" तुम अब मेरे पास हो मेरे करीब..!! अब तुम्हें कोई भी नहीं छू सकता इसलिए तुम बिल्कुल निश्चित रहो। और अब सजा मिलने की वारी उन लोगों की है। तुम्हें तो उन्हें जितनी तकलीफ देनी थी दे चुके अब तकलीफ बर्दाश्त करने की हद उनकी देखनी है मुझे।"
"मुझे कुछ नहीं चाहिए जज साहब। बस आपका साथ रहे और कुछ भी नहीं।एक-एक पल मैंने आपको याद किया था जज साहब। उन दो दिनों जब मैं वहां रही थी एक-एक पल में मेरा दिल बेचैन था। बस एक ही और एक ही ख्याल आ रहा था कैसे भी करके मैं आपके पास पहुंच जाऊं और फिर कभी भी इन लोगों को अपनी सूरत भी नहीं दिखाऊं। पर मैं मजबूर हो गई थी जज साहब। मेरे पास मेरा फोन नहीं था। मुझे कैद कर दिया गया था। मुझे बहुत मारा भी गया था जज साहब। मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी और उस समय मुझे जो समझ आया वह मैंने किया।"
"तुम्हारी कहीं से कोई गलती नहीं है सांझ। आज भी हमारे समाज में लड़कियों के साथ औरतों के साथ अन्याय हो रहे हैं। उनका शोषण किया जा रहा है, उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी, जब तक लोगों की मानसिकता नहीं बदलेगी इसी तरीके से लड़कियों का शोषण होता रहेगा। उनको प्रताड़ित किया जाता रहेगा। तुम कहीं से गलत नहीं हो सांझ। गलत है यह समाज, गलत है निशांत जैसे लोग हैं।गलत तुम्हारे उस गांव के लोग है जो की ऐसी मानसिकता रखते हैं। गलत है वह सारे पंच और वह सारे लोग जो कि इन गलत कामों में उनके साथ देते हैं। तुम कहीं से गलत नहीं हो।" अक्षत सांझ को धीमे-धीमे समझाता रहा और उसकी काउंसलिंग करता रहा ताकि उसके मन से सारी नेगेटिव बातें और डर निकल जाए। और अक्षत के समझाने से धीरे-धीरे सांझ नॉर्मल होने लगी और कुछ ही देर में सो गई।
सांझ के सोने के बाद अक्षत ने उसके चेहरे को देखा जिस पर अब दर्द की जगह हल्का सा सुकून आ गया था।
अक्षत ने उसका सर तकिये पर रखा और उससे दूर होने को हुआ पर हो ना सका क्योंकि सांझ ने बहुत मजबूती से उसका हाथ थाम रखा था एक हाथ से और दूसरे हाथ से उसकी शर्ट को पकड़ रखा था।
अक्षय के चेहरे पर मुस्कान आई और उसने सांझ के माथे को हल्के से चूमा और वापस से उसके पास लेट गया। उसे अपनी बाहों में समेट कर आंखें बंद कर ली।
आज दो साल बाद उसे उसकी मिसेज चतुर्वेदी वापस मिली थी। भले चेहरा बदल गया था पर एहसास वही थे। यादें वही थी। एक दूसरे के साथ मोहब्बत वही थी। आज दिल को जाकर पूरी तरीके से सुकून मिला था और अक्षत के। सांझ को बाहों में लिए हुए अक्षत भी धीमे-धीमे गहरी नींद में चला गया।
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सुबह सांझ की नींद खुली तो खुद को अक्षत की बाहों में देखा और चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
अक्षत अभी भी गहरी नींद में था। सांझ बस उसे देखे जा रही थी।
आज उसे अपने जज साहब को जी भर देखने का दिल कर रहा था आखिर सालों की आंखों की प्यास आज जो बुझ रही थी। और उसमें भी जब अक्षत सो रहा था तो उसे देख पा रही थी वरना अक्षत की तरफ इस तरीके से देखने पर उसकी नज़रें अक्सर ही झुक जाती थी।
"आप मिल गए मुझे ..!! मेरी जिंदगी में वापस आ गए तो सारी शिकायतें खत्म हो गई हो जिंदगी की। बस हमेशा आपका साथ रहे और मुझे कुछ भी नहीं चाहिए जज साहब। आप अगर मुझसे दूर हुए तो अब तो जान ही निकल जाएगी।" सांझ ने खुद से ही कहा और हौले से अक्षत के चेहरे पर हाथ लगाया और फिर जैसे ही उठना को हुई अक्षत ने आंखें खोल उसे देखा और अपने हाथ से खींच उसे अपने करीब कर लिया।
सांझ के चेहरा पर गुलाबी मुस्कराहट आ गई।
"यह सोते हुए मुझे देखने की आदत अब तक गई नहीं तुम्हारी..??" अक्षत ने कहा तो सांझ ने आंखें बड़ी करके उसे देखा।
"आदत?" सांझ बोली।
"क्यों उस दिन जब हमने कोर्ट मैरिज की थी और जब हम उस होटल रूम में थे तब भी तुम मुझे यूं ही सोते हुए देख रही थी। उस दिन भी मैंने तुम्हें ऐसे ही मुझे चुप कर देखते हुए पकड़ा था और आज भी वैसे ही कर रही हो तुम और इससे पहले कि मैं उठूँ मुझसे दूर जाने का सोच रही थी।" अक्षत ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा तो सांझ की नजरे झुक गई।
" आप को याद है अब तक..??"
" तुम्हारे साथ बिताया एक एक लम्हा याद है। भूल ही नही सकता। और ये तो उस दिन की बात है जब। हम पहली बार पति पत्नी बन कुछ पल साथ बिताने आये थे और तब भी तुम यूँ ही मुझे सोते हुए देख रही थी।
"पर आप सोते कहां है जज साहब..!! जब भी मैं सोच रही होती हूं कि आप सो रहे हैं और मैं आपको जी भर देख सकती हूं आप जाग जाते हो।" सांझ ने धीमे से कहा।
"हां तो ठीक है तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है तो मैं फिर से जानकर आँखे बंद कर लेता हूं और तुम मुझे जी भर देख लो पर दूर मत जाना बस..!!" अक्षत ने उसकी कमर में बाहों को लपेटकर कहा तो सांझ मुस्कुरा कर उसके सीने से लग गई।
" आई लव यू..!!" सांझ ने धीमे से कहा।
" लव यू टू..!! मेरी प्यारी मिसेज चतुर्वेदी..!! अक्षत बोला तभी दरवाजे पर नॉक हुआ तो सांझ एकदम से दूर हटने लगी।
"लगता है शालू दीदी हैं क्या सोचेंगी वो..??"
" क्या सोचेंगी। जो मर्जी सोचे। मैरिड है हम लोग। शादीशुदा हैं। कोई पहली बार तो नहीं एक दूसरे के साथ है, फिर इतना क्यों टेंशन लेती हो?? सब कुछ पता है सबको हमारे रिश्ते का समझी.!!"अक्षत ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा तो सांझ की नजर झुक गई।
अक्षत ने उठकर दरवाजा खोला तो सामने शालू खड़ी थी।
"अब ठीक है सांझ..??" शालू ने पूछा।
"खुद ही देख लो..!!" अक्षत बोला तो शालू अंदर आई और सांझ की तरफ देखा।
"अब ठीक हो? "सालों ने कहा तो सांझ उठकर उसके गले लग गई।
"मैं बिल्कुल ठीक हूं और बहुत खुश हूं यह जानकर कि मेरी बेस्ट फ्रेंड मेरी बड़ी बहन है..!! थैंक यू शालू दीदी आपने बहुत साथ दिया और आपने मेरे लिए सब कुछ छोड़ दिया। यहां तक की ईशान जीजू को भी छोड़ दिया। और इस बात को मैं कभी नहीं भूल सकती।" सांझ भावुक होकर बोली।
"बहन हो तुम मेरी। सालों बाद पाया था तुम्हें ऐसे कैसे तुम्हें छोड़ देती। तुम्हारे लिए तो जान भी देनी पड़ती तो पीछे नहीं हटती मैं..!!" शालू बोली तो सांझ के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
"अब जान देने की बात कोई भी नहीं करेगा समझे तुम दोनों। सुन सुन के कान पक गए हैं। अरे जान लेना सीखो जान देना नहीं समझे।" अक्षत ने हंसकर कहा तो दोनों मुस्कुरा उठी।
"चलो अब तुम ठीक हो तो आ जाओ नाश्ता करने..!! कल रात से तुमने कुछ नहीं खाया है तो तुम्हारे जज साहब ने भी कुछ नहीं खाया है।" शालू ने कहा तो सांझ ने अक्षत की तरफ देखा।
"तुम लोग चलो मैं फ्रेश होकर आता हूं..!!" अक्षत बोला तो शालू सांझ को लेकर चली गई।
अक्षत ने गहरी सांस ली और बाथरूम में चला गया। थोड़ी देर बाद तीनों ने साथ में नाश्ता किया किया।
"अब मैं जाऊं क्या?" अक्षत ने पूछा।
"बस पापा मम्मी से बात हुई थी वो लोग भी आने ही वाले हैं। पहुंचने वाले होंगे कुछ समय में ।सुबह पूजा कराकर जल्दी निकल दिए थे क्योंकि मैंने उन्हें सांझ के बारे में बता दिया था।" शालू ने कहा।
"ठीक है तो फिर उन लोगों से मिलकर ही जाता हूं! " अक्षत ने कहा और सांझ की तरफ देखा जिसके चेहरे पर अजीब से भाव आ रहे थे।
अक्षत ने उसका हाथ थाम लिया।
"तुम्हारे पापा है वह..!! मानता हूं कि एक डिसीजन उन्होंने ऐसा लिया जो तुम्हें पसंद नहीं आया पर उनके ही कारण आज तुम मेरे पास हो और सही सलामत हो। और इस तरीके से अपने माता-पिता से नाराज नहीं होते।" अक्षत बोला।
"पर उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था..!! जब इतने सालों मुझसे मतलब नही था तो अचानक से मेरे बारे में डिसीजन क्यों लिया। एक बार आपको भी तो बताना चाहिए था।" सांझ नाराजगी से बोली।
" तुमसे मतलब था पर तुम्हारा पता नही था। और जब तुम मिली तब वो हमारी शादी का सच नही जानते थे और इतना गुस्सा नही करते। कुछ ही तो रिश्ते है हमारे पास उन्हे सहेजते है ना.!! और कोई बात नहीं वो बस पुत्री स्नेह में स्वार्थी हो गए वह और साथ में उनके मन में डर भी था कि कहीं तुम्हारी असली पहचान के साथ तुम्हारे लिए कोई प्रॉब्लम ना हो जाए। तुम्हारी लाइफ के लिए कोई रिस्क ना हो जाए सिर्फ इसीलिए किया उन्होंने। मेरे कहने पर माफ कर दो और दिल से एक्सेप्ट करो वरना उन्हें बुरा लगेगा।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने गर्दन हिला दी।
सांझ इस बात के लिए अबीर से नाराज तो थी कि उन्होंने उसकी पहचान बदल दी पर वह यह बात भी नहीं भूल सकती थी कि अबीर ने उसके लिए इन दो सालों में क्या-क्या नहीं किया और इन दो सालों में अबीर और मालिनी ने जो उस पर प्रेम लुटाया था उसकी उसकी परवाह की थी उसके आगे इतनी बात को तो सांझ माफ कर सकती थी और सांझ ने दिल से सारी नेगेटिव बातें निकाल दी क्योंकि इस बदले रंग रूप के साथ भी उसके जज साहब उसके साथ थे उसके पास थे तो अब वह किसी के साथ कोई भी मनमुटाव या नाराजगी नहीं रखना चाहती थी।
क्रमश:
डॉ. शैलजा श्रीवास्तव
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