भारत की रचना - 10 Sharovan द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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भारत की रचना - 10

भारत की रचना / धारावाहिक दसवां भाग


'?'- रचना ने पुन: आश्चर्य से देखा, तो वह आगे बोली,'तुम बहुत ही अच्छी लड़की हो. कितने वर्षों से मैं तुम्हारे साथ हूँ और कभी भी कोई शिकायत मुझे आज तक नहीं मिली है. साथ में पढ़ने में भी तुम सदैव अच्छी ही रही हो.''ये तो सब आपकी दुआओं का फल है और परमेश्वर की कृपा और अनुग्रह बना रहा है कि मैं ऐसा कर सकी.'रचना ने उसकी बात को सुनकर कहा तो लिल्लिम्मा जॉर्ज ने बात आगे बढ़ाई. वे बोलीं,'किसी का भी रहा हो लेकिन, सबसे बड़ी बात तुम्हारी मेहनत, लगन और सदैव ही अपने कर्तव्यों के प्रति तुम्हारी कर्तव्यपरायणता ही, इस सारी सफलता का परिणाम है. इसलिए मैंने सोचा है कि, . . .'अपनी बात को अधूरा छोड़कर लिल्लिम्मा जॉर्ज अचानक ही रुक गई, तो रचना के मुख से स्वत: ही निकल पड़ा कि,'क्या सोचा है आपने?''पता नहीं तुम क्या सोचोगी? अब तुम भी तो बड़ी और समझदार हो रही हो, मैं जो कहूँ, उसको गलत मत समझ लेना. मैंने जो कुछ सोचा है, उसमें तुम्हारा ही भला है.'आप बात तो कहिये?' रचना ने कहा.'ऐसी समझदार और सुशील लड़की को मैं खोना नहीं चाहती हूँ. इसलिए तुमको मैंने अपने परिवार में सदा के लिए लेने का निर्णय लिया है.''जी. . , आपका मतलब?' उनकी बात का मतलब समझकर भी रचना आश्चर्य से बोल पड़ी.इस पर लिल्लिम्मा जॉर्ज ने अपनी मेज की दराज़ से एक लड़के की फोटो निकालकर रचना को दी और कहा कि,'इस लड़के को शायद तुम जानती हो? एक दम हेंडसम, लम्बा सजीला युवक है. साथ ही मेहनती और जिम्मेदार भी. मेरा ख्याल है कि, इस लड़के के साथ अपना घर बसाकर तुम हमेशा खुश रह सकोगी.'उनकी बात खत्म होते ही, तब रचना ने वह फोटो अपने हाथ में ली और उसे एक नज़र देखने के बाद उसे तुरंत ही मेज पर रखते हुए वह बोली कि,'ये तो रोबर्ट जॉर्ज है?''हां, मेरी बहन का लड़का है और इस वर्ष हाई स्कूल की परीक्षा देगा.' लिल्लिम्मा ने कहा तो रचना ने जैसे उनकी बात से क्षुब्ध होकर कहा कि,'वह हाई स्कूल की परीक्षा देगा नहीं बल्कि, पिछले चार वर्षों से लगातार देता आ रहा है और अभी तक पास नहीं हो पाया है.''तुम इसे जानती हो?' वार्डन ने पूछा.'इसे कौन नहीं जानता है. क्रिश्चियन कॉलेज में सातवीं कक्षा से मेरे साथ आया था. आज मैं बी. ए. की छात्रा हूँ, इसको तो कॉलेज ही क्या, पूरा मुक्तेश्वर शहर ही जानता होगा.''अच्छा.''जी हां. जहां तक मेरा विचार है कि, इसको तो कॉलेज की कोई भी लड़की पसंद नहीं करेगी, परन्तु फिर भी आप विशेषकर मुझे ही . . .?' कहते हुए रचना अचानक ही थम गई तो, लिल्लिम्मा ने उसे समझाया. वह बोली कि,'उत्तेजित मत हो. लड़कों की तो यह उम्र होती ही है, ऐसी बातों के लिए. शरारतें तो करते ही हैं वे, विशेषकर शादी से पहले. यदि उसने हाई स्कूल नहीं किया है तो कर लेगा, या हम ही कोशिश करके करा देंगे. यह सब तो अपने हाथों में है. रही, उसकी नौकरी की बात, उसकी तो तुम्हें चिंता करनी ही नहीं है. क्रिश्चियन लड़का है, कहीं-न-कहीं मिशन में ही कोई अच्छी जगह दिलवा ही देंगे. मैं हूँ, उसकी मां है, पिता हैं, हमारा तो सम्पूर्ण परिवार ही मिशन में कार्य कर रहा है.''?'- तब लिल्लिम्मा की इस प्रकार की बात को सुनकर रचना के जी में आया कि, वह कह दे कि 'सभी मिशन में कार्य कर रहे हैं, इसलिए जो मन में आये वह कर भी सकते हैं. यह कैसा मिशन है, जहां परमेश्वर से अधिक मनुष्यों का कहा  अधिक माना जाता है?' पर अपनी परिस्थिति और हैसियत का ख्याल आते ही वह चुप बनी रही.कुछेक क्षणों की खामोशी के बाद लिल्लिम्मा ने बात आगे बढ़ाई. वे बोलीं,'फिर क्या सोचा है तुमने? मैं बात चलाऊँ?'तब रचना ने उससे कहा कि,'मैं पहले तो अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी. फिर प्रशिक्षण और बाद में किसी अनाथालय में बच्चों का काम कर लूंगी, क्योंकि, मैं भी तो एक अनाथ लड़की ही हूँ. ऐसे बच्चों के मन की पीड़ा को मैं भली-भांति समझ सकती हूँ.''शादी-ब्याह, तुम्हारा अपना घर आदि. . .?''फिलहाल, ऐसा कोई भी इरादा नहीं है. अभी कुछ भी  नहीं सोचा है मैंने.'रचना गम्भीर होकर बोली, तो लिल्लिम्मा ने कहा कि,'लेकिन, हमें तो सोचना है. आखिरकार हमारी भी तो तुम्हारे प्रति कोई जिम्मेदारी बनती है.'       लिल्लिम्मा जॉर्ज की इस प्रकार की कही हुई बात को सुनकर रचना गम्भीर हो गई. वह कुछेक पल खामोश रही. तत्पश्चात उसने अपनी वार्डन से कहा कि,'देखिये आंटी, मैं बेहद कमजोर, असहाय और बेबस लड़की हूँ. इसकदर मजबूर हूँ कि, भारतवर्ष के इस 'डेमोक्रेसी' वाले युग में भी अपनी मर्जी से, चाहकर भी मैं कुछ नहीं कर सकती हूँ. आप लोगों ने सबकुछ मुझे दे दिया है, मगर पता नहीं, फिर भी मुझे कभी-कभी यूँ लगता है कि, मेरे हाथों में, मेरा अपना कुछ भी तो नहीं है. मैं, बिलकुल रिक्त हूँ. समाज से, घर से और अपने आप से भी.''तुम्हारा कहने का आशय?'रचना की इस प्रकार याचना से भरी बात को सुनकर लिल्लिम्मा जॉर्ज ने अपनी आँखों का चश्मा उतारते हुए उससे विस्मय के साथ पुन: पूछा, तब रचना पहले से और भी अधिक गम्भीर होकर बोली,'मैं तो यूँ भी आप लोगों की एक-एक बात को अपने लिए पत्थर लकीर जैसा आदेश समझती हूँ, परन्तु विवाह जैसी बात मेरा अपना व्यक्तिगत क्षेत्र है. कम-से-कम उसमें तो हस्तक्षेप मत करिये.''मैं जानती हूँ. इसीलिये तो तुमसे पूछना आवश्यक समझा. क्या रॉबर्ट अच्छा लड़का नहीं है?''ये तो मैंने नहीं कहा.''तो फिर कोई दूसरा लड़का पसंद है तुम्हें?''ऐसी भी कोई बात नहीं है अभी.''तो फिर क्या कमी है रॉबर्ट में?''कमी नहीं, एक विशेषता है.''विशेषता...! तुम्हारा मतलब?' लिल्लिम्मा के जैसे दोनों कान खड़े हो गये थे.'उसको तो मैं बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ.''क्या जानती हो तुम उसके बारे में?''यही कि, वह कितना भी अच्छा क्यों न हो, पर मैं उसके लायक कभी नहीं हो सकती हूँ.''?'- खामोशी.  लिल्लिम्मा जॉर्ज रचना की इस बात पर बेबस होकर जैसे उसे घूरती रह गई. कुछेक पलों तक वह कुछ भी नहीं बोली. शायद कुछ कह ही नहीं सकी थी? इसके साथ ही रचना भी मूक बनी हुई कार्यालय में मेज पर रखी हुई वस्तुओं को क्रम से निहारने लगी- निरुद्देश्य- बे-मतलब-सी.       फिर कुछेक क्षणों की खामोशी के पश्चात लिल्लिम्मा जॉर्ज ने जैसे बड़े ही निराश स्वरों में, आत्मीयता से कहा कि,'ठीक है. जैसी तुम्हारी इच्छा. अभी, मैं जानती हूँ कि, तुम्हारी तरह की इस उम्र की लड़कियों को समझाना ज़रा कठिन ही  होता है. लेकिन, हम लोग ये जानते हैं कि, सच्चाई क्या है? दुनिया देखी है हमने, इसलिए हम बुजुर्ग लोग, तुम लोगों को, तुम्हारे आने वाले भविष्य के खतरों से पहले ही से सचेत करते रहते हैं. तुम लोगों को सही सलाह देते हैं. अब यह और  बात है कि, हमारे इतना सब करने के उपरान्त भी तुम लोग हमारे विचारों से तालमेल नहीं बिठा पाते हो.'       उनकी इस बात को सुनकर रचना जैसे सहम-सी गई. वह अपने टूटे-फूटे स्वरों में बोली,'जी . . .! मैंने तो केवल आपसे विनती ही की थी.''लेकिन, मुझे तो तुम्हारी इस विनती में भी ढिठाई नज़र आती है. परोक्ष रूप में इनकार है तुम्हारा.' लिल्लिम्मा ने गम्भीर होकर कहा तो रचना फिर जैसे सहम-सी गई. लेकिन, फिर भी उसने साहस करके शब्द एकत्रित किये और आगे कहा कि,'मैंने तो आपसे केवल यही कहा है कि जीवन के इतने महत्वपूर्ण फैसले के लिए मैं अभी तैयार नहीं हूँ.''तो, ठीक है, मैं इसको अपनी तरफ से 'फायनल' नहीं करती हूँ. तुम्हें सलाह देती हूँ- अवसर देती हूँ, सोचने और समझने का. इस कारण मैंने अभी से तुम्हारे कानों में यह बात डाल दी है, ताकि तुम कोई और निर्णय लेने से पूर्व मेरी सलाह की ओर ध्यान रख सको.'       तब रचना फिर से खामोश हो गई, तो लिल्लिम्मा जॉर्ज ने उससे अंत में कहा कि,'अब जाओ. मौका मिलने पर फिर कभी दुबारा बात करूंगी मैं तुमसे.'       तब रचना वहां से तुरंत ही चली आई. इस प्रकार कि, जैसे कोई चिड़िया किसी शिकारी के जाल में फंसते-फंसते बचकर निकल आई हो.       जब वह बाहर आई, तो ज्योति पहले ही से वहां पर खड़ी हुई उसकी प्रतीक्षा कर रही थी. रचना को देखते ही, वह तुरंत ही उसका हाथ पकड़कर अपने साथ एक ओर ले गई. उसके हाथ में चाय का कप भी था. वह तब एक ओर को बैठती हुई, रचना को चाय का कप देकर उससे बोली कि,'हां, अब बता क्या बात थी?''बात क्या, शादी  का प्रस्ताव रखा था उसने.''किस से? क्या रॉबर्ट जॉर्ज से?''हां, उसी निखट्टू से. लेकिन, तुझे कैसे मालुम हो गया?' रचना ने चाय का 'सिप' करते हुए पूछा, तो ज्योति बोली,'अरे ! मैं उस बुढ़िया की नस-नस जानती हूँ. फिर, इतनी देर तक तुझे ऑफिस में, कुर्सी पर बैठाकर बातें करती रही थी, तो फिर और क्या बात हो सकती थी? लेकिन, उसने प्रस्ताव रखा, तो तूने क्या कहा?' ज्योति ने अगला प्रश्न कर दिया.'कुछ नहीं.''कुछ नहीं ! मतलब...?''अभी हां और ना, दोनों में से कुछ भी नहीं कहा है, मैंने.''ठीक किया है, तूने. यदि, कुछ भी ठोस उत्तर दे देती, तो वह तेरे पीछे पड़ जाती.'       तब रचना चुप हो गई. फिर कुछेक क्षणों की खामोशी के पश्चात ज्योति ने दूसरी बात चलाई. वह बोली,'लेकिन, तेरा क्या इरादा है?''इरादा कैसा और किस बात का?' रचना ने पूछा.'उस निखट्टू, मिशन के राजकुमार से''मैं मर जाऊंगी , लेकिन . . .''चुप...'रचना की इस बात पर ज्योति ने उसके मुख पर हाथ रख दिया. फिर बोली,'मनहूस बातें मत किया कर. मरेगी तो वह बुढ़िया. हां, एक बात बता रही हूँ कि, यदि ज्यादा ज़बरदस्ती करे और तुझ पर अपना प्रभाव डाले, तो मुझे बता देना. तुझे तो ज्ञात ही है कि, मेरे पापा की बहुत बड़े-बड़े लोगों से जान-पहचान है. साली को अंदर करवा दूंगी.''अच्छा?' रचना ने कहा तो ज्योति पूछ बैठी,'तू, चौंक क्यों गई?''पहले 'बुढ़िया' और अब गाली भी देने लगी तू?''अरे, यार. सब चलता है.' ज्योति ने कहा.फिर, आगे उससे उठते हुए बोली,'चल, ऐसे ही कहीं घूमकर आते हैं. कल तो सन्डे है, वैसे भी देर में सोकर उठेंगे. और हां, कल रामकुमार वर्मा की दुकान पर भी जाना है. देखें, कुछ खरीदने को मिलता है, कि नहीं.''दुकान पर तू, अकेली चली जाना. मैं नहीं जाती.''क्यों?''मेरे पास पैसे नहीं हैं.' रचना ने कहा तो ज्योति बोली,'तेरे पास नहीं, लेकिन मेरे पास तो हैं. चुपचाप चली चलना मेरे साथ- नहीं गई तो फिर . . .' 'तो फिर क्या?''ये करूंगी.' इतना कहकर ज्योति ने रचना को गले लगा लिया. फिर बोली,'जीवन में केवल एक ही से तो दोस्ती की है मैंने. यदि, उसके लिए भी कुछ नहीं किया तो जियूंगी कैसे?''इतना प्यार मत किया कर.'रचना ने कहा.'क्यों?''इसलिए ज्यादा मीठा खाना अच्छा नहीं होता है. कीड़े पड़ सकते हैं.' रचना बोली तो ज्योति ने कहा कि,'गुड और शक्कर में कीड़े पड़ते हैं. फूलों के पराग में कभी कीड़े नहीं पड़ते हैं.''अब दार्शनिक भी होती जा रही है तू?''दार्शनिक नही, वास्तविकता बता रही हूँ तुझे.'       चलते-चलते, तब तक दोनों सखियाँ कॉलेज के मैदान के पास आ गईं थीं. सो वहां पर खेलती हुईं अन्य लड़कियों को देखने के पश्चात दोनों की बातों का सिलसिला भी अपने आप टूट गया. फिर दोनों ही वहां के बिखरे हुए लापरवा वातावरण को देखकर उसमें जैसे व्यस्त-सी हो गईं.       दूसरा दिन, रविवार का दिन था.ज्योति रचना को रामकुमार वर्मा की दुकान पर ले गई. वहां से उसने ढेर सारे कपड़े खरीदे. सबसे मुख्य बात जो थी, वह यही कि, जो उसने अपने लिए खरीदा था, वही सब रचना के बार-बार मना करने के बाद भी उसके लिए भी खरीद लिया था. ऐसा, था उसका प्यार- दोस्ती का उत्तरदायित्व- जो कि, वह रचना के लिए कर रही थी.       फिर शाम को दोनों चर्च भी गईं. वहां से आते समय, इधर-उधर घूमीं और रविवार की छुट्टी का पूरा उपयोग किया. तब शाम को खाने के पश्चात, दोनों ही सखियाँ, जो दिन-भर थक भी गईं थी, शीघ्र ही सो भी गईं. दूसरे दिन कॉलेज था. ज्योति, जिसका एक विषय रचना से भिन्न था, वह ज़रा पहले कॉलेज जाती थी,  क्योंकि, उसकी यह कक्षा रचना से अलग होती थी, और रचना उसके बाद जाती थी. इसलिए, ज्योति आज भी पहले ही चली गई थी और रचना बाद में स्वयं भी कॉलेज जाने के लिए उठ गई थी.       फिर जब रचना ने जैसे ही कॉलेज की लम्बी गैलरी की समाप्ति पर बांये मुड़ने के लिए अपना कदम बढ़ाया ही था कि, एकदम से सामने खड़े हुए रॉबर्ट जॉर्ज को देख कर वह आश्चर्यचकित रह गई. रचना उसे देखते ही समझ गई थी कि, वह वहां पर काफी देर से जैसे उसकी ही प्रतीक्षा कर रहा था. तब रॉबर्ट की इस  हरकत पर  रचना को मन-ही-मन क्रोध तो बहुत आया, पर अपनी स्थिति और बेबसी को सोचकर वह अपने अंदर उबलते हुए भावों को चुपचाप पी गई और रॉबर्ट से विवश होकर बोली,'तुम?'उत्तर में रॉबर्ट ने मुस्कराकर धीरे-से गर्दन हिलाई.'अब क्या है?' रचना  ने पूछा.'तुमसे कुछ बात करनी थी.''कैसी बात?''यहाँ नहीं.' 'तो फिर कहाँ?''कॉलेज के बाहर.''तुम्हें मेरी सरहदें मालुम हैं?' रचना ने झुंझलाकर प्रश्न किया तो रॉबर्ट ने उत्तर दिया,'हां, जानता हूँ.''तो फिर, ऐसी बेवकूफी से भरी फरमाइश क्यों? और फिर ऐसी कौन-सी बात है, जो यहाँ नहीं हो सकती?' रचना ने अपनी बात कही तो रॉबर्ट थोड़ा रुक कर बोला,'हो तो सकती है, पर यहाँ सबके बीच. . .? मेरा मतलब है कि, आते-जाते छात्रों के मध्य कुछ अच्छा नहीं लगता है.' यह कहकर वह इधर-उधर झाँकने लगा.तब रचना जैसे कटु व्यंग से, कड़वी मुस्कान के साथ अपना मुंह बनाकर उससे बोली,'अच्छा ! तुम्हें ये अच्छे-बुरे और ऊंच-नीच की पहचान कब-से होने लगी?'इस पर रॉबर्ट ने रचना से कहा,'देखो रचना, मैं आज तुम्हारे पास बहुत ही नम्र और सभ्य बनकर आया हूँ.' उसके स्वर में याचना का भाव देखकर रचना ने कहा कि,'वह किसलिए?''कहा न कि, तुमसे कुछ बातें करनी हैं.''तो फिर कहते क्यों नहीं हो? मेरी कक्षा भी शुरू होने वाली है.''मैंने कहा न कि, यहाँ नहीं और अभी नहीं.''अभी नहीं तो फिर कब?''तुम्हारा यह कक्षा का पीरियड समाप्त होने के पश्चात. मैं बॉटनी गार्डेन में तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा. मुझे मालुम है कि, तुम्हारा इसके बाद कक्षा का पीरियड खाली रहता है.' रॉबर्ट ने कहा तो रचना जैसे खीज-सी गई. वह खीज भरे स्वरों में रॉबर्ट से बोली कि,'इसका मतलब है कि, मेरी जासूसी करना भी तुम्हारी आदत बन गई है?'       उत्तर में रॉबर्ट केवल हंसकर ही रह गया तो, रचना उससे गम्भीर होकर बोली,'देखो रॉबर्ट, ये अच्छी बात नहीं है. मुझ जैसी लड़कियों को तंग करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती?''रचना की इस बात पर तब रॉबर्ट जैसे और पसीज़ गया. वह थोड़ा मलिन होकर उससे बोला कि,'रचना ! मैं तुम्हें तंग करने नहीं आया हूँ. मैंने कहा न कि, मुझे तुमसे कोई बहुत ही जरूरी बात करनी है. वह भी एक सभ्य, सीधे और अच्छे मित्र के समान.''?'- इस पर रचना पुन: खामोश हो गई. तब थोड़ी देर की मौनता के पश्चात रॉबर्ट ने एक आशा के साथ अपनी बात आगे बढ़ाई. वह फिर से बोला कि,'तब क्या सोचा है तुमने?''ठीक है. मैं आऊँगी, लेकिन ज्यादा समय नहीं दे सकूंगी मैं तुम्हें. मुझे काफी अध्ययन करना है. फिर यूँ, भी मैं अपनी कक्षा का खाली पीरियड कभी खराब नहीं करती हूँ.'       रचना की बात और उसका समर्थन पाकर रॉबर्ट के चेहरे पर मुस्कान की एक रेखा क्षण-भर को आई और लुप्त भी हो गई. तब वह वहां से जाने को जैसे ही मुड़ा, तो रचना ने उसे टोक दिया. वह बोली,'और सुनो.' '?'-  रॉबर्ट ने उसे प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा तो रचना उससे बोली कि,'जब तक मेरी इस कक्षा का पीरियड समाप्त नहीं होता, और मैं नहीं आती, तब तक तुम यह धुंआ बिलकुल नहीं उड़ाओगे. तुम्हें, मालुम होना चाहिए कि, मुझे यह सिगरेट-बीडी की बदबू बहुत बुरी लगती है.''जो हुकुम सरकार.' यह कहकर रॉबर्ट मुस्कराता हुआ वहां से चला गया और रचना भी तेज कदमों से चलकर क्षण-भर में ही आते-जाते छात्रों की भीड़ में जाकर मिल गई.-क्रमश: