बेपनाह मोहब्बत - 11 Wishing द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बेपनाह मोहब्बत - 11

अब तक :

अंजली “ ऐसा इसलिए क्योंकि इंसान की नियत उसकी नजरों से पता चल ही जाती है । आप मुझे परेशान करते हैं लेकिन आप नजरें मुझे खराब नही लगी । मुझे कोई बुरी वाइब नही आ रही और मेरा six sense कह रहा है कि मैं आपके साथ safe हूं... “। ।

अंजली की बात सुनकर शिवाक्ष सोच में पड़ गया । क्या उस पर विश्वास करना किसी के लिए इतना आसान है.. ?? सोचते हुए उसने गहरी सांस ली और अपने बालों में हाथ घुमा दिया । |

अब आगे :

" तो डरती क्यों हो ? " शिवाक्ष ने पूछा तो अंजली नजरें फेरते हुए धीरे से बोली " अब राक्षस को देखकर डर तो लगेगा ही ना "

" क्या कहा ? "

" कुछ , कुछ नही " बोलकर उसने जल्दी से इंकार में सिर हिला दिया । शिवाक्ष उसकी बात सुन चुका था लेकिन कुछ बोला नहीं ।

उसके चेहरे के भाव देखकर शिवाक्ष को अपने लिए राक्षस सुनना भी प्यारा सा कहा था ।

अंजली की कही बात को वो सोचता रहा ओर करीब एक मिनट के बाद उसके चेहरे पर हल्की सी स्माइल आ गई । , उसे खुद भी नहीं पता कि उसे ये कैसा एहसास था जो उसे हो रहा था।

शिवाक्ष बिना अंजली की तरफ देखे बोला " अच्छा नाम क्या है तुम्हारा.. ?? मतलब पूरा नाम पूछ रहा हूं.. " ।

" अंजली आर्य " अंजली ने सहजता से जवाब दिया ।

" अंजली आर्य " शिवाक्ष उसका नाम repeat किया । " और मेरा नाम शि.. " शिवाक्ष ने इतना कहा ही था है कि इससे पहले ही अंजली बोल पड़ी " Shivaksh Rajvansh... " ।

शिवाक्ष आंखें छोटी करके उसे देखने लगा ।

" अभी अभी आपने बताया.. " बोलते हुए अंजली ने सख्त एक्सप्रेशन के साथ शिवाक्ष की आवाज की कॉपी करते हुए कहा " I am Shivaksh Rajvansh " ।

शिवाक्ष ने उसे अपनी नकल करते देखा तो आंखें छोटी करते हुए बोला " ये क्या कर रही हो तुम ? मैंने ऐसे बोला था क्या ? ? " ।

" जी हान... " अंजली तपाक से कहा फिर आगे बोली " मतलब बोला तो ऐसा ही था लेकिन expressions इससे भी ज्यादा बुरे थे " ।

शिवाक्ष उसके ऐसा कहने पर हंस दिया । लेकिन अंजली उसकी हंसी नही देख पाई थी । शिवाक्ष ने अपना सिर पीछे दीवार के साथ लगा दिया ।

अंजली भी अपना सिर पीछे दीवार से टिकाए बैठ गई । । दोनों के बीच फिर से खामोशी - सी छा गई ।

दूसरी ओर खुशी ने आकाश को फोन लगाया तो आकाश ने फोन उठा लिया ।

खुशी " आकाश तुम्हे भी अंजली का फोन आया था क्या.. ? " ।

आकाश " हान खुशी आया तो था लेकिन अब वो फोन उठा ही नही रही है । मैने बोहोत बार ट्राई किया.. " ।

खुशी " same here.. । अब क्या करें.. ? " ।

आकाश " कर क्या सकते हैं.. । इंतजार करते हैं जब अपने फोन में हमारी कॉल्स की नोटिफिकेशन देखेगी तो वापिस कॉल कर ही देगी.. " ।

खुशी " hmm.. सही कहा.. " ।

" hmm... " आकाश ने जल्दी से जवाब दिया । फिर कुछ और बोलने लगा तो खुशी बोली " अच्छा फिर बाय.. कल कॉलेज में मिलते हैं... " ।

आकाश ने सुना तो अपनी बात बोलने का खयाल दिमाग से निकाल दिया । । " ठीक है बाय.. " कहकर उसने भी फोन रख दिया ।

अंजली और शिवाक्ष कॉलेज में ही बंद थे ये बात किसी को भी नही पता था । श्वेता को भी सिर्फ इतना पता था कि उसने अंजली को म्यूजिक रूम में बंद किया था। वहीं शिवाक्ष भी उसके साथ ही बंद था ये बात तो श्वेता को भी पता नही थी ।

राजवंश हाउस :

प्रेरणा जी हॉल में घूमते हुए शिवाक्ष को फोन मिला रही थी । लेकिन शिवाक्ष ने कॉल नही उठाया ।

" शायद अक्षत और अपने बाकी दोस्तों के साथ फिर घूमने निकल गया होगा.. । ज्यादा कॉल किया तो मेरे लिए परेशान होने लग जायेगा.. । अभी रहने देती हूं कल ही बात कर लुंगी.. "। बोलते हुए प्रेरणा जी अपने कमरे की ओर सोने चल दी ।

श्वेता का घर :

श्वेता और मालविका दोनो श्वेता के कमरे में थी । मालविका बेड पर लेटे हुए अपना फोन चला रही थी । अक्सर वो श्वेता के घर आती जाती रहती थी ।

वहीं श्वेता शीशे के सामने खड़ी होकर अपने आप को देख रही थी ।

श्वेता ने शीशे में देखते हुए पूछा " मालविका क्या वह अंजलि मुझसे ज्यादा सुंदर है... " ।

मालविका ने उसकी ओर देखा और बोली " कैसी बातें कर रही हो श्वेता कहां तुम और कहां वो.. " ।

" क्या मतलब.. ?? " बोलते हुए श्वेता ने अपने बालों की लट में उंगली घुमाई और मालविका की ओर देखने लगी ।

मालविका सीधे बैठते हुए बोली " मतलब यह कि तुम अपने आप को देखो और उसे देखो । कहां तुम एक हाई स्टैंडर्ड वाली हाई क्लासी लड़की और कहां वह एक.. गांव से आई हुई मिडिल क्लास गवार लड़की.. । तुम दोनों का तो कोई कंपैरिजन हो ही नहीं सकता.. " ।

मालविका ने कहा तो श्वेता के चेहरे पर मुस्कान आ गई ।

श्वेता ने एक बार फिर पूछा " अगर मैं मेकअप न करूं तो उसमे और मुझमें से कौन ज्यादा सुंदर लगेगा... ?? " ।

" ऑफकोर्स तुम श्वेता.. " बोलते हुए मालविका उसकी ओर आई और उसके सामने खड़ी होते हुए बोली " ये तुम्हे हो क्या गया है. ?? तुम उसके साथ खुद को क्यों कंपेयर कर रही हो... ?? " ।

" कुछ नहीं.. बस ऐसे ही.. " बोलते हुए श्वेता कमरे से बाहर की ओर जाते हुए बोली " चलो खाना खा लेते हैं.. बोहोत भूख लग रही है.. " ।

मालविका ने भी सिर हिला दिया और उसके पीछे चल दी ।

म्यूजिक रूम :

अंजली और शिवाक्ष काफ़ी देर से दीवार से सिर टिकाए हुए बैठे हुए थे । दोनो की आंखों में ही नींद नहीं थी और दोनों ही बिल्कुल खामोश बैठे हुए थे ।

खामोशी को तोड़ते हुए अंजलि ने कहा शिवाक्ष कुछ गाइए ना... । सन्नाटा अच्छा नई लग रहा.. और भूख भी लग रही है... " ।

शिवाक्ष " भूख तो मुझे भी लग रही है... । अच्छा बताओ क्या गाउं... ? " ।

अंजली ने शिवाक्ष को उसकी बात सुनते देखा तो उसे अच्छा लगा ।

" कुछ भी गा दीजिए... जो आपको अच्छा लगे " बोलते हुए अंजलि हल्का सा मुस्कुरा दी ।

अंधेरे में शिवाक्ष को उसका चेहरा अच्छे से दिखाई तो नहीं दे रहा था लेकिन वह महसूस कर सकता था कि अंजलि अभी मुस्कुराई थी ।

" " कुछ भी मतलब.. कुछ भी ना " शिवाक्ष ने शरारत से भरकर पूछा ।

" नई नई.. कुछ भी मतलब.. कुछ भी नही । कुछ ऐसा जो सुनने में अच्छा लगे और हो भी अच्छा.. " । अंजली ने जवाब दिया ।

" जैसे कि.. क्या अच्छा लगता है तुम्हे.. ? " शिवाक्ष ने उसकी ओर देखते हुए पूछा ।

" ऐसे गाने जिनमें फीलिंग्स हो.. । गंदे शब्द और अश्लीलता ना भरी पड़ी हो.. । सादगी भरे हो... " अंजली ने सहजता से कहा ।

शिवाक्ष ने सिर हिला दिया और गिटार के तार बजाते हुए गुनगुनाने लगा :

" ये सुन्दल से केसू ये आरीश गुलाबी

ज़माने में लायेंगे इक दिन खराबी

फ़ना हमको करदे.. ना ये मुस्कुराना

अदा काफिराना चलन जालिमाना ।

मीठे मीठे लफ्जों का जाल ना उछालो..

हमे जिंदा रहने दो ए हुसन वालों.. । " ।

शिवाक्ष ने गाया तो अंजली के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान बिखर गई । शिवाक्ष आगे गाता रहा और अंजली आंखें बंद किए सुनती रही ।

कुछ देर बाद जब शिवाक्ष ने गाना बंद किया तो बोला " तो कैसा लगा. ?? " । बोलकर शिवाक्ष जवाब आने का इंतजार करने लगा ।

कोई जवाब ना आने पर उसने फिर से पूछा " मैने पूछा कैसा लगा.. ?? " बोलते हुए उसने अंजली को देखा ।

फिर से कोई जवाब नही आया तो शिवाक्ष ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया । और उसे हिलाया और अंजली उसकी ओर को ढल गई और शिवाक्ष में उसे बाहों में पकड़ लिया ।

" सो भी गई.. ?? " बोलते हुए शिवाक्ष ने चांद की हल्की रोशनी में उसके चेहरे को देखा और आगे बोला " तो मतलब मुझे लोरी गाने वाला बनाया हुआ था... और उस लोरी को सुनकर मैडम को बस सोना था.. । Oh god... " बोलते हुए शिवाक्ष ने रोशनदान से बाहर की ओर देखा ।

सामने उसे चांद दिखाई दिया । फिर उसने अंजली के चेहरे की ओर देखा जो अंधेरे चांद की रोशनी में चांद की तरह ही चमकता हुआ लग रहा था ।

शिवाक्ष ने अंजली के चेहरे पर बिखरी जुल्फों को साइड किया और कुछ पल उसके चेहरे को निहारता रहा ।

बाहर बिजलियां कड़कने लगी और ठंडी हवाएं चलने लगी । शिवाक्ष को महसूस हुआ कि अंजली शिविर करने लगी थी । उसके होंठ भी कांपने लगे थे और दांत कटकटाने लगे थे ।

शिवाक्ष ने उसे जमीन पर लेटाया और अपनी डेनिम जैकेट उतारकर अंजली को ओढ़ा दी ।

फिर उससे थोड़ा दूर होकर वो भी जमीन पर लेट गया और फिर कुछ ही देर में उसे भी नींद ने अपने आगोश में ले लिया ।

सुबह 4 बजे :

सुबह हुई तो रोशनी कमरे के अंदर आने लगी । अंजली के चेहरे पर रोशनी पड़ी तो उसने कसमसाते हुए आंखें खोली ।

फिर उठकर बैठी तो देखा कि उसके उपर शिवाक्ष की जैकेट डाली हुई थी । अंजली ने सिर घुमाकर देखा तो उससे कुछ दूर ही शिवाक्ष लेटा हुआ था । उसकी लंबी जुल्फें उसके माथे को कवर किए हुए थी ।

सोते हुए वो बोहोत मासूम सा नजर आ रहा था । अंजली दीवार से पीठ टिकाए बैठ गई और शिवाक्ष को देखने लगी ।

फिर अपने उपर डाली हुआ शिवाक्ष की जैकेट को देखने लगी । रात के बारे में अंजली ने याद करना चाहा तो उसे हल्का सा याद आया कि रात को उसे ठंड लगने लगी थी ।

" रात को ठंड हो गई थी । पर ठंड होने के बावजूद इन्होंने अपनी जैकेट मुझे क्यों ओढ़ा दी.. ?? " सोचते हुए अंजली जैकेट पर चिपके हुए अपने कुछ बालों को निकालने लगी ।

कुछ वक्त बाद ट्रेन के हॉर्न की आवाज आई तो शिवाक्ष की नींद खुल गई । उसने आंखें मलते हुए अंगड़ाई ली और सिर के नीचे हाथ रखकर ceiling को देखने लगा । फिर चेहरा घुमाकर अंजली की ओर देखा तो पाया कि वो भी जाग चुकी थी ।

अंजली इस वक्त उसकी डेनिम को देखे जा रही थी । शिवाक्ष के चेहरे पर उसे देखकर मुस्कान आ गई ।

शिवाक्ष के पेट से गुड गुड की आवाज आई तो उसने अपने पेट पर हाथ रख लिया । " उफ्फ... भूख से मरा जा रहा हूं.. पता नही कमरा कब खुलेगा.. " बोलकर वो उठकर बैठ गया ।

अंजली भी अब उसकी ओर देखने लगी फिर उसने भी अपने पेट पर हाथ रख दिया । भूख तो उसे भी बोहोत लगी थी ।

अंजली को कुछ याद आया तो वो बेंच पर रखे अपने बैग की ओर चल दी ।

अंजली के चलने से छन छन की आवाज आने लगी । शिवाक्ष उसके पैर की ओर देखने लगा । काले धागे में बंधे घुंगरू को देखकर वो मुस्कुरा दिया ।

अंजली बैग के पास गई और बैग से चॉकलेट निकालकर शिवाक्ष के पास आकर उसकी ओर बढ़ा दी ।

शिवाक्ष ने चॉकलेट देखी तो जल्दी से ली और खाने लगा ।

अंजली उसके पास ही खड़ी उसे देखती रही ।

दो तीन बाइट खाने के बाद शिवाक्ष ने अंजली की ओर देखा और पूछा " तुम्हारे लिए और भी है क्या... ?? " ।

अंजली ने ना में सिर हिला दिया ।

" तो तुम्हे भूख नही है क्या.. ? " पूछते हुए शिवाक्ष ने उसे देखा ।

" कोई बात नहीं.. आप खा लीजिए.. " कहकर अंजली हल्का सा मुस्कुरा दी ।

" ऐसे कैसे अकेले ही खा लूंगा.. । तुम भी तो कल से लेकर भूखी ही हो.. । दोनो आधी आधी खायेंगे.. " बोलकर शिवाक्ष ने चॉकलेट को दो हिस्सों में बांट दिया । और एक हिस्सा अंजली की ओर बढ़ा दिया ।

अंजली ने चॉकलेट ले ली । दोनो ने आधी आधी चॉकलेट खा ली ।

" थैंक यू.... " बोलते हुए अंजली ने शिवाक्ष को उसकी जैकेट पकड़ाई ।

" वेल्कम एंड थैंक यू टू... " बोलकर शिवाक्ष ने अपनी जैकेट पकड़ ली ।

अंजली ने दरवाजे की ओर देखा और पूछा " ये दरवाजा कब तक खुलेगा.. ?? " ।

शिवाक्ष ने अपनी घड़ी की ओर देखा और बोला " 7 बजे कॉलेज खुल जाता है.. तो ये भी 7 बजे के आस पास ही खुलेगा... । पर अभी 7 बजने में ढाई घंटे बाकी है... " ।

" ohk.. । अगर किसी ने अंदर आकर हमे साथ देख लिया तो ना जाने कितने सारे सवाल खड़े करेंगे.. ! " बोलते हुए अंजली का चेहरा फिक्र से भर गया ।

" कोई नहीं देखेगा.. और अगर देख भी लिया तो कुछ भी बोलने से पहले 100 बार सोचेगा.. । So Don't worry... " बोलते हुए शिवाक्ष ने अपनी जैकेट पहन ली ।

अंजली " पर ऐसा कुछ करना ही क्यों जो किसी को कुछ भी बोलने का मौका मिले.. । क्या कुछ ऐसा नहीं हो सकता जिससे किसी को पता ही न चले कि हम दोनो यहां अंदर बंद थे । "

शिवाक्ष ने सुना तो गहरी सांस लेते हुए बोला " okay.. in that case... जब दरवाजा खुलेगा तो हम लोग छुप जायेंगे ताकि वॉचमैन को हम नज़र ना आएं.. । और वॉचमैन के दरवाजा खोलने के तुरंत बाद कोई अंदर नही आता है.. । तो हमे टाइम मिल जायेगा कि हम लोग यहां से बाहर निकल जाएं... " ।

अंजली ने सिर हिला दिया ।

दोनो ने जैसे तैसे ढाई घंटे काटे और 7 बजते ही दोनो दरवाजे की ओर आस लगाए हुए देखने लगे ।

7 30 हो गए थे लेकिन वॉचमैन ने अभी तक दरवाजा नहीं खोला था । अंजली का चेहरा उतर गया ।

अब दरवाजा खुलने का और इंतजार उससे नही हो रहा था ।

तभी बाहर से किसी के चलने की आवाज आने पल शिवाक्ष और अंजली दोनो एक दूसरे की तरफ देखने लगे । और जल्दी से बुक शेल्फ के पीछे जाकर छुपने लगे ।

क्या दोनो का कमरे में बंद हो जाना दोनो को नजदीक ले आया है ? क्या शिवाक्ष का उसे देखकर खो जाना उसे अंजली की तरफ खींचने लगा है ? क्यों अंजली भी उसे देखकर अपनी नजरें उससे नही फेर पाती है.. ?

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