शून्य से शून्य तक - भाग 40 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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शून्य से शून्य तक - भाग 40

40==

कुछ दिनों बाद दीनानाथ ने देखा कि आशी ऑफ़िस जाकर अपने प्रॉजेक्ट पर काम करने लगी थी | उन्हें तसल्ली सी हुई | उनकी निराशा अब एक बार फिर से आशा में परिवर्तित होती नज़र आ रही थी | मनु ने थोड़े दिनों में ही ‘एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट’ संभाल लिया था | यह उसकी रुचि का विषय था और यही उसका विषय भी था | अत:काम संभालने में उसे कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी | 

काम तो संभल गया, उसके सहारे वह भी संभल रहा था | आशी से रोज़ मुलाकात होती ही थी | वह बचपन से उसका दोस्त था इसीलिए दीना और सहगल ने बचपन से ही उन्हें एक-दूसरे के लिए चुन लिया था | 

“एक बात बताओ दोस्त अगर बड़े होकर इन दोनों की ज़िंदगी में कोई और आ गया तो? ”सहगल ने एक दिन बात छेड़ी, जब सोनी और रीना भी साथ ही थे | 

“हाँ, यह तो हमने सोचा ही नहीं, हम अपना ही ख्याली पुलाव पका रहे हैं | ”डॉक्टर की पत्नी रीना खिलखिलाकर हँस पड़ी | 

“तो क्या हुआ, उनकी पसंद की शादी कर देंगे | इसमें कौनसी बड़ी बात है? न यहाँ कोई बुरा मानने वाला है कि मान-अपमान का दावा किया जाए | ”सोनी ने भी बेफिक्री से कहा था | 

“तो ठीक है, जैसा समय होगा, वैसा कर लेंगे | अभी तो दोस्त रिश्तेदारी का सपना देख लें | ”दीना ने कहा था और इस प्रकार बड़ों के बीच लड्डू फूटने लगे थे | 

यह किसको मालूम था कि जीवन ये दिन दिखाएगा | इसीलिए तो कहते हैं कि जिस ओर समय की धारा बहाकर ले जाए, बहते चलो | आज सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं था | अब सबसे पहले बहनों के बारे में सोचना था बाद में कुछ और---

“अंकल !एक बात बताइए, वो जो अपने यहाँ लड़का है न एक्सपोर्ट डिवीज़न में काम करता है, अनिकेत---कैसा लड़का है? आपको ख्याल है न उसका ? आशिमा के लिए कैसा रहेगा? ” मनु ने एक दिन दीना अंकल से पूछा | 

“हाँ, लड़का तो अच्छा है, इंटेलीजेन्ट भी है, अपने काम में गंभीर भी है | एक साल से तो ऊपर हो गया यहाँ काम करते | ऐसा करो, केलकर साहब से पूछ लो और उसके फैमिली बैकग्राउंड के बारे में भी पता लगवा लो | यह जानना बहुत जरूरी है कि हमारी बेटी जिसके साथ जुड़ेगी वह और उसका परिवार कैसा है? तभी बात आगे बढ़ाना ठीक है | ” दीना अंकल ने मनु को समझाते हुए कहा | 

“जी अंकल---”मनु के लिए दीना अंकल के अलावा अब था ही कौन जिससे वह कोई बात शेयर कर सकता या जो सहारा दे सकता | 

मनु उस लड़के की पूरी जानकारी लेने के लिए उतावला हो उठा | क्रमश:दिनों के गुजरने के साथ उसे बहनों के प्रति अपने कर्तव्य का बोध होने लगा था | और सब बातें बाद में, सबसे पहले बहनों के लिए अच्छा घर-वर तलाशने और उनको सैटल करने की बात थी | वैसे मन तो अभी भी उचाट ही था और उसका मन कर रहा था कि किसी तरह अपना कर्तव्य पूरा करके यहाँ से भाग जाए | बहुत प्रयत्न करने के बाद भी आशी से उसकी उम्मीद कभी जुड़ ही नहीं पाई | ये तो दीना अंकल थे जो उसके सिर पर अपना हाथ रखे हुए थे वरना----अपने पिता के भाई के बारे में जो उसने अपनी मम्मी से सुना था वे उससे भी कहीं अधिक रूखे निकले थे | कौनसा रिश्ता? कैसा रिश्ता? किसका रिश्ता? 

अनिकेत के बारे में सारी जानकारियाँ हासिल करके मनु को बहुत संतुष्टि हुई | बहुत अच्छे शिक्षित, संस्कारी परिवार का लड़का था वह | बंगाली मूल का यह लड़का अपने परिवार के साथ अब बंबई का ही स्थाई रूप से निवासी हो गया था | उसके पिता अंतर्राष्ट्रीय बैंक में मैनेजर थे जो अब अवकाश प्राप्त थे | उसकी एक बड़ी बहन भी थी जिसका विवाह पाँच वर्ष पूर्व हो चुका था | उसका पति नैवी में कार्यरत था | 

मनु ने दीना अंकल के सामने अनिकेत की पूरी जन्मपत्री खोलकर रख दी थी | उन्हें अनिकेत का परिवार बहुत अच्छा लगा और वे देर न करके एक दिन मनु के साथ अनिकेत के माता-पिता से मिलने पहुँच ही गए | अनिकेत को इस बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं था | सेथ जी और अपने बॉस को देखकर अनिकेत असमंजस में पड़ गया और बौखला सा गया | 

“आप--? सर—” अनिकेत के मुँह से निकला | 

“अंदर नहीं बुलाओगे ? ”मनु ने पूछा | 

“ओह! सर प्लीज़ ----आइए----”वह उन दोनों को बहुत सम्मान के साथ हॉल में ले गया |