पागल - भाग 54 Kamini Trivedi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

पागल - भाग 54

भाग–५४
"ये जो लोग ,, जिन्हे मैं तुम्हारे माता पिता बनाकर लाया हूं। ये वंदना के माता पिता है।" अभिषेक ने कहा।
मैने देखा वो लोग कमरे के बाहर खड़े थे। मुझे पता नही चला कबसे। मगर उनकी आंखो में बेहिसाब आंसू थे ।

मैं उठकर उन लोगों के पास गई। और मैने उनकी और देखा। वो लोग मुझमें अपनी वंदना को ढूंढ रहे थे। उनकी आंखे दर्द और लाचारी से भीगी हुई थी। मैने वंदना की मां को गले से लगा लिया और रोने लगी। मैं भी मां और पापा के प्यार को तरस गई थी। वंदना की मां का रो रो के बुरा हाल था ।
मैने उन्हे मां और पापा कहकर बुलाया तो वो दोनो ही मुझसे लिपट गए ।

उन्हे उनकी बेटी वापिस मिल गई थी। उन्हें उनकी वंदना वापिस मिल गई थी ।

मैं मां बनने वाली थी। जब उन्होंने वंदना को खोया था तब वो भी मां बनने वाली थी शायद यही वजह थी कि वो लोग मुझे अपनाना चाहते थे।
दिल दर्द से भर चुका था ।

मां और पिताजी मेरे सर पर हाथ रखकर मुझे आशीर्वाद देकर आराम करने अपने कमरे में गए। मैं दरवाजा अंदर से बंद करके वापिस अभिषेक के पास आई । और उनके कंधों को छुआ तो वो पलट कर मेरे गले से लग गए। वो शायद अपने आंसू मुझे नही दिखाना चाहते थे। मैने उनकी पीठ सहलाते हुए उन्हें कहा
"क्या हुआ अभी ,, शांत हो जाइए,, आप इतने कमजोर नहीं है। इतनी बड़ी लड़ाई लड़ चुके है आप । वंदना को इंसाफ भी दिला दिया। फिर अब ये दुख कैसा?"
"एक बात कहनी थी आपसे" अभिषेक ने कहा।

"हां कहिए"
"आपको जब पहली बार ट्रेन में देखा तो मुझे मेरी वंदना का खयाल आया। वो आपकी ही तरह मासूम और खूबसूरत थी। मैं आपकी और आकर्षित हो रहा था । जब आप मुझे ट्रेन में अकेला छोड़ कर गायब हुई । तो दिल बहुत बेचैन हुआ मुझे लगा मैने दोबारा वंदना को खो दिया । फिर आप मिली तो पता चला आप प्रेगनेंट है। धीरे धीरे मुझे एहसास हुआ कि मैं आपसे प्यार करने लगा हूं । मुझे माफ कर दीजिए कीर्ति जी । बिना आपकी इजाजत मैं आपसे प्यार करने लगा हूं । मुझे ये सब इस तरह आपसे नही कहना चाहिए । मगर नही कहूंगा तो गिल्ट रहेगा मन में ।आप सिर्फ इसे मेरी और बातों की तरह सुनके दिल से निकाल दीजिएगा । लेकिन एक रिक्वेस्ट है" कहकर अभिषेक रुक गया
"आप मुझे छोड़ कर कभी मत जाइएगा कीर्ति जी।"
उसने ये बात मेरी आंखों में आंखे डाल कर कही थी। मैं उनकी इस बात का क्या जवाब देती। मेरे दिल में तो बस राजीव ही था ।

मैं तो बच्चा होने के बाद उन्हें छोड़कर जाने का मन बना चुकी थी।
"अच्छा मेरी एक बात समझ नही आई?" मैने बात को घुमाते हुए कहा ।
"क्या ?"
"आप की शादी के बारे में यहां कोई क्यों नही जानता और घर में कभी वंदना का जिक्र नहीं होता । और क्यों उनकी एक भी तस्वीर नही है यहां"
"दिल्ली में मैं वंदना की मौत के बाद टूट सा गया था । किसी भी तरह उस दर्द से उभर नही पा रहा था । बहुत कोशिशों के बाद भी में देवदास सा हो गया था। मुझे ऐसा देख वंदना के पिताजी ने मां से कहा कि वो मेरी जिंदगी से बंदना की सारी यादें मिटा दे और दिल्ली से मुझे दूर ले जाए वरना वो अपना बेटा खो देंगी। मां बहुत चिंता में थी। फिर वो मुझे लेकर काशी आ गई। यहां आने के बाद उन्होंने वंदना की सारी यादों को एक संदूक में भर कर ताला लगा दिया और स्टोर रूम में रख दिया । ताकि मैं ना देख सकूं । उसकी एक भी तस्वीर उन्होंने बाहर नहीं रखी । और फिर मुझे इस दर्द से बाहर निकाला । और इसी वजह से यहां के किसी भी व्यक्ति को मेरे अतीत के बारे में कोई जानकारी नहीं है।"
"ओह अच्छा" मैं वंदना की तस्वीर देखना चाहती थी मगर मैं अभी को ये कैसे कहती । मैं उसके दर्द को बढ़ाना नही चाहती थी । मगर अभिषेक शायद मेरे दिल का हाल समझ रहा था ।

अभिषेक ने पर्स निकाला और मुझे दिखाते हुए बोले।
"यही देखना चाहती है ना आप?"

क्या अभिषेक के पर्स में वंदना की तस्वीर थी ?