साथिया - 103 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 103

अक्षत ना चाहते हुए भी उसे मना नहीं कर पा रहा था और माही देख चुकी थी कि अक्षत का रूम कौन सा है तो उसे किसी से पूछने की जरूरत नहीं थी। वह अक्षत को खींचते हुए रूम में लेकर आई और दरवाजा खोल दिया। 

अक्षत ने आंखें बंद कर  ली। उसे उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे वह  माही  को कैसे हैंडल करेगा। 


" वाओ..!!" तभी  माही  के मुंह से निकला तो अक्षत ने आंखें खोल कर देखा। 

पूरे रूम में सिर्फ और सिर्फ माही की तस्वीरें थी। कुछ तस्वीरों में अक्षत और माही साथ में थे। अक्षत ने आश्चर्य के साथ देखा और  राहत  की सांस ली। तभी नजर दरवाजे के बाहर खड़ी मनु  पर गई  जिसने  थम्स अप का इशारा किया और वहां से निकल गई। 

"थैंक गॉड..!!" अक्षत खुद से बोला और रूम में अंदर  आकर दरवाजा बंद कर दिया। 

माही चारों तरफ घूम घूम कर देख रही थी। चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ उसकी और अक्षत की फोटो थी और कई जगह थी उसकी अकेली फोटो। 


"इतनी सारी फोटोस मेरी..!! यह सब आपने खींची थी और आपने लगाई है।" माही खुश होकर बोली तो अक्षत ने  हाँ में  गर्दन   हिला  दी।

"आप इतना प्यार करते थे मुझे?" माही फिर से बोली। 

"विश्वास नहीं है क्या?" अक्षत ने उसकी कमर में हाथ  लपेट  उसे अपने करीब खींचकर कहा तो माही के दिल की धड़कनें एकदम से तेज हो गई और उसने अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से अक्षत को देखा। 

"नहीं..!! वह मेरा मतलब है कि।" कहते-कहते माही रुक गई।।

"तुम सोच भी नहीं सकती कितना प्यार करता हूं मैं तुम्हें? तुम्हें अंदाजा नहीं है   पर  माही जिस दिन तुम्हें सब कुछ याद आएगा उसे दिन तुम मेरे प्यार की गहराई को  जनोगी  और समझोगी। एक-एक पल ऐसे जिया हूं मैं जैसे जिंदा लाश हो। हर पल तुम्हारे आने का इंतजार किया है। हर पल तुम्हें देखने के लिए आंखें  तड़पती रही है मेरी। तुम्हें सीने से लगाने के लिए दिल बेताब रहा है।" अक्षत ने उसे सीने से लगाते हुए कहा तो माही ने उसकी पीठ पर हाथ रखकर आंखें बंद कर ली। 


"  तुम्हें अंदाजा भी नहीं है  माही  मेरी तकलीफ का। यह जानते हुए कि तुम हो पर कहां हो मैं नहीं जानता था। सिर्फ इंतजार कर रहा था और पल-पल तुम्हें ढूंढ रहा था, क्योंकि दिल बेचैन था मेरा तुम्हारे लिए? तुम्हें देखना चाहता था। तुम्हें छूना चाहता था तुम्हें अपने करीब लाना चाहता था। पर मैं मजबूर था माही। मेरे पास तुम्हारी कोई खबर नहीं थी। पर फाइनली ईश्वर ने मेरी सुन ली और तुम वापस मिल गई मुझे। बस  अब कभी  भी मुझसे दूर मत जाना। तुम्हारी हर बात मंजूर है मुझे  तुम्हारी हर शर्त  पूरी करने को तैयार हूं। तुम्हें जितना टाइम चाहिए देने को तैयार हूं बस मुझसे दूर मत जाना   मेरी जिंदगी से दूर मत जाना माही   जी नहीं पाऊंगा मैं तुम्हारे बिना।" अक्षत  भावुक को गया तो वही  माही  की आंखों में भी आंसू आ गए। 

"जब आप मुझे इतना प्यार करते हो  तो  भला आपसे दूर कैसे जा सकती हूं?? आप अपने मन में ऐसा बिल्कुल भी मत रखें और और मुझे माफ कर दीजिए जज साहब। आप जानते है कि मुझे कुछ भी याद नहीं था। अगर मुझे याद होता तो मैं कभी भी आपसे दूर नहीं जाती। अगर आप मुझे इतन प्यार करते हो तो मैं भी तो आपको बहुत प्यार करती रही  हुंगी।  फिर कैसे आपसे दूर जा सकती थी?? वह तो मेरी मेमोरी लॉस हो गई थी तो मुझे कुछ भी याद नहीं था इसलिए शायद आपसे दूर चली गई थी। पर जाने अनजाने आपको तकलीफ दी  उसके लिए प्लीज माफ कर दीजिए।" माही ने कहा तो अक्षत ने उसके चेहरे को अपनी हथेलियां के बीच  थाम  लिया। 

"माफ़ी मत मांगो बस तुम सिर्फ वादा करो कि मेरे साथ रहोगी...मेरे पास रहोगी..!" अक्षत ने कहा तो माही ने  हाँ में गर्दन हिला  दी।

अक्षत ने  हौले  से उसके माथे पर अपने होंठ रख दिए और माही की आंखें खुद  ब  खुद बंद हो गई।

****

उधर घर से निकलते ही थोड़ी  दूर जाकर  ईशान  ने गाड़ी रोकी और  वीना की तरफ देखा 

"थैंक यू  वीना  मेरा साथ देने के लिए।"

" इट्स ओके सर..!! पर प्लीज जल्दी ही मैटर सॉर्ट आउट कर लीजिएगा। मैं सच में इस मसले में नहीं फंसना चाहती। आपको  तो पता ही है  मैं ऑलरेडी इंगेज्ड हूं। वह तो आपने कहा इसलिए मैंने आपकी फैमिली के सामने आकर आपका साथ दिया।" वीना  बोली। 

"इट्स ओके मैं भी तुमसे शादी करने के लिए सीरियस नहीं हूं..!! बस जिसने  जितना दर्द दिया है उस  दर्द का थोड़ा सा एहसास करना चाहता हूं।"  ईशान ने   कुछ सोचते हुए कहा। 

"वैसे सर एक बात कहूं बुरा मत  मानियेगा।"वीना   बोली तो ईशान ने  उसकी तरफ देखा। 

"मेरी औकात नहीं है आपसे कुछ भी कहने की..!! पर फिर भी सिर्फ आपसे इतना ही कहना चाहूंगी कि प्यार में बदले की भावना नहीं होनी चाहिए। मैं मानती हूं  आपने तकलीफ सही। शालिनी मैडम ने आपके साथ ठीक नहीं किया पर उनकी मजबूरी को समझने की कोशिश कीजिए ना कि उन्हें वही दर्द  लौटने की जो कि उनके कारण आपको हुआ। और आपको अभी तो पूरी बात पता भी नहीं है। कई बार इंसान मजबूर हो जाता है हालातो के आगे और वह जो नहीं करना चाहता  वह भी कर जाता है। और जब आप दोनों का रिश्ता इतना ही  गहरा रहा  है तो आपसे दूर रहकर  खुश  तो वह भी नहीं रही होगी ना.? विना बोली। 

ईशान  ने कोई जवाब नहीं दिया। 

"चलती हूं सर..!!" वीना ने कहा और गाड़ी का दरवाजा खोलकर तुरंत बाहर निकल गई। 

ईशान  उसे  जाते देखता रहा और फिर गाड़ी ऐसे ही सुनसान सड़क पर मोड़ दी। 

एक जगह जाकर गाड़ी रोकी और आंखें बंद करके स्टेरिंग से सिर  टीका लिया। 

आंखों के आगे  शालू  की  भरी हुई आंखें और दुखी चेहरा आ गया। और कानों में  गूंज उठे उसके कहे शब्द..!!

"कंग्रॅजुलेशन ईशान  चतुर्वेदी जी..!! उम्मीद करती हूं कि इस रिश्ते में आपको धोखा और बेवफाई नहीं मिलेगी, और आप हमेशा खुश रहेंगे।" 

ईशान  की आंखों में नमी आ गई।  


"जानता हूं बेवफाई तुमने भी नहीं की है और धोखा भी नहीं किया है, और यह भी समझता हूं कि तुम मजबूर रही होगी। पर फिर भी यही एक बात जो मुझे तकलीफ देती है कि क्यों तुमने मुझे एक बार भी नहीं बताया? क्यों तुमने मुझे इस लायक नहीं समझा कि मैं तुम्हारा दर्द बांट सकता हूं..?? मैं तुम्हारा साथ दे सकता हूं ? क्यों तुमने हमारे रिश्ते के अंदर  ये  अविश्वास लाया  क्यों मुझ पर और  हमारे रिश्ते पर विश्वास नहीं किया? मुझ पर विश्वास नहीं किया? "  ईशान खुद से ही बोला। 

"जानता हूं कि तुम्हें तकलीफ दी है मैंने और तुम्हें तकलीफ देकर खुश  मैं  भी नहीं हूं। पर न जाने क्यों दिल को पहले भी सुकून नहीं था और अभी भी सुकून नहीं है।"  ईशान ने कहा और फिर गाड़ी वापस घर की तरफ मोड़ दी। 

शाम के समय सब लोग  हॉल  में बैठे हुए थे। 

"चतुर्वेदी जी अब इजाजत  चाहेंगे हम लोग। अब हमारे घर जाते हैं हम। बाकी बेटी के  शादी के जो भी प्रोग्राम होंगे उनमें हम लोग आते रहेंगे।" अबीर राठौर बोले तो अक्षत ने उनकी तरफ देखा। 

"अंकल आप और मालिनी आंटी बेशक चले जाइए पर मैं चाहता हूं कि  माही  यहां पर रुके। वैसे भी हम दोनों का रिश्ता  तय है  और मेरी बहन की शादी है तो माही का यहां रहना तो बनता ही है।"अक्षत ने कहा तो अबीर ने  माही की तरफ देखा। 

" माही बेटा क्या तुम यहां रुकना चाहती हो? मतलब कंफर्टेबल हो?" अबीर  बोले।

इससे पहले की माही कोई जवाब देती  अक्षत दोबारा बोला। 

"अगर यह कंफर्टेबल नहीं है तो आप शालू को भी यहां छोड़ दीजिए।  शालू  इसका बेहतर तरीके से ख्याल रखेगी। एक बार मनु की शादी हो जाएगी उसके बाद  इन दोनों को आप ले  जाइयेगा मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी   उसके बाद फिर मैं माही को हमारी शादी होने के बाद यहां पर रोकूंगा पर अभी उसे यहां रहने दीजिए, ताकि वह हम सबको अच्छे से समझ सके और साथ ही साथ मानसी को भी अच्छा लगेगा माही और शालू अगर यहां  रुकेंगे  तो।" अक्षत ने कहा  और माही  को  धीमे   से शालू की तरफ देख  इशारा कर दिया। 

"जी पापा..!! जज साहब  ठीक कह रहे हैं। अगर शालू दीदी यहां रूकती है तो मुझे रुकने में कोई प्रॉब्लम नहीं है। और सच कहूं ना तो मेरा भी मन है कि मैं मनु की शादी के सारे प्रोग्राम एंजॉय करूं।  देखूं समझूँ। वैसे भी मुझे कुछ याद नहीं है इसी बहाने काफी कुछ चीजे समझ पाऊंगी मैं।" माही ने कहा और शालू की तरफ देखा। 

"शालू दीदी आप रुकोगे ना मेरे साथ प्लीज?"  माही ने  कहा  तो शालू  ने अबीर  की तरफ देखा और फिर  हाँ मे गर्दन हिला  दी। 

"ठीक है कोई प्रॉब्लम नहीं है..!!तुम दोनों यहां आराम से रहो। शालू तुम अपना और  माही  का ख्याल रखना। और अक्षत तुम  प्लीज  इन दोनों का ख्याल रखना। तुम्हारे कहने पर ही इन लोगों को यहां छोड़ रहा हूं।" अबीर  ने कहा और उसके बाद अबीर और  मालिनी अपने घर निकल गए। 

वह जानते थे कि माही को बिना अक्षत की इजाजत के ले जाने का उनका अधिकार नहीं है। वह अक्षत की वाइफ थी और यहां  अक्षत जो बोलता वही होना था। तो उन्होंने भी इंकार नहीं किया  और शायद वह भी समझ रहे थे कि अक्षत माही  शालू और  ईशान को भी इस समय और साथ की जरूरत थी। 

"आपने ठीक किया जो उन दोनों को वहां छोड़ दिया..!! इसी बहाने माही और अक्षत का रिश्ता भी मजबूत होगा और शायद  ईशान  भी शालू  को  समझे और उन दोनों के बीच भी सब ठीक हो जाए।" मालिनी बोली


" देखते हैं क्या होता है..!! बाकी बस दोनों बच्चियों को खुश देखना चाहता हूँ।"

" जी..!! और अब सब सही हो जायेगा। "

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव