ख्वाहिश,,,,कत्ल उम्मीदों का - भाग 2 Paramjeet Kaur द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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ख्वाहिश,,,,कत्ल उम्मीदों का - भाग 2





पूरे रास्ते अपने बेटी के बारे में सोचकर; सोचकर सुखविंदर जी का दिल बैचेन हो रहा था ।बाहर से तो खुद को शांत और मजबूत रखने की जद्दोजहद में लगे हुए थे पर आख़िरकार उनके अंदर भी तो एक बाप का दिल था,जो किसी अनहोनी के डर से विचलित हो रहा है।कभी खुद को दिलासा देते कि उनकी बेटी सही सलामत होगी तो वहीं दूसरी तरफ़ भगवान से मन ही मन प्रार्थना कर रहे थे।इसी जद्दोजहद में सुखविंदर जी पुलिस स्टेशन पहुँच जाते हैं कुछ दूरी चलने के बाद वह जैसे ही स्टेशन के अंदर कदम रखते हैं, तो अंदर का नज़ारा देख सुखविंदर जी एक पल के लिए तो डर जाते हैं।

उन्हे थोड़ी दूरी पर एक कांस्टेबल खड़ा दिखाई देता है,जो एक लड़के के उपर अपनी बैल्ट से धड़ाधड़ वार कर रहा था।लड़के के नग्न शरीर पर बैल्ट से पड़ती मार की वजह से पूरे शरीर पर लाल निशान बन चुके थे । बैल्ट के हर वार से लड़के के मुंह से निकलती चीखें को सुनकर किसी भी आम इन्सान की रुह कंपकंपा जाएं। कांस्टेबल बडी ही बेरहमी से लड़के के शरीर पर बैल्ट पे बैल्ट बरसा रहे थे और लड़के से उसका जुर्म कबूल करवाने की कौशिश कर रहा था,,

कांस्टेबल लडके को बड़ी ही बेरहमी सी बालों से पकड़कर ऊपर की तरफ़ करता है और बोलता है ,,, बड़ी कठोर चमड़ी है रे तेरी कब से मार खा रहा है पर मजाल है जो अपना गुनाह कबूल कर लो,,, क्या लगता है तुम्हें ऐसे बच जाओगे,,,ना ना ना ना आआआआआआआ,,,,,, जनता हैं ना मुझे तेरे हलक में हाथ डाल कर सब बाहर निकाल लूंगा,,,,

लड़के के जबड़े को अपने हाथों से पकड़कर कांस्टेबिल फिर बोलता है,,,,,,,,, देखो मुन्ना प्यार से समझा रहा हूं बता दें सेठ के जहां तुमने ही चोरी की है ना,,,देख अगर अभी बता देगा तो शायद मैं तेरी सजा कम करवा दूं,,,,,,,चल अच्छे बच्चों की तरह बता दें पैसे कहां छुपाए है,,, ज्यादा होशियार बनने की कोशिश मत कर ,,, पता तुम्हें भी है और मुझे भी कि चोरी तो तुम ने की हैं,, पहले भी तुम तीन बार चोरी के इल्ज़ाम में अंदर जा चुका है तो ज्यादा शान पट्टी नहीं दिखा,,,चल शुरू हो जा बता कैसे किया चोरी और पैसे कहां दबा कर रखें है,,,

कांस्टेबल की बात सुनकर वह लड़का लड़खड़ाते हुए जवाब देता है,,,,,,,,, मैं सच कह रहा हूं साहब जी सेठ जी के घर मैंने चोरी नहीं किया,,,, हाथ जोड़ते हुए फिर कहता है,,,मानता हूं के मैं पहले भी चोरी किया हूं पर साहब जी वह तो छोटी मोटी चोरी थी ।देखो साहब सच बोल रहा हूं मैं तो छोटी मोटी चोरी करने वाला एक पोकटमार हूं इतना लंबा हाथ नहीं मारता,,, यकीन करों ना साहब जी,,लड़का नीचे से उठते हुए कहता है पर मार पड़ने की वजह से लड़के से उठा नहीं जाता और उसकी आह निकल जाती है।

कांस्टेबल,,,,,,,,,,

तो तुम ऐसे नहीं मानोगे,,चल कोई बात नहीं तेरी मर्जी,,, मेरे पास और भी बहुत से तरीके है सच पता करने के सोचा था कि तुम आसानी से मान जाओगे पर लगता है तुम्हें अपना असली रूप दिखाना ही पड़ेगा,,,, इतना बोलते ही कांस्टेबल फिर से बैल्ट बरसाना शुरू कर देता है और तब तक मारता रहता है जब तक लड़का बेहोश नहीं हो जाता,,,,


बैल्ट के हर वार से लड़के के मुंह से निकलती चीखें पूरे पुलिस स्टेशन में गुंज रही थी,,,,,,जब मारते मारते कांस्टेबल की सांस फूलने लगती तो वह लात मारकर दुसरे कांस्टेबल से उस लड़के को जेल के अंदर डालने को कहता है और अपनी शर्ट सही करते हुए अपनी कुर्सी पर आता हैं,,,,,

कुर्सी पर बैठते ही,,,,वह अपने आप से बातचीत करने लगता हैं,, अपनी टांगें को टैबल पर रखते हुए खुद से ही,,,,,,,,,

क्या यार इस कुर्सी पर बैठते ही राजे वाली फीलींग आती हैं,,,आज तो ऐसा लग रहा है जैसे इस पुलिस स्टेशन का मालिक मैं ही हूं,,,काश इंस्पेक्टर साहब हर रोज ही ड्यूटी पर ना आएएएएएए,,,


एक सिपाही टैबल पर चाय का कप रखते हुए,,,,, क्या बात है साहब जी बड़ा खुश लग रहे हो आज तो इंस्पेक्टर साहब आयें नहीं आज तो आप ही मालिक हो हम सब के,,,,, इतना बोलते ही वह सिपाही उस कांस्टेबल के कंधे दबाने लगता हैं,,,,


पुलिस स्टेशन के दरवाज़े पर खड़े सुखविंदर जी जो पिछले आधे घंटे से यह मंजर देख रहे थे एक बार के लिए तो भयभीत हो जाते हैं। कोई भी आम इन्सान यह सब देखकर डर जायें,,,,तो सुखविंदर जी का डरना भी लाजमी था। आजतक कभी पुलिस स्टेशन के बाहर से भी ना गुज़रे थे सुखविंदर जी पर आज बेटी की चिंता उन्हें पुलिस स्टेशन के दरवाज़े पर ले आई थी,,,,,वह हिम्मत करके अंदर आते हैं और कांस्टेबल से बोलते हैं,,,,,,,,

नमस्कार साहब जी,,,,,,,


नमस्कार सुनते ही कांस्टेबल अपनी दोनों टांगों के फैलाते हुए सुखविंदर जी की तरफ टेढ़ी आंखों से देखता है कुछ टाइम उपर से नीचे तक देखने के बाद सुखविंदर जी से कहता है,


नमस्ते !! कहिये जीईईईईईईईई,,,, हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं यही करने तो हम यहाँ आते है इंस्पेक्टर तंज कसते हुए कहता है।

इंस्पेक्टर की बात सुनकर सुखविंदर जी घबरा जाते हैं और कुछ समय के लिए मौन हो जाते हैं फिर थोड़ी देर बाद वह डरते डरते बोलते है।

साहब!! वो,,,,मैं,,,,मैं,,,,,मैं कह ह,,,,ह,,,कह रहा था की,,, की,,, की,,,

सुखविंदर जी इंस्पेक्टर से आगे बोलने की काफी कोशिश करते हैं लेकिन ना जाने क्यों शब्द उनका साथ नहीं दे रहे थे वह बोलना तो चाहते थे पर इंस्पेक्टर की बातें सुन उन्हें कोई उम्मीद नज़र नही आ रही थी की वह उनकी मदद करेगा।

कांस्टेबल फिर कहता है,,,,,अरे बोलो ना भाई साहब हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं,,, देखने मे तो अच्छे घर से लग रहे हो,, ऐसा भी क्या हो गया जो आपको हमारे दर पर आने की जरूरत पड़ गई,,,,,


सुखविंदर जी फिर बोलने की कोशिश करते हैं पर उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे,,,, ऐसा अक्सर होता है जिस इन्सान का पुलिस तो क्या इन सब से दुर दुर तक कोई वास्ता नहीं था और जब किस्मत उन्हें पुलिस स्टेशन की चोखट पे लाकर खड़ा कर दें तो ऐसे में इन्सान का विचलित होना लाज़मी हैं,,,,जब सुखविंदर जी कुछ देर तक कुछ नहीं बोलते तो


तो वही अपनी कुर्सी पर बैठा कांस्टेबल सुखविंदर जी को हकलाते देख गुस्सा हो जाता है और उन्हे घूरते हुए कहता है।

जी आप चाय नाश्ता ठंडा गर्म कुछ लेंगे क्योंकि जब तक आप बोलेंगे वो भी बनकर तैयार हो जाएगा। मैं तो कहता हूं आप यहां आओ यहां कुर्सी पर बैठ जाओ,,,हम इंतज़ार करते हैं जब आपका दिल करे आप यहां आने का कारण बता देना,,, आइए आइए विराजमान हो जाइए कुर्सी पररररर,,,,, कांस्टेबल सुखविंदर जी को घूरते हुए कहता है।


सुखविंदर जी हिम्मत करके कांस्टेबल से कहते हैं,,,,,जीईईईई वो मुझे गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखानी थी। मेरी बेटी कल से घर नहीं आई है। कालेज गई थी पर वापस नहीं आई

कल से लापता है साहब आप मदद करो साहब ,,, मेरी बेटी का पता लगाने में मदद करो साहब जी,,, पता नहीं मेरी बच्ची कहा होगी किसी हाल में होगी,,, सुखविंदर जी हाथ जोड़ते हुए कांस्टेबल से मदद की गुहार लगाते हैं।

कांस्टेबल,,,,,,,,,,

;कितने साल की है तुम्हारी बेटी।

सुखविंदर जी,,,,,

;जी साहिब जी अठाईस साल की है।

कांस्टेबल,,,,,,,,

कब से घर नहीं आई।

सुखविंदर जी,,,,,,,

जी कल से कुछ पता नहीं लग रहा है। बहुत ढूंढा पर कुछ खबर नहीं।आप पता लगाइए ना साहब जी।

कांस्टेबल कुर्सी पर बैठते हुए,,,,,,,,


गई होगी कहीं दोस्तों के साथ कहीं घूमने। पार्ट वारटी कर रहे होंगे कहीं। और आजकल के बच्चों का तो आपको पता ही है निकल जाते हैं बिना बताए घूमने के लिए और घर वाले पीछे परेशान होते रहते हैं। चिंता मत करो आप जायेंगी एक दो दिन में।


सुखविंदर जी ,,,,,

नहीं नहीं साहब जी ऐसा नहीं है,, मेरी बेटी ऐसी नहीं है।वह बिना बताए कहीं नहीं जाती । और घर से बाहर रात तो बिल्कुल नहीं रहती। मेरी बेटी आजकल के बच्चों जैसी नहीं है।आप पता करों ना साहब जी,,,,,

सुखविंदर जी आगे कुछ कहते इस से पहले ही उनकी बात काटते हुए कांस्टेबल फिर कहता है,,,,,


अरे भाई साहब आप ना मुझे बहुत सीधे साधे लगते हो ,, ज़माना बदल गया है भाई साहब आजकल के बच्चे बहुत अडवांस हो गये हैं,,,आप ने मना कर दिया होगा जाने को,,तो निकल गई होगी बिना बताए,,, घूम रही होगी आपने किसी आशिक के साथ कुछ दिन इंतजार करो अगर नहीं आई तो फिर देखते हैं क्या करना है,,,,,


कांस्टेबल की बात सुनकर सुखविंदर जी को गुस्सा आता है,, उनकी बेटी के लिए इतना गलत बोल रहा था तो गुस्सा आना तो लाज़मी हैं,,,पर सुखविंदर जी अपना गुस्सा दबाकर मदद की आस लिए फिर कांस्टेबल से हाथ जोड़कर बिनती करता है,,,,,


साहब ऐसा नहीं है,, मैं बोल रहा हूं ना मेरी बेटी ऐसी नहीं है।वह कोई ग़लत काम नहीं करतीं। जरुर उसके साथ कुछ ग़लत हुआ है आप ढुंढो ना साहब मेरी बेटी को ,,, सुखविंदर जी मिन्नत करते हुए कहते हैं।


कांस्टेबल अपने माथे को खुजाते हुए,,,,,,,,,

अरे क्यों दिमाग ख़राब कर रहा है यार,,,जब बोल रहा हूं मैं के कहीं घूमने निकल गई होगी दोस्तों के साथ।आ जायेगी कुछ दिन में,, इंतजार करों। वैसे भी इंस्पेक्टर साहब कुछ दिन की छुट्टी पर हैं तो जब-तक वह नहीं आते तबतक हम भी कुछ नहीं कर सकते,,,साहब के हुक्म के बिना हम कोई एक्शन नहीं लें सकते तो आप कुछ दिन इंतजार करिए,,,,,,अगर नहीं आई तो फिर देखते हैं।


सुखविंदर जी,,,,,,,,

;साहब जी आप समझों ना , मेरी बात को समझने की कोशिश तो करिए,, मेरी बेटी ऐसीईईईईई,,, आगे के शब्द सुखविंदर जी के मुंह में ही रह जाते हैं।


कांस्टेबल सिपाही से,,,,,,,,,

अरे कान्हा जा यार बाहर निकाल इस्को। दिमाग खाने चले आते हैं पता नहीं कहां कहां से।कब से बोले रहा हूं आ जायेगी,,आआआआ जायेगी,,,पर नहीं भाई साहब दिमाग ख़राब करने में लगे हुए हैं।।एक बार की बोली बात समझ नहीं आती आजकल लोगों को,,,,चल जा भाई साहब को बाहर का रास्ता दिखा।


पर साहब जी,,,,,


कांस्टेबल टैबल पर जोर से हाथ मारते हुए,,,,,बस चुप एक दम चुपपपप,,, बोला ना जा जहां से तो जाआआआआ,, कांस्टेबल दरवाज़े की तरफ इशारा करते हुए गुस्से से कहता है।


सिपाही सुखविंदर जी की बांह पकड़ कर उन्हें बाहर की और खिंचते हुए लेकर जाता है और उन्हें समझाते हुए कहता है,,, देखो भाई साहब आप ना अभी घर जाकर आराम करिए,,आपकी बेटी यहां भी होगी ठीक होगी। ज्यादा बोलोगे तो छोटे साहब को गुस्सा आ जायेगा,,, और गुस्से में वह हम सब की लंका लग देंगे।इस लिए कृपया करिए और जाइए जहां से। हम पर मेहरबानी होगी आपकी।


अगर कुछ दिन आपकी बेटी नहीं आई तो फिर आना आप ।तब तक बड़े साहब भी आ जायेंगे।मिल जायेगी आपकी बेटी,, भरोसा रखिए हां,,,,,,,, सिपाही सुखविंदर जी को दिलासा देते हुए कहता है और उन्हें पुलिस स्टेशन के बाहर छोड़कर खुद अंदर चला जाता हैं।




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