बैरी पिया.... - 3 Wishing द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बैरी पिया.... - 3

सीढ़ियों पर लड़खड़ाने की वजह से शिविका के पैर में मोच आ गई थी । शिविका ने अपने पेट पर रखे उस सख्त हाथ पर अपने दोनों हाथों को रख दिया ।

" कोई मेरे काम में दखल दे.... मुझे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं..... । इसने संयम का काम बिगाड़ा है तो सजा भी संयम ही देगा..... । किसी और को हक नहीं है.... " । बोलते हुए संयम ने शिविका की कमर में अपनी उंगलियां धंसाते हुए झटके से उसे अपनी ओर खींच लिया । ।

शिविका उसके सीने से जाकर टकराई । संयम की छुअन में शिविका सख्ती साफ महसूस हो रही थी । शिविका ने नजर उठाकर उसके चेहरे की ओर देखा तो अंधेरे में भी उसे संयम के गुस्से वाले औरे का अनुभव हो रहा था ।

शिविका उसे धकेलकर जाने लगी लेकिन कोई फायदा नही था । वो संयम को इंच भर भी नहीं हिला पाई । उसके चौड़े सीने में शिविका लगभग धंस चुकी थी । संयम के एक ही हाथ से उसे होल्ड किया हुआ था जबकि उसके दूसरे हाथ में gun थी.... । शिविका के पास खड़े आदमी को लगी पहली गोली उसी की gun से चलाई गई थी ।

कुछ ही देर में बचे हुए बॉडीगार्ड्स ने उस तरफ टॉर्च से रोशनी कर दी ।

संयम ने एक कोल्डनेस से भरी नज़र शिविका पर डाली तो शिविका उसकी आंखे देखकर सहम सी गई । अभी जो गुस्सा उसे अनिरुद्ध के लिए संयम की आंखों में नजर आया था उससे कहीं ज्यादा अभी उसे अपने लिए दिख रहा था ।

" शादी करनी है ना तुम्हे.... ??? " बोलते हुए संयम ने सामने देखा ।

शिविका ने नम आंखों से उसे देखा । संयम ने उसका हाथ पकड़ा और वापिस मंदिर में जाने लगा ।

शिविका के पांव में मोच आई थी इसलिए वो लड़खड़ाने लगी । उससे चला भी नहीं जा रहा था ।
संयम के खींचकर ले जाने पर शिविका जैसे तैसे उसके पीछे मंदिर के अंदर तक पहुंची । उसके पैर में दर्द हो रहा था । लेकिन संयम को फर्क नहीं पड़ा ।

मंडप के आस पास से गोली से मर चुके लोगों को हटा दिया गया और मंडप में से खून भी साफ करवाया जा चुका था । संयम शिविका को लेकर मंडप में चला गया और मूर्ति के पीछे छिपे पंडित जी को बाहर आने का इशारा करके शिविका से बोला " चलो शादी करते हैं.... । मंत्र पढ़ो पंडित जी...... " ।

शिविका हैरानी से संयम को देखने लगी । अभी तो संयम ने उसे slut कहके मना कर दिया था और अब अचानक से वो उससे शादी करने वापिस आ गया था ।

पंडित जी डरते हुए बाहर आ गए ।

पंडित जी ने शिविका को देखा जिसकी आंखें अभी नम थी । कुछ देर पहले वो एक बूढ़े से शादी कर रही थी और अब उसके मरने के बाद उसने इस दूसरे लड़के को शादी करने के लिए कह दिया था ।
पंडित जी को वो कुछ समझ में नहीं आई ।

" पर वरमाला तो अब नहीं है..... " बोलते हुए पंडित जी जल्दी से हवनकुंड में आग को फिर से जलाने लगे ।

" उस मुर्दे के गले से वरमाला लाओ.... " बोलते हुए संयम अपनी घड़ी देखने लगा ।

" आप उस वरमाला का इस्तेमाल नहीं कर सकते । किसी मृतक के गले में पड़ा समान अपने नवविवाहित जीवन में प्रवेश करने के लिए इस्तेमाल करना बोहोत बड़ा अपशगुन होगा... " बोलते हुए पंडित जी ने संयम को देखा ।

" मुझेे फर्क नही पड़ता । अगर तुम्हे पड़ता है तो तुम करो जो करना हैै । और अगर नहीं कर सकते तोो..... बिना वरमाला के शादी करवाओ लेकिन शादी अभी और इसी वक्त होगी... " बोलते हुए संयम ने एक ठंडी सी नजर पंडित जी पर डाली ।

पंडित जी ने संयम की जलाकर रख देने वाली नजरें अपने उपर महसूस की तो जल्दी से मौली के धागों की मालाएं बनाकर दोनो को पकड़ा दी.... ।

संयम ने फेंकते हुए शिविका के सिर पर वो धागा डाल दिया । शिविका ने धागे को अपने सिर से उतारकर गले में डाल दिया फिर संयम को भी धागा पहना दिया ।

पंडित जी ने मंत्र पढ़ना शुरू कर दिया ।

थोड़ी सी आहुति देने के लिए कहा गया तो आहुति के नाम पर संयम ने एक ही बार में सारी हवन सामग्री आग में डाल.. दी... । आग भड़क उठी । और पंडित जी जल्दी से पीछे की ओर को गिर गए । उनके चेहरे पर आग की लपटों के लगने से लाल निशान पड़ गए । शिविका घबराई हुई सी कभी पंडित जी को तो कभी संयम को देखने लगी ।

" यजमान ये क्या किया आपने... ?? " बोलते हुए पंडित जी ने अपना चेहरा पकड़ लिया ।

शिविका ने जल्दी से पानी का कलश उनकी ओर बढ़ा दिया । शिविका और संयम आग से काफी दूर थे इसलिए उन तक आग की लपटें नही पहुंची थी । और उपर से हवा का रुख भी पंडित जी की ओर था जिस वजह से आग की लपटें उनकी ओर बढ़ी थी ।

पंडित जी ने जल्दी से शिविका से कलश लेकर अपने चेहरे पर पानी गिरा लिया । उन्हें थोड़ी राहत मिली । वो जल्दी पीछे को हट गए थे इसलिए ज्यादा नही जला था बस हल्की सी बर्निंग सेंसेशन हुई थी ।

संयम को इससे कोई फर्क नही पड़ा..... । " जितना जल्दी हो सके... ये सब खत्म करो... । खेल नहीं खेलना मुझे यहां आंहुति के साथ.. समझे । इतना वक्त न मेरे पास है और ना ही मैं निकालना चाहता हूं.... । Wind up fast..... " बोलते हुए संयम सख्त एक्सप्रेशंस के साथ खड़ा रहा ।

पंडित जी ने अब जल्दी से आगे की विधि पूरी की । जब कन्यादान का समय आया तो शिविका के साथ का कोई वहां पर नहीं था । कन्यादान कौन करेगा पंडित जी को समझ में नहीं आ रहा था ।

देरी होता देखा दक्ष ने पंडित जी के सिर पर बंदूक तान दी । पंडित से घबराते हुए बोले " बेटा कन्यादान तो किसी को करना पड़ेगा ना.... । वो कौन करेगा... लड़की के माता पिता तो यहां है नहीं..... " बोलते हुए पंडित जी ने अपने माथे से पसीने की बूंदे साफ की । दक्ष संयम की ओर देखने लगा ।

" जो नहीं है उसके बिना शादी करवा दो... । कोई जरूरत नहीं है कन्यादान की... । शादी जल्दी से खतम करो...... " बोलते हुए संयम ने एक तीखी सी नज़र पंडित जी पर डाली ।

वो जल्दी से आगे के मंत्र पढ़ने लगे ।

गठबंधन के लिए पंडित जी ने एक कपड़े का पीस संयम को दे दिया । दक्ष ने आकर गठबंधन किया और फिर दोनो को सात फेरे और सात वचन दिलवाकर शादी पूरी करवा दी गई ।

वचनों के नाम पर संयम ने बस सिर हिला दिया । उसे बोलने के लिए पंडित जी में भी नहीं कहा.. ।
शादी होने के बाद संयम ने अपने गले से कपड़ा उतारकर शिविका के उपर फेंक दिया ।

शिविका की आंखें अभी तक नम थी लेकिन अब उनमें से आंसू गिरने के लिए बिल्कुल तैयार बैठे थे ।
बस पलकें झपकाने की देरी थी ।

शादी हर लड़की का सपना होती है । कुछ अरमान होते हैं जो सबने सोचे होते हैं । लेकिन ये कैसी शादी थी । जिसमे कोई भी शामिल नहीं था । ये शादी हुई तो एक बोहोत पवित्र स्थान पर थी लेकिन कुछ देर पहले उसी जगह पर खून की होली खेली गई थी । और जिसने वो होली खिलवाई थी उसी के साथ शिविका ने शादी रचाई थी.... ।

संयम मंडप से हट गया और बाहर जाने लगा । शिविका ने एक नजर उसे देखा और फिर उसके पीछे जाने लगी ।

फिर कुछ कदम चलकर रुक गई । और वापिस मुड़कर मंदिर में देखा । पंडित जी उसी की ओर देख रहे थे ।

शादी के बाद किसी बड़े का आशीर्वाद लिया जाता है जो आगे के जीवन के लिए शुभकामनाएं देते हैं । लेकिन इस शादी में शिविका का कोई अपना नहीं था । और ना ही संयम के साथ कोई ऐसा था जिसका आशीर्वाद लिया जा सके ।

शिविका वापिस आई और पंडित जी के पैर छू कर प्रणाम कर दिया । पंडित जी ने कुछ पल उसे देखा और फिर उसके सिर पर हाथ रख दिया ।

शिविका की आंखों से आंसुओं की एक बूंद पंडित जी के पैर पर गिर गई । पंडित जी ने महसूस कर लिया था ।

पंडित जी ने शिविका को उठाया और उसके गाल पर हाथ रखते हुए कहा " सौभाग्यवान भव... । मुझे नहीं पता कि तुमने ये सब क्यों किया... लेकिन ऐसा लगता है जैसे बोहोत कुछ छिपा है तुम्हारे खामोश चेहरे के पीछे । बीता हुआ कल शायद अच्छा न रहा हो लेकिन आने वाला कल तुम्हारे जीवन में खुशहाली , शांति और समृद्धि लेकर आए ऐसा मेरे आशीर्वाद है..... " । बोलकर उन्होंने शिविका का सिर थपथपा दिया ।

शिविका अब जाकर पहली बार हल्का्का सा मुस्करा दी... । वो बोहोत समय बाद हल्का सा मुस्कुराई थी । पर उसकी हंसी में भी एक दर्द था ।

शिविका ने भोलेनाथ की मूर्ति के आगे सिर झुकाया और वहां से लंगड़ाते हुए संयम के पीछे बाहर निकल गई ।

पंडित जी ने भोलेनाथ को देखकर हाथ जोड़ लिए । फिर आंखें बंद कर ली । फिर जाती हुई शिविका को देखा । शायद उसके लिए ही भोलेनाथ से प्रार्थना कर रहे थे ।

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