ख्वाहिश,,,,कत्ल उम्मीदों का - भाग 1 Paramjeet Kaur द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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ख्वाहिश,,,,कत्ल उम्मीदों का - भाग 1








पहली महिला :- दूसरी महिला से,,,,,सुना है बहन जी इनकी बेटी कल से घर नही आई है ,अरे उसके बाप ने देखो तो कितना खर्च किया है उसके लिए, और बेटी का कोई पता ठिकाना नहीं है कहां गई ,कल से उसका बाप गलीयो की खाक छान रहा है प्रश्र अभी तक कोई खबर नहीं है कि कहा है कहां नहीं।


दूसरी महिला :- मुंह बनाते हुए,,,,सुना तो हमने भी यही है ,,पर इसमें गलती भी तो इनकी खुद की है। मैं तो पहले ही कहती थी कि बेटी को इतना सिर पर मत बैठा यो अब देर रात तक बेटियों को आवारागर्दी कराओगे उसे छोटे छोटे कपड़े पहनाओगे तो भला किसकी नियत ना डगमगाये।


तीसरी महिला :- देखा बहन जी मैं कहती थी ना लड़कियों को इतनी छोट नही देनी चाहिए अब रोने से क्या फ़ायदा अरे पर निकल आए होंगे पर फैलाकर कहीं उड़ गई होगी,अब ना आयेगी वापस।


चौथी महिला ,,,, क्या बोल रही हो तुम यह सब ,, बोलने से पहले थोड़ा सोच लिया करो,,क्या बोल रही हो,अरे हमारे घर में भी बेटीयां है,, ज़रा संभलकर बोलों। दिलासा देने की बजाए बातें बना रही हो ,, और क्या बोल रही थी तुम,, भाग गई होगी,,,किसी की बेटी के लिए ऐसा बोलते हुए तुम्हें शर्म आनी चाहिए ,, भगवान ना करे कल को तेरी बेटी ऐसा कुछ कर दें फिर तुम बोलना यह बात,,, चौथी महिला तीसरी महिला को गुस्से से बोलती है।


तीसरा महिला,,,, मैंने क्या ग़लत बोल दिया जो तुम इतना गुस्सा कर रही हो,,अरे कलयुग चल रहा है कलयुग। और आजकल तो यह आम बात हो गई है,, लड़के लड़कियां अपनी मर्जी से बियाह करने लगे हैं क्या पता इनकी बेटी भी,,,,,,,,,,,,,,

बससससस,,बस करिए आप सब बस करिए,,,कब से बोले जा रही है अरे बस भी करो।अगर झुठी हमदर्दी नहीं दे सकती तो कम से कम बातों के खंजर तो मत चलाओ,,

अगर तसल्ली के दो शब्द नहीं निकल रहे मुंह से तो ज़ख्मों पर नमक भी मत छिड़को नाआआआ,,,,


आंगन के बीचोंबीच नीचे फर्श पर बेसुध सी होकर बैठीं एक महिला जो कब से उन सब औरतें की बातें सुन रही थी,, आंखों से आंसू ऐसे निकल रहे थे जैसे सावन में होने वाली बरसात जो कब रुकेगी भगवान ही जानता है।उन सब औरतें की बातें किसी खंजर की भांति उनके दिल पर वार कर रही थी,,जब बर्दास्त नहीं होता तो वह गुस्से से उन सबको जवाब देती है ,,,


खबरदारररर,,,जो मेरी बेटी के लिए एक भी ग़लत शब्द और निकाला तो बस बहुत हो गया आपका, बहुत बोल लिया आपने अब कृपया करिए हम पर और हमें अकेला छोड़ दीजिए हम खुद ढूंढ लेंगे अपनी बेटी को आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है जायिए जाहां से,,,,,वह औरत बाकी सब औरतों को दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं,,,,,


दुसरी औरत,,,,अरे हमने क्या ग़लत कहा है बहन जी हमें भी तो फ़िक्र है आपकी बेटी की पर ज़माना बहुत खराब है आजकल चलों मान लेते हैं कि आपकी बेटी भागी नहीं है तो क्या पता उसके साथ कोई ऊच नीच हो गईईईईई,,,,,


अपने शब्दों को यहीं रोक दो रेवती भाभीईईईईईई जीईईईईईईईईईईई,,,

आगे एक और शब्द नहीं,,इस से पहले के मैं भुल जाऊ कि आप उम्र से मुझसे बड़ी है और मैं रिश्तों की मर्यादा भुल जाऊं उससे पहले आप यहां से चली जाएं। भगवान के लिए हमें अकेला छोड़ दीजिए हमारे हाल पर ,हम अपनी बेटी को खुद ढूंढ लेंगे,, मेहरबानी करके जाएं आप जहां से,,हम हाथ जोड़ते हैं आपके आगे,, कृपा करके जाएंएएएएएएए,,,,,एक आदमी उनके आगे हाथ जोड़ते हुए गुस्से से उन्हें जाने के लिए कहता है,,


सभी औरतों मुंह बनाते हुए जाने लगती है पर अभी भी उन‌‌ सब के बीच घुसर फुसर जारी थी जो शायद कुछ दिनों तक तो‌ चलने वाली थीं,,, हमारे समाज में हमेशा यही होता है किसी को किसी से कोई हमदर्द नहीं होती है बस सब तमाशाबीन बनकर तमाशा देखते हैं,,, किसी को किसी के दर्द से कोई वास्ता नहीं होता,,सब आग में घी डालकर अपने अपने हाथ सेंकते हैं इस लिए तो कहते हैं कि,,,

जिस तन लागे सो तन जाने,,

कौन समझे पीड़ा पराई।

तमाशाबीन बनकर बैठी दुनिया,,

ना दर्दी से किसी ने हमदर्दी जताई।

मत मज़ाक उडा किसी की मजबूरी का,,,

आज मेरी तो कल तेरी बारी आई।


महिलाओं की इन बे-तुकी बातों को सुनकर जहां वह औरत नीचे फर्श पर निढाल सी होकर बैठकर जाती है और आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे ,, एक पड़ोस की औरत उन्हें संभाल रही थी।वह उन्हें पीने के लिए पानी देती है पर वह मना कर देती है जिनकी जवान बेटी कल से लापता हो उनके हलक से पानी कैसे नीचे जायेगा।


,,,वही दूसरी तरफ़ उनके पति का उनकी इन बातों को सुनकर खून खोल जाता है और वह गुस्से में उन औरतों को घर से बाहर निकाल कर उनके मुंह पर दरवाज़ा बन्द कर देते है।उन औरतों के जाने के बाद घर के बाहर जमा भीड़ भी धीरे धीरे वहां से गायब हो जाती है।


जहां एक ओर उनकी बेटी का लापता होना गली मोहल्ले के लोगों के लिए बातें करने का मुद्दा बन चुका था।

तो वही दूसरी ओर घर के अंदर बैठे बूढ़े माता-पिता का फूट फूटकर रोने से बुरा हाल हो चुका है और रोना आए भी क्यों नही आखिर उनकी जबान बेटी बीते दिन से ही घर से लापता है।


उनकी बेटी को लापता हुए लगभग चौबीस घंटे हो चुके हैं और इन चौबीस घंटो में उन्हे ना ही अपनी बेटी की कोई खबर मिली है और ना ही उनकी उससे कोई बात हुई हैं।


इसी बीच उन्होंने अपनी बेटी का पता लगाने की हर संभव कोशिश भी की उनके पास अपनी बेटी के जितने भी दोस्तों के नंबर थे उन सबके पास फोन करके उसका पता लगाने की कोशिश की लेकिन उन सब ने साफ मना कर दिया ।


की काफी दिनों से उनकी ना तो उनकी बेटी से कोई बात हुई और काफी दिनों से वह उससे मिले भी नही हैं। अपनी बेटी के दोस्तों से भी उन बूढ़े माता-पिता को उम्मीद टूटती हुई नज़र आती है तो हारकर उनके दोनो के पास सिर्फ पुलिस स्टेशन जाने का रास्ता ही बचता है।


पर पुलिस स्टेशन में भी चौबीस घंटे के पहले गुमशुदगी की रिपोर्ट नहीं लिखवाईं जा सकती। वैसे भी उनकी बेटी अठाईस साल की है तो ऐसे में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज़ नहीं की जा सकतीं थीं।इस लिए वह कल से खुद अपनी बेटी को ढूंढने में लगे हुए थे पर अभी तक कोई खबर नहीं मिली थी।


मां का रो रोकर बुरा हाल चुका था,, उन्हें तो कोई होश ही नहीं थी बस अपनी बेटी की फ़िक्र सता रही थी और लगातार रोये जा रही थी,,,,,

भला कैसे रोना ना आए,,,जिसकी जवान बेटी कल से लापता है और ना ही कल से उसकी कोई खबर मिली ऐसे में एक मां के दिल पर क्या बीतती है यह तो एक मां ही जानती है।हम सब तो बस अंदाजा लगा सकते हैं।


अपनी पत्नी को ऐसे बुरी तरह रोता देख दरवाज़े के पास खड़ा वह आदमी अपनी पत्नी के पास आता है और उन्हें गले से लगा लेते हैं और अपने आँसुओ को काबू में रखते हुए , दिलासा देते हुए कहते है,,,,,,


शांत हो जायिए आप ,,, रोने से कुछ नहीं होगा,, हिम्मत रखिए ,,अगर आप ऐसे हिम्मत हार जायेंगी तो मैं अकेला क्या कर पाऊंगा,,आप हिम्मत से काम लीजिए और

बात को समझने की कोशिश कीजिये , अगर आप ऐसे ही रोती रही तो मैं कैसे आपको छोड़कर हमारी बेटी का पता लगाने जा पाऊँगा।


अपने पति की यह बात सुनकर मानो उन्हें होश सा आ जाता है वह हड़बड़ाते हुए उनसे अलग हटती हैं और दुप्पटे से अपने आँस पोंछते हुए कहती हैं।


माफ करना जी, वो बस अपनी बच्ची की चिंता सता रही है तो अपनी भावनाओ को काबू करना थोड़ा मुश्किल हो रहा है पर आप चिंता मत कीजिये अब मै नही रोऊंगी आप बस मेरे जिगर के टुकड़े को वापस ले आइये।


अपने पति को दिखाने के लिए भले ही उन्होने ने अपने आँसुओं को दुप्पटे से पोंछ लिया था लेकिन वह अच्छी तरह से जानते थे की इस समय अपनी पत्नी को अकेले छोड़ना ठीक नही है।


इसी चिंता के कारण वह अपने करीबी रिश्तेदारों को सब बता देते है और उन्हे अपने घर पर बुला लेते हैं उनके आते ही वह अपनी पत्नी को ध्यान रखने का बोलकर फटाफट से पुलिस स्टेशन के लिए रवाना हो जाते हैं।


जहाँ एक ओर घर में बैठी मां का दिल बेटी की चिंता में बैठा जा रहा था तो वही रास्ते भर एक बापके मन में बेटी के साथ साथ अपनी पत्नी के स्वास्थ की चिंता भी सवार थी।


परंतु क्या कर सकते हैं ? एक पिता और एक पति होने के नाते वह अपनी चिंता या अपने आँसू किसी को दिखा नही सकते थे उस समय उनके भी मन में कई सवाल चल रहे थे उल्टे सीधे ख्याल उनके मन में पनप रहे थे ।


और वह मन ही मन में खुदसे ही सवाल करते हुए सोच रहे थे की ना जाने मेरी बेटी कैसी होगी ? किस हाल में होगी ? आजकल जमाना भी तो काफी खराब हो चुका हैं


कहीं उसके साथ कुछ,,,,,,,नही नही मैं यह सब क्या सोच रहा हूँ मेरी बेटी बिल्कुल ठीक होगी उसके साथ कुछ गलत नही हुआ होगा मुझे भगवान पर पूरा भरोसा है वह मन ही मन यह सब सोचकर खुद को तसल्ली देते हैं और पुलिस स्टेशन की और चल पड़ते हैं।




यह हैं सुखविंदर सिंह एक बहुत ही साधारण सा इन्सान जिसकी जान अपने परिवार में बसती है खास कर अपनी बेटी में।


सुखविंदर सिंह का छोटा सा परिवार है। जिसमे एक बेटी और उनकी पत्नी अलका जी हैं। सुखविंदर जी गांव में सलाई का काम करते हैं।


वह काफी नर्म दिल इन्सान हैं और उनकी पत्नी तो मानो खिला हुआ गुलाब जो हर पल मुस्कराता रहता है और अपनी खुशबू बखेरता है।


अलका जी भी बिल्कुल वैसी है जो भी इन्सान एक बार बात करले बस अलका जी का हो जाए। सुखविंदर जी पैसे से तो ज्यादा अमीर नहीं है पर उन्होंने अपनी बेटी की हर ख्वाहिश पूरी की है।


उसे कभी किसी चीज़ की कमी होने नहीं दी। चाहे कुछ भी करना पड़े पर बेटी की परवरिश और उनकी पढ़ाई में कभी रूकावट नहीं आने दी।


कल से उनकी बेटी लापता हैं और सुखविंदर जी कल से अपनी बेटी को ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं पर कुछ पता नहीं लगा अबतक।अब तो सिर्फ़ एक ही सहारा बचा है और वह है पुलिस स्टेशन इस लिए सुखविंदर जी अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज़ करवाने के लिए पुलिस स्टेशन के लिए निकल पड़ते हैं,,,,,,,,,,,,,



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नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सब उम्मीद करते हैं सब ठीक होंगे। पहली बार एक कहानी लिख रही हूं जो कि बिलकुल सत्य है। एक बाप बेटी की कहानी। बाप बेटी के रिश्ते में आते उतराव चिडाव की कहानी। एक पिता जो अपनी बेटी के लिए कुछ भी कर सकता है,, उसकी ख्वाहिश पूरी करने के लिए खुद को गिरवी रख सकता है। कहते हैं ना कि अगर बेटी के नसीब लिखने का हक एक पिता को होता तो किसी भी बेटी की किस्मत में दुख नहीं होता। ऐसी ही है मेरी कहानी एक पिता के संघर्ष की कहानी। उम्मीद करते हैं आपको पसंद आएगी तो जुड़े रहिए,,,,,,

"ख्वाहिश"

‌। कत्ल उम्मीदों का,,,,,,, के साथ



✍️✍️✍️✍️✍️परम 🌹💚