ख्वाहिश,,,,कत्ल उम्मीदों का - भाग 3 Paramjeet Kaur द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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ख्वाहिश,,,,कत्ल उम्मीदों का - भाग 3

भाग 3




सुखविंदर जी अलका जी को समझा कर और हिम्मत रखने का बोल कर खुद पुलिस स्टेशन के लिए निकल गये थे। अलका जी ने सुखविंदर जी को तो बोल दिया था कि वह हिम्मत से काम लेंगी,,पर उनके लिए खुद को शांत रखना मुश्किल हो रहा था। एक मां कैसे शांत बैठ सकती है जब तक उनकी बेटी की कोई ख़बर नहीं मिल जाती।


अलका जी की बहन भी आ गई थी। और जब से वह आई थी अलका जी को हिम्मत बंधा रही थी। उन्हें दिलासा देने की कोशिश कर रही थी।पर‌ एक मां के लिए दुनिया की किसी भी दलील का कोई असर नहीं होता जब तक वह अपनी औलाद को सही सलामत अपनी आंखें के सामने ना देख लें। अलका जी की बहन साक्षी ने बहुत बार कोशिश की अलका जी को चाय और कुछ खिलाने की पर अलका जी ने तो पानी का एक घूंट भी नहीं पिया था।


अलका जी आंगन के बीचोंबीच पड़ी चारपाई पर बैठी एक टक दरवाजे की और देख रही थी।इस उम्मीद में के सुखविंदर जी उनकी बेटी की कोई ख़बर लेकर आयेंगे। सुखविंदर जी को गये हुए भी काफी समय हो गया था।सूरज भी अपने घर को लौटने को तैयार था,, पर सुखविंदर जी अभी तक नहीं लौटे थे। जैसे जैसे दिन ढल रहा था और अंधेरा हो रहा था अलका जी की बैचेनी भी बढ़ती जा रही थी।


अलका जी कभी चारपाई पर बैठ जाती और खुद को शांत करने की कोशिश करती तो कभी दुसरे पल आंगन में इधर-उधर चलने लगती। उनकी आंखों में अपनी बेटी के लिए फ़िक्र और बैचेनी के साथ साथ एक अजीब सा डर भी नज़र आ रहा था।यह डर अपनी बेटी की सलामती के लिए था यां कुछ और यह तो आने वाले समय मे ही पता चलेगा।


अलका जी कभी आंगन में इधर उधर होती तो कभी दरवाजे की और देखती , कभी हाथ में पकड़े हुए फ़ोन की तरफ देखती। पर ना तो अभी तक सुखविंदर जी ने कोई फोन किया था ना अलका जी की हिम्मत हो रही थी खुद से फोन करने की । एक अजीब सा डर उनके चेहरे पर दिखाई दे रहा । उन्हें बार बार पसीना आ रहा था और वह अपने दुपट्टे से बार बार अपने चेहरे को साफ कर रही थी। चेहरा तो साफ कर लेती पर अंदर से मन जो कुछ सोच सोचकर विचलित हो रहा था उसका क्या करें।


अलका जी को ऐसे बैचेनी से इधर से उधर चक्कर काटती हुई देखकर वहीं एक कुर्सी पर बैठी अलका जी की मौसी से जब रहा नहीं जाता तो वह अलका से कहती हैं,,,,,

ऐसे चक्कर लगाने से ना तो सुखविंदर जल्दी आ जायेगी ना तेरी लाड़ली।चैन से बैठ जाओ एक जगह टिककर।अब सुखविंदर गया है पुलिस स्टेशन तो कोई खबर लेकर ही आयेगा।कब से देख रही हूं चक्कर भिनी की तरह इधर से उधर हुए जा रही हों। अरे चक्कर खा कर गिर जायेगी,, पहले ही मुसीबत कम है क्या जो तुम और बढ़ाना चाहती हों।मौसी के शब्दों में फ़िक्र कम और तंज ज्यादा लग रहा था ।वह कुर्सी से उठकर अलका जी के पास आती है और फिर बोलने लगती है,,,,,,,,

देख अलका वैसे तो मुझे सब बोलते हैं कि मैं जुबान की कड़वी हूं, हमेशा कड़वा बोलती हूं,पर जो भी बोलती हूं सच और सही ही बोलती हुं। तुम्हें और सुखविंदर को मैंने कितनी बार बोला था कि लड़की को इतनी छूट मत दो मत दो,,पर नहीं तुम लोगों को तो अपने मन की करनी थी।अब भुगतो,,,,, अरे क्या पता कहां होगी,,, कहां ढूंढेंगे पुलिस वाले भी तेरी लाड़ली को। अरे रोज अखबार में खबरें छपती रहती है,,, ज़माना बहुत खराब है आजकल।पर तुम लोगों को क्या,,,बस अपनी मर्जी करते हों।


पर अलका इस में तेरी भी क्या ग़लती है,,,, गलती तो सुखविंदर की है जिसने उसे सिर पर बैठाकर रखा है।अब नाच रही है तुम लोगों के सिर पर चढ़कर और साथ में हम सब को भी नचा रही है। मुझे तो यह समझ में नहीं आता,,,,, कि आखिर तुम्हें उसे इतना पढ़ाकर क्या करना है। शादी की उम्र हो गई है उसकी ,,, बोला था मैंने तो एक बार नहीं कितने बार बोला था कि लड़की की समय रहते शादी कर दो ,,तीन तीन,,तीन तीन रिश्ते बताएं थे मैंने पर ना जीईईईईईईईई,,,,,

तुम लोगों को तो उसे बड़ी अफसरनी बनाना था ना,,बड़ी नौकरी पर लगाना चाहता था उसका बाप । मुझे यह तो बताओ तुम लोग ,,, चलों मान लिया के कल को लड़की किसी बड़ी नौकरी पर लगे भी गई तो तुम लोगों को क्या फायदा। लड़की तो शादी करके चली जायेगी अपने ससुराल और सुसराल वाले बहूं के पैसे पर करेंगे ऐश । तुम लोगों को क्या मिलेगा। अरे थोड़ा तो अकल से काम लें लो पर मेरी कौन सुनता है।अब बोलोगे कि मैं ताने मार रही हूं। मैं तो बस जो सही है वहीं बोल रही हूं।



अपनी मौसी की बातें सुनकर अलका जी को गुस्सा आ रहा था पर वह समय और हालात देखकर चुप रहती है।यह सही समय नहीं था मौसी जी के साथ बहस करने का ।इस समय तो अलका जी को सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी बेटी की चिंता हो रही थी। जैसे जैसे रात हो रही थी अलका जी का कलेजा मुंह को आ रहा था। पिछली रात भी उन लोगों ने अपनी बेटी को ढूंढने में सड़कों पर बिता दी पर उनके हाथ अभी तक एक सुराग़ नहीं लगा था।


यहां एक तरफ अलका जी का बुरा हाल हो रहा था वहीं दूसरी ओर मौसी अभी भी अपने आप में बड़बड़ा रही थी।वह हमेशा से सुखविंदर जी के खिलाफ थी ,, क्योंकि मौसी का मानना था कि लड़कीयों को ज्यादा पढ़ाने लिखाने का क्या फ़ायदा है। लड़कीयों को तो आखिर घर परिवार ही संभालना होता है।तो इतना पड़ लिख कर क्या करना है। ऐसे लोगों की यह तंग सोच की वजह से ही ज़्यादातर लड़कियां पढ़ नहीं पाती ।बस घर की चार दिवारी में कैद होकर रह जाती है। बाहरी दुनिया में क्या हो रहा है उन्हें कोई खबर नहीं होती।


पर सुखविंदर जी ने कभी किसी की परवाह नहीं की । सुखविंदर जी ने बेटा समझकर अपनी बेटी की परवरिश की है।वह उसे जिंदगी में कामयाब होते हुए देखना चाहते हैं।इस लिए हर संभव प्रयास किया सुखविंदर जी ने। अपनी बेटी को किसी भी चीज की कभी कमी नहीं होने दी ।चाहे कुछ भी करना पड़े,,, अपनी बेटी की हर रीझ,हर ख्वाहिश को पूरा करने की कोशिश की है।


कहते हैं कि जो सपने मां बाप पुरे नहीं कर पाते वह सपने वो अपने बच्चों की आंखों से देखते हैं।वह अपने बच्चों के जरिए उन सपनों को साकार होते देखना चाहते हैं। सुखविंदर जी भी घर की मजबूरी के चलते हुए ज्यादा पढ़ नहीं सकें,,इस लिए वह अपनी बेटी की पढ़ाई में कोई भी रुकावट नहीं आने देते। दिन रात मेहनत करते हैं और अपनी बेटी की हर जरूरत को पूरा करते हैं।



अलका जी अपनी मौसी की बातें सुनकर कुछ नहीं बोलती और खामोश सी होकर बस दरवाजे की और नज़र टिका के बैठी थी। उनकी बहन साक्षी भी नीचे फर्श पर अलका जी के हाथ थामकर बैठी हुई थी और बार बार उन्हें सब ठीक होने का दिलासा दे रही थी ‌।

आस पड़ोस के लोग अभी भी उनके घर के बाहर से गुजर रहे थे। पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि अंदर क्या हो रहा है।कल से पुरे गांव में बस सुखविंदर की बेटी की बातें हो रही थी। खोई कुछ बोलता तो कोई कुछ।पर इस मुसीबत की घड़ी में एक शख्स भी ऐसा नहीं था जो मदद के लिए आगे आता।बस सब तमाशा देख रहे थे।


यह तो जग का दस्तूर है,,, किसी के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने में तो दुनिया माहिर होती हैं।पर लोग यह भूल जाते हैं कि जो आग आज दुसरे के घरों में लगी है,उस आग की लपटे कब खुद के घर तक पहुंच जाए , और सब कुछ जलाकर राख कर दे,,कुछ नहीं कह सकते। भगवान के घर का कोई नहीं पता,,कब किस घर में बिजली गिरा दें।इस लिए अगर हम किसी की मदद नहीं कर सकते तो किसी की हंसी भी नहीं उड़ानी चाहिए।पर लोगों को यह बात समझ कहां आती हैं और जब आती हैं तब बहुत देर हो चुकी होती है ।