उधर ईशान के कमरे मे
"छोड़ो ना मुझे इशू देखो सुबह हो गई है। सब लोग उठ गए होंगे और बाहर इंतजार कर रहे होंगे।" शालू ने ईशान की बाहों में कसमसा कर कहा।
"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता और फिर इतना लंबा इंतजार किया है मैंने तो ऐसे तो नहीं जाने दूंगा तुम्हें अपने पास से दूर..! और बाकी टेंशन मत लो सब समझते है। अब हम दोनों मैरिड कपल है कोई कुछ भी नहीं सोचेगा तो इसलिए बेवजह के बहाने बनाना बंद करो।" ईशान ने उसे अपनी बाहों में और भी मजबूती से कसते हुए कहा तो शालु ने नजर उठाकर उसकी तरफ देखा।
ईशान के चेहरे पर मुस्कान के साथ-साथ एक अजीब सा सुकून था।
"क्या हुआ क्या देख रही हो..!!" ईशान ने उसके बालों को सहलाया।
"कुछ नहीं बस यूं ही...!! आज बहुत खुश हूँ मैं।
कुछ भी नहीं चाहिए मुझे अब। बस तुम पास हो तुम साथ हो इन लम्हों का ने जाने कितना इंतजार किया था मैंने।" शालू ने भावुक होकर कहा तो ईशान ने उसे अपने और भी करीब खींच लिया।
"जितना इंतजार करना था हो गया..!! बस अब हमेशा मेरे साथ रहोगी तुम। मेरे पास मेरी बाहों में।
कोई भी इमरजेंसी हो जाए, कोई भी मजबूरी हो कभी पर मुझसे दूर नहीं जाओगे तुम समझी और ये रिक्वेस्ट नही मेरा ऑर्डर है।" ईशान ने कहा तो शालू मुस्करा दी और ईशान ने वापस से उसे अपने सीने से लगा लिया।
"कुछ पल यूं ही दोनों एक दूसरे को महसूस करते रहे.!!
" इशू..!!"
" हाँ..!!" ईशान की अलसाई आवाज आई।
" अब तो उठने दो ना..!बहुत देर हो गई है। सब नीचे इंतजार करते हुए क्या सोचेंगे कि इतनी देर हो गई और हम अभी तक नहीं आए।"
" एक तो रात भर सोने नही दिया और अब भी नही सोने दे रही..!" ईशान शरारत से बोला।
" कौन मैं..?? मैंने नही सोने दिया??" शालू ने आँखे बड़ी कर उसे देखा।
" जब पास इतना प्यारा साथी हो तो सिर्फ प्यार करने का मन करेगा न..!! और फिर नींद किसे आयेगी।"
" प्यार कर लिया न रात को पर अब तो सुबह हो गई। उठो न..!! अच्छा नही लगता। सब क्या सोचेंगे..!!" शालू फिर बोली।
"कोई कुछ नहीं सोचेगा..!!" ईशान ने कहा तो शालू के चेहरे पर हल्की सी उदासी आ गई क्योंकि उसे वाक़ई लग रहा था कि सब उसके बारे में क्या सोचेंगे..!!"
"इतना टेंशन लेने की जरूरत नहीं है..!! मैं चाहता हूं कि मेरी शालू हमेशा मुस्कुराती रहे। चुहलबाजियां करती रहे। मस्ती करती रहे इस तरीके से उदास बिल्कुल भी नहीं रहना है। चलो चलना है बाहर तो उठो अभी।" ईशान बोला और उठ खड़ा हुआ।
शालू भी उठी और बाथरूम की तरफ जाने लगी।
"कहां चली?" ईशान ने कहा।
" शॉवर तो ले लूँ।"
"इतनी भी क्या जल्दी है जो अकेले-अकेले जा रही हो..!! बंदा हाजिर है ना सेवा में..!!" ईशान बोला और शालू को बाहों में उठकर बाथरूम के अंदर चला गया।
थोड़ी देर में सब लोग रेडी होकर डाइनिंग हॉल में आ गए थे जहां पर साधना ने मेड के साथ मिलकर नाश्ता लगवा दिया था।
सांझ और शालू ने साधना और अरविंद के पैर छुए तो दोनों ने उन्हें आशीर्वाद दिया।
"चलो आ जाओ सब लोग नाश्ता करने के लिए..!" साधना बोली।
नाश्ते के बाद नील और मनु निकल गए और अक्षत ने सबको हॉल में बैठने को कहा और फिर वहीं पर आकर खड़ा हो गया।
"हां बेटा क्या हुआ कुछ बात करनी थी क्या?" अरविंद बोले।
"जी पापा आप लोगों को यह बताना था कि अभी थोड़ी देर बाद नेहा और उसके हस्बैंड यहां आने वाले हैं..!! उन लोगों को जमानत मिल गई है और किसी ने उन्हें बोल दिया है कि मैं चाहूं तो वह इस केस से छूट सकते हैं वरना नहीं। तो बस वो लोग मुझसे मिलने अभी आ रहे हैं।" अक्षत ने कहा तो सांझ के चेहरे पर अजीब से भाव आ गए।
"पर बेटा उन लोगों का यहां आना क्या सांझ के लिए ठीक रहेगा..??" अरविंद ने कहा।
"नहीं बिल्कुल ठीक नहीं रहेगा..!! इनफैक्ट उन्हें पता ही नहीं चलना चाहिए कि यह सांझ है। जब तक मै न कहूँ ये बात कोई नही करेगा कि माही ही सांझ है। आप सब लोगों को इसीलिए यहां बुलाया है। उन लोगों के सामने कोई भी इसे सांझ नहीं कहेगा। मेरी शादी माही राठौड़ से हुई है और यह माही है। हम लोगो के अलावा सांझ का सच सिर्फ सुरेंद्र अंकल का परिवार जानता है और वो लोग मेरे साथ है।" अक्षत बोला।
सब ध्यान से सुन रहे थे।
"नेहा और उसके हस्बैंड को भी यही पता चलना चाहिए कि ये माही है। और हां सांझ तुम भी बिल्कुल भी भावनाओं में बहकर कोई गलती नहीं कर सकती समझी तुम..??" अक्षत ने कहा तो सांझ ने गर्दन हिला दी। पर उसके चेहरा पर अभी भी अजीब से भाव थे।
"ठीक है तो आप लोग ध्यान रखिएगा..!!" अक्षत ने कहा और सांझ को लेकर कमरे में चला गया।
"अब बताओ क्या बात है? क्यों परेशान हो इतना?" अक्षत ने उसके कंधे पकड़ के कहा।
" जज साहब मेरा उनसे मिलना जरूरी है..??
अपनी फिलिंग्स को कंट्रोल नहीं कर पाई अगर तो फिर ..??"
" क्यों नहीं कर पाओगी अपनी फिलिंग्स को कंट्रोल..?? बिल्कुल कर पाओगी और मुझे पता है कि मेरी सांझ हर कुछ कर सकती है। अब तो समय आया है सबको उनकी जगह दिखाने का। तुम इस समय कमजोर नहीं पड़ सकती समझी सांझ..!! बहुत पर्फेक्ट प्लान किया है मैंने और इस प्लान में तुमको साथ देना होगा।"
अक्षत ने उसकी हथेली थामते हुए कहा।
"आपने क्या प्लान किया है जज साहब...??" सांझ बोली।
"बस देखते हैं चलो..!!" अक्षत बोला की तभी सर्वेंट ने दरवाजा नोक किया।
"हां बोलो...!!" अक्षत ने कहा।
"साहब जी कोई डॉक्टर नेहा और डॉक्टर आनंद आए हैं। आपसे मिलना चाहते हैं। मैडम ने उन्हें हॉल में बिठा लिया है और आप लोगों को बुलाया है।" सर्वेंट ने कहा।
अक्षत के चेहरे पर तिरछी मुस्कुराहट आ गई।
"ठीक है तुम चलो मैं आता हूं...!!" अक्षत बोला और फिर सांझ की तरफ देखा जिसकी आंखों में अजीब सी बेचैनी थी।
"अच्छा ठीक है अभी नहीं आना है तो मत आओ सामने पर बाद में आ जाना। एक बार मिलो तो सही उन लोगों से जिनकी वजह से इस सब की शुरुआत हुई थी। और तुम भी तो जानो कि आखिर होने क्या वाला है??" अक्षत ने कहा।
" जी जज साहब..!!" सांझ ने कहा तो अक्षत ने उसके गाल से हाथ लगाकर हलके से थपका।
" घबराओ नहीं। ऐसे किसी भी इंसान को कोई नुकसान नहीं होगा जो कि गलत नहीं है। बाकी जिसने मेरी वाइफ के साथ गलत किया है या गलत करने की कोशिश की है उसे उसका अंजाम तो भुगतना हीं पड़ेगा। और तुम इस बार मुझे नहीं रोकोगी समझी तुम क्योंकि मैं यहां पर तुम्हारी भी नहीं सुनने वाला।" अक्षत ने कहा और तुरंत बाहर निकल गया।
सांझ वहीं बेड पर बैठ गई।
दिल की धड़कने तेज हो रही थी और चेहरे पर अजीब सी बेचैनी छाई हुई थी।
आज इतने दिनों बाद वह नेहा को देखने वाली थी।
वह नेहा जिसने हमेशा उसे प्यार किया उसे सही गलत सिखाया। हमेशा अपने लिए खड़े होना सिखाया। वही नेहा जिसने उसको अपना माना और साथ ही साथ वही नेहा जिसके कारण उसका सब कुछ बर्बाद हो गया। उसकी पहचान खो गई। वह दो सालों तक अक्षत से दूर रही। इतना बड़ा एक्सीडेंट हुआ इतनी बड़ी घटनाएं घटी।
सांझ की आंखों में आंसू आ गए।
तभी शालू ने उसके कंधे पर हाथ रखा।
सांझ ने नजर उठा कर शालू की तरफ देखा।
"इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है सांझ। एक बार को सारी बातों को एक तरफ रख दो और सिर्फ एक बात याद रखो कि उस दिन बहुत कुछ हो सकता था। जब तुम्हें निशांत को सोपा गया उसके बाद कुछ भी हो सकता था। तुम्हारी जिंदगी के साथ। वह तो हमारी किस्मत है और अक्षत भाई का प्यार जो तुम सही सलामत वापस आ गई। पर जरूरी तो नहीं कि ऐसा हो ही पाता।
और इन सबके लिए जो जिम्मेदार है उन्हें सजा मिलना जरूरी है। इसलिए तुम इस समय कमजोर नहीं पड़ सकती।" शालू ने सांझ को समझाया तो उसने गर्दन हिला दी।
उधर अक्षत नीचे हॉल में आया तो देखा आनंद और नेहा बेचैनी से इधर से उधर देख रहे थे।
"आप लोग मुझसे मिलने आए हैं?" अक्षत ने उनके सामने जाकर खड़े होकर कहा।
"जी आप ही अक्षत चतुर्वेदी हैं..??" आनंद बोला।
"हाँ मै ही अक्षत चतुर्वेदी हूं बाकी मैंने आप लोगों को पहचाना नहीं।"
" कैसी बातें कर रहे हैं आप चतुर्वेदी जी। आपके आदमी ने हमें फोन पर सब बता दिया है। आपके ही कहने पर हमारे हॉस्पिटल पर रेड पड़ी थी और वहां पर कुछ ऐसी चीज बरामद हुई जो नहीं होनी चाहिए थी जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। हमारे हॉस्पिटल में कुछ भी इलीगल नहीं होता।" नेहा ने कहा।
'अगर इलीगल नहीं होता है तो फिर वह सारी चीजे कैसे मिली और इस तरीके का इल्जाम लगाना तो ठीक नहीं है। भला मेरे कहने पर कोई क्यों कुछ भी करेगा..?! इतनी भी मेरी कोई पोजीशन नहीं है जो लोग मेरे हिसाब से चले?" अक्षत ने तंज कसा।
"जी हम जानते हैं कि आप भी हमें नहीं बताएंगे पर उसने बताया था कि जिस आदमी ने हमारे यहां यह सब किया है वह आपका आदमी है। हम उसे नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं और ना ही हमें उसके बारे में कोई जानकारी है। अब हमें बेगुनाह सिर्फ एक इंसान साबित कर सकता है। वह है आप। प्लीज हमारी मदद कीजिए।" नेहा ने अपने हाथ जोड़कर कहा।
"मैं आपकी मदद क्यों करूंगा और मुझे आपसे क्या लेना देना है?" अक्षत ने उन दोनों की तरफ देखा।
"वह तो मुझे भी नहीं पता है कि आपका हमसे क्या लेना देना है, और क्या दुश्मनी है जो आप हमें इस तरीके की गलत केस में फंसा रहे हो जहाँ हमारी गलती नहीं है। फिर भी हमें सजा मिल रही है..?? " आनंद ना उदासी से कहा।
"फिर वही बात कर दी आपने..!! किसी को भी सजा बेवजह नहीं मिलती। आपकी गलती कुछ ना कुछ तो रही होगी। हां आज नहीं रही होगी तो कभी और रही होगी। इस केस में नहीं रही होगी तो किसी और केस किसी और घटना में रही होगी। पर ये तो कर्म है जो लौटकर आते ही है..!!" अक्षत ने कहा।
"आप सीधे-सीधे कहिए ना की बात क्या है?" नेहा उसके सामने खड़े होकर बोली।
" सीधा ही है सब..!! बस आप नही समझ रही।"
"आप सांझ को जानते हैं क्या.." तभी अचानक से नेहा बोली तो अक्षत के चेहरे की मुस्कुराहट बड़ी हो गई।
" मै तो एक को जानता था जो यहाँ युनिवर्सिटी से नर्सिंग कर रही थी। फिर एकदम गायब हो गई..!! और वैसे आप कैसे जानती हैं सांझ को? क्या आपकी और मेरी सांझ एक ही है।"अक्षत ने कहा।
क्रमश:
डॉ. शैलजा श्रीवास्तव