'मम्मी जी, आज इतनी सारी गाजरें क्यों मंगवाई हैं?'
'अरे बहु, निशा और नितिन दोनों को ही गाजर का हलवा बहुत पसंद है। सर्दियां शुरू होती नहीं कि इनकी फरमाइश शुरू हो जाती है।'
गाजर का हलवा तो माधवी को भी बहुत पसंद था लेकिन वो संकोचवश अपनी सासू मां पार्वती से बोल नहीं पाई। वैसे भी जब घर में हलवा बनेगा तो खाएंगे तो सभी, यही सोचकर माधवी ने गाजरों को धोकर कीसना शुरू कर दिया। सासू मां ने अपने हाथों से गाजर का हलवा बनाया। खुशबू इतनी अच्छी आ रही थी कि सब इंतजार कर रहे थे, कब हलवा बनकर
तैयार हो।
जैसे ही हलवा तैयार हुआ पार्वती ने भगवान को भोग लगाया। निशा और नितिन किसी छोटे बच्चे की तरह हलवे पर टूट पड़े। तभी सासू मां के फोन की घंटी बजी।
'अरे नितिन, तुम्हारी मनीषा दीदी और जीजू आ रहे हैं,' सासू मां ने चहकते हुए बड़ी बेटी के आने का समाचार सुनाया।
'चलो अच्छा है, अच्छे मौके पर आ रहे हैं। दामाद जी को भी गाजर का हलवा बहुत पसंद है।' पार्वती ने खुश होते हुए कहा।
सभी आ गए और टेबल पर खाना सज गया। माधवी सब को खाना परोस रही थी। सबने जी भरकर खाया और हलवे का डोंगा भी धीरे- धीरे ख़ाली होता गया। अंत में जब माधवी के खाने की बारी आई तो डोंगे में सिर्फ दो चम्मच हलवा ही बचा था। जब माधवी की मां हलवा बनाती थी तब सबसे पहले माधवी ही जी भरकरखाती थी, बाद में किसी का नंबर आता था। ये सोचते-सोचते माधवी का गला भर आया और वो दो चम्मच हलवा भी उसके गले से नीचे नहीं उतरा। वो बिना खाए हीं डाइनिंग टेबल से उठ गई। अगले महीने जब माधवी अपने मायके गई तो मां ने माधवी की भाभी से कहा, 'बहू, आज सौरभ से कह देना, आते समय बाजार से गाजर ले आए। माधवी आई है इसलिए कल उसका मनपसंद गाजर का हलवा बनाऊंगी।'
अगले दिन मां ने बड़े चाव से माधवी के लिए हलवा बनाया। मां ने सबसे पहले कटोरी भरकर माधवी की ओर बढ़ाया तो माधवी बोली, 'नहीं मां, पहले हलवा भाभी को दो।'
मां अवाक-सी माधवी का मुंह देखने लगी। 'लेकिन बेटा तुझे तो बहुत पसंद है ना मेरे हाथों का हलवा।'
'हां मां, मुझे पसंद है। लेकिन क्या आपने कभी भाभी से पूछा है कि उन्हें क्या पसंद है?' 'ये क्या बोल रही है तू बेटा, यदि उसे पसंद होता तो वो बोलती ना।'
'नहीं मां, आज मैंने खुद बहू बनकर जाना कि एक बहू से ना तो उसकी पसंद पूछी जाती है और ना ही वो अपनी पसंद बता पाती है। आप प्लीज पहले हलवा भाभी को ही दो क्योंकि वो भी शायद मेरी तरह ही अपनी पसंद-नापसंद हमें नहीं बता पाती होगी।'
'ठीक है बेटा, मैं तुम दोनों को ही पहले परोस देती हूं' कहकर मां ने दो कटोरियां भर दीं और अपनी बहू को आवाज लगाई, 'स्नेहा बहू, आजा बेटा तेरा हलवा ठंडा हो रहा है।'
आशा करती हूँ आपको कहानी पसंद आई होंगी... कृपया करके अपनी समीक्षा दर्ज करवाए और फॉलो करे....आपकी बहुत बहुत कृपया होंगी 🙏🙏🙏🙏धन्यवाद 🙏 पढ़तेरहिए और खुश रहिये ❤️🙏