कुकड़ुकू - भाग 6 Vijay Sanga द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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कुकड़ुकू - भाग 6

दोपहर का समय हो रहा था। शांति, रघु, शिल्पा और जानकी भी मेले मे आ चुके थे। वो लोग सुशील और शेखर को ढूंढने लगे। कुछ ही देर बाद उन्हें शेखर की दुकान दिखाई दी। रघु ने जैसे ही देखा की उसके पापा के पास तीन मुर्गे हैं, वो भागता हुआ अपने पापा के पास गया और उन मुर्गों को देखते हुए पूछा, “पापा ये दो मुर्गे किसके हैं?”

सुशील साफ देख पा रहा था की दोनो मुर्गों को देख कर रघु कितना खुश है। उसने रघु के सर पर हाथ फेरते हुए कहा, “अरे बेटा ये अपने ही मुर्गे हैं, आज मैने मुर्गा लड़ाई मे उन्हे जीता है।”

“पापा इन दोनो मुर्गों को तो चोट लगी है।” रघु ने दोनो मुर्गों की चोट देखकर अपने पापा से कहा।

“हां बेटा, उन्हे लड़ाई मे चोट लग गई थी।” सुशील ने रघु से कहा। इसके बाद जानकी, शांति, शिल्पा और रघु मेले मे घूमने के लिए चले गए। शिल्पा ने देखा की एक दुकान पर बहुत सारे खिलौने और बहुत सारी चीजे थी। उस दुकान पर रिंग फेकने वाला खेल चल रहा था। रिंग फेक कर सामान और खिलौने जीत सकते थे। पंद्रह रूपये मे तीन रिंग मिल रही थी, जिसे सामान और खिलौनो पर फेंकना था। वो रिंग जिस भी सामान या खिलौने पर गिरती वो सामान या खिलौना लोगो को मिल जाता।

“मां... मां... मुझे भी ये खेल खेलना है, चलो ना मां जल्दी चलो।” शिल्पा ने अपनी मां से कहा और उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए उस दुकान की तरफ ले जाने लगी। “अरे हां, चल रहें हैं आराम से, आराम से।” जानकी ने शिल्पा से कहा।

“अरे जानकी बहन, शिल्पा का इतना मन है तो चलो चलतें हैं, हम सब भी अपनी किस्मत आजमा लेते हैं, हो सकता है हम भी कुछ सामान जीत जायें। चल बेटा रघु उस दुकान पर चलते हैं।” शांति ने इतना कहा और फिर वो सब उस दुकान की तरफ जाने लगें।

दुकान पर पहुंच कर जानकी ने दुकान वाले से कहा, “भईया तीन रिंग देना।” दुकानदार ने जानकी से पंद्रह रूपये लिए और तीन रिंग दे दिये। जानकी ने तीनो रिंग शिल्पा को दिया और कहा, “ये ले शिल्पा, तू पहले कोशिश कर।”

शिल्पा ने अपनी मां से तीनो रिंग लिये और पहला रिंग फेका, पर पहला रिंग किसी भी सामान पर नही गिरा। ऐसे ही शिल्पा ने बाकी दोनो रिंग भी फेक दिए, पर एक भी रिंग किसी सामान पर नही गिरा। अब शिल्पा का चेहरा उतर गया, वो एक तरफ हांथ बांधकर मुंह फुलाए खड़ी हो गई।

“बेटा रघु , तू क्यों नही खेल रहा? ये ले तू भी कोशिश कर, हो सकता है हम लोग कुछ सामान जीत जाएं!” कहते हुए जानकी ने तीनों रिंग रघु की तरफ बढ़ा दिये।

रघु का मन तो नहीं था पर उसने उनकी खुशी के लिए रिंग ले लिये। जैसे ही उसने पहला रिंग फेका, वो सीधा एक शेर के गुड्डे पर जा गिरा। ये देख कर शिल्पा को कोई खुशी नही हुई। फिर रघु ने दूसरा रिंग फेका तो वो रिंग सीधा जाकर एक साबुन के बंडल पर जाकर गिरा, फिर तीसरा रिंग फेका, तो वो सीधा एक टेडी बियर पर जाकर गिरा। ये देख कर शिल्पा एक पल के लिए खुश हुई, और फिर उदास सा चेहरा बना लिया।

बारी बारी जानकी और शांति ने भी रिंग फेके और कुछ न कुछ जीत लिया। इसके बाद जब सबने शिल्पा को देखा तो शिल्पा एक तरफ उदास खड़ी थी। रघु उसके पास गया और वो दोनो गुड्डे दिखाते हुए उससे पूछा, “अच्छा तो शिल्पा तू बता, इन दोनो मे से तुझे क्या चाहिए?”

रघु के मुंह से ये सुनकर शिल्पा ने झट से रघु के हांथ से टेडी बियर ले लिया और मुस्कुराने लगी। ये देख कर सबके चेहरों पर मुस्कान आ गई। इसके बाद सभी लोग एक झूले के पास पहुंचे। वो बहुत बड़ा झूला था।

“चलो बताओ कौन कौन झूले पर बैठेगा?” जानकी ने सबसे देखते हुए पूछा। ये सुनकर शिल्पा और रघु तो बहुत खुश हो गए पर शांति खुश नही दिख रही थी।

जानकी ने शांति को आवाज दी और पूछा, “जानकी क्या हुआ? तुम खुश नही लग रही?” शांति जो की अब तक झूले की तरफ देख रही थी, अचानक जानकी की बात सुनकर उसका ध्यान टूट गया। उसने हड़बड़ाते हुए कहा, “हां..जानकी बहन..! तुम कुछ बोल रही थी क्या?”

“अरे तुम्हारा ध्यान कहां है? मैने पूछा, झूले पर बैठोगी!” जानकी ने शांति से पूछा।

“अरे नही, मुझे इस झूले पर बैठने से बहुत डर लगता है। मैं बचपन मे एक बार ऐसे ही झूले पर बैठी थी, मेरी तो हालत ही खराब हो गई थी, तब से मैने हांथ जोड़ लिया की मैं ऐसे झूले पर कभी नही बैठूंगी।” शांति की ये बात सुनकर जानकी, रघु और शिल्पा, शांति की तरफ देख कर हंसने लगे। ये देख कर शांति की नजरे शर्म के मारे नीचे हो गईं।

“चलो बच्चो, हम लोग झूले पर चलते हैं। शांति हम लोग झूले पर बैठ कर आते हैं, मैं तो कहती हूं तू भी चल, कुछ नही होगा।” जानकी ने शांति से आखरी बार पूछा। शांतिने थोड़ी देर ना नुकर किया और फिर झूले पर बैठने के लिए मान गई।

जानकी ने झूले की चार टिकट ली और चारो झूले पर बैठ गए। जैसे ही झूला शुरू हुआ, शांति अपनी आंखें बंद करके बड़बड़ाने लगी। “हे भगवान मुझे बचा लेना, आज मुझे बचा लेना।” जानकी और बच्चों ने ये देखा तो हंसने लगे। थोड़ी देर बाद झूला रुका तो सब झूले से नीचे उतर गए। बाकी सब तो ठीक थे, पर शांति ठीक नही लग रही थी, उसे चक्कर आ रहे थे। जानकी ने उसे संभालते हुए कहा, “अरे शांति क्या हुआ ? तू ठीक तो है ना?” शांति ने खुदको संभालते हुए जानकी एस कहा, “जानकी बहन, मुझे चक्कर आ रहा है।” ये कहते हुए शांति वहीं एक बेंच पर बैठ गई।

मेले मे घूमते घूमते कब शाम हो गई पता ही नही चला। जानकी और शांति ने बच्चो को कुछ सामान और खिलौने दिलाए और सब वापस आने लगे।

सब लोग मेले मे घूम फिर कर वापस शेखर की दुकान पर आ गए। वहां शेखर और सुशील बैठ कर बातें कर रहे थे। “अरे आप लोग मेला घूम कर आ गए...! कैसा लगा मेला?” शेखर ने जानकी, शांति और बच्चो की तरफ देखते हुए पूछा।

“अरे हमे तो बहुत मजा आया। हम लोग बड़े वाले झूले पर बैठे थे। पर लगता है शांति बहन को उतना मजा नही आया।” जानकी ने शांति की तरफ इशारा करते हुए सबसे कहा। ये सुनकर सुशील ने शांति से पूछा, “क्या हुआ शांति ! तुम ठीक तो हो ना?” शांति ने सुशील की तरफ देखते हुए कहा, “कुछ नही, वो बड़े झूले पर बैठी थी ना, तो थोड़ा चक्कर आ गया था।

इसके बाद थोड़ी देर तक सबने बातें की, उसके बाद सभी ने मिलकर शेखर ने दुकान का समान जमवाया और फिर सब वापस घर आने के लिए रवाना हो गए।

चलते चलते सुशील ने जानकी से कहा, “जानकी भाभी, आज आप सबको हमारे यहां खाने पर आना है।”

जानकी ने जब सुशील की ये बात सुनी, तो उसने उत्सुकता भरे भाव से पूछा, “सुशील भईया आज कुछ खास है क्या?”

“अरे भाभी आज मुर्गा लड़ाई मे दो लड़ाई जीता था, उसमे अच्छे खासे पैसे जीत गया और साथ मे ये दो मुर्गे भी जीतने पर मिले हैं, तो आज इनकी ही दावत होगी।” सुशील ने कहा और मुस्कुराने लगा।

“अच्छा तो ये बात है, मतलब आज मुर्गों की दावत है, तो ठीक है, आज का खाना आपके घर।” जानकी ने कहा और मुस्कुराने लगी।

इस कहानी का आज का भाग यहीं पर समाप्त होता है। मिलते हैं जल्द अगले भाग में।