डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 45 Saloni Agarwal द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 45

अब आगे,

 

अब रूही की सौतेली मां कुसुम ने अपनी सौतेली बेटी रूही का हाथ छोड़ दिया और जिस से रूही अब भाग कर रसोई घर में चली गई और एक तरफ अपने खाने से भरी प्लेट को रख दिया और अब नल के पास जाकर अपना हाथ पानी से धो रही थी..!

 

जब की वो अपने हाथ को पानी से धो रही थी तो उस को दर्द होने लगा क्योंकि पानी अभी ठंडा आ रहा था और अब रूही ने जैसे ही नल को बंद कर दिया और अब खड़ी हो गई तो वो, अपनी सौतेली मां कुसुम से टकरा गई..!

 

क्योंकि रूही के रसोई घर में आने के बाद उस की सौतेली मां कुसुम भी वही पहुंच गई थी और उस ठीक अपनी सौतेली बेटी रूही के पीछे जाकर ही खड़ी होकर रूही को देख कर रूही की ही भरी प्लेट में रखे आलू के परांठे खा रही थी...!

 

और साथ में अब रूही की सौतेली मां कुसुम ने अपनी सौतेली बेटी रूही से कहा, "तुझे क्या लगा था कि कल की तरह मै तुझे एक महारानी की तरह आराम से बैठ कर खाना खाने दूंगी...!"

 

अपनी बात कह कर अब रूही की सौतेली मां कुसुम, अपनी सौतेली बेटी रूही को देख किसी चुडेल की तरह हंस रही थी और रूही की सौतेली मां कुसुम ने अब आगे अपनी सौतेली बेटी रूही से कहा, "तेरी औकात सिर्फ बासी पड़े खाने और वो भी प्लेट की बचे चुके जूठन खाने की है..!"

 

अपनी सौतेली मां कुसुम की बात सुन कर रूही ने उन से कुछ नही कहा क्योंकि वो अब तक इस सब को ही अपनी जिंदगी मान चुकी थी इसलिए वो अब अपनी सौतेली मां कुसुम को बिना कुछ कहे ही रसोई घर से बाहर निकल गई..!

 

और फिर रसोई घर से बाहर आकर अपना कॉलेज बैग उठा लिया और उस मे एक पानी की बोतल को रख लिया और वही अब तक रूही के पिता अमर भी जाने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुके थे और उन्होंने अपनी सगी बेटी रूही को आवाज लगाने लगे तो रूही अपने घर की दहलीज पार कर अपने घर के बाहर निकल आई..!

 

अब रूही अपने पिता अमर के साथ स्कूटर पर बैठ गई और फिर दोनो शर्मा निवास से रूही के कॉलेज के लिए निकल पड़े और रूही की सौतेली मां कुसुम आराम से बैठ कर अपनी सौतेली बेटी रूही का नाश्ता खा रही थी..!

 

और फिर कुछ देर बाद दुबारा से सोने चली गई और वो आज जल्दी बस रूही के सगे पिता अमर को दिखाने के लिए ही तो उठी थी..!

 

करीब आधा घंटे बाद,

 

"प्राइवेट यूनिवर्सिटी ऑफ बनारस" जो कि हमारी रूही का कॉलेज का नाम था, अब रूही अपने सगे पिता अमर के साथ कॉलेज में अंदर जाने लगी और वैसे तो ये कॉलेज बहुत ही बड़ा और साथ में अच्छा खासा बढ़िया कॉलेज था और यहां रूही के सगे पिता अमर का अपने किसी भी बच्चे को पढ़ना मुमकिन नहीं था..!

 

क्योंकि वो तो एक मिडिल क्लास व्यक्ति है पर फिर भी रूही यहां पर पढ़ रही थी क्योंकि उन से 12th क्लास में अपने पूरे बनारस में टॉप किया था और इस वजह से ही उस को सरकार की मदद से "प्राइवेट यूनिवर्सिटी ऑफ बनारस" में स्कॉलरशिप मिली थी..!

 

और इसी वजह से रूही इतने बड़े कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी कर रही थी और उस को बस यहां कुछ ही चीज़ों के रुपए देने होते थे बाकी सब सरकार और कॉलेज का प्रशासन द्वारा संचालित होता था..!

 

रूही अपने कॉलेज की सबसे खूबसूरत और सिंपल लड़की थी और जो न कभी कोई मेकअप करती और न ही कभी अपनी खूबसूरती पर घमंड किया करती थी..!

 

रूही को उस के कॉलेज में से बहुत से बड़े बड़े लोगो के बेटो ने प्रपोज्ड किया था मगर रूही ने अपनी सौतेली मां कुसुम के डर की वजह से कभी भी किसी भी लड़के को एक नजर उठा कर तक नही देखा था..!

 

अब रूही अपने आर्ट सेक्शन मे जाकर अपने हेड ऑफ डिपार्टमेंट के सर से मिली और अब अपने सर से पूछने लगी, "सर मेरा बी.ए सेकंड ईयर का एग्जामिनेशन फॉर्म भरना है क्योंकि उस को भरने के आज लास्ट डेट है...!"

 

पहले तो उस हेड ऑफ डिपार्टमेंट के सर ने रूही को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर उस की बात सुन कर उस वो हेड ऑफ डिपार्टमेंट के सर ने रूही से कहा, "मुझे तो लगा था कि तुम ने 12th में पूरे बनारस में टॉप किया है तो पढ़ाई में अच्छी होगी मगर यहां आकर तो तुम ने पढ़ाई लिखाई करना छोड़ ही दिया है...!"

 

To be Continued......

 

हेलो रीडर्स, यह मेरी पहली नोवेल है। कृपया इसे अपनी लाइब्रेरी में जोड़ें, मेरी प्रोफाइल को फॉलो करे और कमेंट्स, रिव्यू और रेटिंग के साथ मुझे अपना सपोर्ट दे। अधिक जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी पहली नोवेल "डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट" और अगला भाग केवल "मातृभारती" पर।