लड़कियां बस प्यार ही देंगी, और लडके धोखा..... piku द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लड़कियां बस प्यार ही देंगी, और लडके धोखा.....

ऐसा नहीं कि मेरे घर में प्रेम करने की मनाही थी। लेकिन सही-गलत, नैतिक-अनैतिक के एक हजार नियम जरूर थे और वो सारे नियम लड़कियों के लिए थे।


जब मैं स्कूल पास कर कॉलेज जा रही थी तो एक दिन बाजार जाते हुए मां ने रास्ते में मुझे एक कहानी सुनाई। स्कूल में उनके साथ पढ़ाने वाली किसी लड़की की सहेली की कहानी। उस लड़की की अरेंज मैरिज तय हो गई थी और जिस लड़के से हुई थी, वो इलाहाबाद में रहकर कॉम्पिटिटिव परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था। दोनों फोन पर बात करते थे, मिलते-जुलते भी थे।


फिर हुआ ये कि शायद उनके बीच इंटीमेसी भी हो गई। लेकिन उसके बाद लड़के ने यह कहकर शादी तोड़ दी कि जब शादी के पहले तुम मेरे साथ इंटीमेट हो सकती हो तो किसी के भी साथ हो सकती हो।


पता नहीं इस कहानी में कितनी सच्चाई है, लेकिन मुझे ये कहानी सुनाने के पीछे एक खास मकसद था। मेरे लिए मॉरल ऑफ द स्टोरी ये थी कि शादी के पहले सेक्स कर लेने वाली लड़कियों का चरित्र शक के दायरे में होता है।


उस दिन मैं मां से पूछना चाहती थी कि किया तो दोनों ने था, फिर सिर्फ लड़की गलत कैसे थी। यही बात लड़की भी तो कह सकती थी लड़के के लिए।


लेकिन मैंने पूछा नहीं।


ये 25 साल पुरानी बात है। मैंने मां के सिखाए सबक तो नहीं सीखे, लेकिन अपने हिस्से की गलतियां जरूर कीं। वो इसलिए क्योंकि नैतिकता का पाठ पढ़ाने की बजाय आत्मसम्मान और बराबरी के जो सबक लड़कियों को सिखाए जाने चाहिए, वो मुझे नहीं सिखाए गए थे।


मुझे No बोलना नहीं सिखाया। मुझे बाउंड्री ड्रॉ करना नहीं सिखाया। मैंने अपनी मां समेत परिवार और आसपास की सारी महिलाओं को हमेशा दूसरों की बात मानते, उनके हिसाब से चलते देखा था। मैं यही देखकर बड़ी हुई थी कि औरतें हमेशा सिर्फ हामी में सिर हिलाती हैं। पुरुषों की आज्ञा का पालन करती हैं। सिर्फ हां बोलती हैं।


यही वो पैट्रीआर्कल ट्रेनिंग है, जो अंत में लड़कियों के लिए प्यार को भी एक ट्रेजडी में बदल देती है।


प्यार दुनिया का सबसे सुंदर एहसास है। न किसी किताब में पढ़ाया गया, न किसी ने सिखाया, लेकिन एक उम्र आती है, जब प्यार के आगे-पीछे कुछ दिखाई नहीं देता। ब्लेम द हॉर्मोन्स। प्रकृति ने हमें ऐसे ही डिजाइन किया है।


लेकिन इस प्यार में जितना सुख है, उससे कहीं ज्यादा दुख भी है। झूठ, धोखा, फरेब, बेइमानियां, जोर- जबर्दस्ती और कई बार अनवॉन्टेड प्रेग्नेंसीज जैसी तकलीफदेह कहानियां भी। जाहिरन लड़कियों के हिस्से दुख ज्यादा आतें हैं। कारण, एक तो उनका नैचुरल डिजाइन ऐसा है और दूसरे समाज की सारी बंदिशें सिर्फ लड़कियों के लिए हैं।


इस वक्त जब सारी दुनिया वैलेंटाइन डे की खुमारी में डूबी है, मैं लड़कियों को मुहब्बत के रेड फ्लैग्स याद दिलाने आई हूं। महब्बत के दख और दश्वारियां।


सोचकर देखिए, जैसे हम बच्चों को उंगली पकड़कर चलना सिखाते हैं, अक्षर-अक्षर कैसे लिखना हैं, सुबह उठकर ब्रश कैसे करना, जूते के फीते कैसे बांधना, सबकुछ सिखाते हैं। वैसे ही क्या प्यार, इंटीमेसी, सेक्स- इन चीजों के बारे में भी अपने बच्चों को सिखाने-बताने, उनसे बात करने की जरूरत नहीं है।

और जब किसी बड़ी होती लड़की से इन चीजों पर बात करनी हो तो कैसे करनी चाहिए। मेरी कई सहेलियां जवान हो रही बेटियों की माएं हैं। उन्हें फिक्र रहती है इस बात की कि बाहर की दुनिया लड़कियों के लिए कितनी आक्रामक, कितनी डरावनी है। सड़क पर कोई छेड़ देगा, कोई फब्तियां कसेगा। बेटी अकेली घर से बाहर है, इस ख्याल भर से उनकी सांस हलक में अटकी रहती है। वो फिक्र करती हैं कि बाहर की दुनिया के खतरों से उसे कैसे आगाह करें, कैसे खुद को बचाना सिखाएं। ये सारी फिक्रे वाजिब हैं। लेकिन एक बात और है, जिसके बारे में कोई बात नहीं करता और जो शायद सबसे जरूरी बात है।

बाहर की दुनिया खतरनाक तो है, लेकिन क्या वो सबसे ज्यादा खतरनाक है? अपनी आंखें बंद करिए और याद करिए, जीवन के सबसे तकलीफदेह क्षण, सबसे गहरे घाव, सबसे डरावना डर। क्या उसमें से कोई क्षण ऐसा है, जिसका संबंध बाहर की दुनिया से हो। जो कहीं सड़क पर घटा हो। कहीं किसी बस में, टैंपो में, सुनसान रास्ते पर।


जवाब है- नहीं।


सबसे गहरे घाव हमें सबसे भरोसे के रिश्तों में मिले। सबसे ज्यादा डर वहीं लगा, जहां सबसे ज्यादा विश्वास था। सबसे गहरी चोट वहीं पहुंची, जो जगह हमें सबसे ज्यादा सुरक्षित लगती थी।बात इतनी सी है कि सड़कें या बाहर की दुनिया लड़कियों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक नहीं है। सबसे खतरनाक है सबसे इंटीमेट स्पेस। सबसे करीबी रिश्ते, सबसे ज्यादा भरोसे के लोग, सबसे खतरनाक है प्रेम, अगर प्रेम के रेड फ्लैग न पता हों, बाउंड्री न पता हो।बाहर की दुनिया से मिले डर और घाव गहरे नहीं होते। हम लड़कियां बड़े होने के साथ उस बाहरी स्पेस में खुद को सुरक्षित रखने, बचाने का एक मैकेनिज्म सीख लेती हैं। जो नहीं सीख पातीं, वो है सबसे करीबी रिश्तों में, सबसे इंटीमेट स्पेस में मैनिपुलेशन, गैसलाइटिंग और मेन्सप्लेनिंग से खुद को बचाना। घर के अंदर अपनी खुदमुख्तारी, अपना सम्मान सुरक्षित रखना।


इसलिए हमें बड़ी होती बेटी से सिर्फ इस बारे में बात नहीं करनी चाहिए कि सड़क पर किसी ने छेड़ा तो वो क्या करेगी। हमें उससे ये बात करनी चाहिए कि बॉयफ्रेंड के साथ उसके रिश्ते का ब्लूप्रिंट क्या है? उसकी बाउंड्रीज क्या हैं? मैनिपुलेशन क्या है? गैसलाइटिंग क्या है?क्या जो वो महसूस कर रही है, कह रही है, वो उसका अपना है या उसकी सोच को मैनिपुलेट किया जा रहा है। वॉयलेंस क्या है? सेक्स क्या है? किसी के साथ रिश्ते में हों तो हमें कौन सी बातों पर बात करनी चाहिए। क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए। किस तरह के व्यवहार पर हमारा एंटीना एक्टिव हो जाना चाहिए। क्या रेड फ्लैग है। कौन सी चीजें स्वीकार किए जाने के दायरे में आती हैं और कौन सी चीजें कभी स्वीकार नहीं करनी चाहिए।


अगर आपकी मर्जी के खिलाफ आपको कुछ करने को कहा जा रहा है तो वो ठीक है या नहीं। चाहे वो मामूली सा किस ही क्यों न हो और करने वाला सबसे ट्रस्टेड बॉयफ्रेंड।

मेरी 18 साल की भतीजी ने एक बार मुझसे पूछा कि बुआ, मेरा बॉयफ्रेंड मुझे किस करना चाहता है। मैंने उसे डराने-रोकने के बजाय पलटकर पूछा, "क्या तुम भी करना चाहती हो।"


उसका जवाब था कि अभी वो श्योर नहीं है। उसे पता नहीं कि वो इसके लिए तैयार है या नहीं।


मेरा जवाब ये था कि तुम तब तक अपने कदम आगे मत बढ़ाना, जब तक बिलकुल श्योर न हो। जब तक तुम्हें यकीन न हो कि ये जो तुम कर रही हो, किसी और के कहने या चाहने पर नहीं, बल्कि इसलिए क्योंकि तुम ये करना चाहती हो। हमेशा खुद से सवाल करना और अपने मन की बात सुनना। लड़के की इच्छा के आगे सरेंडर मत करना क्योंकि वो तुम्हारा बॉयफ्रेंड है, क्योंकि तुम उससे प्यार करती हो।


यही तो वो संवाद है, जो अपनी बड़ी होती बेटियों के साथ हमें करना चाहिए।

जाहिर है, कल को तुम कॉलेज जाओगी, हॉस्टल जाओगी, दूसरे शहर पढ़ने और नौकरी करने जाओगी। वहां किसी लड़के से दोस्ती होगी, प्यार होगा तो वो रिलेशनशिप जो हो सकता है, क्या उसका कोई ब्लूप्रिंट है तुम्हारे दिमाग में है। रिश्त की बाउंड्रीज क्या होंगी, रिश्त में कौन सी चीजें एक्सेप्टेबल है, कौन सी चीज नहीं है।


कंसेंट क्या होता है। अगर हमारी इच्छा या सहमति के बिना कोई चीज हमसे करने को कही जाए तो क्या हमें No बोलना आता है। क्या हम अपने जीवन के प्रति, अपने फैसलों के प्रति जिम्मेदार हैं। क्या वो लड़का जिम्मेदार है, जिससे हम प्यार कर रहे हैं। क्या वो कंसेंट समझता है। क्या वो उस कंसेंट की रिस्पेक्ट करता है। अगर नहीं करता, खुद को थोपता है, अपनी बात मनवाने के लिए जबर्दस्ती करता है तो क्या लड़की को उसकी बात मान लेनी चाहिए या बाउंड्री ड्रॉ करनी चाहिए। इसे रेड फ्लैग मार्क करना चाहिए।यही जीवन के सबसे जरूरी सवाल हैं। प्यार में कुछ सही-गलत, नैतिक-अनैतिक नहीं है। कंसेंट की रिस्पेक्ट न करना ही अनैतिक है और लड़कियों के लिए सबसे खतरनाक है, खुद को न जानना, अपनी इच्छाओं को दबाना, हर वक्त दूसरों की बात मानते रहना, उनके ऑर्डर फॉलो करना और अपने No का सम्मान न करना।


लड़कियों को भी प्यार करने की पूरी आजादी है, लेकिन इस आजादी की पहली शर्त है- प्यार में हां से ज्यादा और हां से पहले यह सीखना कि No कैसे कहा जाता है।


तुम अपने प्रेमी को चूम सकती हो, लेकिन तभी, जब तुम तैयार हो, तुम चाहती हो, जब तुम्हारा दिल कहे- हां। वरना तुम्हारा जवाब होना चाहिए- No। अभी मैं तैयार नहीं हूं। मैं तब हां करूंगी, जब मेरा दिल कहेगा।


और अगर लड़का, लड़की से सचमुच प्यार करता है तो वो इस No का सम्मान करेगा।

मेरा उदेश्य किसी भी लडके या पुरुष को ठेंस पहुंचाना नहुनहीं है... मैं बस चाहती हूँ की लडके और लड़कियां इस बात को समझे....।