साथिया - 93 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 93

अक्षत गेस्ट रूम में अपने बेड पर लेटा छत को एक तक देख रहा था। आंखों के आगे कभी सांझ  का  पुराना चेहरा तो कभी सांझ  का आज का चेहरा यानी कि माही का चेहरा घूम रहा था और आंखें रह रहकर भर आ रही थी। 


"यह बात सच है कि तुमसे दिल का रिश्ता है..! बहुत गहरा रिश्ता है पर  कहते हैं ना कोई भी रिश्ता जुड़ता है तो उसकी शुरुआत इंसान  के चेहरे से होती है।  तुम्हारी उस भोली भाली सांवली सूरत को दिल में न जाने कितने सालों तक बसाया रखा था तब जाकर तुमसे अपनी मोहब्बत का इजहार कर पाया था। आज वही चेहरा दूर हो गया है। तकलीफ बहुत हुई मुझे  तुम्हें नए रूप में देखकर। पर यह भी सच है कि तुमसे प्यार बेशुमार किया है। रूह से किया है, दिल के एहसासों से किया है। इसलिए इस बात की बहुत खुशी है कि तुम हो। तुम मुझे वापस मिल गई हो। भले ही एक नए रूप में पर तुम मुझे वापस मिल गई यह मेरे लिए सबसे ज्यादा जरूरी  और सबसे बड़ी बात है। मैं जानता हूं जिस दिन तुम्हें सब कुछ याद आएगा उस  दिन शायद मुझसे भी ज्यादा तकलीफ तुम्हें होगी अपने इस नए चेहरे और नए रंग रूप को देखकर। पर मैं हूं तुम्हारे साथ। तुम्हें संभाल लूंगा और जल्दी ही सब कुछ सही कर दूंगा।" अक्षत खुद से बोला और अपनी आँखे साफ की।

"पर आज तुम्हारी आंखों के खालीपन और उनमें उठने  वाले  सवालों ने बहुत कुछ कह दिया। 

और जानता हूं मैं  और साथ ही समझ गया हूं  की अभी इम्तिहान और बाकी है। जानता हूं कि क्या सवाल आ रहे होंगे तुम्हारे दिल में..?? यही ना कि अगर हमारे बीच कोई रिश्ता था तो मैं अब तक कहां था..?? क्यों नहीं आया तुम्हारे पास? क्यों नहीं मिला तुमसे? 
जानता हूं इन सवालों के जवाब नहीं है आज मेरे पास और मैं अगर कुछ कहूंगा अभी तो तुम विश्वास नहीं करोगी। पर मेरी तड़प का तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकती। किसी को भूल जाना बहुत आसान होता है क्योंकि  यादों  से आप दूर हो जाते हो पर किसी को हर पल याद कर उसके लिए तड़पना बहुत मुश्किल होता है। जो कि मैं तड़पा हूं तुम्हारे लिए, हर एक पल..!! जानता हूं तुमने बहुत तकलीफें  सही पर जिस दिन से तुम सब कुछ भूली शायद तुम्हारी तकलीफे  भी खत्म हो गई। क्योंकि तुम्हारे  दिल से ना सिर्फ  बुरी यादें गई बल्कि हमारे अच्छे और खूबसूरत लम्हें भी गए। पर मैं एक भी लम्हा नहीं भूला। एक पल नहीं भूला जो हमने साथ बिताए। 

एक-एक पल तड़पा हूं तुम्हें पाने के लिए, बेचैन रहा हूं तुम्हें दोबारा देखने के लिए ,पर  मेरी बेचैनी का एहसास नहीं होगा तुम्हे  और मैं विश्वास दिला भी नहीं पाऊंगा इतनी आसानी से।  जानता हूं तकलीफ इस समय तुम्हारे दिल में भी हद से ज्यादा होगी क्योंकि जिस तरीके का 
तुम्हारा आज का व्यवहार था और तुम्हारी आंखों में जो सवाल थे मैं बहुत अच्छे से समझ रहा हूं। पर सांझ  थोड़ा सा समय दो मुझे।  और मैं सब कुछ सही करने की पूरी कोशिश करूंगा।" अक्षत ने खुद से ही कहा और फिर आंखें बंद कर ली। 

बंद आंखों के आगे कुछ पल जो साँझ  के साथ बीते  थे वह गुजरने लगे और चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आने  लगी। 

उधर शालू अपने कमरे में आई तो देखा माही ने खुद को ब्लैंकेट से कवर  कर रखा है और लेटी हुई है। 

"क्या हुआ  माही..?? तबीयत ठीक नहीं है क्या? इस समय कैसे  लेटी हो?" शालू  ने आकर उसके सिर पर हाथ रखा  तो माही  ने आंखें खोलकर देखा। 

उसकी आंखें लाल हो रही थी। 

"क्या तुम रोई हो?" शालू ने उसके गाल से हाथ लगाकर कहा। 

माही  उठ बैठी और एकदम से शालू के गले लग गई। 

" शालू दी  वह सब क्यों हुआ?? क्यों हुआ मेरा एक्सीडेंट? क्यों भूल गई मैं सब कुछ अब ऐसा लगता है जैसे कि कुछ भी अपना नहीं है।  किसी पर भी विश्वास नहीं होता।" माही ने दुखी होकर कहा। 

"किस पर विश्वास नहीं होता..?  किसकी बात कर रही हो तुम?" शालू ने  उसके छोटे-छोटे बालों को सहला कर पूछा। 

"वही जो आज आए हैं ना...!! वह जज साहब..!! आप कह रही हो कि उनके साथ मेरा रिश्ता  था और मुझे भी ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं उन्हें बहुत पहले से जानती हूं। उनके साथ बिल्कुल भी मैं अनकंफरटेबल नहीं हुई शालू दी..!! पर अगर ऐसा कोई हम दोनों के बीच रिश्ता था तो वह इतने दिनों तक क्यों नहीं आए..?? क्या इसलिए क्योंकि मेरा एक्सीडेंट हो गया था और  उन्हें लगता होगा कि मैं अब उनके लायक नहीं रही। मतलब मेरी शक्लसूरत बिगड़ गई थी। आपको तो पता ही है शरीर पर तो अभी भी  निशान बाकी हैं।" माही ने अपने मन की बात  शालू से कही। 


"माही  इतनी जल्दी  जजमेंटल  न  हो। किसी को बिना समझे जज नही करते।" 

" पर मैं विश्वास कैसे कर लुं शालू दी??" 

"मैं तुमसे यह बिल्कुल भी नहीं कह रही कि तुम सिर्फ मेरी बात पर विश्वास करो। या मेरे हिसाब से चलो। तुम अपने दिल की सुनो माही। अपने एहसासों को समझो। अपनी फिलिंग्स पर विश्वास करो, और तुम्हें समझ में सब कुछ आ जाएगा। मैं जानती हूं कि आज तुम्हें भले याद नहीं है और तुम्हें तकलीफ है। पर हो सकता है याद आने के बाद भी तुम्हें कुछ तकलीफें हो  और वह तकलीफ शायद इस तकलीफ से ज्यादा हो। पर तुम्हें अब स्ट्रांग  बनना होगा। शरीर से भी और मन से भी। और मैं जानती हूं कि मेरी बहन बहुत स्ट्रॉन्ग है।" शालू   ने समझाया


माही बस उसकी बात सुनती रही।

"और रही बात अक्षत भाई की तो तुम्हारा दिल क्या कहता है वह ज्यादा जरूरी है..!! हो सकता है कि कुछ कारण रहा हो जिस वजह से वह नहीं आ पाए हो। वह कारण भी तुम्हारे सामने आ जाएगा धीरे-धीरे। पर अभी तुम सिर्फ अपने दिल की सुनो।  मैं यह नहीं कह रही हूं कि मेरे कहने पर या किसी के कहने पर विश्वास कर लो। पर अगर तुम्हारे दिल ने  किसी को महसूस करने की कोशिश की है, किसी इंसान के साथ तुम अनकंफरटेबल नहीं हो तो जाहिर सी बात है कि  तुम्हारा उसके साथ रिश्ता अच्छा ही रहा होगा ना..??" शालू  ने कहा। 

माही  ने कंफ्यूज हो  उसकी तरफ देखा। 


"लेकिन..??" माही  ने कहना चाहा तो शालू  ने उसके गाल से हाथ लगाया। 

"बहुत चीजे बदली है माही..!!  दो साल पहले भी और इन  दो  सालों में भी। तुम्हें अभी कुछ भी याद नहीं है और हम अभी तुम्हें कुछ भी बता नहीं सकते। तुम्हारे दिमाग को धीरे-धीरे सब चीज़ें याद करनी होगी।" 

"और अगर याद नहीं आता तो..??" माही के सवाल जारी थे।

' अगर याद नही आता  तो जैसा कि अब तक मैंने और पापा ने तुम्हें बताया है, हम नई  यादें बनाएंगे। पहले से भी खूबसूरत यादें और यही बात तुम्हारे और अक्षत भाई के लिए भी कह रही हूं। अगर तुम्हें उनके साथ की पुरानी यादें नहीं याद तो कोई बात नहीं। तुम्हें ईश्वर ने दोबारा मौका दिया है नई  यादें बनाने का..!! उन्हें समझने  का उन्हें जानने का और अगर तुम दिल से कोशिश करोगी तो समझ जाओगी।" शालू बोली पर सांझ खामोश रही। 

"और रही बात तुम्हारे मन में जो भी सवाल आ रहे हैं जो भी भ्रम आ रहे हैं उन सबकी तो  मुझे पूरा विश्वास है कि अक्षत भाई जल्दी ही दूर कर देंगे हर कंफ्यूजन को। पर उसके लिए तुम्हें एक कदम तो बढ़ना होगा   थोड़ा तो साथ देना होगा, थोड़ा तो विश्वास करना होगा ना.??" शालू ने कहा  तो माही ने गर्दन हिला दी। 

"मैं कोशिश करूंगी शालू दी...!! पर शायद अभी इतना आसान नहीं होगा मेरे लिए।" 


" कोई बात नहीं कोशिश करना हमारे हाथ में है और बाकी सब भगवान की मर्जी..!! और एक दूसरे के साथ दिलों के बंधन  ऐसे  ही होते हैं।"  शालू ने कहा। 

"दिलों के बंधन? " माही ने उसकी तरफ छोटी आंखें करके देखा। 

"दिलों के बंधन बहुत मजबूत होते हैं माही और तुम्हें यह बात बहुत  जल्द  समझ में आ जाएगी कि सिर्फ मेरे कहने से नहीं, अक्षत  भाई  के साथ तुम्हारा रिश्ता बहुत मजबूत था। बहुत  गहरा  था और यह तुम्हारा दिल जल्दी ही स्वीकार कर लेगा। क्योंकि भले तुम्हारे दिमाग से उनकी यादें मिट गई है पर दिल से उनके लिए एहसास नहीं गए हैं। और ना ही  दिलों के बंधन कमजोर हुए हैं।" शालू  ने माही  को समझाया। 

माही खामोश रही। 

"चलो अब तैयारी कर लो..!! तुम भी मेरी हेल्प करो पैकिंग करनी है।  कल की फ्लाइट से हम इंडिया वापस जा रहे हैं।" शालू  ने कहा  तो माही  के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। 

"बाकी का कुछ मुझे नहीं पता पर इंडिया जाने का मेरा वाकई में बहुत दिल है..!! खासकर ईशान  जीजू से मिलने का।"माही ने  कहा तो शालू  के चेहरे पर एक फीकी  मुस्कुराहट आ गई और दोनों पैकिंग  करने लगी। 

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव



क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव