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डॉ.सहगल के परिवार के साथ हुई इस दुर्घटना को लगभग अब एक माह हो गया था | दीना अब भी सहगल के घर बच्चों से मिलने हर दूसरे दिन जाते थे | उन्होंने देखा कि कई दिनों से कुक नहीं आ रहा था अत:माधो ने बच्चों के खाने-पीने के लिए एक अच्छे महाराज का इंतज़ाम कर दिया | दीना मनु के पास बैठते | डॉ.सहगल का इतना बड़ा दवाखाना था जिसमें कई असिस्टेंट डॉक्टर्स थे, कई बीमारियों के डॉक्टर्स थे और कई बीमारियों की सर्जरी भी की जाती थी | दवाखाना उन्हीं डॉक्टर्स के सहारे चल रहा था | मनु का तो यह विषय था ही नहीं लेकिन फिर भी वह दीना अंकल के कहने से अब क्लीनिक में चक्कर लगाने लगा था |
दीना अंकल ने हॉस्पिटल के बारे में भी अब कानूनी कार्यवाही शुरू कर दी थी | उन्होंने सहगल की कोठी भी तीनों बच्चों के नाम करवा दी थी | सहगल के सभी बच्चों ने परिस्थिति के अनुसार अपने आपको संभालने की पूरी कोशिश की थी लेकिन कभी-कभी मनु बहुत खीज जाता | उसके चाचा तो जो एक बार आए वही बस, उसके बाद कभी भी उनका हाल पूछने के लिए फ़ोन तक नहीं आया | वह दीना अंकल से इस बात का जिक्र करता, वे उसे समझाते कि दुनिया ऐसी ही है, हमें जीना है तो सब कुछ समझकर, सहकर ही रहना होगा न!
“अंकल ! मेरा मन यहाँ बिलकुल नहीं लगता | सोचता हूँ कहीं बाहर निकल जाऊँ | ”मनु बार-बार दीना अंकल से कहता | बहनों को देखकर तो वह टूट ही जाता था |
“देखो बेटा, पहले अपनी ड्यूटी पूरी कर लो फिर जो चाहे करना | इन बहनों को छोड़कर तुम कैसे जा सकते हो? ”वे उसे बार-बार समझाते | जब तक माता-पिता सिर पर रहते हैं बच्चे कितने ही बड़े क्यों न हो जाएं छोटे ही बने रहते हैं | इस हिसाब से मनु भी अभी छोटा ही था, इतनी सारी ज़िम्मेदारी अचानक उसके सिर पर आ पड़ी थी |
“आप ठीक कहते हैं अंकल, वैसे आपने इतना सारा काम यहाँ का निबटवा दिया है | मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या करूँ? ”मनु बहुत उदास था |
“मनु ! जहाँ तक मैं समझता हूँ दवाखाने के बारे में जो हमने निर्णय लिया है, उससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता | तुम्हारे पापा, मम्मी के नाम पर यह दवाखाना रहेगा और इसको सब वे ही डॉक्टर्स चलाते रहेंगे जो पापा के सामने उनके साथ थे | इसके लिए एक ट्रस्ट बना दिया जाएगा | अगर तुम्हें यहाँ भी नहीं रहना हो तो भी काम तो चलता ही रहेगा | परंतु पहले दोनों बहनों के भविष्य के बारे में सोचना है | बाद में तुम्हारी बारी----”दीना अंकल कुछ रुके फिर बोले;
‘ये बताओ अपना घर छोड़कर कहाँ जाओगे? ”
मनु बेचैन सा इधर-उधर चक्कर काट रहा था |
“सुनो मनु, बैठो ज़रा ---”उन्होंने ने कहा तो मनु उनके सामने सोफ़े पर आ बैठा |
“जी, कहिए अंकल----”
“”तुम मेरी कंपनी क्यों नहीं जॉयन कर लेते? मुझे भी तो एक्सपोर्ट डिवीज़न के लिए तुम्हारी ज़रूरत है | मैंने न जाने कितनी बार तुम्हारे पापा, मम्मी से कहा भी था |
“जी अंकल, बात तो बहुत बार छिड़ी पर मैं कोई डिसीज़न नहीं ले सका---अब, कुछ तो करना ही होगा, कुछ सोचना ही होगा | ”
“भई, मैं तुम्हें बाध्य तो नहीं करना चाहता पर एक बात जरूर कहूँगा कि तुम्हारा निष्कर्ष अगर मेरे पक्ष में होगा तो मुझे तो खुशी ही होगी। साथ में रहकर हम लोग मिलकर यहाँ के सब काम ठीक तरह से पूरे कर सकेंगे | ”
कई बार चर्चा करने के बाद मनु को दीना अंकल की बात समझ में आ गई | अब मनु ने उनका व्यापार जॉयन कर लिया था | दोनों लड़कियों ने भी अपनी पढ़ाई में मन लगाने का प्रयास किया था | फिर भी जो एक सूनेपन का वातावरण पसर गया था उसमें से उभर ही नहीं पा रहे थे सब | अब कभी-कभी आशी भी आशिमा, रेशमा को लेकर कहीं बाहर चली जाती | वह दोनों लड़कियों के साथ इधर-उधर की बातें करके उनका मन बहलाने की कोशिश कर रही थी | मनु के साथ उसने कोई पीड़ा साझा नहीं की जबकि यह सबसे जरूरी था | यह समय उसके लिए एक साथी का न होना सबसे अधिक पीड़ादायक था |
आशी कभी उन दोनों को लेकर फ़िल्म देखने चली जाती तो कभी होटल या फिर पार्क में!कभी किसी पार्क में जाने पर रेशमा अपने मम्मी-पापा को याद करके रोने लगती |
“दीदी! यहाँ पर हम पापा, मम्मी के साथ कितनी बार आते थे | पापा हमारे साथ यहाँ दौड़कर छिपा-छिपी खेलते थे---वो सामने वाले पेड़ हैं न, उनमें जाकर छिप जाते थे | मेरे और आशिमा दीदी को भी नहीं मिलते थे तब मम्मा हमें इशारे से बता देतीं | हम उन्हें ढूंढकर लाते और उनके हारने पर उनसे आइसक्रीम खाते | ”कहते हुए दोनों बहनों की आँखों में आँसु झिलमिलाने लगते | आइसक्रीम या कोई भी चीज़ उनके लिए बड़ी बात तो थी नहीं लेकिन पापा को ढूँढने में उन्हें जो मज़ा आता और उनके हारने पर आइसक्रीम खाने का कार्यक्रम कुछ और ही मज़ा देता था |
यह सब लिखते हुए आशी की कलम काँप रही थी | अभी तो उसे अपना पीड़ा से पूर्ण इतिहास लिखने के लिए न जाने कितनी पीड़ाएं झेलनी थीं |