शून्य से शून्य तक - भाग 36 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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शून्य से शून्य तक - भाग 36

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आज फिर आशी लिखते-लिखते बाहर बॉलकनी में आ खड़ी हुई थी | सुहास कभी भी आकर उससे ज़िद करने लगती कि जितनी भी लिखी है वह अपनी कहानी उसे पढ़ दे लेकिन वह आशी थी, बता चुकी थी कि पूरी हो जाए तब ही पढ़ना---सुहास का मन मुरझा जाता | आज वह न जाने क्या कहने आई थी लेकिन आशी दीदी का अजीब स मूड देखकर वापिस चली गई | वास्तव में आशी उस दिन बहुत उदास थी | उस दिन की यादें उसका जैसे दम घोंट रही थीं----यह वह दिन था जब उन सब पर एक बार फिर पहाड़ गिरा था, उसने दूर से काली घटाएं घिरे हुए अरावली के पर्वत को घूरा फिर पीछे चली गई----

दीना जी अपने चैंबर में बैठे किसी प्रॉजेक्ट पर निगाह मार रहे थे कि इंटरकॉम बज उठा | 

“स---र---”उधर का स्वर बहुत धीमा था, घबराया हुआ सा !

“बोलो किटी---क्या बात है? ”

“सर---वो—”पारसी रिसेपनिस्ट किटी की लड़खड़ाती आवाज़ थी!

“स्पीक आउट—क्या आशी मैम के बारे में---? ”

“वो---सर ---”वह इतनी घबराई हुई थी कि उसके मुँह से आवाज़ ही नहीं निकल रही थी | 

“टैल मी सून---व्हाट हैप्पन्ड किटी----”अचानक जाने क्यों उनका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा | 

“स—र---फ़ोन आया है, डॉ.सहगल और मिसेज़ सहगल का एक्सीडेंट हो गया है | ”किटी ने जैसे घबराकर जल्दी से किसी तरह मुँह से उगला और गुम सी हो गई | 

कौन नहीं जानता था डॉ.सहगल और उनके पूरे परिवार को यहाँ पर? उन्हें भी सेठ दीनानाथ जी जैसा ही सम्मान दिया जाता था यहाँ !दीना के हाथ से रिसीवर छूटकर गिर गया | उनका सिर चक्कर खाने लगा | माधो शायद यहीं कहीं चला गया था, वैसे वह कहाँ उनको छोड़कर जाता है? काँच के चैंबर से किसी की दृष्टि सेठ जी पर पड़ी जो अपने सामने रखे हुए ग्लास से पानी पीने जा रहे थे लेकिन काँपते हाथ से ग्लास छूटकर नीचे गिर गया था | 

अचानक जैसे भागा-दौड़ सी मच गई, एक कर्मचारी की दृष्टि दीनानाथ जी के चैंबर के काँच के पारदर्शी दरवाज़े को बेंधकर उन पर पड़ी, वह अचानक भागा, उसके पीछे कई लोग लगभग भागते हुए चैंबर की ओर भागे | जैसे हड़बड़ी सी मच गई और देखते-ही देखते कई लोग उनके पास आ खड़े हुए | टेलीफ़ोन ऑपरेटर किटी भी जल्दी से भागी आई | 

माधो यहीं कहीं था, जैसे ही उसने ऑफ़िस में प्रवेश किया और कर्मचारियों को सेठ जी के चैंबर की ओर भागते हुए देखा, हड़बड़ा गया | भागकर सबको चीरता हुआ वह अपने मालिक के पास जा पहुंचा | किटी पहले ही कुछ बड़बड़ाती हुई आई थी, उसकी बात लोगों को पूरी तरह समझ में तो नहीं आ रही थी लेकिन कुछ डॉ.सहगल और सर जैसे शब्द लोगों के कानों में पड़े थे और उसके दौड़कर आने के अंदाज़ ने मानो सबको बता दिया था कि कुछ अनहोनी तो ज़रूर हुई है | आशी ने भी यह सब अपने चैंबर से देखा और परेशान हो उठी | जैसे ही आशी ने पिता के चैंबर में प्रवेश किया, पिता को अनमनी स्थिति में देखा | वह लगभग भागते हुए उनके पास आई | 

“व्हाट---व्हाट हैप्पन्ड पापा ? ”वह काफ़ी ज़ोर से चीखी थी, चैंबर का दरवाज़ा ज़ोर से खुलने और फिर ज़ोर से बंद होने पर ऑफ़िस में और भी खलबली मच गई | जितने लोग अभी तक नहीं आए थे वे सब लोग भी भागकर चैंबर के बाहर आ पहुँचे | अब तक वहाँ मि.केलकर, पटेल साहब और दो-चार और सीनियर ऑफिसर्स भी आ चुके थे | आशी ने पिता के कंधों पर हाथ रखे हुए थे, उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था | 

“प्लीज़ कोई पापा के डॉक्टर को फ़ोन लगाइए---”उसने पिता को पकड़े हुए लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा | 

“बीबी, हो गई है बात डॉक्टर साहब से---”माधो ने बताया | दीना जी के एक ओर वह था तो दूसरी ओर आशी | 

अचानक वे अपनी मेज़ पर सिर टिकाकर स्पंदनहीन से बैठ गए, उनकी आँखें फटी हुई थीं, उनके मुँह से कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी | जैसे शरीर का रक्त किसी ने निचोड़ लिया था | 

चैंबर के बाहर कर्मचारियों का जमघट लग गया था और ‘क्या हुआ? क्या हुआ? ’की आवाज़ें वातावरण में पसर रही थीं | किटी ने बताया कि डॉ.सहगल की कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी और मिसेज़ सहगल तो वहीं----और डॉ.साहब की हालत बहुत खराब थी | पल भर में कहाँ से कहाँ बात फैल गई | 

माधो लगभग भागते हुए ठंडा पानी लाया, उन को ज़बरदस्ती दो घूँट पिलाया और ड्राइवर को गाड़ी लाने के लिए कहने बाहर की ओर भागा | माधो को कुछ कहने की ज़रूरत नहीं होती थी, वह तो सब निर्णय अपने आप ही ले सकता था | आशी की समझ में भी नहीं आ रहा था कि वह आखिर करे तो क्या करे? उसके पिता इस समय ऐसी अनाथ दृष्टि से इधर-उधर देख रहे थे जैसे किसी बच्चे के माता-पिता के साथ कुछ हादसा हो गया हो और वह समझ नहीं पा रहा हो कि क्या करे---? ? 

एक भयंकर चुप्पी पसर गई थी, माधो ने बड़ी मुश्किल से स्वतः दीनानाथ को उठाया, उनके एक तरफ़ आशी थी, दूसरी ओर माधो और पीछे न जाने कितने लोग! चैंबर से बाहर लाकर गाड़ी तक मुश्किल से उन्हें गाड़ी में बैठाया | ऑफ़िस में फुसर-फुसर हो रही थी | माधो और आशी उनके साथ गाड़ी में आ बैठे और माधो ने ड्राइवर को चलने के लिए कहा | उनकी गाड़ी के पीछे अन्य गाड़ियों में ऑफ़िस के कई महत्वपूर्ण कर्मचारी भी थे | अस्पताल की ओर जाती गाडियाँ केवल चलने की आवाज़ के अलावा बिलकुल गुम सी थीं |