सौतेली माँ से माँ बनने का सफर...... भाग - 4 Tripti Singh द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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सौतेली माँ से माँ बनने का सफर...... भाग - 4

बुआ जी के फोन रखने के बाद इधर त्रिवेणी थोड़ी भावुक से हो गई थी आज सच में उसे मातृत्व का एहसास हुआ जब उसकी आवाज सुनने मात्र से ही अखंड का रोना बंद हो गया। त्रिवेणी बहुत खुश थी और इसी खुशी में उसने गोल-गोल घूमना शुरू कर दिया तभी अचानक ही वह किसी से टकरा गई ।

जब वह हडबड़ाहट में जल्दी से पीछे हटी तो उसने देखा कि वह जिससे टकराई थी वह कोई और नहीं मामी जी ही थी।

जो उसे अपनी अजीब नजरों से देख रही थी, फिर त्रिवेणी ने जल्दी से आगे बढ़ते हुए ही कहा " वह मामी जी वो.... मैं..... वो..... वह बोल ही रही थी कि तभी मामी जी ने उसकी बात काटते हुए ही कहा " क्या हुआ जो ऐसे पागलों की तरह गोल-गोल घूम रही है तू " मामी जी की यह बात सुनने के बाद वह फिर थोड़ा सोच में पड़ गई कि वह क्या बोले तभी मामी जी ने कहा बोला " क्या हुआ,,,, अच्छा यह सब छोड़ तू यह बता की राधिका बहन जी ने क्या बोला उन्होंने तुझसे" फिर त्रिवेणी ने कहा" मामी जी उन्हें ऐसे ही कुछ बात करनी थी आप परेशान मत होइए कोई बड़ी बात नहीं है" मामी जी ने फिर एक बार पूछा "पक्का ना" त्रिवेणी ने फिर कहा" हां मामी जी! पक्का कोई बात नहीं है "
अच्छा फिर ठीक है चल जल्दी चल कर तैयार हो जा बारात आने वाली ही है त्रिवेणी ने हामी भरी और मामी जी के साथ तैयार होने चली गई।
कुछ देर बाद बारात आ चुकी थी और सभी बारात के स्वागत में लगे हुए थे।
मामा जी ने अपनी यथा स्थिति अनुसार विवाह की तैयारी में कोई कमी नहीं थी।
जिस तरह से एक पिता अपनी बेटी के विवाह में अपनी परिस्थितियों से बढ़ कर ही करता है। ठीक इसी तरह मामा जी ने भी किया था।
इसी तरह कुछ देर बाद विवाह कि रस्में भी शुरू हो गई।
और इसी के साथ विवाह भी संपन्न हुआ।

( दोनों का विवाह हो चुका था, बंध गए थे दोनों एक रिश्ते में अब देखना ये था, कि क्या त्रिवेणी अखंड की मां बन पाती है या रह जाएगी एक सौतेली मां बनकर।)

इधर त्रिवेणी की विदाई शुरू हो चुकी थी।
और शिवराज जी एक बार फिर अपनी यादों की नगरी में चले गए थे।
आज के 15 साल पहले इसी तरह उन्होंने रचना जी से विवाह किया था हर वो दृश्य वैसा ही था जैसा आज हो रहा है। बस फर्क यह था कि आज के 15 साल पहले वह खुश थे और आज चिंतित और दुखी थे।
वो आज भी अपनी पहली पत्नी रचना जी की यादों से नहीं निकाल पाए थे। अगर अखंड को माँ की आवश्यकता न होती तो शायद वह ये विवाह ही ना करते।
लेकिन अब जो भी था वह सत्य था जिसे उन्हें स्वीकार तो करना ही था।
वह यह सब सोच ही रहे थे कि तभी बुआ जी ने उन्हें आवाज लगाई और कहा "लल्ला अब हमें भी निकालना चाहिए वक्त हो गया है।
शिवराज जी ने हां कहा और आगे बढ़ गए।


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