औरत का कोई अधिकार नहीं ?? pooja द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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औरत का कोई अधिकार नहीं ??

• मैरिटल रेप यानी अपनी पत्नी के साथ बलात्कार कोई अपराध नहीं है।

• पति अगर अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक सेक्स यानी एनल सेक्स यानी गुदा मैथुन करे तो वो भी बलात्कार नहीं है।

एनल सेक्स या अप्राकृतिक सेक्स करने के लिए अगर पत्नी की सहमति न हो तो उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता।

• चूंकि वो पत्नी है तो पति को उसके साथ एनल सेक्स करने का कानूनी अधिकार हासिल है। इस मामले में पत्नी की सहमति महत्वहीन है।

ऊपर लिखी ये सारी बातें हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिली किसी किताब में नहीं लिखी हैं। न रोमन कानून की किताब में लिखी हैं, जब पिता और पति को अपनी बेटी और पत्नी की हत्या करने का कानूनी अधिकार हासिल था (अगर महिला एडल्टरी करे और इस कारण से मर्द की नाक कट जाए)।

ये बात मुहल्ले के किसी गंवार, गंजेड़ी इंसान ने यूं ही शराब पीकर भी नहीं बकी हैं।

ये बातें कही हैं हमारे ही देश के एक बहुत ही जिम्मेदार नागरिक ने... जिसके भरोसे हम सब खुद को  सुरक्षित समझते है..... जो न्याय के देवता बनते है.... इस देश के एक हाईकोर्ट के जज द्वारा यह बात कहीं गई थी।

केस ये था कि एक महिला ने अपने पति पर उसके साथ जबर्दस्ती गुदा मैथुन करने का आरोप लगाया था।

जज साहब ने कहा कि ये तो कोई अपराध ही नहीं है। महिला ने कहा कि मेरी सहमति नहीं है। इस पर जज साहब ने कहा कि तुम्हारी सहमति की जरूरत ही नहीं है। तुम पत्नी हो। पति को पत्नी के साथ कुछ भी करने का कानूनी अधिकार है।

जज साहब ने ठीक ऐसे सवाल-जवाब तो नहीं किया होगा। लेकिन उन्होंने जो कहा, उसके मायने ठीक-ठीक यही हैं।

अब इस बात को सुनकर, पढ़कर आप अपना सिर पीट सकते हैं। अपने सिर के बाल नोच सकते हैं, शोक मना सकते हैं या एक बार अपने सीने पर हाथ रखकर इस सच को स्वीकार कर सकते हैं कि यह मुल्क और इस मुल्क के मर्द अब भी औरतों को इंसान नहीं समझते।

जज साहब ने बस एक बात नहीं कही कि पत्नी प्लास्टिक की गुड़िया है। पति का जब मन चाहे, जैसे मन चाहे, उसे इस्तेमाल करे, करके फेंक दे, उसकी मर्जी। पति महान है।

चूंकि समाज ने मर्द को घोड़े पर बिठाकर, अग्नि के सात फेरे लगवाकर, समाज के 200 लोगों को शादी की दावत में बुलाकर, सिर पर सेहरा सजाकर उसे पति का दर्जा दे दिया है, इसलिए अब उसको अपनी पत्नी के साथ कुछ भी करने का विशेषाधिकार मिल गया है।


पत्नी को लगे कि कोर्ट-कानून उसके साथ है और अपने साथ हुए अन्याय के लिए वो कोर्ट का दरवाजा खटखटाए तो जज साहब अपने एसी कमरे में आराम फरमाते हुए फरमान सुनाते हैं कि ऐसा कोई अधिकार तो महिला को हासिल ही नहीं है। बशर्ते पति बनने के बाद मर्द को सारे अधिकार जरूर हासिल हो गए हैं।

आज दुनिया के 70 फीसदी देशों का रेप कानून यह भेद नहीं करता कि महिला के साथ रेप करने वाला पति है या कोई और मर्द। वो हर रेप को एक ही नजर से देखता है और कानून की नजर में यह अपराध है।

फ्रांस, इटली, न्यूजीलैंड और तुर्की में तो मैरिटल रेप को सामान्य रेप के मुकाबले ज्यादा हीनियस और खतरनाक अपराध माना गया है। इन देशों का रेप लॉ मैरिटल रेप को अलग से चिन्हित करता है। पोलैंड, रूस, नॉर्वे और जर्मनी जैसे देशों में हर रेप रेप है, चाहे शादी के अंदर हो या बाहर।

बाकी तमाम मामलों में दुनिया के विकसित, प्रगतिशील देशों से बराबरी करने और कई बार उनका भी गुरु बनने का दावा करने वाला हमारा महान देश मैरिटल रेप के मामले में उन देशों के बरक्स खड़ा है, जिनसे मामूली सी तुलना भर से गर्वित हिंदुस्तानियों को मियादी बुखार जकड़ लेता है।

पता है, दुनिया के किन देशों में शादी के अंदर मर्द को अपनी पत्नी के साथ कुछ भी करने की इजाजत है और उस पर बलात्कार का आरोप नहीं लग सकता। इन देशों के नाम सुनिए-

• ईरान

इराक

• बहरीन

• जमैका
• जॉर्डन

• सीरिया

• नाइजीरिया

सूडान

इथियोपिया

इन देशों में मैरिटल रेप अपराध नहीं है और हमारा प्यारा भारत मैरिटल रेप के मामले में इन्हीं देशों के बरक्स कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। विकसित देशों ने तो पतियों का सारा स्पेशल राइट छीन लिया, भारत में पति अब भी भगवान बनकर इतरा रहा है और औरतें प्लास्टिक की गुड़िया की तरह कभी इधर, कभी उधर फेंकी जा रही हैं।

दुनिया के सिर्फ 19 देशों के कानून में साफ शब्दों में
लिखा है कि 'मैरिटल रेप अपराध नहीं है।' 150 देशों में
अगर पति रेप करे तो सरकार उसे 7 साल से लेकर 20
साल तक के लिए सलाखों के पीछे डाल सकती है।
पूरी दुनिया में जब से इंसानों ने समाज में रहने के नियम-कानून बनाने तय किए, जब से न्यायालय, कोर्ट और जज आए, तब से लेकर बीसवीं सदी की शुरुआत तक हर एक कानून में एक बात बड़ी कॉमन थी। हर कानून ये मानता था कि पत्नी पति की संपत्ति है और पत्नी के साथ संभोग पति का कानूनी अधिकार है। यह किसी भी सूरत में रेप नहीं हो सकता। सत्रहवीं शताब्दी के अंग्रेज बैरिस्टर और जज सर मैथ्यू हेल अपनी किताब 'द हिस्ट्री ऑफ द प्ली ऑफ क्राउन' में लिखते हैं, "पति अपनी कानूनन विवाहित पत्नी के साथ बलात्कार का दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि विवाह के अनुबंध के साथ ही पत्नी संभोग की सहमति देती है, जिससे वह पीछे नहीं हट सकती."

लेकिन यहां सोचने वाली बात ये है कि आधुनिक युग में मध्ययुग से चले आ रहे गैरबराबरी की वकालत करने वाले बहुत से नृशंस और बर्बर कानूनों के खिलाफ आवाज उठी और उसे बदला गया। लेकिन मैरिटल रेप का कानून ऐसा है, जिसके लिए पूरी दुनिया में महिलाओं को काफी संघर्ष करना पड़ा।

और उसकी वजह ये नहीं थी कि देश, सरकार और मर्दों को रेप को रेप मानने से दिक्कत थी। उसकी वजह ये थी कि पितृसत्ता के अंदर शादी ही वो संस्था है, जिसके जरिए मर्द स्त्री की स्वायत्तता, अधिकार और उसके शरीर को कंट्रोल करते हैं। अगर वह संस्था ही सवालों के घेरे में आ जाए तो पैट्रीआर्की की बुनियाद हिल जाएगी। और इस बुनियाद के हिलने से हर किसी को डर लगता है।

तभी तो देखिए, मध्यवर्गीय मेल प्रिविलेज्ड मॉरैलिटी का उफान हमारे देश में। एक न्यायाधीश ने इतनी बड़ी बात कह दी और किसी को इस बात से फर्क नहीं पड़ रहा है। अखबारों के आखिरी पन्ने पर एक कॉलम की मामूली सी खबर छप गई। लोगों ने पोहा-जलेबी खाते हुए खबर पढ़ी और पढ़कर भूल गए।

पत्नियों ने भी पढ़कर अनपढ़ा ही कर दिया क्योंकि जन्नत की हकीकत से कौन वाकिफ नहीं है भला।

पहली बार अपने अंदर  की बात कह रही हूँ..... 
आशा करती हूँ आप सभी मेरा इस सफर में साथ देंगे.....
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धन्यवाद 🙏🙏