कुकड़ुकू - भाग 8 Vijay Sanga द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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कुकड़ुकू - भाग 8

एक तरफ जहां बच्चों मे बहस चल रही थी, वहीं दूसरी तरफ बड़ों मे खेत खलियान की बातें चल रही थी। “अरे शेखर भाई...! टमाटर खेत मे टमाटर लगाए थे उसका क्या हाल है? मैं तो कल टमाटर तोड़कर बाजार ले जाने वाला हूं।” सुशील ने शेखर से पूछा।
“अरे यार सुशील, मैं भी कल टमाटर तोड़कर बाजार ले जाने वाला हूं। इस बार टमाटर की खेती अच्छी हुई है, और दाम भी अच्छा मिल रहा है।” शेखर की ये बात सुनते ही सुशील कुछ सोचने लगा, फिर उसने कहा, “अरे तो शेखर भाई, कल साथ मे ही बाजार चलते हैं। सुबह जल्दी चलकर टमाटर तोड़ लेंगे, और कल रविवार भी है, और बच्चो की भी स्कूल की छुट्टी है, तो उनको भी खेत ले चलेंगे, वो भी हमारे साथ टमाटर तुड़वाने मे हांथ बटा देंगे। और हां शेखर भाई, एक काम करते हैं, कल सब मिलकर पहले तुम्हारे खेत के टमाटर तुड़वा लेंगे, उसके बाद मेरे खेत के टमाटर तुड़वा लेंगे, क्या कहते हो !”
सुशील की बात सुनकर शेखर ने एक बार के लिए सोचा और फिर कहा, “ठीक है भाई सुशील, ऐसा ही करते हैं, ऐसे मे समय भी बचेगा।” सुशील की ये बात बाकी सबको भी सही लगी, और सबने इसके लिए हां भर दिया।

सभी लोगों न खाना खाने के बाद थोड़ी देर बात की और फिर जानकी ने अपनी बेटी शिल्पा को देखते हुए कहा, “चल बेटा शिल्पा, घर नही चलना क्या?”
अपनी मां की बात सुनकर शिल्पा उठी और अपनी मां के पास आकर खड़ी हो गई। जानकी, शेखर और शिल्पा अपने घर को रवाना हो गए। मंगल भी अपने घर जा चुका था। शांतिऔर सुशील बैठकर बाते कर रहे थे की रघु सुशील के पास आया और पूछा–“पापा, ये दूसरे वाले मुर्गे का क्या करेंगे?” ये सुनकर सुशील ने कहा–“रघु बेटा ये अगले रविवार के लिए।” ये कहकर सुशील मुस्कुराने लगा। अपने पापा की बात सुनकर और उनके चेहरे पर मुस्कान देखकर रघु समझ गया की अगले रविवार इस मुर्गे का नंबर है।

“रघु...! अब सो जा बेटा, कल सुबह जल्दी उठकर हमे खेत पर चलना है और टमाटर तोड़ने हैं। पहले तेरे चाचा शेखर के खेत के टमाटर तुड़वाएंगे, उसके बाद अपने खेत के टमाटर तोड़ेंगे। इसलिए सो जा, सुबह जल्दी उठना है।” रघु से ये कहकर सुशील, शांतिके पास आकर बैठ गया। शांतिबर्तन धो रही थी। थोड़ी देर बाद शांतिने बर्तन धो लिए, उसके बाद वो दोनो भी सोने चले गए।

सुबह मुर्गे की बांध के साथ सुशील की नींद खुल गई। उसने शांतिऔर रघु को भी जगा दिया। सुशील ने अपनी साइकिल निकाली, और चार से पांच बड़े बड़े झोले साइकिल के पीछे रख दिए। “चल शांति.. चल बेटा रघु , खेत चलते हैं।” इतना कहकर सुशील, रघु , और शांतिखेत के लिए निकलने ही वाले थे की पीछे से किसी की आवाज आई–“अरे भाई रुको, हम भी चल रहें हैं।” ये सुनकर रघु , शांति, और सुशील ने पीछे मुड़कर देखा तो शेखर, जानकी और शिल्पा तेज कदमों से चलते हुए उनकी तरफ आ रहे थे। शेखर भी साइकिल लेकर आया था। “अरे शेखर भाई आ गए आप लोग, चलो सब साथ मे चलते हैं।” सुशील ने शेखर से कहा और सब खेत जाने के लिए रवाना हो गए।

गांव मे सभी लोग खेती बाड़ी करते हैं, इसलिए जल्दी सो जाते हैं। इसका एक कारण ये भी है की गांव मे लोगों के पास ज्यादा सुविधा नहीं होती है। बिजली भी किसी किसी के घर पर ही होती है। चारो तरफ अंधेरा पसरा रहता है, इसलिए लोग जल्दी सो जाते हैं और सुबह जल्दी उठ जाते हैं।

सुशील और बाकी सब बातें करते करते कुछ ही देर बाद शेखर के खेत पर पहुंच गए। खेत पर पहुंचकर सबने एक एक झोला ले लिया और एक लाइन से टमाटर तोड़ने लगे। ज्यादा लोगों के होने से टमाटर तोड़ने का काम जल्दी हो गया। उसके बाद सबने मिलकर सुशील के खेत के भी टमाटर तुड़वा लिए। देखते ही देखते उनके सामने आठ से दस टमाटर के झोले भर चुके थे। अब टमाटरों को घर ले जाने की बारी थी। सबने दोनो साइकिल पर चार चार टमाटर से भरे झोले टांग दिये। सुशील और शेखर ने अपनी अपनी साइकिल ली और पैदल पैदल चलने लगे। आइड साइड झोले संभालने के लिये सुशील के साथ रघु चल रहा था और शेखर के साथ शिल्पा चल रही थी।

थोड़ी देर बाद चारो सुशील के घर पर पहुंच चुके थे। शेखर का घर सुशील के घर से सौ मीटर दूर था इसलिए सबने सोचा की टमाटर को सुशील के घर पर से ही बाजार ले जायेंगे। इससे समय भी बचता। सुशील और शेखर ने मिलकर एक लोडिंग गाड़ी किराये से बुक कर ली थी। दोनो ने बच्चो को देखते हुए कहा–“बेटा तुम दोनो यहीं घर पर रुको, तुम लोग टमाटरों को चुनकर केरेटों मे भरो और जो थोड़े कच्चे टमाटर हैं उनको अलग केरेटों मे रखना।” ये कहकर सुशील और शेखर साइकिल लेकर खेतों के लिए रवाना हो गए। रघु और शिल्पा ने भी टमाटरों को केरेटों मे भरना शुरू कर दिया।

कुछ ही देर बाद सुशील और शेखर, बाकी के टमाटर लेकर घर आ चुके थे, साथ मे शांतिऔर जानकी भी आ चुके थे। सबने मिलकर टमाटरों को केरेटों मे भरने का काम शुरू कर दिया। जल्दी ही सारे केरेट भर गए। सुशील ने गाड़ी वाले को आने के लिए फोन कर दिया। कुछ ही देर बाद गाड़ी वाला लोडिंग गाड़ी लेकर आ गया। सबने मिलकर टमाटरों से भरे केरेटों को गाड़ी मे रखवाया और सुशील और शेखर गाड़ी मे बैठ कर बाजार के लिए रवाना हो गए। उनके जाने के बाद रघु और शिल्पा आंगन मे बैठकर खेलने लगे, और जानकी और शांतिबैठकर बातें करने लगे। थोड़ी देर बाद जानकी और शिल्पा अपने घर चले गए और दुकान खोल ली। वहीं दूसरी तरफ शांतिघर के काम मे लग गई, और रघु गाय बकरियों को लेकर चराने के लिए ले गया।

उधर दूसरी तरफ सुशील और शेखर बाजार पहुंच चुके थे। उन्होंने गाड़ी से टमाटर के केरेट उतरवाए और जहां वो दुकान लगाते थे वहां ले गए। दोनो पास पास मे ही दुकान लगाते थे। उन्होंने टमाटरों से भरे केरेट एक के ऊपर एक जमा कर रख दिए। उस समय टमाटर का भाव 105 रूपये किलो चल रहा था। एक एक केरेट मे बीस बीस किलो टमाटर रखे हुए थे, मतलब एक केरेट टमाटर 2100 रूपये के थे। कुछ देर बाद कुछ महिलाएं उनके पास आईं और टमाटर का भाव पूछने लगी। सुशील और शेखर ने पहले तो बाजार के भाव से टमाटर के दाम बताए, पर वो महिलाएं भाव ताव करने लगी तो उन्होंने पांच रुपए प्रति किलो टमाटर के काम कर दिए, पर फिर भी वो महिलाएं दाम कम करने को बोल रही थी। पर सुशील और शेखर ने और दाम कम करने से मना कर दिया।

थोड़ी देर तक उन महिलाओं ने आपस मे बात की और फिर सौ रुपए प्रति किलो टमाटर लेने को तैयार हो गई। पहले ही सुशील और शेखर ने उन्हें बता दिया था की टमाटर अलग से नही मिलेंगे, अगर लेना हो तो एक केरेट लेना होगा। किसी महिला ने एक केरेट टमाटर लिया तो किसी ने दो तो किसी ने तीन केरेट टमाटर ले लिए। देखते ही देखते सभी टमाटर बिक गए।

सुशील और शेखर ने सारे केरेट साथ मे बांधे और फिर घर के लिए कुछ सब्जियां खरीदने लगे। बच्चो के लिए शक्कर पाला, जलेबी, समोसा और कचोरी भी ले लिए। उसके बाद उन्होंने एक टेंपो मे केरेट रखे और बैठकर घर के लिए रवाना हो गए। सुशील ने अपनी घड़ी मे देखा तो चार बज चुके थे। दोनो गांव के चौराहे पर उतर गए। दोनो पहले शेखर के घर गए, वहां थोड़ी देर तक बातें की उसके बाद सुशील अपने घर के लिए रवाना हो गया।

To be continued......