लिया। फिर वीडियो दिखाकर उसे ब्लैकमेल करने लगा। गैरवाजिब डिमांड की और न मानने पर उस वीडियो को इंटरनेट पर डाल देने, वायरल कर देने की धमकी दी।
छिपकर न्यूड वीडियो लड़के ने बनाया था। ब्लैकमेल लड़का कर रहा था। वीडियो वायरल करने की धमकी लड़का दे रहा था। और इन सबके जवाब में अपनी जिंदगी खत्म कर ली लड़की ने।
उसने अपने घरवालों को सच नहीं बताया। वो पुलिस के पास नहीं गई। उसने किसी से मदद नहीं मांगी। वो सिर्फ शर्मिंदा हुई। सिर्फ डरी। वो शर्मिंदा हुई वीडियो में दिख रहे अपने नग्न शरीर पर, अपने लड़की होने पर, अपने बदनाम हो जाने के ख्याल पर।
और इन सारी शर्मिंदगियों से मुक्ति पाने का एक ही रास्ता उसे समझ में आया कि अपनी जिंदगी खत्म कर लो।
दूसरी कहानी अमेरिका के फ्लोरिडा से आई है। एक स्टॉकर ने एक लड़की मेडिसन के न्यूड फोटो इंटरनेट पर वायरल कर दिए। एक दिन सुबह जब वो सोकर उठी तो देखा कि पूरा सोशल मीडिया उसकी नग्न तस्वीरों से भरा पड़ा है। उस दिन नई कंपनी में उसकी ज्वाइनिंग थी। लड़की पुलिस के पास गई। पुलिस ने ढंग से मामले की छानबीन करना तो छोड़ो, यह तक कह दिया कि इसमें हैरेसमेंट की कोई बात नहीं।
काफी सारा समय गुजर गया। पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। स्टॉकर मजे से घूमता रहा। फिर सालों की मेहनत और टेक्नोलॉजी की मदद से उस लड़की और उसकी जुड़वा बहन ने मिलकर उस स्टॉकर को खोज निकाला।
इंटरनेट पर अपनी न्यूड फोटोज देखकर सदमा तो मेडिसन को भी लगा था, दुख भी हुआ था। थोड़ा डर, थोड़ी शर्मिंदगी भी थी। आदमी के नंगेपन पर औरत को शर्मिंदा करने वाली इस दुनिया में बदनामी भी हुई थी। लेकिन उसने मरने का रास्ता नहीं चुना। उसने लड़ने का रास्ता चुना। स्टॉकर को सबक सिखाने का।
वॉशिंगटन पोस्ट में उसकी स्टोरी छपी है। नीले रंग की ड्रेस में दोनों बहनों की फोटो है। उनकी दो जोड़ी आंखों में गुस्सा भी है और चमक भी। चेहरे पर आत्मविश्वास है। उसके चेहरे पर लिखा है- नंगी फोटो मेरी है तो क्या हुआ, नंगा तो कोई और है।
नंगा वो स्टॉकर है, जिसने फोटो वायरल की; नंगी है पुलिस, जो ढंग से अपराधी को पकड़ने की बजाय लड़की की न्यूड फोटोज की तफ्तीश कर रही है, आंय- बांय-सांय बकवास कर रही है; नंगा है ये पूरा का पूरा समाज, जो लड़कों को बचा रहा है और लड़कियां फांसी लगाकर, जहर खाकर अपनी जान दे रही हैं।
आगरा जैसी घटनाएं इस देश में रोज घट रही हैं। छोटे शहरों के अखबारों का स्थानीय पेज खोलकर देख लीजिए, रोज ऐसी हेडलाइंस होती हैं- "अश्लील वीडियो वायरल होने पर लड़की ने की आत्महत्या।"
वीडियो बनाने और उसे इंटरनेट पर डालने वाले लड़के सीना चौड़ा करके घूमते रहते हैं और लड़कियां शर्म से जान दे देती हैं। समाज लड़कियों को सबक सिखाता है कि अपने चरित्र की रक्षा कैसे करें। लड़कों को कोई नहीं सिखाता कि लड़की की इज्जत कैसे करें।
हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट में दो जजों जस्टिस चित्तरंजन दास और जस्टिस पार्थ सारथी सेन की बेंच पॉक्सो के एक मुकदमे की सुनवाई कर रही थी। मामला दो नाबालिग बच्चों के बीच यौन संबंधों का था। सहमति से रिश्ते बने थे। कहानी में कहीं ये नहीं लिखा था कि दो बच्चों के बीच सहमति से बने रिश्तों का मामला पॉक्सो कोर्ट में कैसे पहुंच गया। फिलहाल केस का फैसला सुनाते हुए जजों ने जो कहा, वो बात काबिले गौर है। जज साहब बोले, "किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। वे दो मिनट के सुख के लिए समाज की नजरों में गिर जाती हैं।"
हालांकि जज साहब ये भी कहा कि लड़कों को महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता और गरिमा का सम्मान करना चाहिए, लेकिन लड़कियों के लिए सबसे जरूरी सबक ये था कि वो अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखें क्योंकि चरित्र उनका खराब होता है। समाज की नजरों में वो गिरती हैं।
यही वो सोच है, जिसके कारण लड़कियां आत्महत्या करती हैं। बदनामी सिर्फ लड़कियों की होती है। लड़कों के शरीर से उनका चरित्र नहीं जुड़ा।
मैं स्कूल में पढ़ती थी, जब हमारे मुहल्ले की एक लड़की का एमएमएस मुहल्ले के ही एक लड़के ने बनाकर इंटरनेट पर डाल दिया था। ये 25 साल पुरानी घटना है, जिसका हवाला आज भी मुहल्ले की आंटियों के गॉसिप्स में अकसर दिया जाता है।
आंटियां कहानी सुनातीं- उस एक घटना ने पूरे परिवार को तबाह कर दिया। पिता बैंक में ऊंचे अधिकारी थे। मुहल्ले में उनका आलीशान तीन मंजिला मकान था। बेचारे अपनी लड़की की हरकत पर इतने शर्मिंदा हुए कि रातों-रात मकान बेचकर परिवार लेकर जाने कहां चले गए। कोई कहता नौकरी छोड़ दी, कोई कहता तबादला ले लिया।
लड़की के चाल-चरित्र के विश्लेषण में भी कोई कसर बाकी न रहती। लोग तो यहां तक कहते कि ऐसी लड़की पैदा होते ही मर जाए तो दुख नहीं। न मरे तो अपने हाथों मार दो। गॉसिप्स का कोई सिर-पैर न था। कहने वाले तो यहां तक कहते पाए गए कि लड़की फाफामऊ के पुल से गंगाजी में कूद गई थी। शर्मिंदा बाप लाश लेने भी न गया। जितने मुंह, उतनी बातें।
लड़के भी अपनी निजी महफिलों में कहानी सुनाते पाए जाते कि वो लड़की हमेशा से ऐसी ही बेगैरत थी। कि उसने उन्हें भी लाइन मारी थी; कि छत पर खड़ी होकर उन्हें भी ताका करती थी; कि मुहल्ले में सेंट लगाकर घूमती।
मेरे बचपन में और मेरे बाद जवान हुई पीढ़ी की लड़कियों को को उस एक लड़की की कहानी सुनाकर ताकीद की जाती रही। अपने चरित्र को बचाकर रखने के सबक सिखाए जाते रहे। मेरी याद में बस एक बात कभी नहीं हुई- उस लड़के के चरित्र का कभी जिक्र नहीं हुआ। किसी ने नहीं कहा कि लड़के ने जो किया, वो गलत था।
लड़के का न परिवार कहीं गया, न लड़का। सालों बाद वो आज भी अपनी पत्नी-बच्चों के साथ उसी मुहल्ले में रहता है, सिर उठाकर चलता है, उन्हीं आंटियों से दुआ- सलाम करता है और वही उसे लंबी उमर की दुआएं देती हैं।
ये सबकुछ आपकी आंखों के सामने एक साथ ही घट रहा होता है।
25 सालों में दुनिया जितनी बदली, उतनी नहीं भी बदली। स्मार्ट फोन, इंटरनेट ने एमएमएस बिजनेस को अब और आसान बना दिया है। अब ये पहले से कहीं ज्यादा हो रहा है, आए दिन हो रहा है। लड़के न्यूड बना रहे और फैला रहे हैं। लड़कियां जहर खा रही हैं। परिवार से लेकर जज तक सब लड़कियों को चरित्र बचाने का पाठ पढ़ा रहे हैं।
लड़कों को कोई नहीं बता रहा। लड़कों से कोई नहीं पूछ रहा। चाकू पसलियों से सफाई मांग रहे हैं।
कल ऐसी ही एक और हेडलाइन अखबार में फिर होगी। कल हम फिर गलत जगह, गलत सवाल पूछ रहे होंगे।