नंबर ५४२ Piyush Goel द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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नंबर ५४२

एक क़स्बे में एक धार्मिक धनी सेठ रहते थे, सरल स्वभाव,मृदुभाषी, समाज में नाम, ३ बेटों के पिता, सुबह ४ बजे उठना पूजा पाठ कर दुकान जाना. सेठ जी का ये रोज़ाना का नियम था.समय की अपनी एक रफ़्तार हैं जिसको आज तक कोई नहीं रोक पाया, सेठ ने अपने बड़े बेटे की शादी करते ही एक दुकान और मकान दे दिया,दूसरे बेटे की भी शादी करते ही उसको भी दुकान और एक नया मकान दे दिया, सेठ जी का व्यापार भी बहुत बढ़ गया,सेठ ने सबसे छोटे बेटे की शादी के बाद अपने साथ व्यापार में लगा लिया और छोटा बेटा अपने माँ बाप के साथ ही रहने लगा.सेठ सुबह को दुकान जाते समय रोज़ाना अपने बड़े बेटे के घर होकर जाते और शाम को अपने बीच वाले बेटे से घर पर मिल कर घर आते.सेठ जी की उम्र भी हो रही थी, एक दिन सेठ जी ने अपने तीनों बेटों को अलग अलग समय पर बुलाया, बड़े बेटे को एक डिबिया दी, और नम आँखें करके बोले ये डिबिया मेरे जाने के बाद खोलना, ऐसा उन्होंने अपने दोनों बेटों के साथ भी किया.समय गुजरता रहा,कई मकान, व्यापार भी बढ़ता ही जा रहा था,कई गाड़िया और कई दुपहिया वाहन थे.एक दिन सेठ जी जैसे ही पूजा करके उठे ज़ोर से अपनी पत्नी को आवाज़ लगाई और एक दम से गिर गये, सेठ जी अब इस दुनिया में नहीं थे,शहर में सेठ का बहुत नाम था,आज बाज़ार बंद था,माहौल बड़ा ही ग़मगिन, लेकिन होनी को कौन टाल सकता हैं एक दिन तो सबको अपने समय पर जाना हैं.समय बीतता रहा,सब कुछ सामान्य हो गया, एक दिन अचानक रात को बड़े बेटे को याद आया पिता जी ने जो डिबिया दी थी उसको खोलकर देखा तो ५ नंबर लिखा था, बीच वाले भाई के पास ४ नंबर और सबसे छोटे भाई के पास २ नंबर,तीनों भाइयों ने इस बारे में बात की तो तीनों बड़े ही असमंजस में पता नहीं पिता जी क्या पहली दे गये हमें,एक दिन छोटे भाई का फ़ोन आया अपने बड़े भाई के पास भैया आपको पता हैं कुछ हमारी सभी गाड़ियों के नंबर ५४२ हैं,घर में सभी बड़े छोटो को पता चल गया नंबर ५४२ के बारे में, लेकिन अभी भी रहस्य था और सभी इस नंबर के बारे में सोचने लगे.एक दिन बड़ा बेटा शाम को अपनी माँ से मिलने आया और माँ को सब कुछ बताया, हाँ बेटा मुझे कुछ-कुछ याद  आ रहा हैं, जब तेरे बाप की शादी हुई थी बेटा हमारे हालात ज़्यादा अच्छे नहीं थे, कच्चा मकान था, दुकान भी पक्की नहीं थी. एक दिन तेरे पिता जी दुकान जा रहे थे एक साधु ने तेरे पिता जी को अपने पास बुलाया और कहा बेटा बहुत भूख लगी हैं, मुझे खाना खिलायेगा, तेरे पिता जी ने साधु को खाना खिलाया, और तेरे पिता जी को ये तीन डिबियाएँ दे गया,और कहा जब तेरे पहली संतान हो इसको ये वाली,दूसरी को ये वाली और तीसरे को ये वाली, हमनें खोल कर देखी तो ये नंबर ५४२ मिले और वो ही डिबियाएँ तुम्हारे पिता जी तुमको देकर गये हैं.बेटा उस दिन से तरक़्क़ी होती गई,और हमने इस बारे में किसी को बताया भी नहीं मुझे और तेरे पिता जी को पता था, और हाँ हमारे इस मकान में एक कोठरी भी हैं, जिसमें आज तक सिर्फ़ तेरे पिता जी ही जाया करते थे,मैं भी आज तक नहीं गई.बड़े भाई ने अपने दोनों भाइयों को भी बुला लिया और सारी कहानी बताई.एक दिन तीनों भाई अपनी माँ को उस कोठरी में ले गये, बड़ा भाई जैसे ही बोला मेरा नंबर ५ हैं एक ताला खुल गया, दूसरे ने जैसे ही ४ बोला दूसरा ताला खुल गया और जैसे ही तीसरे भाई ने २ बोला तीसरा ताला खुल गया.माँ व तीनों भाइयों की आँखें खुली की खुली रह गई और हाँ एक पर्ची भी लिखी मिली जिसमें लिखा था ज़रूरत से ज़्यादा फ़ायदा मत उठाना और ना ही किसी को बताना शहर में एक मंदिर बनवाना और रोज़ाना भंडारा करवाना, कभी भी कमी नहीं होगी.माँ व तीनों भाइयों की आँखों में आंसू थे, सबसे बड़ी बात पिता जी ने कभी महसूस भी नहीं होने दिया. एक-एक करके भाइयों ने नंबर बोले दरवाज़ा बंद नहीं हुआ, छोटा भाई बोला भैया एक साथ बोले ५४२ दरवाज़ा बंद हो गया.शहर में बहुत ही सुंदर मंदिर बनवाया गया, शहर में आज भी सेठ जी का नाम बड़ी ही इज्जत से लिया जाता हैं और भंडारा आज भी सुचारु रूप से चल रहा हैं.