साथिया - 92 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

साथिया - 92

उधर माही अपने कमरे में आई और उसने दरवाजा बंद कर लिया। दिल की धड़कनें  बेकाबू हुए  जा रही थी और एक अजीब से एहसास ने उसे घेरा हुआ था। अक्षत को देखकर उसे इतना अजीब क्यों लग रहा था वह समझ नहीं पा रही थी। हालांकि उसका बहुत ज्यादा लोगों से मिलना जुलना और बातचीत नहीं थी। उसकी जिंदगी  अबीर  मालिनी शालू और घर के दो चार  सर्वेंट  और उसके डॉक्टर तक ही सीमित थी। 
कई बार अनजान और अजनबी लोगों को देखकर वह घबरा जाती थी पर अक्षत को देखकर उसे ऐसी कोई घबराहट और बेचैनी नहीं हुई जैसे उसने किसी अजनबी को देख लिया हो। उल्टा अक्षत के साथ उसने नॉर्मल बात की। वह कंफर्टेबल थी  और यही बात उसे और बेचैन कर रही थी। 
उस पर शालू का यह कहना कि उसका  अक्षत  का रिश्ता तय था माही के लिए आसान नहीं था एक्सेप्ट करना। 

उसने आंखें बंद कर ली और बिस्तर पर बैठ गई। 

बंद आंखों के सामने फिर से  जो धुंधला सा चेहरा दिखाई देता था वह फिर से उभर कर आ गया। वही  हँसता  मुस्कुराता  खूबसूरत सा आकर्षक चेहरा। 


"जज साहब..!!" माही के मुंह से निकला और उसने आंखें खोल दी। 

"अगर जो शालू दीदी ने कहा वह सच है तो फिर आप इतने दिनों तक कहां थे  जज साहब? क्यों नहीं आए मेरे पास?  क्या हमारा रिश्ता जबरदस्ती किया गया था? क्या  हमारे बीच में शालू दीदी और ईशान जीजा जी जैसा कुछ भी नहीं था? इन दोनों का प्यार देखा है मैंने..!! शालू दीदी कितनी बेचैन है उनसे मिलने के लिए..! मैं भूल गई तो कैसे बैचैन होती पर आप क्या बैचैन नही  थे मुझ से मिलने को? क्यों नही आये आप कभी ?  शालू दी  मेरी तबीयत और मेरे एक्सीडेंट के कारण नहीं जा  पाई पर वो ईशान जीजू को याद करती है। तड़पती है उनके  लिए तो मुझे पूरा विश्वास है कि  ईशान जीजू  भी उनके लिए ऐसे ही तड़प रहे होंगे। 

फिर यही तड़प आपके दिल में क्यों नहीं थी मेरे लिए? आप क्यों नहीं आए एक बार भी मुझसे मिलने? मुझे देखने, मुझसे बात करने ? क्या आपको मेरे लिए तड़प नहीं थी और अगर नहीं थी तो फिर  अब  क्यों आए हैं? या आपके दिल में मेरे लिए प्यार नहीं था तो अब क्यों रिश्ते की  बात?? 

माही खुद से ही सवाल और जवाब कर रही थी। 

"क्यों आपको देखकर अजीब सा एहसास होता है? मुझे क्यों ऐसा लगता है जैसे आपको बहुत पहले से जानती हूं। बहुत अच्छे से जानती हूं। अगर इतना ही अच्छे से हम जानते  थे एक दूसरे को फिर आज अनजान क्यों है..?? कई सारे सवाल है दिमाग में और जब तक मुझे उन सवालों के जवाब नहीं मिल जाते मैं नहीं एक्सेप्ट कर सकती इस बात को कि आपका मेरे साथ कोई रिश्ता था  या  रिश्ता है। 

जिस दिन मुझे इन सवालों के जवाब मिल जाएंगे और मेरा दिल एक्सेप्ट कर लेगा कि हां  आपका मेरे साथ रिश्ता था, कोई भी रिश्ता उसके बाद ही होगा तब तक बिल्कुल भी नहीं होगा। 

क्यों मेरी धड़कनें   आपको देखते ही इतनी बेचैन हो रही है। ऐसा लगता है जैसे कि मेरा दिल आपको बहुत पहले से जानता पहचानता है। 

पापा शालू दीदी और मम्मी के अलावा अगर कोई  अलग इंसान  मुझे गलती से हाथ लगा दे तो मेरा पूरा शरीर कांप जाता है। एक दर्द की लहर मेरे अंदर उठती है पर फिर क्यों आपके मेरे इस तरीके से हाथ पकड़ने के बाद भी मेरे शरीर में कोई रिएक्शन नहीं दिया। क्यों मैंने आपके स्पर्श को इतना सहज लिया..?? क्या आपने पहले भी मुझे इस तरीके से छुआ है?" माही ने खुद से ही सवाल किया।

"क्यों आपका साथ  मुझे असहज नहीं किया.? मैं क्यों कंफर्टेबल रही आपके साथ समझ नहीं आता। पर जो भी  हो। मेरी यादें वापस आ जाएं या या मुझे आप पर विश्वास हो जाए तभी मैं और किसी बात पर विश्वास करूंगी। इस तरीके से बिल्कुल भी नहीं।


" भले  सब कुछ भूल चुकी  हूँ। कुछ भी याद नहीं है। हां कुछ एहसास अभी भी दिल में बकाया है..?! कुछ यादें  धुंधली सी अक्सर आ जाती है। पर  उन यादों में आपका नाम तो है पर आपके साथ बीते  कोई भी पल का जिकृ  नहीं।  फिर कैसे विश्वास कर लूं मैं कि आपका और मेरा कोई रिश्ता था जज साहब..??" माही ने खुद से ही कहा और फिर आंखें खोल  दी  और आईने के सामने आकर खड़ी हो गई। 

"शायद इसलिए कि वह एक्सीडेंट इतना बड़ा था जिसने सब कुछ बिखरा  दिया। मेरा शरीर खराब हुआ और चेहरा भी बिगड़ा था और शायद इसीलिए आपने मुझसे कोई भी रिश्ता ना रखने का सोच लिया हो..?? आखिर हर किसी को परफेक्ट और खूबसूरत लाइफ  पार्टनर की चाह होती है और  उस एक्सीडेंट के बाद शायद आपको लगा होगा  की अब मै खूबसूरत नही रहूँगी।" माही ने धीमे से अपनी शर्ट को कंधे से  खिसका कर वहां पर बने गहरे घाव के सूख जाने के स्कार  टिशु देखे।


"यह निशान और इस जैसे कई गहरे निशान इस जिस्म पर अब  पहचान है मेरी और शायद इसी वजह से आप मुझसे दूर हुए होंगे। चेहरा तो सही कर दिया है कॉस्मेटिक सर्जन ने पर  शरीर के  स्कार  अभी  भी है। कुछ सूखे तो  कुछ अब भी ब्लीड   करते है।

क्या यह सब जानते हैं आप?? और अगर जानते हैं तो फिर क्यों आए हैं मुझसे रिश्ता जोड़ने के लिए जबकि एक बार मेरे साथ वह हादसा होने पर आप रिश्ता तोड़ चुके थे। भूल चुके थे मुझे फिर अब रिश्ता जोड़ने का क्या मतलब है? " माही ना जाने क्या-क्या सोच रही थी और उसकी आंखें भर आई  और सर में दर्द होने लगा। उसने  खुद को ब्लैंकेट से  कवर कर किया और बिस्तर पर लेट कर आंखें बंद ली। 



"आज आपका आना दिल मे एक हलचल बेचैनी और  कई सवाल ले आया है जज साहब। अब जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिल जाते दिल बेचैन रहेगा और इन सवालों के जवाब न जाने मुझे कब मिलेंगे.? मिलेंगे भी या नहीं मिलेंगे पता नहीं? पर आपको जानना और समझना चाहती हूं मैं और साथ ही साथ आपसे पूछना भी चाहती हूं कि अगर कोई रिश्ता हमारे बीच था तो फिर क्यों भुला दिया आपने मुझे..?? क्यों नहीं एक बार भी खबर ली मेरी?? क्यों नहीं एक बार भी मिलने आए मुझसे?? क्या हमारा रिश्ता इतना गहरा नहीं था जितना शालू दी और ईशान जीजू  का है? या  क्या था हमारे रिश्ते में सब मुझे जानना है। और कई सारे सवालों के जवाब भी और जब तक यह सब चीजें  और  बातें  मुझे सेटिस्फाई नहीं कर देती तब तक मैं नहीं मानती किसी भी रिश्ते को। बिल्कुल भी नहीं मानती।" माही ने खुद से ही कहा और आंखें भींच  ली।


क्रमशः



डॉ. शैलजा श्रीवास्तव