भाग–४९
अभिषेक मुझे घुरे जा रहा था । और मैं भूखी खाए जा रही थी। मेरा खाना खत्म हुआ पर मुझे और भूख लगी थी मैं ने अभिषेक की और देखा और फिर उसके हाथ में रखे खाने की और , वो समझ गया कि मुझे और भूख लगी है उसने मुझे अपना खाना भी दे दिया ।
"आप क्या खायेंगे?" मैने औपचारिकता से पूछा।
"मैं ट्रेन में बैठने से पहले खाकर ही निकला था आप ले लीजिए" जैसे ही उसने कहा मैंने एक पल भी गवाएं बिना उसका खाना भी लेकर खा लिया ।
अभिषेक ने मुझसे पूछना चाहा पर मैने उसे कोई जवाब ही नहीं दिया ।
काशी आने वाला था । मैं जानती थी अभिषेक मेरे पीछे आयेगा या मुझे छोड़ने की बात करेगा । मैं उससे भागना चाह रही थी। इसलिए काशी आने पर मैं भीड़ में कहीं खो गई । और अभिषेक मुझे ढूंढता रह गया । मुझे ऐसा था अब हम कभी भी नही मिलेंगे।
मैं मन ही मन महादेव और अभिषेक का धन्यवाद कर रही थी।
मैं भटकते भटकते लोगों से पूछते हुए मंदिर पहुंची।
मंदिर के बाहर ही मैं बैठी रहती । मैं बगैर कपड़ो और पैसे के निकली थी मेरे पास पहनने को कुछ नही था । कपड़े फटने को थे धूप में चेहरा काला पड़ रहा था । भीख मांग कर पेट भर रही थी। मंदिर में कोई भी आता कुछ खाने को मिल जाता तो ले लेती । 3 दिन बीत गए थे । फिर एक कार मंदिर के आगे रुकी कार बहुत बड़ी सी थी। कार में से एक मांजी उतरी। मैने सोचा उन से पैसे मांग लेती हूं मैं कार के पास जाने के लिए रोड क्रॉस कर ही रही थी कि चक्कर खाकर गिर गई। भीड़ इकट्ठा हुई । मैं बेहोश हो चुकी थी। जब होश आया तो खुद को एक हॉस्पिटल में पाया । मेरे पास वही मांजी बैठी थी।
"कैसी हो बेटी?"
"मैं,, यहां कैसे आई?"
"मैं लाया हूं " कहते हुए हाथ में दवाई और बिल लिए एक आदमी ने अंदर प्रवेश किया ।
"अभिषेक जी" मेरे मुंह से अनायास निकल गया।
"तुम दोनों एक दूसरे को जानते हो?" मांजी ने पूछा ।
"हां मां , ये वही ट्रेन वाली लड़की है" अभिषेक थोड़ा नाराज लग रहा था ।
मैने अपनी नजरें शर्म से नीचे कर ली। उसने मेरी मदद की थी और मैं भाग गई थी।
"अच्छा अभी बेटा डॉक्टर ने क्या कहा ?" मांजी ने पूछा
"मां,, इन्हे बहुत कमजोरी है, बहुत दिनों से भूखी है और गर्मी इन्हे शायद सहन नही होती और बाहर धूप में बैठी रही होंगी इसलिए ,, इन्हे चक्कर आ गया। बाकी ज्यादा चिंता की बात नही है ।" अभिषेक ने कहा ।
हम सभी साथ में हॉस्पिटल से निकले ।
"जी मैं अब चलती हूं"
"कहां जायेगी आप अपनी मौसी के यहां?" अभिषेक ने ताना मारा । मैने अपना मुंह नीचे कर लिया ।
"आप चुपचाप मेरे घर चल रही है"
"मगर"
"मगर वगर कुछ नही, जब ठीक हो जाए आप चली जाना मेरे घर से" अभिषेक ने कहा और हम उसके घर चले गए ।
वहां अभिषेक के ही कमरे में मुझे रेस्ट कराया गया अभिषेक का घर बहुत बड़ा नही था । क्योंकि घर में वो दो ही लोग थे ।वह एक होटल में मैनेजर था । मांजी अपने कमरे में रेस्ट करने गई ।
तभी अभिषेक मेरे पास आया । और मुझे बड़े ही अजीब ढंग से देखने लगा ।
"क्या ? ऐसे क्यों देख रहे है?" मैने सकुचाते हुए पूछा ।
"आप जानती है इस हालत मैं आपको बाहर इस तरह भटकना नहीं चाहिए । कम से कम अपने बच्चे के बारे में तो सोचिए "
उसकी ये बात सुनकर मेरे पैरो तले जमीन खिसक गई। "बच्चा ? " मैने आश्चर्य से पूछा।
"क्या आप नही जानती आप प्रेगनेंट है?"
"मैं,,, मैं,,, प्रेगनेंट?" मेरी आंख में आंसू आ गए। जानती होती तो शायद राजीव का घर ना छोड़ती । मैं सोच रही थी।
अब क्या होगा आगे? क्या अभिषेक मुझे वापिस अपने शहर भेजेगा या मैं अबॉर्शन करवा लूंगी।