बीस्ट: ए टेल ऑफ़ लव एंड रिवेंज - भाग 3 Rituraj Joshi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बीस्ट: ए टेल ऑफ़ लव एंड रिवेंज - भाग 3

बीस्ट: ए टेल ऑफ़ लव एंड रिवेंज
" एक श्राप से घिरी राजकुमारी "
Episode - 03

Episode 03 बीस्ट: ए टेल ऑफ़ लव एंड रिवेंज (Beast: A Tale of Love and Revenge) : " एक श्राप से घिरी राजकुमारी "

अब तक अपने पढ़ा---------------------

अवंतिका ने सुधीर प्रताप सिंह के साथ-साथ भानु प्रताप सिंह के पूरे खानदान को श्राप दे डाला था , और इतना ही नहीं उसने छत से कूद कर अपनी जान भी दे डाली .
जिसका पश्चाताप करने के लिए भानु प्रताप सिंह ने अपने बेटे सुधीर प्रताप सिंह को राजमहल और अपने घर से निकालकर दिया .
तभी उन्हें पता चला कि राजमहल में पुरोहित जी भी आ चुके हैं , जिसे सुनकर तो भानु प्रताप सिंह और मीना देवी दोनों ही घबरा गए .
अब देखना दिलचस्प होगा , कि पुरोहित जी से वह दोनों क्या बात करते हैं ?
आईए देखते हैं.......!


अब आगे---------------

पुरोहित जी बड़ी गुस्से में राजमहल के अंदर आ रहे थे . वह अंदर पहुंचे तो राज सभा में महारानी और महाराज दोनों ही खड़े थे .
वह दोनों हाथ जोड़कर अपने किए की माफी मांग रहे थे , लेकिन पुरोहित जी बड़े ही गुस्से में भानु प्रताप सिंह जी से बोले .
पुरोहित जी बोले---------- हमें तुमसे यह उम्मीद नहीं थी भानु प्रताप सिंह . हमारी बेटी के साथ गलत हुआ , सोचो अगर यह हादसा तुम्हारी अपनी बेटी के साथ होता , तब तुम्हें क्या लगता ? बाप होने के नाते तुमने तो उस इंसान की जान ले लेनी थी लेकिन तुमने तो अपने बेटे को राज्य से ही बाहर निकाल दिया . क्या फायदा उसे बाहर निकाल कर ? अगर तुम उसकी गर्दन काट कर मेरे सामने रखते तो शायद मैं तुम्हें माफ भी कर देता , पर अपने बेटे को राजमहल से भागकर तुमने अच्छा नहीं किया . मैं तुम्हारे बेटे को श्राप देता हूं वह इंसान कभी खुश नहीं रह पाएगा , और ना ही उसे पाप को अपनी आंखों से देखने वाले , अर्थात कि तुम . तुम भी कभी खुश नहीं रह पाओगे . हर समय बेचैन रहोगे और सोचते रहोगे , कि आखिर तुमने अपने बेटे को पुत्र मोह में बचा कर रखा . याद रखना भानु प्रताप सिंह पुत्र मोह तो धृतराष्ट्र का भी नहीं बचा था . उसे पता था उसका बेटा गलत कर रहा है , लेकिन अपने बेटे की गलती को रोकने के बजाय उसने अपने बेटे का साथ दिया . जिसके फल स्वरुप उसने अपने बेटे का सर्वनाश होते हुए देखा था और साथ ही में पूरे कुल का सर्वनाश भी देखा था . तुम भी यह देखोगे मैं तुम्हें श्राप देता हूं , तुम भी अपने बेटे की अकाल मृत्यु देखोगे .

तभी भानु प्रताप सिंह जी रोते - रोते पुरोहित जी के पैरों पर गिर गया .
भानु प्रताप सिंह बोले---------- क्षमा कर दो पंडित जी . आप जो भी सजा देंगे वह मेरे सर आंखों पर . पर इतनी बड़ी सजा मत दीजिए . आपकी बेटी अवंतिका ने मरते मरते जो मेरी पीढ़ी को श्राप दिया है , वह तो इस जन्म में तो शायद ही टले . पर अब आप श्राप देकर जीते जी मुझे मत मारिए पुरोहित जी . मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूं , मुझे भी दुख है अवंतिका के साथ जो कुछ भी हुआ उसका . मुझे नहीं पता था कि जिस बेटे को हम पाल रहे हैं , वह तो सांप निकलेगा . हमें माफ कर दीजिए , आपकी बेटी ने जो श्राप दिया है . वह तो हमारे आने वाली पीढ़ी की बच्चियों को दिया है . आप ही बताइए कल ना यह समय रहेगा और ना ही कुछ समय बाद यह समय . कल ना ही हम लोग रहेंगे और ना ही हमारी धरोहर . समय बदलता जा रहा है पुरोहित जी , हो सकता है कि जो काम आज नहीं हुए वह बाद में होंगे . उस पर आपकी बेटी का दिया यह श्राप मेरा पूरा खानदान सदियों तक भुगतेगा . इसके लिए माफ कर दीजिए . और अपनी बेटी के श्राप को तोड़ने के लिए कुछ तो करिए पुरोहित जी . मैं नाक रगड़कर आपसे माफी मांगता हूं . अपने खानदान को बचाने की भीख मांगता हूं .


पुरोहित को अपनी बेटी के जाने का दुख तो था लेकिन उन्हें पता था कि भानु प्रताप सिंह और मीनादेवी बहुत ही सज्जन है . उनके घर में कपूत पैदा हुआ इसमें उनकी गलती तो नहीं थी , लेकिन अब उसकी बेटी का दिया हुआ श्राप तो टाला नहीं जा सकता था .
आखिर अवंतिका एक पवित्र लड़की थी , जिसने कभी किसी पुरुष पर अपनी गंदी नियत नहीं डाली . जिस पुरुष के साथ उसकी शादी होने वाली थी वह उसके पति पूर्ण रूप से समर्पित थी . अवंतिका का श्राप कभी झूठलाया तो नहीं जा सकता था , लेकिन पुरोहित जी अपनी बेटी के श्राप का एक तोड़ जरूर निकाल सकते थे .

पंडित जी ने भानु प्रताप सिंह की तरफ देखते हुए कहा .
पुरोहित जी बोले---------- ठीक है भानु प्रताप सिंह मैं अवंतिका का श्राप तो नहीं तोड़ सकता हूं , लेकिन जैसे हीरे को हीरा काटता है . वैसे ही अवंतिका के दिए हुए इस श्राप को काटने के लिए एक आशीर्वाद जरूर दे सकता हूं . पर ध्यान रहे आशीर्वाद देने का मतलब यह नहीं है , कि अवंतिका का श्राप फलदाई नहीं होगा अवंतिका का श्राप तुम्हारे खानदान की लड़कियों को जरूर लगेगा .

भानु प्रताप सिंह जी मैं जैसे ही यह सुन तो उन्हें थोड़ी शांति महसूस हुई वह पंडित जी के आगे हाथ जोड़ते हुए और नतमस्तक होकर बोले .
भानु प्रताप सिंह जी बोले------- मैं अवंतिका बिटिया के श्राप को अपनाने के लिए तैयार हूं पुरोहित जी . आप अपना आशीर्वाद दे दीजिए .
पुरोहित जी बोले------- ठीक है तो सुनो राजन ......!



आँखिर क्या तोड़ बताया होगा पुरोहित जी ने भानु प्रताप सिंह जी को ? क्या तोड़ सुनकर भानु प्रताप सिंह जी के दिल को तसल्ली मिलेगी ? या फिर होगा नहीं तूफान का आगाज ! यह तो आने वाला वक्त बताएगा .
अब देखना दिलचस्प होगा की आँखिर पुरोहित जी ने अपनी बेटी की श्राप को काटने का क्या उपाय बताता है ? और क्या वह उपाय कितना कारगर होता है ? जो हम जानेंगे कहानी की आने वाले भाग में !
फिलहाल कमेंट सेक्शन में यह बताना ना भूलिएगा की आपको कहानी का यह भाग कैसा लगा .
!!..... धन्यवाद .....!!