शून्य से शून्य तक - भाग 52 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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शून्य से शून्य तक - भाग 52

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अनिकेत के माता-पिता भी एयरपोर्ट पहुँच चुके थे| उड़ान समय पर थी| अभी तक आशी और रेशमा नहीं पहुँचे तो दीनानाथ जी को चिंता होने लगी| आशी खुद ड्राइव कर रही थी और आज रास्ते में उन्हें खूब बारिश और भीड़ भी मिली थी| पता नहीं, कहीं फँस न गए हों ?? कितनी बार आशी से ड्राइवर को साथ ले जाने के लिए कहते, उसके लिए एक अलग ड्राइवर था लेकिन शायद ही वह कभी उसके साथ जाती हो| दीना पिता थे, आशी जब भी बाहर जाती और जब तक लौट न आती, उन्हें ठीक से नींद कहाँ आती थी ! सब जानते थे कि आशी किसी की नहीं सुनेगी, लेकिन इंसान की संवेदनाएं कहाँ पीछा छोड़ती हैं? पिता के चेहरे से चिंता झाँक ही जाती और चुगली खा जाती| 

आशिमा और अनिकेत सामान लेकर बाहर आ गए और सबसे मिल ही रहे थे कि आशी और रेशमा लगभग दौड़कर आती हुई दिखाई दीं| आशिमा सबसे मिलकर भाई के गले लगी ही थी कि रेशमा भागकर बहन के गले जा लिपटी और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी| आशिमा जब सबसे मिल रही थी बहुत खुश थी| उसके चेहरे पर नव-मुस्कान जैसे नई कलिका सी खिल रही थी लेकिन रेशमा को इस तरह रोते हुए देखकर वह भी रो पड़ी| बड़ी देर तक दोनों बहनें एक दूसरे के गले लगी आँसु बहाती रहीं| आशी ने आकर दोनों को चुप करवाया| आशिमा आशी के गले लिपटकर रो पड़ी| आशी ने बहुत प्यार से उसकी पीठ सहलाई जबकि डर था कि कहीं वह आशी को झिड़क न दे;

“बस, अब तो घर आओगी---दोनों चुप हो जाओ---”

आशी का व्यवहार देखकर न केवल दीना को बल्कि मनु को भी आश्चर्य हो रहा था| दोनों ने एक दूसरे की ओर संतुष्टि से देखा और जैसे चिंता से एक छोटी सी मुक्ति की साँस ली, भविष्य में तो जो हो लेकिन अभी तो ठीक ही दिखाई दे रहा था| तय हुआ कि अभी वह अपनी ससुराल जाएगी| कल मनु उसे ससुराल से लेकर आएगा और वह थोड़े दिन इधर सबके साथ रहेगी| फिर तो ससुराल रहना ही है| 

आशिमा अनिकेत और अपने इन-लॉज़ के साथ अपनी ससुराल चली गई और दीना सबको लेकर अपने घर आ गए| आशी अपनी गाड़ी लाई थी अत:वह रेशमा को साथ लेकर अपनी गाड़ी में वापिस घर आई| रेशमा उदास थी, आज फिर से उसे अपने मम्मी-पापा याद आ रहे थे| 

“रेशम! चलो कुल्फ़ी खाते हैं---”कहाँ गाड़ी रोक ली थी आशी ने !

वह आँखें बंद करके बैठी थी। आशी की आवाज़ सुनते ही उसकी आँसु से भरी आँखें खुल गईं| आँसुओं को पोंछकर उसने पूछा;

“ये तो हम चौपाटी पर आ गए !!”

“हाँ---चलो थोड़ी देर और घुमा दूँ तुम्हें---”आशी ने कहा| 

“आज तो बहुत घुमाया दीदी, ”रेशमा को आशी के व्यवहार पर बहुत आश्चर्य हो रहा था| जब कभी मम्मी यानि मिसेज़ सहगल उसे बच्चों के साथ घूमने जाने के लिए कहतीं थीं वह हमेशा टाल जाती थी| सब जानते थे कि आशी की शादी मनु के साथ तय थी लेकिन जब कभी मनु भैया को ज़बरदस्ती दीना अंकल के यहाँ ले जाया जाता और आशी से सबके साथ बैठने, कहीं घूमने जाने या इन्जॉय करने के लिए कहा जाता, उसका मूड और व्यवहार कैसा अशालीन हो जाता था !

आज उसको आशी दीदी का व्यवहार कुछ अधिक अजीब लग रहा था, कुछ ज़्यादा ही करीब जैसे कुछ अनहोनी सी हो| वैसे न जाने क्यों उसके साथ आशी का व्यवहार सबसे अलग ही रहता था| आशी दीदी कितने प्यार से उसे लेकर निकली थीं| पूरे रास्ते उसके साथ बातें करती आईं, पहले तो किसी भी बात का सीधे मुँह उत्तर ही नहीं देती थीं| आज तो कुछ अधिक ही मेहरबान हो रहीं थीं वे उस पर ! ज़रूर किसी ने उन्हें जैसे कुछ खिला-पीला दिया हो| वह छोटी थी लेकिन इतनी भी नहीं कि किसी का व्यवहार समझने में असमर्थ हो| दरअसल आशी नाम की आफ़त से तो सभी लोग डरते थे| कोई कुछ कहे या न कहे, छोटी सी बात पर भी वह झंझट खड़ा कर ही देती थी| 

“लेकिन दीदी, अंकल और भैया चिंता करेंगे---”उसने अपनी आँखों की कोरों से आँसु पोंछ डाले थे| 

“उसकी तुम क्यों चिंता करती हो? मैं हूँ न !”बड़े प्यार से आशी ने उसका सिर सहलाया और गाड़ी पार्क करने की जगह ढूँढने लगी | 

काफ़ी देर में वे दोनों लौटीं तब कहीं दीना, मनु और माधो को नींद आई| वीज़े सब अपनी-अपनी जगह, अपने-अपने ख्यालों में चहलकदमी करते रहे होंगे | जब भी आशी की गाड़ी आती थी पोर्च में रखने से पहले ही भारी गेट खुलने से ऊपर पता चल जाता था फिर तो यदि ड्राइवर होता तो वह या फिर चौकीदार ही गाड़ी दूसरी गाड़ियों के साथ आशी की गाड़ी को पोर्च में खड़ा कर आता| 

पूरे वातावरण के सूनेपन में कदमों की हल्की पदचाप सुनाई दी, लेकिन कोई उठकर नहीं आया, किसी ने उनसे कुछ नहीं पहुंचा| घर पहुँच गईं न, ठीक था| उनके आने के बाद ही सब निद्रा रानी के आगोश में पहुँचे होंगे|