साथिया - 104 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 104

माही और शालू चतुर्वेदी निवास मे मनु की शादी तक रुक गई थी। 

शालू हालांकि  कंफर्टेबल नहीं थी पर  माही  की खुशी के खातिर वह रुक गई। वह नहीं चाहती थी कि जिस तरीके से उसका और  ईशान का रिश्ता बिखर गया है। माही और अक्षत के रिश्ते में किसी भी तरीके की प्रॉब्लम हो। वह दिल से चाहती थी कि माही अक्षत के साथ कंफर्टेबल हो जाए और दोनों खुशी-खुशी रहे। 

माही और शालू अपने रूम में थी। 

शालू खिड़की पर खड़ी  बाहर खिड़की से देख रही थी और माही उसे देख रही थी। 

"क्या हुआ शालू दीदी आप खुश नहीं हो क्या यहां रुकने पर?" माही  ने कहा तो  शालू  मुस्कुराई और उसके पास आकर उसके गाल से हाथ लगाया। 

"तू खुश है ना तो बस समझ ले कि मैं भी खुश हूं!" शालू बोली। 

"वह तो मैं समझती हूं। और पिछले दो सालों से आप सिर्फ और सिर्फ मेरी खुशी के लिए अपनी खुशियां अपनी लाइफ और अपना प्यार सब कुछ कंप्रोमाइज करती आई हो। पर अब ऐसा कुछ भी नहीं होगा शालू दीदी।" 

" जो होना था वह हो चुका है  माही और मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है।  हाँ मैं  मानती हूं कि मेरा फैमिली के लिए का फर्ज था। मम्मी पापा और तेरे लिए  फर्ज  था तो कुछ  रिस्पांसिबिलिटी  ईशान के लिए भी थी। हां मैंने एक रिश्ता निभाया और मैं एक ड्यूटी में पूरी तरीके से सफल रही। पर वही दूसरे रिश्ते में मैं फेल हो गई। पर यह मेरी खुद की कमी है।  इसमें किसी का कोई  दोष नहीं।", शालू बोली। 

"ऐसे कैसे  दोष  नहीं है शालू दीदी? सारी गलती मेरी है। आखिर  मेरे कारण ही तो यह सब कुछ हुआ ना.??" माही  ने भावुक   होकर कहा। 

"कैसी बातें कर रही  है पगली। और अगर  तेरी जगह अगर मैं होती तो क्या तुम मेरे लिए नहीं करती? बहने हैं हम दोनों सगी बहनें। खून का रिश्ता है हमारा। अगर एक बहन दूसरी बहन के लिए नहीं सोचेगी तो फिर कौन सोचेगा..?? और मैं  पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं और जानती हूं कि तेरी जगह अगर मैं होती तो शायद तू भी यही करती। हर रिश्ते से पहले हर बात से पहले  तु  सिर्फ और सिर्फ अपनी बहन को देखती अपनी  बहन को  चुनती।" शालू ने कहा  तो माही मुस्कुरा  उठी। 

" हाँ सुनती। पर ठीक है जो बीत गया सो बीत गया पर अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। हमारे हाथ में कोशिशें हैं ना। हम फिर से कोशिश कर सकते हैं ना..?? जो चीजे  खराब हुई है जो रिश्ते  बिखरे हैं उन्हें दोबारा से सही  कर सकते है  न??"माही  ने कहा। 

"तुम्हें लगता है कि अभी भी  पॉसिबल है कुछ? देखा ना तुमने  ईशान  आगे बढ़ चुका है। उसकी लाइफ में कोई और लड़की आ चुकी है। दोनों शादी करना चाहते हैं ऐसे में मैं उन दोनों के बीच आ गई तो  मैं और भी ज्यादा स्वार्थी कहलाऊंगी। ना  माही मैं  ऐसा नहीं कर सकती।" 

"पर दीदी आपने ऐसा कैसे सोच लिया कि ईशान जीजू उस लड़की को प्यार करते हैं या उससे शादी करना चाहते हैं?"  माही  बोली तो  शालू  ने आँखे  छोटी करके उसे  देखा। 

"इतनी  भी मुर्ख नहीं हूं मैं। जब  ईशान  सामने किसी को लाकर बोल रहा है और मिला रहा है तो जाहिर सी बात है वह सीरियस होगा ना..?"  शालू बोली। 

"नहीं  शालू दीदी यहां आप गलत हो। मैंने  जज साहब से भी पूछा था। ईशान  जीजू की लाइफ में कोई भी नहीं है। वह सिर्फ और सिर्फ आपको तकलीफ देने के लिए ऐसा कर रहे हैं। और आप वाकई में हर्ट हो रही हो और अपने कदम पीछे ले रही हो जबकि आपको ऐसा नहीं करना है..!!" माही  बोली तो शालू ने आँखे  छोटी कर देखा। 

"हाँ शालू   दीदी आपको तो  ईशान जीजू को मनाना है। उन्हें उन्हें यकीन दिलाना है कि आप गलत नहीं हो और पुरानी बातों को भूलकर आगे बढ़ना है। उनके  दिन में जो तकलीफ है जो दर्द है जो आपके लिए नाराजगी है उसे निकालना होगा ना शालू दीदी.! इस तरीके से कदम पीछे ले लोगे तो कैसे चलेगा?" माही बोली। 

"पर मैं करूं भी तो क्या करूं? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।" 

" थोड़ा  बहुत तो आपको करना होगा ना, बाकी तो मैं और  जज साहब   आपके  साथ  है ही।" माही ने कहा तो  शालू  ने  नासमझी से उसे देखा। 

"आपको यहां रोकने का प्लान तो जज साहब का ही था ताकि आप और ईशान  जीजू के बीच में सब कुछ सॉर्ट आउट हो जाए। और इसी के लिए उन्होंने मुझे  रोकने को कहा ताकि मेरे  साथ-साथ आप भी रख सको। अब जब मौका मिला है आपको तो कोशिश कीजिए ना।  पुरानी बातों को भूलिए। गिले शिकवे  दूर करने की एक दूसरे की नाराजगी खत्म करने की कोशिश कीजिये।" 

"इतना आसान तो नहीं होगा ना  माही। समझ नहीं आता  कि ईशान  मानेगा कि नहीं मानेगा।" 


" तुम तो जंग लड़ने से पहले ही हार मान गई  शालू..!!  अपनी कोशिश करना तो हर इंसान का अधिकार भी है। भले सामने वाला माफ करें ना करें ..!! सामने वाला मौका दे ना दे..!! पर हमें तो कोशिश करनी होगी ना..!!" माही बोली।


" माही  ठीक कह रही है।  तुम्हे मौका मिला है तो कोशिश करो अपने और  इशू  के साथ के रिश्ते को ठीक करने की। बाकी तुम चिंता मत करो मैं और  माही  तो हर कदम पर तुम्हारे साथ हैं, क्योंकि मैं समझता हूं तुम्हारी स्थिति को। ठीक है मैं मानता हूं कि इन सब में  इशू के साथ गलत हुआ तो  उसने नाराजगी दिखा ली  पर इस तरीके से किसी और से शादी तो वह नहीं कर सकता ना??" अक्षत ने कहा तो  शालू  भरी आंखों के साथ मुस्कुरा  उठी। 

"थैंक यू..!!" शालू ने धीमे से कहा। 

"थैंक यू नहीं चाहिए मुझे बस मेरे भाई के चेहरे पर मुस्कुराहट ला दो..!! उसे वही  ईशान बना दो जिसे छोड़कर गई थी। इन दो सालों में मुस्कुराना भूल गया है वह..!!" अक्षत ने  भावुक  होकर कहा तो शालू  ने उसे देखा। 

"आई एम सॉरी..!!" शालू बोली तो अक्षत ने आँखे  छोटी करके उसे देखा। 

"मैं जानती हूं कि गलत किया मैंने न सिर्फ  ईशान  के साथ बल्कि आपके साथ भी। आपको हक था जानने का माही के बारे में पर हर इंसान की मजबूरी होती है। आपने तो मेरी मजबूरी समझी और  शायद इंसान भी समझ जाए।
पर जानकर आप लोगों को हर्ट करने का इरादा नहीं था। परिस्थितियों हमारे हाथ में नहीं थी। बहुत कुछ बदला था उस समय पर।" 


"मैं सब जान गया हूं और सब समझता हूं इसलिए मुझे  अब न ही तुमसे और न हीं अबीर  अंकल से कोई शिकायत  है। रही बात  इशू  की तो जहां प्यार ज्यादा होता है वह नाराजगी  भी हद से ज्यादा होती है। तो  वही जब उसने तुम्हें इतना ज्यादा प्यार किया है तो नाराज  भी हो सकता है ना..?? अपनी नाराजगी दिखा रहा है और यह सब उसकी नाराजगी दिखाने का तरीका है। बाकी उसे कैसे मनाना है और उसकी नाराजगी कैसे खत्म करनी है मुझसे बेहतर तुम जानती होगी और समझती होगी।" अक्षत ने कहा  तो शालू ने गर्दन हिला दी। 


शाम को जब  ईशान  घर आया तो देखा  हॉल  में मनु के साथ माही और शालू भी बैठी हुई है और उसकी शादी की शॉपिंग का जो सामान आया है वह सब अरेंज कर रही है।

माही और शालू को देख  ईशान  के चेहरे पर हल्का सा तनाव आ गया और वह धीरे से अपने कमरे की तरफ जाने लगा कि तभी माही ने उसकी तरफ देखा। 

"ईशान जीजू  आप आ गए। देखे ना जरा यह वाला ड्रेस कैसा लग रहा है?" माही ने आवाज लगाई तो  ना चाहते हुए  भी  इशान  को उसके पास आना पड़ा।

"अब  आपने पसंद किया है भाभी तो अच्छा ही होगा और।" इशान   ने एक  नजर शालू को देखा और फिर उसे इग्नोर कर माही   की तरफ देखकर कहा। 

"बताइए ना फिर भी कैसा लग रहा है यह ड्रेस?"माही ने फिर से कहा तो  इशान ने ड्रेस की तरफ देखा। 

"अच्छा है और आपके ऊपर बहुत  खिलेगा भी।" 

" पर यह मेरे लिए नहीं है..!! यह शालू दीदी के लिए है।  मम्मी जी ने आज हम दोनों के लिए भी कुछ ड्रेसेस  मंगाई  थी  जो मनु की शादी में हम लोग पहनेगी।" माही ने मासूमियत से कहा। 

"आपके ऊपर तो सब कुछ अच्छा लगेगा भाभी...!! आप है  ही इतनी प्यारी। बाकी और किसी से मुझे कोई लेना देना नहीं है। जिसकी जो मर्जी पहने जिसकी  जैसे मर्जी हो वैसे रहे।" ईशान   बोला और जाने लगा। 

"आपके लिए  चाय लाऊँ  ईशान जीजू?" तभी  माही  ने दोबारा से कहा। 

"आप  क्यों  परेशान हो रही है भाभी? घर में सर्वेंट्स  है  वह दे देंगे। आप चिंता मत कीजिए और अपनी  तबीयत का ख्याल रखिए। आप नहीं जानती इस घर के लिए और अक्षत के लिए आप  कितनी वैल्यू रखती हैं..?" ईशान ने कहा और तुरंत अपने कमरे में चला गया। 

" जाओ चाय लेकर जाओ उसके लिए..!! अक्षत ने शालू की तरफ देखकर कहा। 

"लेकिन मैं कैसे?" शालू ने घबराते हुए  कहा। 

"अगर इसी तरीके से डरती और घबराती रहोगी तो उससे बात कैसे करोगी? और जब तक बात नहीं करोगी बातें सॉर्ट आउट कैसे होंगी?" अक्षत बोला। 

"हां शालू दीदी  जज साहब  सही कह रहे हैं। आप बात तो कीजिए आपको  निगल थोड़ी ना जाएंगे जीजू..!! ज्यादा से ज्यादा गुस्सा ही तो करेंगे और क्या तो वह नाराजगी तो आपको  झेलनी ही  होगी ना आज नहीं तो कल..!!" माही ने कहा तो  शालू  किचन में चली गई। 

उसने एक ट्रे में चाय और नाश्ता रखा और फिर गहरी सांस ले  ईशान  के कमरे की तरफ बढ़ गई। 


अक्षत भी अपने कमरे में चला गया। 

"ठीक है मनु सब कुछ बहुत अच्छा है..!! मैं अभी आती हूं।" माही बोली और तुरंत  अक्षत  के कमरे में  आई।

अक्षत दरवाजा बंद कर ही रहा था कि माही ने हाथ लगा दिया। 

" ओह्ह  गॉड तुम्हें चोट तो नहीं लगी ना?" अक्षत ने तुरंत उसका हाथ थाम कर कहा। 

माही  मुस्कुराई और अगले ही  पल  अक्षत के गले लग गई। 

अक्षत  के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई। 

"थैंक यू..!! थैंक यू..!! थैंक यू सो मच जज साहब आप ना बहुत स्वीट हो..!!" माही बोली। 


"क्यों क्या हुआ?"  अक्षत  ने कहा। 


"आप मेरी शालू दीदी के लिए इतना कुछ कर रहे हैं..!! सिर्फ  मेरे कहने पर।" माही  बोली।

"तुम्हारे कहने पर कुछ भी कर सकता हूं मैं माही...!! और सबसे बड़ी बात इशू  और शालू के बीच में प्रॉब्लम तो  शॉर्ट आउट हो जाए मैं भी यह चाहता हूं। जिस तरीके से तुम अपनी बहन को  खुश  देखना चाहती हूं। मैं भी चाहता हूं कि मेरा भाई  खुश रहे।" अक्षत ने कहा। 


"फिर भी थैंक यू...!!" माही बोली और जैसे ही उससे दूर  हुई  अक्षत  ने  दोबारा उसे पास खींच लिया। 

माही  ने आंखें बड़ी कर उसे देखा। 

"अब जब तुमने खुद से मुझे  हग  किया है तो थोड़ा  तो मुझे फील करने दो।"  अक्षत ने कहा और वापस से उस पर  बाहों  का घेरा  कस दिया। माही  के चेहरे पर गुलाबी मुस्कराहट आ गई। 


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव