बीस्ट: ए टेल ऑफ़ लव एंड रिवेंज - भाग 4 Rituraj Joshi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बीस्ट: ए टेल ऑफ़ लव एंड रिवेंज - भाग 4

बीस्ट: ए टेल ऑफ़ लव एंड रिवेंज
" एक श्राप से घिरी राजकुमारी "
Episode - 04

Episode 04 बीस्ट: ए टेल ऑफ़ लव एंड रिवेंज (Beast: A Tale of Love and Revenge) : " एक श्राप से घिरी राजकुमारी "

अब तक अपने पढ़ा---------------------

पुरोहित जी बहुत गुस्से में थे , लेकिन फिर महाराज और महारानी के बार-बार माफी मांगने से उनका गुस्सा थोड़ा शांत हुआ . उन्हें समझ में आया कि इसमें बेवजह वह महाराज और महारानी को दोषी मान रहे हैं .
जब महाराज ने उनसे उस श्राप का तोड़ जानना चाहा , तो पुरोहित जी ने अपनी बेटी के श्राप को काटने के लिए एक आशीर्वाद दिया .
आईए देखते हैं आखिर पुरोहित जी ने श्राप को काटने के लिए क्या आशीर्वाद देते हैं !
आईये जानते हैं.....!

अब आगे-----------------

पुरोहित जी ने महारानी और महाराज को एक बंद कमरे में आने के लिए कहा और कमरे में पहुंच कर सभी दरवाजों को अच्छी तरीके से बंद करने के लिए कहा . ताकि जो भी बात पुरोहित जी महाराज और महारानी से कहे वह बात बाहर किसी को भी सुनाई ना दे .
ऐसा करने के बाद महाराज हाथ जोड़कर पुरोहित जी से बोले .
महाराज बोले------- पुरोहित जी आपने जैसा कहा था ठीक वैसा ही हुआ है . अब आप शांति से श्राप का तोड़ बता सकते हैं .
पुरोहित जी ने हां में सारे लाया और फिर महाराज की तरफ देखते हुए बोले .
पुरोहित जी बोली------------ तो सुनो राजन . " आज से ठीक आठवीं पीढ़ी में जो लड़की तुम्हारे घर जन्म लेगी , वह तुम्हारे खानदान की आज के बाद से तीसरी लड़की होगी . एक विचित्र नक्षत्र और एक विचित्र समय पर पैदा हुई वह लड़की का विवाह अगर उसी नक्षत्र और उसी समय काल के राशि में पैदा हुए लड़के से अगर हो , तो अवंतिका के श्राप से तुम्हारे पूरे खानदान को मुक्ति मिल सकती है . पर याद रहे राजन मेरी बेटी का दिया हुआ श्राप भी जरूर काम करेगा . तुम्हारे खानदान की उस लड़की और उस लड़के में गहरी दुश्मनी होगी . दोनों एक दूसरे की शक्ल देखना भी पसंद नहीं करेंगे . ना चाहते हुए भी उन्हें इस बंधन में बढ़ाना पड़ेगा और अवंतिका के श्राप को तुम्हारी बेटी को झेलना पड़ेगा . जिस तरीके से तुम्हारे बेटे ने मेरी बेटी के साथ गलत किया , वह तुम्हारी पीढ़ी की उसे लड़की के साथ भी जरूर होगा ." अब तुम इस श्राप समझो या आशीर्वाद लेकिन याद रखना , यह श्राप कट कर आशीर्वाद में तब तब्दील होगा , जब उन दोनों के प्रेम से उपजा बीज पैदा होगा . वहीं तुम्हारे इस कुल का उधर कर सकता है . नफरत की आग में बना बीज कभी फलदाई नहीं होगा . याद रहे यह आशीर्वाद तुम्हारे आने वाली पीढियां को पता नहीं चलना चाहिए . समय का चक्र धीरे-धीरे चलता है . अगर उसके साथ छेड़खानी करोगे तो आशीर्वाद श्राप बनने में देर नहीं लगाएगा . समय के साथ भगवान उन दोनों आत्माओं को आपस में जुड़ा ही देंगे . पर तब तक तुम्हारी पीढ़ी को अवंतिका का श्राप भुगतना पड़ेगा .

जैसे ही पुरोहित ने यह कहा , तो भानु प्रताप सिंह और मैनादेवी दोनों ही अपने हाथों को जोड़कर पुरोहित जी के पैरों में गिर पड़े . और धन्यवाद कहने लगे .

इतना कहकर पुरोहित जी वहां अपनी बेटी की लाश को लेकर अदृश्य हो चुके थे . उस कमरे में अब बचा था तो सिर्फ अवंतिका का कफन . जो उसके ऊपर सफेद कपड़ा लगाया हुआ था वही बचा हुआ था वहां पर . पुरोहित जी अपनी बेटी के शरीर को लेकर वहां से अंतध्यान हो चुके थे .

वहीं मैनादेवी भानु प्रताप सिंह से यही बोल रही थी .
मैना देवी जी बोली----------- अवंतिका का श्राप अगर लगेगा . तो उसका काट पंडित जी का आशीर्वाद करेगा . लेकिन अगर इस घर में बेटियां ही पैदा नहीं हुई तो अवंतिका का श्राप कैसे काम करेगा ? और अवंतिका का दूसरा श्राप केवल तब लगेगा . जब हमारे घर का कोई लड़का किसी लड़की के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ जाकर शारीरिक संबंध बनाएगा .

भानु प्रताप सिंह ने हां में सर हिलाया और फिर मैना देवी की तरफ देखते हुए बोले .
भानु प्रताप सिंह जी बोले---------- संस्कार तो हमने भी सुधीर को देवांश जैसे ही दिए थे . पर देवांश को देखो कितनी इज्जत करता है अपने से बड़ों की छोटों की . ना जाने सुधीर किस पर गया ? और उसकी बदौलत अब हमारे पूरे खानदान के साथ-साथ हमारे आने वाली कई पता नहीं कितनी पीढ़ियों को यह श्राप भुगतना पड़ेगा ?

मैना देवी ने भानु प्रताप सिंह के कंधे पर हाथ रखा और उन्हें अंदर ले जाने लगी . उस दिन के बाद से वह दोनों पति-पत्नी कभी चैन से नहीं सो पाए . अवंतिका की आत्मा का रुदन उन्हें हर पल सोने नहीं देता था . इसी के चलते भानु प्रताप सिंह और मैना देवी ने अपना सारा राज पाठ अपने छोटे बेटे देवांश को सौंप दिया . और खुद वहां से तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े . अब एक यही एक आखरी उपाय था , जिससे वह अपने पापों का प्रायश्चित कर सकते थे . सुधीर को ना मार पाने का दुख उन्हें रोज होता . अगर वह शायद सुधीर को मार कर सजा दे देते , तो शायद अवंतिका उसके पूरे खानदान को यह श्राप ना देती .


धीरे-धीरे समय बिता गया सुधीर प्रताप सिंह जो की अवंतिका की श्राप देने के बाद भी संभाल नहीं पाया था . वह आज भी उतना ही क्रूर बना हुआ था . उसे अवंतिका के श्राप से कोई मतलब नहीं था . उसे अभी भी यही लगता था , कि अवंतिका ने वह जो श्राप दिया था , उसका कोई मतलब नहीं है . वह एक मिथ है . अगर उसे श्राप लगा होता , तो कब का लग चुका होता . लेकिन उसे अंदाजा नहीं था कि श्राप की शुरुआत हो चुकी है .
सुधीर राजमहल से निकलने के बाद किसी और रियासत की तरफ निकल चुका था . सुधीर काफी हट्टा - कट्टा और तेज दिमाग का आदमी तो था , इसलिए उसने पास की सियासत के राजा को कूटनीति से मार कर उनकी गद्दी को हथिया लिया . उनकी पुत्री से शादी करके सुधीर उस राज्य का राजा बन चुका था . लेकिन अवंतिका का श्राप तो टाले नहीं डाला जा सकता था . शादी करते ही सुधीर पर अवंतिका के श्राप ने अपना असर दिखना शुरू कर दिया था .


आखिर क्या असर दिखना शुरू किया था अवंतिका के श्राप ने ? साथ ही में सुधीर जिस श्राप को समझ रहा था मामूली , क्या वह श्राप ही बनेगा उसके पतन का कारण ? जानना दिलचस्प होगा !
आप सभी को क्या लगता है क्या अवंतिका का श्राप यूं ही खाली जाएगा ? फिलहाल कमेंट सेक्शन में कमेंट करके जरूर बताइएगा .
!!.... धन्यवाद ....!!