सौतेली माँ से माँ बनने का सफर...... भाग - 6 Tripti Singh द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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सौतेली माँ से माँ बनने का सफर...... भाग - 6

एक महीने बाद

एक महीना बीत चुका था त्रिवेणी और शिवराज जी के विवाह को इन महीना में त्रिवेणी ने अखंड के साथ-साथ उस घर को भी बहुत अच्छे संभाल लिया था। जिसे देखते हुए बुआ जी भी अब अपने घर जा चुकी थी।
अब त्रिवेणी और शिवराज जी के रिश्ते में भी अब बहुत ज्यादा बदलाव आ चुका था, उन्होंने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था और अब एक आम पति-पत्नी की तरह प्रेम और सम्मान से रहने लगे हैं।
हालांकि शिवराज जी के हृदय में अभी रचना जी की यादें थी जो अब हमेशा ऐसे ही रहने वाली है।
अब शिवराज जी पूरी तरह से चिंता मुक्त थे अखंड को लेकर क्योंकि अब वो त्रिवेणी को देखते हुए समाप्त हो चुकी थी। क्योंकि त्रिवेणी खुद से पहले अखंड के लिए सोचती थी बेहद प्रेम करती थी वो उससे जैसा एक माँ करती है अपने बच्चों से।

आज शिवराज जी कुछ दिनों के लिए किसी काम से बाहर जा रहे थे।
इस वक्त वो बिल्कुल तैयार थे निकलने के लिए, इसलिए वो अखंड को अपनी गोद में लिए उसे अपने गले से लगाए हुए थे। और त्रिवेणी को अपना और अखंड का ध्यान रखने को कह रहे थे।
त्रिवेणी ने भी उन्हें अपना ध्यान रखने और जल्दी वापस लौटने को कहा। हालांकि त्रिवेणी उन्हें जाने नहीं देना चाहती थी लेकिन काम भी बहुत जरूरी था, इसीलिए उसने शिवराज जी रोका नहीं।
कुछ ही देर में शिवराज जी भी अपने गंतव्य की निकल गए।

त्रिवेणी बहुत देर तक ऐसे ही दहलीज पर खड़ी रही उसका ध्यान तब हटा जब उसकी गोद में मौजूद अखंड जो लगातार उसके गालों को अपने नन्हें नन्हें हाथों से थपथपाये जा रहा था, और अपनी आँखों को टिमटिमाते हुए देख रहा था, उसके चेहरे पर इस वक्त एक बहुत ही मनमोहन सी मुस्कान थी।
जिसे देख त्रिवेणी के चेहरे पर भी एक सुखद मुस्कान आ गई,
और फिर उसने उसे अपने सीने से लगा घर के अंदर चली गई।
शिवराज जी को गए हुए एक हफ्ता हो गया था, और वो आज वापस आने वाले थे।
इधर त्रिवेणी ये बात जान बेहद ही खुश थी। उसने खाने में सब कुछ शिवराज जी की पसन्द का बनाया था। अब बस उसकी नजरे दरवाजे पर टकटकी लगाए हुए थी।
साथ ही साथ वो अखंड से भी बाते कर रहीं थीं।

तभी टेबल पर रखा उसका फोन बज उठा अखंड के पास से उठ कर उसने फोन उठाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि तब तक वो कट हो गया अभी वो कुछ सोच पाती की तभी एक बार फिर फोन झनझना उठा, उसने देखा तो एक अननोन नंबर सो हो रहा था जिसे देख उसने सोचते हुए फोन उठा कान पर लगा लिया , "हैलो.........सामने से एक आदमी की आवाज आई...." हैलो....क्या आप शिवराज चौधरी के घर से बोल रहीं हैं .........इधर त्रिवेणी ने कहा....."हा लेकिन आप कौन......जी आप सिटी हॉस्पिटल आ जाइए मैं वही से बात कर रहा हूं। " इतना सुनते ही त्रिवेणी घबरा गई लेकिन उसने खुद को संभालते हुए पूछा " ज....जी... लेकिन आप मुझे वहां क्यों बुला रहे हैं.. क्या क....को.....कोई...बात........बात हुई है।" आखिरी के शब्द उसने बहुत मुश्किल से कहे थे, क्योंकि उसके दिमाग में अब बार बार शिवराज जी का ख्याल आने लगा था, उनकी फिक्र सताने लगी थी उसे...... तभी सामने से आवाज आई...." आप बस आ जाइए बहुत जरूरी है.......आप बस जितनी जल्दी हो सके आ जाइए प्लीज..........इतना कहने के बाद सामने वाले ने फोन रख दिया.......पर इधर त्रिवेणी का मन बहुत घबराने लगा था...... उसने जल्दी से शिवराज जी को फोन लगाया लेकिन उनका फोन ही नहीं लग रहा था..... जिससे वह और घबरा गई......
फिर उसने ज्यादा देरी न करते हुए उसने अखंड को अपनी गोद में उठाया और तेज कदमों से घर के बाहर आई और ड्राईवर से हॉस्पिटल चलने को कहा..... वह ड्राइवर कुछ बोलने को हुआ...... तभी त्रिवेदी ने कहा "कुछ भी कहने का समय नहीं है आप बस जल्दी चलिए... इसके बाद ड्राईवर ने कुछ भी न पूछते हुए गाड़ी स्टार्ट की और अस्पताल की तरफ दौड़ा दी।

त्रिवेणी ने फिर से शिवराज जी को फोन लगाने लगी लेकिन हर बार फोन नहीं लगता.......अब तो उसका मन बहुत घबराने लगा था और आँखों से आंसू भी बहने लगे थे जिसे उसने इतने वक्त से रोक रखे थे.....इतनी देर से वो खुद को तसल्ली दिए जा रहीं थी लेकिन अब उसका सब्र जबाव दे गया था।

वो लगातर ड्राईवर को गाड़ी तेज चलाने को कह रहीं थीं.... उसने भी त्रिवेणी की हालत देखते हुए गाड़ी की रफ्तार थोड़ी तेज कर दी।
...... तभी अचानक ही त्रिवेणी को बुआ जी का ख्याल आया और जल्दी से उसने उन्हें फोन लगा दिया लेकिन तीन-चार बार कॉल करने के बाद भी जब बुआ जी ने फोन नहीं उठाया तो वह और भी ज्यादा परेशान हो गई..... वह फिर से कॉल लगाने वाली थी कि तभी उसका फोन बज उठा उसने देखा तो फिर से वही अननोन नंबर से कॉल आ रहा था......जिसे देख उसकी घबराहट और बढ़ गई.........डर से माथे पर पसीने ने जगह बना ली....... फिर उसने घबराते हुए फोन उठाया और ..........हैलो........ तब फिर से सामने से वही आवाज आई जिसने थोड़ी देर पहले उसे हॉस्पिटल आने को कहा था........जी मैडम आप कब तक यहां पहुंचने वाली है......ज.....जी ...बस बहुत जल्दी ही.....त्रिवेणी ने हकलाते हुए कहा.......... देखिए आप जल्द से जल्द यहां पहुंच जाइए.... सामने वाले ने कहा.......इतना कह उसने फोन रख दिया।
तभी उसका फोन फिर से एकबार बज उठा जब त्रिवेणी ने देखा तो उसपर "बुआ जी" फ्लैश हो रहा था......जिसे देख उसके चेहरे पर थोड़ी राहत आ गई और उसने झट से फोन उठा लिया...?



अगर कोई भी गलती इस भाग में हुई हो तो मैं माफी चाहूँगी, अगर कहानी पसंद आए तो रेटिंग अवश्य दे। 🙏